
झन करौ गा भेद महूं संतान अँव
बिधि के बिधान अँव
बचपन म पाँव के पइरी सरग ले सुहाथे
घर के बूता म दाई ल हाथ कोन बटाथे
लीप बाहर अँगना दुवार कोन सजाथे
लक्षमी दू दिन के मेहमान अँव
जोड़थौं बिहा के मैं दू ठिन परिवार ल
ए घर ले वो घर ले जाथौं संस्कार ल
पीरा सहि कोख ले जनमथौं संसार ल
सोचैं तो मैं जग के जान अँव
सोचै महतारी तुँहर रहिस कखरो बेटी
जेकर ले बिहाव करेव उहू कखरो बेटी
कहाँ पाहू बहू जब मारत जाहू बेटी
शक्ति के जीयत परमान अँव
2. लोरी
सो जा सो जा बेटी मोर राजदुलारी
बिहिनिया ले करबे तै शेर सवारी
रेंगना तोर छुन सुन घर लेथे साँस
हिरदे के भीतरी तैं बैठे मुचमुच हाँस
रूप तोर लक्ष्मी दुरगा सरस्वती
जग म तैं जनमें जगे ल जनमे सेती
सजाथस लीप चैंक अँगना दुवारी
जाबे तैं लक्ष्मी कस सज ससुरार
ले जाबे डोली भर धर संस्कार
घर परिवार के मान मढ़ाबे
जग ल बेटी के महात्तम बताबे
रूप बेटी के बहू बहिनी महतारी
एक तोर पढ़े ले घर भर हँ पढ़ही
तोर चाल चलन पाछू दुनिया बढ़ही
दहेज लेवइया बर नवदुर्गा बन जा
कोख गिरइया बर सुरसा अस तनजा
शक्ति तैं जग ले मिटा अत्याचारी
3. बेटी घलो संतान हे
बेटी घलो संतान हे आखिर
उहू बिधि के बिधान हे आखिर
नइ उपजय कोनो भिंभोरा ले
कोखे ले सरी जहान हे आखिर
दाई बाई बहिनी बेटी नाम के
रिश्ता नता के जान हे आखिर
घर नइ जोड़य इन सिरिफ बिहा
नारी म नता खदान हे आखिर
बेटे म जग चलही का बानी हे
बेटी के गुन जान हे आखिर
दाई बाई बहिन बेटी एक
बैरी काबर संतान हे आखिर
बेटी लक्ष्मी जलधार सहीन
दू दिन के मेहमान हे आखिर
4. होगे पहुना बेटी
सुन्ना होगे पहुना बेटी,
दाई ददा के कोरा गंवई,
अन अमागे कोठार ले कोठी,
खड़े खेत रोवय नरई,
गिर जाय भले घेंच ले गेरूआ,
टूटय नहीं कभू नता के नेरूआ,
हम तो आवन वो पिरिया के झिरिया,
कहिथे इही आवय सरग के सिढ़िया,
धधकत हे छाती जस कोनो भट्ठी,
रही रही आंखी के छलकई
कोजन बहुरिया कइसन खवाही,
तोर पुतरी-पुतरा अबड़ बिजराही,
बईला के आरो पा भात निकल जय,
हरहिंसा तोर दाई पारा भर किंदरय।
घर ल बोंमियाही भांय ले करके,
सुरता के गली म तोर किलकई।
रेेहेस हमर मेर गहना तैंहा
बनिस जइसन तोला देहन छंईंहा,
झोरी ल असाढ़ पानी कस छोड़े
जाके के समुंद संग नाता जोरे,
आबो जाबो झन तैं सुरहरबे,
रीत ए सुख दुख अवई जवई।
धमेन्द्र निर्मल
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