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गज़ल

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कतेक करबे इंहा तै बईमानी जिनगी
एक दिन ए जरूर होही हलाकानी जिनगी!

जब कभु टुट जाही मया ईमान के बंधना
संतरा कस हो जाही चानी चानी जिनगी!

चारी लबारी के बरफ ले सजाये महल
सत के आंच म होही पानी पानी जिनगी!

घात मेछराय अपन ठाठ ल हीरा जान के
धुररा सनाही तोर गरब गुमानी जिनगी !

सुवारथ के पूरा म बहा जाही पहिचान
बचा, बिरथा झन होय तोर जुवानी जिनगी!

जब कभु उघारय कोनो किताब इतिहास के
हरेक पन्ना म मिलय तोरे कहानी जिनगी!

ललित नागेश
बहेराभांठा (छुरा)
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