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अब मंतरी मन बर रेड सिग्नल …लाल बत्ती खतरा हे !

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रेड सिग्नल वइसे खतरा के निसान माने जाथे। फेर इही खतरा के निसान कोन जनि कब ले नेता-मंतरी ले के अधिकारी मन बर रुतबा के चिन्हारी बनगे मैं तो नइ जानव आप मन जानव होहु त समझ लेहु। वइसे सच तो इही हरय के लाल सिग्नल हा खतरा के ही निसानी हरय। जनता मन ला तो नेता-मंतरी, अधिकारी मन ले खतरा रहिबे करथे।
तभे तो लाल बत्ती वाला गाड़ी ले जब कान फोडू अवाज आथे सब सचेत हो जाथे। अउ वो गाड़ी मा बइठइया मन जइसे जनता ला डराय, झुझकाय अउ उंहला अपन धाक दिखाय के सुख पाथे। फेर बदलत बेरा मा लाल बत्ती जनता मन बर खतरा कब तक बने रइही? कब तक लाल बत्ती के कल्चर चलही? ये आज सवाल बन के आम मनखे ले ले के खास लोगन मन बर बहस के मुद्दा बन गे हे। लाल बत्ती के खतरा होना चाही के नहीं होना चाही येखर चर्चा पंचायत ले ले के संसद तक मा होवत हे। अउ समय के मांग इही हरय के होना भी चाही। चरचा करे में कोनो खरचा थोड़े होथे।
फेर ये सब के बीच म दिल्ली ले जेन पहल झाड़ू धरइयां नेता मन करे रहिस वोखर बिस्तार अब धीरे-धीरे देखा-सिखी दूसर राज मन घलोक सुरू करत हें। पंजाब राज मा घलोक उहां के पंजा छाप वाला सरकार के मुखिया हा कहि दिस के अब लाल बत्ती वाला गाड़ी के जरूरत नइहे। पंजाब के जनता मन ला बधई खतरा टल गे। पंजाब ले यूपी मा घलोक इही फइसला होगे। महंत के संग सीएम बनिस योगी जी घलोक लाल बत्ती के परथा खतम करे अइलान कर दिस। अब धीरे-धीरे दूसर राज म लाल बत्ती के खतरा टाले के घोसना हो सकत हे।
वइसे इहूँ बता दन के लाल बत्ती के खतरा ले मुक्ति जनता मन ला सबले पहली छत्तीसगढ़ राज मा मिले रहिस। जिहां जोगी जी हा लाल बत्ती परयोग ला बंद करवा दे रहिस। फेर सत्ता बदलत ही फूल छाप वाला मन पेलम-पेल लाल बत्ती बांट दिस। का पूछना तहा मंतरी लेके संतरी तक के एक नहीं कई-कई ठिन लाल बत्ती आगे।
लाल बत्ती के रुतबा कतका होथे येखर कतको उदाहरन मिल जही। फेर हाल ही के उदाहरन ला देना सही हे। मतलब ये बताना कि लाल बत्ती कइसे जनता मन बर खतरा हे। कुछ दिन पहली के बात हरय। रायपुर ले अभनपुर के रद्दा मा मनजीत कौर नाव के महिला हा अपन गाड़ी मा जात रहिन। पाछू मा एक झिन बड़का मंतरी अपन लाल बत्ती मा आत रहिन। मनजीत जी अपन रद्दा अउ मंतरी के लाल बत्ती (खतरा) वाला काफिला उई-उई के अवाज करत पाछू-पाछू..। भइगे फेर मंतरी के मंता भोंगा गे। मतबल भारी गुस्सा आ गे। तुरते आनन-फानन मा मनजीत के आघु पुलिस आ गे। पुलिस धर के मनजीत जी ला थाना ले आइस। सोचत होहू काबर. ? .काबर कि मनजीत जी हा मंतरी जी के लाल बत्ती मतलब खतरा वाले गाड़ी के आघु मा चलत रहिन। बाद मा बिना कोनो कार्रवाई के मनतीज जी ला पुलिस वाला मा छोड़ घलोक दिन।
ये सब बताय के मतबल ये हे कि लाल बत्ती हा नेता-मंतरी मन बर जलवा के ..अउ जेन जनता मन बर बड़ खतरा के हे।
येखरे सेति दिल्ली ले पंजाब अउ पंजाब ले यूपी राज मा लाल बत्ती ला बत्ती दे दिए गइस। मतबल ये कि ये खतरा के निसानी ला हटा दिए गइस । नेता-मंतरी मन घलोक जनता सही सादा-सादा आहीं-जाहीं। कोनो ला ना कोनो के डर..ना कोनो खतरा, ना नेता जी के रौब ना रुतबा।
दिल्ली-पंजाब-यूपी के सरकार ला बेमेतरिहा के बधई हे। अइनेहे बधई के बुता सब राज-देस सरकार करय। जनता के सरकार जनता सही रहय।
जय जोहार
वैभव शिव पाण्डेय
संवाददाता, स्वराज एक्सप्रेस, रायपुर






