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परकिती के परती आत्मियता के तिहार ये हरेली

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कोनो भी देस-राज के पहिचान ओखर सभियता अऊ संसकिरिती से होथे। हमर भारत देस ह आनी-बानी के सभियता अऊ संसकिरिती के देस हाबय। इहा जम्मू कसमीर से ले के कनियाकुमारी तक अऊ अरूनाचल परदेस से ले के गुजरात तक आनी-बानी के सभियता अऊ संसकिरिती ल मानने वाला म रईथे। हमर भारत देस ह किरसी परधान देस ये अऊ किसान देस के अरथबेवस्था के रीढ़ ये।
भारत के हर राज म किसान मन ऊंहा के परंपरा अऊ संसकिरिती म फसल के बोआई से ले के मिसाई तक तिहार के रूप म आपस म जुर-मिल के खुसी मनाथे जे ह ऊंकर एकता के परतीक हे। हमर छत्तीसगढ़ राज म घलो किसान भाई मन बरसात के दिन आते साथ खेती-किसानी के काम म लग जाथे अऊ फसल के ठीक-ठाक बोआई के बाद अपन खेती-किसानी म काम आने वाला किरसी उपकरन मन जैइसेः- हल, रांपा, कुदारी, गैइती, साबर, मन ल बढ़िया धो-मांजगे माटी या रेती के आसन बना के ये किरसी उपकरन मन ल ओखर ऊपर रख के बड़ सरद्धा भाव से ये किरसी उपकरन मन मा गुलाल टिक के फूल,दूबी चढ़ा के धूपबत्ती जलाये जाथे। दिया जला के नारियल चढ़ाये जाथे अऊ ये दिन सावन महिना के अमावस्या के दिन जेला हमन कईथन हरेली। जे ह हमर छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार। घर म आनी-बानी के पारंपरिक सुवादिस्ट ब्यंजन चीला, बोबरा, अरसा, गुलगुल, भजिया, देहरऊली, फरा बनाये जाथे अऊ पास-पड़ोस म ये ब्यंजन मन ल परसाद के रूप म बांट के आपस म मिर-जुर के खुसी मनाथे जे ह आपसी भाई-चारा ल बढ़ावा देथे। घर म पूजा-पाठ करे के बाद लईका ले के सियान मन घलो गेड़ी चढ़ के अपन खुसी ल परगट करथे। ये गेड़ी दो बांस के बनाये जाथे। दूनो लंबा बांस ल भुंइया ले 2 या 3 फूट के उंचाई म गोड़ रखे बर आड़ा बांस के टुकड़ा ल रखे जाथे। अऊ येमा गोड़ ल रख के लईका ले ले के सियान म घलो गेड़ी चढ़े के मजा लेथे। गेड़ी दउड़ के आयोजन भी किये जाथे। येखर संगे-संग नारियल जीत के खेल घलो खेले जाथे। हरेली के दिन ले हमर छत्तीसगढ़ राज म तिहार मनाये के चालू हो जाथे।




बईसाख अऊ जेठ के बिकराल गरमी के कारन झुलसे रूख-राई मन आसाड़ महिना के आते साथ फेर जिंदा हो उठते। जे भुइंया बंजर दिखाई देवत रहिस ओहा हरियाली के चादर ओढ़े दिखाई देथे। हरेली के मायने हरियाली म ले सकत थन। सावन अमावस्या के आत ले पूरा धरती ह हरियाली के चादर ओढ़ लेथे। हरेली तिहार के संगे-संग हमर छत्तीसगढ़ राज म तिहार के आवा-जाही शुरू हो जाथे। जैइसे- नागपंचमी, पोरा, तीजा, भोजली, रक्षाबंधन, आठे कन्हैया, गनेस चतुरथी, नवरात्रि, देवारी, एकादशी, छेरछेरा होली, महाशिवरात्रि, रामनवमी तक तिहार आवत रईथे। हर तिहार के सुघ्घर परंपरा बनाये रखे के हम सबके जिम्मेदारी हे, पर तिहार के नाम म आज के समय म लोगन मन कुकरी-बोकरा, मछरी खाथे अऊ सराब पीना आम बात हो चले हे जे ह हमर भारतीय परंपरा अऊ संसकिरीति के पहिचान नो हय। हमन ल चाही की हमन अपन संसकिरीति अऊ परंपरा ल अक्षुण्य बनाय रखन जेखर से हमन के आने वाला पीढ़ी येला सुरता रख सके।

प्रदीप कुमार राठौर ‘‘अटल’’
ब्लाक कालोनी जांजगीर ,
जिला जांजगीर चांपा (छ.ग.)

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