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कविता- बसंत बहार

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बसंत बहार छागे सुग्घर,
कोइली गीत गावत हे।
अमरइया के डारा सुग्घर,
लहर-लहर लहरावत हे।।

चिरइ चिरगुन चींव-चींव करके,
सुग्घर चहकी लगावत हे।
कउँवा करत हे काँव-काँव,
तितुर राग बगरावत हे।।

सरसों के सोनहा फुल फुलगे,
अरसी हा लहलहावत हे।
सुरूज मुखी हा चारो कोती,
सुग्घर अँजोर बगरावत हे।।

फुल बगियाँ मा फुल फुलगे,
सतरंगी रंग बगरावत हे,
मलनियाँ रानी मगन होके,
मने मन मुसकावत हे।।

आमा अमरइया मउँरगे सुग्घर,
डारा पाना हरियावत हे।
रूख राइ हा नाचत सुग्घर,
पुरवइया अँचरा डोलावत हे।।

वीना धरे हे सारदा माई,
सातो सुर लमावत हे।
गियानदायनी माँ बागीश्वरी,
गियान ला बगरावत हे।।

बसंत पंचमी के तिहार सुग्घर,
सबके मन ला भावत हे।
सीत लहर के बेरा मा,
बसंत बहार बगरावत हे।।

बसंत बहार छागे सुग्घर,
कोइली गीत गावत हे।
अमरइया के डारा सुग्घर,
लहर-लहर लहरावत हे।।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम(घटारानी)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
मों.9009047156

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