Quantcast
Channel: gurtur goth
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1686

जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया के मत्तगयंद सवैया

$
0
0

(1)
तोर सहीं नइहे सँग मा मन तैंहर रे हितवा सँगवारी।
तोर हँसे हँसथौं बड़ मैहर रोथस आँख झरे तब भारी।
देखँव रे सपना पँढ़री पँढ़री पड़ पाय कभू झन कारी।
मोर बने सबके सबके सँग दूसर के झन तैं कर चारी।
(2)
हाँसत हाँसत हेर सबे,मन तोर जतेक विकार भराये।
जे दिन ले रहिथे मन मा बड़ वो दिन ले रहिके तड़फाये।
के दिन बोह धरे रहिबे कब बोर दिही तन कोन बचाये।
बाँट मया सबके सबला मन मंदिर मा मत मोह समाये।
(3)
कोन जनी कइसे चलही बरसे बिन बादर के जिनगानी।
खेत दिखे परिया परिया तरिया म घलो नइ हावय पानी।
लाँघन भूखन फेर रबों सुनही अब मोर ग कोन ह बानी।
थोरिक हे सपना मन मा झन चान ग बादर तैहर चानी।
(4)
आदत ले पहिचान बने अउ आदत ले परखे नर नारी।
फोकट हे धन दौलत तोर ग फोकट हे घर खोर अटारी।
मीत रहे सबके सबके सँग बाँट मया भर तैंहर थारी।
तोर रहे सब डाहर नाँव कभू झन होवय आदत कारी।
(5)
लाल दिखे फल हा पकथे जब माँ अँजनी कहिके बतलाये।
बेर उगे तब लाल दिखे फल जान लला खुस हो बड़ जाये।
भूख मरे हनुमान लला तब सूरज देव ल गाल दबाये।
छोड़व छोड़व हे ललना कहिके सब देवन हाथ लमाये।
(6)
हे दिन रात ह एक बरोबर छाय घरोघर मा अँधियारी।
खेवन खेवन देवन के अरजी सुन मान गये बल धारी।
हेरय सूरज ला मुँह ले सब डाहर होवय गा उजियारी।
हे भगवान लला अँजनी सब संकट देवव मोर ग टारी।
(7)
बाँटय जेन गियान सबो ल उही सिरतोन कहाय गियानी।
पालय पोंसय जेन बने बढ़िया करथे ग उही ह सियानी।
भूख मरे घर बाहिर जेखर वो मनखे ह कहाय न दानी।
वो मनखे ल ग कोन बने कहि बोलय जेन सदा करु बानी।
(8)
मूरख ला कतको समझावव बात कहाँ सुनथे अभिमानी।
आवय आँच तभो धर झूठ ल फोकट के चढ़ नाचय छानी।
स्वारथ खातिर वोहर दूसर ला धर पेरत हावय घानी।
देखमरी म करे सब काम ल घोरय माहुर पीयय पानी।
(9)
चोर सही झन आय करौ,झन खाय करौ मिसरी बरपेली।
तोर हरे सब दूध दही अउ तोर हरे सब माखन ढेली।
आ ललना बइठार खवावहुँ गोद म मोर मया बड़ मेली।
नाचत तैं रह नैन मँझोत म जा झन बाहिर तैंहर खेली।
(10)
भारत के सब लाल जिंहा रहिथे बनके बड़ जब्बर चंगा।
देख बरे बिजुरी कस नैन ह कोन भला कर पाय ग दंगा।
मारत हे लहरा नँदिया खुस हो यमुना सिंधु सोंढुर गंगा।
ऊँच अगास म हे लहरावत भारत देश म आज तिरंगा।
(11)
गोप गुवालिन के सँग गोंविद रास मधूबन मा ग रचाये।
कंगन देख बजे बड़ हाथ म पैजन हा पग गीत सुनाये।
मोहन के बँसुरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके के मन भाये।
एक घड़ी म रहे सबके सँग एक घड़ी सब ले दुरिहाये।
(12)
देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।
रोवत हावय गाय गरू मन लेग मधूबन तीर चराना।
कान ह मोर सुने कुछु ना अब आ मुरली धर गीत सुनाना।
काल बने बड़ कंस फिरे झट आ तँय मोर ग जीव बचाना।
(13)
नीर बिना नयना पथराय ग आय कहाँ निंदिया अब मोला।
फेर सुखाय सबो सपना बिन बादर खेत बरे घर कोला।
का भरही कठिया चरिहा नइ तो ग भरे अब नानुक झोला।
देख जनावत हे जग मा अब लूट जही हर हाल म डोला।
(14)
भीतर द्वेष भरे बड़ हावय बाहिर देख न डोल ग जादा।
रंग भरे बर जीवन मा तँय बेच दिये मन काबर सादा।
कोन जनी कइसे करबे अब हावय का अउ तोर इरादा।
काम बुता बड़ देख धरे जर फेर लड़े बनके तँय दादा।
(15)
आवव हो गजराज गजानन आसन मा झट आप बिराजौ।
काटव क्लेश सबे तनके ग हरे बर तैं सब पाप बिराजौ।
नाम जपे नइ आवय आफत हे सुख के तुम जाप बिराजौ।
काज बनाय सबो झनके सुर हे शुभ राशि मिलाप बिराजौ।
(16)
टेंवत हे टँगिया बसुला अपने बर छोड़य तीर ल कोई।
लाँघन भूँखन के सुरता बिन झेलत हावय खीर ल कोई।
मारत हे मनके सदभाव ल देख सजाय शरीर ल कोई।
लेवत हे लउहा लउहा नइ तो ग धरे अब धीर ल कोई।
(17)
दूसर खातिर धीर करे सब तो अपने बर तेज बने हे।
हे कखरो चिरहा कथरी अउ देख कहूँ घर सेज बने हे।
छप्पन भोग बने कखरो घर ता कखरो घर पेज बने हे।
कोन लिही सुध भारत के मनखे ग इहाँ अँगरेज बने हे।
(18)
माँग हवे बड़ हाट बजार म भाव घलो ग बने चढ़के हे।
छोट मँझोलन का कहिबे बड़कापरिवार घलो झड़के हे।
आज घलो छटठी बरही मुनगा बिन देख कहाँ टरके हे।
दार टमाटर नून मिरी सँग स्वाद ह एखर गा बढ़के हे।

जीतेन्द्र वर्मा”खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)



The post जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया के मत्तगयंद सवैया appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1686


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>