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ना बन बाचत हे ना भुइयां, जल के घलोक हे छिनइयां

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छत्तीसगढ़ हा पूरा देस मा एक ठिन अइसे राज हरय जिहां तीन जिनिस के कभु कमी नइ रहे हे। ये तीन जिनिस हरय बन, भुइयां अउ पानी। छत्तीसगढ़ मा जेन कोति भी जाहु, उत्ती ले लेके बुढ़ती अउ रक्क्छहु ले लेके भंडार कोति। सबो दिसा मा भरपुर बन, भुइयां अउ पानी मिलही। अउ इही बन बन-भुइयां मा भरे हे लोहा, टीना, कोयला के भंडार। इही भंडार जइसे छत्तीसगढ़ वाला मन बर पाप सरी होगे। काबर कि ये जिनिस के भंडार होय के बाद भी बन-भुइयां अउ पानी के बीच रहइयां मन के उद्धार नइ होय हे।

जब ले ये पता चले हे कि छत्तीसगढ़ हा देस-दुनिया मा लोहा-टिना अउ कोयला के भंडार वाला राज हरय इहां के बन-भुइयां ले लेके पानी छिने के, लुटे के, वोमा कब्जा करे के, खरीदे के, बेचे के बुता चलत हे।
आज परदेस के हाल का होवत ये हा कोनों ले लुकाय लुके नइहे।

बैलाडीला ले लेके मैनपाट तक के हरियर कोरा मा रोज जेसीबी चलत हे, बारुद ले छर्री-दर्री होवत हे। एक पहाड़ ले दू पहाड़, दू ले चार अउ चार सौ होवत हजार हो गे हे। पहाड़ खोदाय के सुरू होइस जंगल कटना सुरु हो गे। कांगेर घाटी के हरियर रंग कम होवत हे, हसदेव के बन मा करिया रंग दिखत हे। पहाड़-बन ऊपर खतरा हा जंगल के रवइयां मन बर खतरा बना दिस। जब देख तब हाथी जंगल ला छोड़ बस्ती मा आ जथे, तेंदुआ-भालू तो सहर मा घुसर जाथे। अइसन काबर होवत हे येला सब जानत हे। तभो ले दुःख के बात हे के बन-भुइयां कम होवत हे।

पानी के कहिनी तो अउ गजब के हे। नदिया-तरिया के गढ़ छत्तीसगढ़ मा तरिया पटावत अउ नदिया सुखावत हे। परदेस के अधार महानदी के धार कइसन हे कोनो भादों के खतम होवत ही देख सकत हे। डखनी-संखनी के पानी लाल होगे हे, सबला दिखत हे इंद्रावती, सिवनाथ के का हाल होगे हे। केलो हा तो फेक्टरी मन के जहर ले मर ही गे हे। हसदेव अउ सिवनाथ के पानी तो बिक गे हे। खारुन, पैरी-सोढ़ूर, सिंदुर भी मरत जाथ हे।

रतनपुर, सिरपुर, रायपुर जइसे कतको राज के चिन्हारी तरिया रहे हे। फेर आज इहां कतका जगह मा तरिया हे येहा अब सोध अउ खोज के बिसय बन गे। बुढ़ा तरिया ले लेके महाराज बंद के पीरा सब के आंखी के आगु हे। कतको तरिया तो रजाबंधा सहि मइदान बन गे हे। नदिया-तरिया के संगे-संग बांध के बांध ये परदेस मा बेचे के काम हो चुके हे। अइसनेहे कतको परयास घलोक चलत रहिथे। इंदल-जिंघल, येदांत-फेदांता, आमचानी-सडानी मन बर जइसे खुल्ला छुट होवत हे। बन-भुइयां जल सब जइसे कुछ एक मन बर इक्कठा होवत हे। आज कल पानी छेके के बुता बड़ जोर धरे हे। नदिया मन मा एनीकेट बना-बना के नदिया के बहाव ला खतम करे के साजिस होवत हे। नदिया के हतिया करे बड़ बुता होवत हे।

