
पारस जइसे होत हे , सदगुरु के सब ज्ञान ।
लोहा सोना बन जथे , देथे जेहा ध्यान ।।
देथे शिक्षा एक सँग , सदगुरु बाँटय ज्ञान ।
कोनों कंचन होत हे , कोनों काँछ समान ।।
सत मारग मा रेंग के , बाँटय सबला ज्ञान ।
गुरू कृपा ले हो जथे , मूरख हा विद्वान ।।
छोड़व झन अब हाथ ला , रस्ता गुरु देखाय ।
दूर करय अँधियार ला , अंतस दिया जलाय ।।
नाम गुरू के जाप कर , तैंहर बारंबार ।
मिलही रस्ता ज्ञान के , होही बेड़ा पार ।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया कबीरधाम
8602408353
mahendradewanganmati@gmail.com
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