दोहा (बेटी)
झन मारव जी कोख मा ,बेटी हे अनमोल।
बेटी ले घर स्वर्ग हे, इही सबो के बोल।।1।।
बेटी मिलथे भाग ले,करव इँकर सम्मान।
दू कुल के मरजाद ये,जानव येहू ज्ञान।।2।।
बेटी आइस मोर घर,गज़ब भाग हे मोर।
घर पूरा खुशहाल हे,जुड़े मया के डोर ।।3।।
बेटी ला सम्मान दव, ये लक्ष्मी के रूप।
बेटी छइँहा कस चलय,गर्मी हो या धूप।।4।।
मनखे मन करथे जिहाँ, नारी के सम्मान।
करथे लक्ष्मी वास जी, सुखी रथे इंसान।।5।।
काली,दुर्गा,शारदा, सबो करय उद्धार।
बेटी कतका रूप मे,जग के पालनहार।।6।।
माँ,बेटी,अर्धांगिनी,कभू बहन के रूप।
त्याग करय हर साँस मा,सहय जेठ के धूप।।7।।
दाई बन पोषण करय,पत्नी बन के प्यार।
बहन रूप रक्षा कवच, बेटी तारणहार ।।8।।
करथे देवी रूप मा, पापी के संहार।
तीन लोक के देवता,करथे जय जय कार।।9।।
बेटी नइ भूलय कभू ,सात समुंदर पार।
सुरता कर दाई ददा, रोथे आँसू चार ।।10।।
बेटी मिलथे भाग ले,तरसत रहिथे लोग।
जेकर हे बढ़िया करम,ओकर बनथे योग।।11।।
घर माँ बेटी आय जब,जीवन मा सुख आय।
बेटी मारे कोंख जे , बहू कहाँ ले पाय।।12।।
अजय अमृतांशु
भाटापारा
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