जल के ज्ञानी नदीघाटी मोरचा के संयोजक गौतम बंधोपाध्ये कहिथे के छत्तीसगढ़ मा जल संकट बड़ विकट होवत जाथ हे। सिवनाथ नदिया ला बेचे के जेन काम सरकार करे रहिस वोखर ले आज तक मुक्ति नइ मिल पाय हे। सरकार हा नदिया मन मा उत्ता-धुर्रा एनीकेट ऊपर एनीकेट बनात जाथ हे। काबर अउ काखर बर बनात हे अउ का सोच के बनात हे सरकार येला ठीक-ठीक बताना चाही। मोर जानकारी मा अभी तक परदेस भर के आधा दर्जन नदिया मन 238 एनीकेट बनाएं जा चुके हे। 150 अउ एनीकेट बनाय के तइयारी सरकार के हे। एक ठिन नदिया मा जगह-जगह एनीकेट बनाके पानी रोकना मतलब वोखर हतिया करना ही हरय। आज महानदी-सोढ़ूर-पैरी तीन नदिया के संगम होय के बाद भी राजिम मा पानी नइ रहय..काबर ? येखर जवाब कोनों सरकार कना नइ होही।

सिरतोन बात तो ये हरय के आज गांव-गंवई ले के सहर तक हर कहुँ गरमी के दिन मा जल संकट कतका विकट अउ विकराल रूप ले लेथे येला हर बछर देखें जा सकत हे। पानी बर हो हल्ला, सड़क जाम, धरना-घेराव तो होबे करथे, अब तो लड़ई-झगड़ा, मारपीट अउ खून-खराबा घलोक होय लगे हे। पेड़ काटना जरूरी हो गे, अउ पेड़ लगाना मजबूरी हो गे। जंगल उजाड़ के सहर मा जंगल बनाय के चोचला होवत हे। गाँव उजाड़ के क्रांकिट वाला सहर बसाय जाथ हे। बनइयां-जनइयां सब एक ले बड़ के एक बिद्धान मन हे। तभो ले बुता उहीं बन-भुइयां अउ जल खतम करे के इही होवत हे। कहु नवा सहर बनाय बर, कहु कोयला खने बर, कहु बड़े-बड़े बिजली घर बर, कहु आनी-बानी कारखाना बर। कतका ला लिखव अउ का-का ला लिखव। पढ़इयां मन घलोक कइही बेमेतरिहा हा बिकास बिरोधी लागथे।  अच्छा सड़क, सहर, रोजगार वाला कारखाना काला नइ चाही। अउ जब ये सब चाही ता बन-भुइयां अउ जल तो बेच ला परही। फेर मैं तो इही सोचत हव अउ खोजत हव के बिकास के आधार का बन-भुइयां अउ जल के कीमत मा ही हो सकत हे ? आप मन कना जवाब होही ता महु ला देहू। अगोरा मा..।
जय जोहार
वैभव शिव पाण्डेय
संवाददाता, स्वराज एक्सप्रेस, रायपुर

असम के छत्तीसगढ़ वंशी मन के गीत

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सुवा गीत









ददरिया (लेजा लानि देबे नोनी छेना म आगी, ले जा लानि देबे)


असम म रहवइया छत्‍तीसगढ़ वंशी मन अभी रइपुर आए हें तउने समय ये वीडियो रिकार्ड करे गए हे। ए संबंध म जादा जानकारी आप इंहां ले पढ़ सकत हव।


असमिया धुन मा छत्तीसगढ़िया राग, छत्तीसगढ़ मा होइस पहुना संवाद

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आवा दे बेटी फागुन तिहार … मारबो बोकरा करबो शिकार …… हे वोति कोन सेन रे मुना महुआ रे ………..।
धुन असमिया हे … फेर बोल छत्तीसगढ़ी। अइसनेहे साझा संस्कृति ले रचे बसे हे लाखन परदेसी छत्तीसगढ़िया मन के जिनगी। वो छत्तीसगढ़िया मन के जिनगी जेन डेढ़ सौ बछर पहली असम राज खाय-कमाय बर गइन अउ उंहे के वोखे रहिगे। छत्तीसगढ़िया परदेसिया होगे … असमिया होगे। आज असम के भीतरी 20 लाख परदेसिया छत्तीसगढ़िया रहिथे। फेर डेढ सौ बछर बाद भी, असमिया रंग मा रंगे के बाद भी ये परदेसिया मन अपन पुरखा के छत्तीसगढ़ी संस्कृति ला नइ छोड़े हें। आजो असम राज मा रहवइया छत्तीसगढ़िया मन के इहां छत्तीसगढ़ी संस्कृति पूरा सम्मान के संग जिंदा हे। इखर घर मा रहन-सहन खान-पान सब छत्तीसगढ़िया रंग देखे ला मिलथे। इखर घर मा हरेली मनथे, इखर घर देवारी मनथे, इखर घर गाय-गरुवा ला सोहई बंधथे, छत्तीसगढ़ मा भले कांस के थारी अउ पीतल के लोटा नंदावत हे फेर असम के भीतर छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ये हिस्सा आजो देखें बर मिलथे। इही रंग ला जाने बर … समझे बर एक कार्यक्रम छत्तीसगढ़ मा पहली बार होइस। असम रहवइया उन प्रवासी छत्तीसगढ़िया मा बर जेन रोजी-रोटी खातिर डेढ़ सौ बछिर पहली असम चल दे रहिन। संस्कृति विभाग कोति ले पहली बार असमिया छत्तीसगढ़िया मन बर संस्कृति के मिलाप खातिर ‘पहुना संवाद’ के आयोजन करे गीस। तीन दिन के ये आयोजन मा असम ले प्रवासी छत्तीसगढ़िया मन के 28 सदस्य दल रायपुर आइन। रायपुर के संस्कृति विभाग के सभागार मा 24 अउ 25 मार्च के गोठ-बात होइस। 26 मार्च को सगा मन बर रायपुर तिर के पर्यटन स्थल मा घुमे-फिरे के कार्यक्रम रहिस।

