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रामनौमी तिहार के बेरा म छत्तिसगढ़ में श्रीराम

-प्रोफेसर अश्विनी केसरवानी आज जऊन छत्तिसगढ़ प्रान्त हवय तेखर जुन्ना गोठ ल जाने बर हमन ल सतजुग, तेरताजुग अऊ द्वापरजुग के कथा कहिनी ल जाने-पढ़ेबर परही। पहिली छत्तिसगढ़ हर घोर जंगल रहिस। इहां जंगल, पहाड़, नदी...

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विश्व जल संरक्षण दिवस : सार छंद मा गीत –पानी जग जिनगानी

पानी जग जिनगानी मनवा, पानी अमरित धारा। पानी बिन मुसकुल हे जीना, पानी प्रान पियारा। जीव जगत जन जंगल जम्मो, जल बिन जर मर जाही। पाल पोस के पातर पनियर, पानी पार लगाही। ए जग मा जल हा सिरतो हे, सबके सबल...

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व्‍यंग्‍य : बवइन के परसादे

कोनो भी बाबा के सफलता के पछीत म कोर्ह न कोई बवइन के पलौंदी जरूर होथें। मैं अपन चोरी चमारी के रचना सुना सुनाके तीर तखार के गाॅव म प्रसिध्द होगे हौं। फेर घर म जोगडा के जोगड़ा हौं। उही चिटियाहा चड्डी...

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वाह रे कलिन्दर

वाह रे कलिन्दर, लाल लाल दिखथे अंदर। बखरी मा फरे रहिथे, खाथे अब्बड़ बंदर। गरमी के दिन में, सबला बने सुहाथे। नानचुक खाबे ताहन, खानेच खान भाथे। बड़े बड़े कलिन्दर हा, बेचाये बर आथे। छोटे बड़े सबो मनखे,...

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छत्‍तीसगढ़ी गज़ल

एक बेर मदिरालय मा, आ जातेस उप्पर वाले। दरुहा मन ल बइठ के तैं समझातेस उप्पर वाले। जिनगी के बिस्वास गँवागे ऊँकर मन म लागत हे, मिल-बइठ के अंतस मा,भाव जगातेस उप्पर वाले। हरहिंसा जिनगी जीये के भाव कहाँ...

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महतारी तोर अगोरा मा

परसा झुमरै कोइली गावय, पुरवईया संग,दाई के अगोरा मा। नवा बछर ह झुम के नाचय, सेउक माते ,नवरात्रि के जोरा मा।। लाली धजा संग देव मनावय, भैरो बाबा , गाँव के चौंरा-चौंरा मा।। बईगा बबा ह भूत भगावय, मार के...

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बेटी ल बचाबो

जग म आए के पहली , झन मारव कोनो बेटी ला। दुख म सुख म काम आते, झन धुतकारव बेटी ला। बेटी बिना हे जग ह सुन्ना, अऊ सुन्ना घर दुआर परछी ग। झन डालव कोनो गोड म बेड़ी, उड़ान दे बनके पनछी ग। पढ़न लिखन दे मन के...

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झाड़ फूंक करलौ जी लोकतंत्र के

कोलिहा मन करत हे देखव सियानी, लोकतंत्र के करत हे चानी चानी। जनम के अढहा राजा बनगे, परजा के होगे हला कानी। भुकर भुकर के खात किंजरत, मेछराय गोल्लर कस ऊकर लागमानी। अंधरा बनावत हे लोकतंत्र ल, रद्दा घलो...

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रोवत हे किसान

ए दे मूड़ ला धरके रोवत हे किसान। कइसे धोखा दे हे मउसम बईमान।। ए दे मूड़ ला धरके……………….. झमाझम देख तो बिजली हा चमके। कहुँ-कहुँ करा पानी बरसतहे जमके।। खेती खार नास होगे देखव भगवान। ए दे मूड़ ला धरके…………………...

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माटी के पीरा

मोर माटी के पीरा ल जानव जी। अपन बोली भाखा ल मानव जी। छत्तीसगढ़िया बोली भाखा ला। अपन जिनगी म उतारव जी। सब्बो छत्तीसगढ़ीया भाई, छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाव जी । हम अपनाबो ता सब अपनाही। अपन भाखा म गुरतुर...

