जेखर जनम धरे ले भुँइया,बनगे हे सत धाम।
उही पुरष के जनम दिवस हे,भज मनुवा सतनाम।।1।।
बछर रहिस सतरह सौ छप्पन,दिवस रहिस सम्मार।
तिथि अठ्ठारह माह दिसम्बर,सतगुरु लिन अँवतार।।2।।
तब भुँइ मा सतपुरुष पिता के,परे रहिस शुभ पाँव।
बालक के अविनाशी घासी,धरे रहिन हे नाँव।।3।।
वन आच्छादित गाँव गिरौदा,छत्तीसगढ़ के शान।
पावन माटी मा जनमे हे,घासीदास महान।।4।।
महँगू अमरौतिन बड़ भागी,दाई ददा महान।
गोदी मा मानव कुल दीपक,पाइन हे संतान।।5।।
घोर तपस्या करे रहिन हे,गुरु सतखोजन दास।
सँग मा संत समाज सबोझिन,करे रहिन उपवास।।6।।
माँग रहिस एक्के ठन सब के,मिलके करिन गोहार।
आवव पुरुष पिता धरती मा,हंसा लेव उबार।।7।।
वाँणी गूँजे रहिस गगन मा,छाइस पूँज प्रकाश।
चौदह पीढ़ी मा सतखोजन,आवत हँव मै खास।।8।।
उही बात ला ददा मेदनी,महँगू ला समझाय।
तहीं हमर चौदहवा पीढ़ी,सुन ले कान लगाय।।9।।
बालक पन ले बाबा घासी,गजब रहिस गुनवान।
का हे सच अउ झूठ काय हे,देवत रहिस प्रमान।।10।।
बाबा घासी करत रहिन हे,सदा प्रमाणिक बात।
विकृत सोच सबो सँउहे मा,खात रहिन हे मात।।11।।
मनखे के दुख दरद हरे बर,मानवता के नाम।
बाबा घासीदास चलाइन,आंदोलन सतनाम।।12।।
मानवता के होय भलाई,अंतस रख के चाह।
ब्याँलिस वाणी सात सँदेशा,धर निकलिन सत राह।।13।।
बाबा घासी कहे रहिन हे,मनखे मनखे एक।
सत्य अहिंसा प्रेम दया के,रस्ता होथे नेक।।14।।
सुखदेव सिंह अहिलेश्वर “अँजोर”
गोरखपुर, कवर्धा
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