असम ले आए शंकर साहू अउ सुभाष जी जइसे कतकों साथी मन अपन पुरखा मन ले सुने कहिनी बताथे ता उंखर आखीं डबडबा जाथे। उन बताथे कि वो उन्नीसवीं सदी के दउर रहिस जब छत्तीसगढ़ म भारी अकाल परिस। ये वो दउर रहिस जब अंगरेज मन के सासन रहिस। ये वो दउर रहिस जब जमीदार परथा परदेस मा चलत रहिस। अकाल परे के बाद खाय-पिये बर सब तरसे ला धर लिस। वो बखत असम राज मा चाय बगान मा मजदूरी करइया मन के कमी रहिस। पुरखा मन ला काम चाही रहिस अउ असाम के चाय बगान वाले मन ल मजदूर। दूसर कोति अंगरेज मन के सासन। अंगरेज मन चाय बगान मा काम कराय बर छत्तीसगढ़ के मजदूर मन ला टरक मा भर-भर के लेगिन। धीरे-धीरे करके 50 सौ के संख्या बाढ़त-बाढ़त मजदूरी बर असम जवइया मन के संख्या हजार होगे। अउ दुरुग, राजनांदगांव, बलौदाबाजर, धमतरी, महासमुंद, रायपुर, जांजगीर, बिलासपुर जइसे कतको जगह ले तेली, गोड़, सतनामी, कुर्मी, कोस्टा जइसे कतको जाति-समाज के लोगन असम मा जाके बसगे। धीरे-धीरे असम मा बसइया छत्तीसगढ़िया मन के संख्या लाख ले दू लाख अउ आज 20 लाख तक के पहुँच गे।

असम अउ छत्तीसगढ़िया मन के बीच एक समाज सुधारक जनम लिस। नाव रहिस मिनी माता। छत्तीसगढ़ के पहली महिला सांसद मिनी मात के जनम असम मा ही होइस रहिस। मिनी नाव के नोनी अपन समाज सेवा ले कब सब झिन के माता बनगे पता ही नहीं चलिस। मिनी माता दलित समुदाय के उत्थान बर खुब काम करिस। असम के भीतर चाय बगान मा काम करइया मजदूर मन बर घलोक अउ छत्तीसगढ़ के गरीब तबका के परिवार मन बर घलोक।

मैं ये तो जानत रहेव कि असम के भीतर छत्तीसगढ़िया परिवार बड़ संख्या मा रहिथे। उंखर मन के बड़का बस्ती हे। आरएसएस के पूर्व प्रचारक नंदकिशोर शुक्ल जी ले असम रहवइया छत्तीसगढ़िया परिवार मन के बारे मा सुने रहेव। पता चले रहिस कि छत्तीसगढ़िया मन उहे के अब मूल निवासी होगे हे। उन चुनाव मा हिस्सा लेथे, सांसद अउ विधायक घलोक बनथे। फेर ये नइ जान पाय या कभू खोजे के परयास नइ करे रहे कि असम तो जइसे छत्तीसगढ़ के हिस्सा सही होगे। जिहां लाखन छत्तीसगढ़िया मन असम बसथे। 17 जिला मा छत्तीसगढ़िय़ा मन असम के भीतर अब नार सही फइल गे हे। असम मा रहवइया छत्तीसगढ़िया मन ला अब असमिया कहिना हे जादा बने लगथे। काबर के मनखे जेन भुईया म रहिथें वो उही भुईया के कहाथें। वोखर चिन्हारी अब असमिया ही हे। फेर हम छत्तीसगढ़िया मन बर गरब के बात ये हे कि असमिया होय के बाद इखर भीतर मा छत्तीसगढ़िया रंग देखे बर मिलथे।

