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पंडित शुकलाल पाण्डेय : छत्तीसगढ़ गौरव

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हमर देस

ये हमर देस छत्‍तीसगढ़ आगू रहिस जगत सिरमौर।
दक्खिन कौसल नांव रहिस है मुलुक मुलुक मां सोर।
रामचंद सीता अउ लछिमन, पिता हुकुम से बिहरिन बन बन।
हमर देस मां आ तीनों झन, रतनपुर के रामटेकरी मां करे रहिन है ठौर।।
घुमिन इहां औ ऐती ओती, फैलिय पद रज चारो कोती।
यही हमर बढ़िया है बपौती, आ देवता इहां औ रज ला आंजे नैन निटोर।।
राम के महतारी कौसिल्या, इहें के राजा के है बिटिया।
हमर भाग कैसन है बढ़िया, इहें हमर भगवान राम के कभू रहिस ममिओर।।
इहें रहिन मोरध्वज दानी, सुत सिर चीरिन राजा-रानी।
कृष्ण प्रसन्न होइन बरदानी, बरसा फूल करे लागिन सब देवता जय जय सोर।।
रहिन कामधेनु सब गैया, भर देवै हो लाला ! भैया !!
मस्त रहे खा लोग लुगैया, दुध दही घी के नदी बोहावै गली गली अउ खोर।।
मरत प्यास परदेशी आवै, पीये बर पानी मँगवावैं।
पानी ठौर म दूध पियावैं, जाय विदेसी इंहा के जस ल गात फिरैं सब ठौर।।
नाप नाप काठा म रूपिया, बेहर देवत रहिन गऊंटिया।
रहिस इमान न ककरो घटिया, कभू नहीं इस्टाम लिखवाइन लिहिन गवाही और।।
धनी रहिन सब ठाम ठाम मां, मुहर सुखावत रहिन घाम मां।
फेर पूजा कर धरैं माँझ मां, दिया दिखावैं, चँवर डोलावैं पावें खुसी अथोर।।
घर मां नहीं लगावें तारा, खुल्ला छोड़ मकान दुवारा।
घूमैं करैं काम सारा, रहे चीज जैसने के तैसन कहूं रहिन नहिं चोर।।
सबो रहिन है अति सतवादी, दुध दही भात खा पहिरै खादी।
धरम सत इमान के रहिन है आदी, चाहे लाख साख हो जावै बनिन नी लबरा चोर।।
पगड़ी मुकुट बारी के कुंडल, चोंगी बंसरी पनही पेजल।
चिखला बुंदकी अंगराग मल, कृष्ण-कृषक सब करत रहिन है गली गली मां अंजोर।।
रहिस बिटिया हर नंदरैया, भुइंये रहिस जसोदा मैया।
बैले बलदाऊ भैया, बसे गांव गोकुल मां बन-बन रहिन चरावत ढोर।।
रहिस कोनो खेत भात के थरिया, कोन्नो रहिस दार थरकुरिया।
रहिस कोन्नो रहिस रोटी के खरिया, कोनो तेल के, कोनो वस्त्र के, कोनो साग के और।।
सबे जिनिस उपजात रहिन हैं, ककरो मूं नई तकत रहिन हैं।
निचट मजा मा रहत रहिन हैं, बेटा-पतो, डौकी-लैका रहत रहिन इक ठौर।।
अतिथि अभ्यागत कोन्नो आवें, घर माटी के सुपेती पावे।
हलवा पूरी भोग लगावें, दूध दही घी अउ गूरमां ओला देंय चिभोर।
तिरिया जल्दी उठेनी सोवे, घम्मर-घम्मर मही विलोवे,
चरखा काते रोटी पोवे, खाये किसान खेत दिशि जावे चोंगी माखुर जोर।
धर रोटी मुर्रा अउ पानी, खेत मा जाय किसान के रानी।
खेत ल नींदे कहत कहानी, जात रहिन फेर घर मां पहिरे लुगरा लहर पटोर।
चिबक हथौरी नरियर फोरैं, मछरी ला तीतुर कर डारैं।
बिन आगी आगी उपजारैं, अंगुरि गवा मां चिबक सुपारी देवें गवें मां फोर।
रहिस गुपल्ला वीर इहें ला, लोहा के भारी खंभा ला।
डारिस टोर उखाड़ गड़े ला, दिल्ली के दरबार मां होगे सनासट सब ओर।
रेवाराम गुपाल अउ माखन, कवि प्रहलाद दुबे नारायन।
बड़े बड़े कवि रहिन हैं लाखन, गुनवंता बलवंता अउ धनवंता के अय ठौर।।
राजा रहिन प्रतापी भारी, पालिन सुत सम परजा सारी।
जसते रहिन बड़े अधिकारी, आपन जस के सुरूज के बल मां जग ला करिन अंजोर।
कहाँ कहौं गनियारी घुटकू, कहि देथौं मैं एक ठन ठुपकू।
आंखी, कांन पोंछ के ननकू, पढ़ इतिहास सुना संगवारी तब तैं पावे सोर।

इसके रचनाकार छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित शुकलाल पाण्डेय हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘‘छत्तीसगढ़ गौरव‘‘ से साभार प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके प्रस्तुतकर्त्ता हैं प्रो. अश्विनी केशरवानी।


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