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गरमी आगे

आमा टोरे ल जाबो संगी , गरमी के दिन आये । गरम गरम हावा चलत , कइसे दिन पहाये । नान नान लइका के , होगे जी परीक्षा । मंझनिया भर घूमत हे , चड्डी पहिर के दुच्छा । ए डारा से ओ डारा मे , बेंदरा सही कूदथे ।...

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खिल खिलाके तोर मुस्काई

खिलखिलाके तोर मुस्काई अबड़ मोला सुहाथे मुड़ मुड़ के तोर देखना गजब भाथे हंसी हंसी म संगवारी मन तोर करथे चारी गजब हे तोर संगवारी खिलखिलाना घर के दुआरी म अंगना के कोना म सड़क के किनारे तरिया के पार म पड़ोस के...

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पछताबे गा

थोरिको मया,बाँट के तो देख, भक्कम मया तैं पाबे जी। पर बर, खनबे गड्ढा कहूँ, तहीं ओंमा बोजाबे जी।। उड़गुड़हा पथरा रद्दा के, बनके ,झन तैं घाव कर। टेंवना बन जा समाज बर, मनखे म धरहा भाव भर।। बन जा पथरा मंदीर...

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प्रभु हनुमान जइसे भगत बनना चाही

पूरा भारत देस के कोंटा-कोंटा म भगवान श्री राम के नाव हे अउ ओखर नाव के संगे-संग श्री राम जी के सबले बड़े भक्‍त हनुमान के नाव सब्बो कोती लेहे जाथे, जइसे श्री राम के बड़े भक्‍त भगवन हनुमान हवयं, वइसने भगत...

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छत्तीसगढ़ गज़ल और बलदाऊ राम साहू

-डॉ. चितरंजन कर निस्संदेह गज़ल मूलत: उर्दू की एक काव्य विधा है, परन्तु दुष्यंत कुमार के बाद इसकी नदी बहुत लंबी और चौड़ी होती चली गई है। जहाँ-जहाँ से यह नदी बहती है, वहाँ-वहाँ की माटी की प्रकृति, गुण,...

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सुरूज नवा उगइया हे : छत्‍तीसगढ़ी गज़ल संग्रह

अपनी बात साहित्य में गज़़ल का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उर्दू साहित्य से चल कर आई यह विधा हिंदी व लोकभाषा के साहित्यकारों को भी लुभा रही है। गज़़ल केवल भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि यह...

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दोहा छंद म गीत

काँटों से हो दोस्ती, फूलों से हो प्यार। इक दूजे के बिन नहीं, नहीं बना संसार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. कठिन डगर है जिंदगी, हँस के इसे गुजार। दुनिया का रिश्ता यहीं, निभता जाये यार।। काँटों से हो...

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आरटीओ चेकिंग : समसामयिक हास्य संस्मरण

एक्सीलेटर ल मुठा म चीपे जोर से अइंठत सुन्ना रोड म फटफ़टी ल भगावत रहेंव, सनसन..सनसन… बोंअअ…ओंओंअअ ..। रद्दा में देखेंव त आठ दस झन मनखे मन तिरयाये अपन मोटरसाइकिल धरके खड़े रहय। एक झन नवरिया बिहतिया कस...

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माफी के किम्मत

भकाड़ू अऊ बुधारू के बीच म, घेरी बेरी पेपर म छपत माफी मांगे के दुरघटना के उप्पर चरचा चलत रहय। बुधारू बतावत रहय – ये रिवाज हमर देस म तइहा तइहा के आय बइहा, चाहे कन्हो ला कतको गारी बखाना कर, चाहे मार, चाहे...

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बाबू जगजीवनराम अऊ सामाजिक समरसता : 5 अप्रैल जन्म-दिवस

हिन्दू समाज के निर्धन अऊ वंचित वर्ग के जऊन मनखे मन ह उपेक्षा सहिके घलोक अपन मनोबल ऊंचा रखिन, ओमां बिहार के चन्दवा गांव म पांच अप्रैल, 1906 के दिन जनमे बाबू जगजीवनराम के नाम उल्लेखनीय हे। ऊंखर पिता श्री...

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