राज्य सरकार अउ संस्कृति बिभाग असम अउ छत्तीसगढ़ के बीच मा जेन सेतु बांधे के परयास करथ हे वो बड़ सुघ्घर हे। ये दूनो राज के सांस्कृतिक आदान-प्रदान हरय। ये बात जरूर हे के हम अपन छत्तीसगढ़िया भाई-बहिनी मन पहुँचे पर थोरकुन देरी करेन फेर अब पहल होगे ता अवइया बेरा नवा पीढ़ी मन बर सब अच्छा होही। छत्तीसगढ़ मा असम के रंग देखबों अउ देखबों असम छत्तीसगढ़िया रंग। जेन नता अभी तक छूटे अउ टूटे के कस लगत रहिस वो अब जुड़ चुके हे। अब गोठ-बात हे, “पहुना संवाद” हे … अब “असमिया धुन मा छत्तीसगढिया राग”।

जय जोहार!

वैभव शिव पाण्डेय “बेमेतरिहा”
संवाददाता, स्वराज एक्सप्रेस, रायपुर
09301489305






चलो मंदिर जाबो

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चलो मंदिर जाबो भैया मोर, दाई के पूजा करबो ।
चलो मंदिर जाबो बहिनी मोर, माता के सेवा करबो।
चंपा चमेली के फूल गुंथके , माता ल पहिनाबोन ।
आनी बानी फूल लानके, आसन ओकर सजाबोन।
जोत जलाके सुघ्घर, आरती सबझन गाबो ।
चलो मंदिर जाबो भैया मोर, दाई के पूजा करबो ।
सोला सिंगार करके, माता हर मुसकाथे ।
भगत के मान रखे खातिर, सुंदर रुप देखाथे ।
चैत के महिना आगे, झूला ओकर सजाबो ।
चलो मंदिर जाबो बहिनी मोर, माता के सेवा करबो ।
बघवा के सवारी माता, तिरसुल खप्पर धारी ।
बड़े बड़े पापी मन बर, परथे ओहा भारी ।
सेवा के गीत गाके, दाई ल जगाबोन ।
चलो मंदिर जाबो भैया मोर, दाई के पूजा करबोन
चलो मंदिर जाबो बहिनी मोर, माता के सेवा करबोन ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com










कविता : अब भइगे !

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अब भइगे बंदुक ल छोड दव
बस्तर के माटी ल झंन रंगव
महतारी के कोरा सुना होगे
आॅखी ले आंसु बोहवत हे
छोटे बहिनी राखी ल थारी म सजाये हे
नान नान लईका मन रस्दा देखत हें
नावा बोहासिन के मांग ह सुना होगे
पडोसी के बबा गुनत हे
अपन नाती देख रोअत हे
तुमन ल लाज निलागे
मुरख हव निचट
कोनो अपन भाई ल छुप के मारथे का
काबर उदिम मचाये हव
बस्तर के माटी ल काबर बदनामी म डारे हव
अब भइगे बंदुक ल छोड दव
बस्तर के माटी ल झंन रंगव
गरीब के बेटा जंगल म जांगर टोरथ हे
अउ कतेक खुन बहाहा
छोड दव बंदूक ल
नक्सली काबर बने हव
अपनेच माटी म अपनेच भाई मन ल गोली दागत हव
छोड दव बंदूक ल
महतारी के कोरा सुना होगे
आॅखी ले आंसु बोहवत हे
अब भइगे बंदुक ल छोड दव
बस्तर के माटी ल झंन रंगव

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
युवा साहित्यकार पत्रकार
सह संपादक सतयुग संसार रायपुर






गरमी बाढ़त हे

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दिनों दिन गरमी बाढ़त, पसीना चुचवावत हे।
कतको पानी पीबे तबले, टोंटा ह सुखावत हे।

कुलर पंखा काम नइ करत, गरम हावा आवत हे।
तात तात देंहे लागत, पसीना में नहावत हे ।

घेरी बेरी नोनी बाबू, कुलर में पानी डारत हे ।
चिरई चिरगुन भूख पियास में, मुँहू ल फारत हे।

नल में पानी आवत नइहे, बोर मन अटावत हे।
तरिया नदिया सुक्खा होगे, कुंवा मन पटावत हे।

कतको जगा पानी ह, फोकट के बोहावत हे।
झन करो दुरुपयोग संगी, माटी ह गोहरावत हे।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com

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किताब कोठी : अंतस म माता मिनी

