Quantcast
Channel: gurtur goth
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1686

रीतु बसंत के अवई ह अंतस में मदरस घोरथे

$
0
0

हमर भुईयां के मौसम के बखान मैंहा काय करव येकर बखान तो धरती, अगास, आगी, पानी, हवा सबो गोठियात हे। छै भाग में बाटे हाबय जेमे एक मोसम के नाव हे बसंत, जेकर आय ले मनखे, पशु पक्षी, पेड़ पऊधा अऊ परकिरती सबो परानी म अतेक उछाह भर जथे जेकर कोनों सीमा नईये। माघ के महीना चारों कोती जेती आँख गड़ाबे हरियरे हरियर, जाड़ के भागे के दिन अऊ घाम में थोरको नरमी त कहू जादा समे घाम ल तापे त घाम के चमचमई। पलाश के पेड़ ल देखबे त अंगरा आगी असन पिवरा पिवरा फुल के खिलई, बौरे आमा पेड़ के ममहई, कोयल के कुहकई, चिरई चिरगुन के ये डारा ले वो डारा फुदकई, तरिया, डबरी, नदिया नरवा के पानी के गहरई, चारों कोती देख ले कोनों मेर सुन्ना नीं लागय सबो जगा भरे भरे उचास लागथे। घर होवय ते बन, खेत खार बियारा बारी अईसन निक लागथे अंतस के पीरा ह बसंत के आय ले भगा जथे। शादी बिहाव के होवई, गीता भागवत पूजा पाठ के चारों मुड़ा गियान बगरत रीथे। तिहार असन उछाह, कोनों नाचत हे, कोनों गावत हे, झांझ मंजीरा बजात कतको झन स्नान धियान अऊ मेला मंडई ते कोनों ह तीरथ बरथ करत दान पुन करत पुन कमात हे। अऊ ओकरे सेती कला, संगीत, वाणी, परेम, बिदया, लेखनी, ऐश्वर्य के देवी सरसती ह सबो परानी ऊपर अपन आशीष ल घलो बरसात रीथे।
शुभ मंगल सबो काम सजय,
चहूं ओर मिरदंग बाजै।
शीतल सुरभित मदमस्त पवनवा,
अमुआ के बौर ले खुशबु बाटै।
कुक कुक कुक कोयली कुहकय,
तभे तरुवर ले कमलिनी झाकै।
मतवाला माहोल देखके,
अंतस के तरंग बड़ हिलोरे मारे।

तभे तो बसंत के महीना ल रीतु मन के राजा कीथे। ये महीना ल सबो परानी के सेहत बर बड़ अच्छा माने गेहे, सबो परानी मन में नवचेतना अऊ नवउमंग के जोश समाथे। चारों कोती बहारे बहार ओनहारी पाती के गदबदाय झुमई ल देख डोकरा मन जवान हो जथे, ठुड़गा मन पहलवान बन जथे। सरसों के खेत के महर महर महकई, गेहूं के बाली के निकलई, पंखुड़ियों में तितली के मंडरई, भंवरा के गुनगुनई, अईसे लागथे चारों मुड़ा प्यारे प्यार के बरसात होत हे। धरती में होले होले पवन के चलई, मतवाला मनखे के इतरई, तरिया डबरी में कमल के खिलई देख के अईसने अभास होथे कि कोनों नवा बहुरिया के घर दुवार में आगमन होय हे। जेकर सुगंध ह पूरा घर दुवार ल सुगन्धित करत हे। अऊ ओकर आय ले सब नाचत, गावत, झूमरत उछाह मनात हे। ये सब ल देख के अईसे लागथे कि कोनों आके अंतस में मदरस घोरत हे।
का धरती, का अगास,
विहंग उड़य बुझाय बर पियास।
परकिरती के नवा रंगत देख,
झुमै नाचै सबो परानी आज।

विजेन्द्र वर्मा अनजान
नगरगांव (जिला-रायपुर)

The post <span>रीतु बसंत के अवई ह अंतस में मदरस घोरथे</span> appeared first on गुरतुर गोठ .


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1686


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>