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अंतस म माता मिनी

छत्तीसगढी राज भासा आयोग के आर्थिक सहयोग ले परकाशित

प्रकाशक
वैभव प्रकाशन
अमीनपारा चौक, पुरानी बस्ती रायपुर ( छत्तीसगढ)
दूरभाष : 0771-4038958, मो. 94253-58748
ISBN-81-89244-27-2
आवरण सज्जा : कन्हैया
प्रथम संस्करण : 2016
मूल्य : 100.00 रुपये
कॉपी राइट : लेखकाधीन

अंतस म माता मिनी
( जीवनी)
“दु:ख हरनी सुख बंटोइया, आरूग मया छलकैया
बनी मंदरस, फरी अंतस, मरजादा धन बतइया
माथ म चंदन, चंदा बरन, सेत बसन चिन्हारी
नाव व धराये मिनीमाता, छत्तीसगढ के महतारी”
अनिल जाँगडे
ग्राम- कुकुरदी, पो-जिला बलौदा
बाजार-भाटापारा (छ.ग. )पिन 493332
मो. 8435424604

समरपन

सिरीमती दुर्गा जाँगडे सुख-दु:ख के जीवन सँगनी ल…
‘”गुनवतींन नारी दुर्गा, विपदा म रिथे संग
भाग सहराथौ पा के, मोरा आधा अंग
मोरा आधा अंग दुई परानी ठठा सुख
संतोस बर रहचुल, लोभ बढाये जग म दुख
कहे अनिल जाँ गडे, राखै मान कुलवतींन
बिगडे ले बनाथे, लाथै सुमत गुनवतींन” ।।
अनिल जाँगडे

मिनी माता : अनिल के कलम

श्रीमती सुधा वर्मा मन लिखे हें के-
मैं औरत नहीं सदी हूँ अनवरत बहती नदी हूँ ।
जाने कितनी विभूतियाँ कोख में मैंने पाली है।।
चीर कर देखो मेरा कलेजा जाने कितना छाले हैं ।।
जे समाज म नारी शक्ति जाग जाथे त ओ समाज म मरद जात के मरजादा अऊ मान बाढ जाथे। पुरुष के संग शक्ति जरूरी हे। बिगर शक्ति के पुरुष म पुरुषारत न नारी गिरहस्ती के धारंग ए त सिंगार के आधार ए। वंश चलाए के ए त दया-मया के सोन–दोना ए। नारी के पाँव म सम्मान रथे त हाथ म मरजाद के दीया बरथे। बानी म दूध-दही घुरथे त ओकर बेवहार म मथला तरिया कस लहरा पैदा होथे। नारी के सुभाव, चंद्रमा के शीतलता ए तन हिरदे, दही के कोमलता ए…. पर जब जेवनी गोड आगू बढा के खोभ दिस त सरग के तारा अपने–अपन धरती म टूट के झरे लगथे। कथें न के तिरिया बिन सूना संसार… फूल बिगर पराग शोभा नइ देअ। खुशबू अऊ रंग ओकर आकर्षन ए तइसे नारी संसार के शोभा ए।
लुगरा के अँचरा त मया के पसरा-तिरिया ए, दीदी, नोनी, बहिनी, फुफु, मोसी, मामी, काकी, दाई, भौजी, ननद, जेठानी, भतीजी, देवरबेटी, भांची, नतनीन, बहू (पत्तो-बहुरिया) मितानीन, ममादाई अऊ बडकादाई (दुदुदाई) परोसीन, ढेढिन–सुहासीन, समधीन, सास, न जाने एक आत्मा के कतका नाव अऊ रिश्ता.? एहर ओकर रुप अउ महिमा के पहचान ए | भारतीय संस्कृति के आधार ए। सद् संस्कार के संवाहक, पहार कस अचल अऊ सहे के शक्ति रखथे त गंगा जमुना कस मया के धार ए। सतनामी समाज म नारी मन के प्रतिभा, कला, गुन, सिंगार अऊ विभूति के दर्शन होथे। पुरुष म पुरुषार्थ होथे त नारी म पुरुषार्थ ल सँवारे के ताकत होथे। नारी सबले पहिली माँ होथे बाद म तिरिया के ना ना रुप… माँ के गोरस मनखे के सिरजनहार ए…. ओकर सफेदी म सत अऊ संसार भरे हे। कहे गए हे के-
लबो में उसके कभी बददुआ नहीं होती।
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती ।।




सतनामी समाज के नारी मन, राजनीति, शिक्षा, संगीत अऊ खेलकूद म अपन भूमिका देहे म अगुवाई करे हें। लक्ष्मीबाई, शांतिबाई चेलक, उषा बारले, शामे शास्त्री, जलेश्वरी देवी, किरण भारती, गरिमा दिवाकर, पुष्पा दिवाकर, भगवती टांडेश्वरी, क्षमा पाटले, डॉ. इन्दु अंनत, जैसे नारी ऊर्जा, लोक संगीत साहित्य के नवा अंजोर बगरावत हें त राजनीति म पाँव कतको नारी जइसे मिनीमाता, कमलादेवी पाटले ल कोन भूल सकत हे। नारी के दया-मया तो धरती के गरुवाई ले जादा गरू हे। भाई श्री अनिल जाँगडे सुभाव म सरल, मधुरभाषी अऊ कलम के धनी ए। जाँगडे जी हर नारी के ऊर्जा, गरिमा, दया-मया अऊ ऊँकर कर्मक्षेत्र ल पहचान के दाई मिनीमाता के योगदान, कर्म, जस, अऊ मानव समाज के सेवा ल पहचान के निर्मल आकाश म चांदनी बगरा दिस अतका कम उम्र म चार-चार किताब मंजूर झाल, मउहा झरे झउंहा झउंहा, नाचा अऊ चंदन अस माटी, रच के समाज म नाव कमा डारिस। ए पडत मिनी माता ऊपर अपन भाव के माला गूंथत हे जेकर एक-एक शब्द म मोती कस चमक हे।
मिनी माता के बचपन के नाव मीनाक्षी रहिस जेकर जनम असम प्रांत के लोदे गाँव म होए रहिस | मीनाक्षी, नानकन ले प्रतिभावान रहिस। पिता बुधारी के मया असीस ले बेटी संसार म जस कमाइस । गुरु गोसाई श्री अगमदास जी हर अपन सतनाम यात्रा के दौरान हीरा ल पहचान के अपन अर्धागिनी बनाइन फेर भंडारपुरी ले सतनाम सेवा, नारी उत्थान, शिक्षा अऊ राजनीति म पाँव रख के नारी शक्ति के सफलता ल पूरा करिन। भाई अनिल जाँगडे जी हर माता जी के संपूर्ण जीवनगाथा ल पंक्ति बद्ध करके एक सबूत बतावत हें के समाज म
ऊँकर कतका ऊँचाई हे, नि:संदेह ए कृति, समाज के धरोहर रही। साहित्यकार तो बौद्धिक श्रमजीवी होथे। ओकर कलम म संसार के भाषा समाए रथे। अनिल के मिहनत अऊ सोच जरूर रंग लाही। ऊँकर कलम से स्याही कभू खतम मत होवै लगातार लाइन के शब्द अऊ भाव हर उबकै। ओमा रस, छंद के सिंगार के सुघरता एइ आशा हे…… ।
अनिल तोर कोंवर-कोंवर शब्द गीत बनै ग।
सतनाम के जपड्या बर सुघर मीत बनै ग ।।
घासीदास ल छोडौ नहीं सतनाम ल जपत ग।
अनिल के लिखे किताब मन ल पढत रइहौ ग ।।
डॉ. मंगत रवीन्द्र
शा.उ.मा.शा.कापन
दिनांक जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग. 495552
14-6-16
मो. 9827880682




दु आखर

दाई मिनीमाता के सुधी आते नारी के झलक आँखी म झुलथे जेकर असथान छत्तीसगढ म आज तलक कोनो नीं ले सके ए। ओहर एक बेटी, महतारी, बहिनी, पत्नी, समाज सेविका, गुरूमाता के रुप अउ राजनीति म अपन अलग छाप छोडिस। दु:ख हरनी, सुख बांटत परमारथ म जिनगी होम दीस । समाज के उद्धार कइसे होही ? संसो करै, गुनान म बुडे राहै।
गुरुगद्दी के मान रखिस, सतनामी समाज ल बल दिस। गाँव के मनखे ल लेके बडडका राजनेता अउ प्रधानमंत्री तक ओकर बात कान देके सुनै, सलाह लेवै, मान–सनमान दै। छत्तीसगढ म हसदो बांध, विधान सभा भवन, रयपुर बस स्टैंड, चंडक चौराहा कतको महाविद्यालय माता के नाव म रख के सनमान दे हवै। समाज सेवा करइया महिला या संस्था ल हर बछर दू लाख रूपया अउ बडाई मान पाती (प्रंशसा पत्र) देके तियाग के सुरता करे जाथे।
समाज, देसराज म काकरो गुनगान, मान तभे होथे जब परमारथ म अपन सुख तेज के दूसर के विपद म खडा होथे, दुख हरथे। अट्टसने तियागी, गठ सुभाव के माता जी रहिस | माता के महान कारज ल गुनीजन के मुख ले सुनेंव, समझेंव अउ कतको संत, महंत, लेखक, कवि, कलाकार, गीतकार, के अंश ल समोवत जतेक मोर मति पुरीस, दु बूँद माता जी के सिरी चरन म अरपित करत कोरा कागज म अपन सरदा के भाव चढाये के उदीम करेंव। ये कारज म पंदोली देवइया गुनवन्ता पूजनीय डॉ. मंगत रवीन्द्र, डॉ. अनिल भतपहरी, सिरी डी. एल.
दिव्यकार, सिरी पुरानिक लाल चेलक, भाई संतोष कुर्रे, अजय अमृतांशु अउ दीदी उषा बारले जी (पंडवानी गायिका) के मैं अंतस ले गुनमानिक हव माता जी बिसाल हिरदे के रहिस, उँकर कतको परमुख कारज परगट करे बर बिना आरो के छूटगे होही तब संत, मंहत गुनी पाठक मन सम्हार लेहू अउ ‘जकहा’ समझ के छिमा करिहा।

सुझौती के अगोरा म…
असीस लोभिया
अनिल जाँगडे
कुकुरदी- बलौदा बाजार
तारीख-20 जुन 2016

नार–पात

1. भाग-एक : दु:ख के हवे लागे आगी
2. भाग- दो : मीनाक्षी ले मिनी गुरूमाता
3. भाग-तीन : सतनामी रीत के बनइया पहिचान
4. भाग-चार : घर अंधियार, मंदिर म दीया बारे ले का होही ?




भाग एक
दु:ख के हवे लागे आगी

बिसाल बिरछा नानकुन बीजा भीतर समाये रिथे, इही बीजा खातु, माटी म बडका होके फूलथे, फरथे अउ देथे। मनखे भीतर अन्तर्मन म समाये सक्ति बिरवा बीजा बरोबर होथे। जेन सुन्दर गुनान (विचार) संस्कार रूपी जल पा के अमोल सक्ति के परगट होय म मनखे महान बनथे | गुनी, संत, महात्मा कहाथे | संत, महात्मा के मुखारबिंद ले विचारे गियान ले सीख मिलथे. .. सब नर के भीतर नारायन (सतपुरुष) बसथे। गीद गायन मन पंथी गीत म गाथें…

“घट-.धट म बसे हे सतनाम!
खोजे ल हंसा कहाँ जाबें जी” ?

मनखे जिनगी, सतनामपिता! के देये वरदान आय। निरमल जल म काया ल धोके जइसे साफ रखे जाथे, वइसने मन वचन के निरमल रहे म अपन अंतस भीतर के सक्ति जब कोनो मनखे चिन्ह लेथे अउ परमारथ म जिनगी अरपन कर देथे तहाँ उल्लू पूजनीय हो जथे। छत्तीसगढ के महतारी मिनीमाता परे, डरे, दु:खी, भूखी, अनाथ, लचार बर अपन जिनगी अरपित कर दिस। छत्तीसगढ के कोन अभागा होही ? जेन माता जी के दुलार नट पाय हो हय ? दुकाल के कोख म जनमें माता जी दु:ख हरनी, तियागी रहिस।

भारत के आतमा गाँव म बसथे, हिरदे कहाथे छत्तीसगढ | छत्तीसगढिया के सिधवा, भोलापन ल देस, दुनिया जानथे। इहाँ के मनखे खेती- किसानी म रमे रिथि। संतोस सुख, मरजाद धन होथे। छत्तीसगढी म कहावत हे..जान जाय फेर मरजाद झिन जाय।

छप्पन के अकाल, अघारी अउ परवार के गाँव छोडना —

छत्तीसगढ के खेती-किसानी सरग भरोसा, कभू धरती के पियास बुझाथे, त कभू पियासा रहि जाथे। सन 1896 से 1899 तक तीन बछर के सरलग दुकाल कभू नीं भूलाये जा सकै।

सम्वत के हिसाब ले ये दुकाल छप्पन के बनथे, येकर सेती छप्पन परगे छत्तीसगढी मुहावरा बनगे | ये दुकाल घेरी–घेरी विपदा के सुरता कराथे। कुँआ, तरिया, नदिया, नरवा, डबरी-पोखर जम्मो सुखागे | चहूँ ओर हाहाकार मातगे । चिरई-चुरगुन अउ कतको जीनावर पियास म परान तेज दिन। बडे-बडे गौटिया, जमींदार मन के कन्हिया ढिल्ला परगे। भूख म बेहाल परान बचाये के उदीम खोजैं। कमाये खाये बर परदेस जाये के सिवाय कोनो रद्दा दिखीस | कलकत्ता, असम, खडकपुर, कोइलारी (बिहार) बर सब बगरगैं।

छप्पन इही के दुकाल म बिलासपुर पंडरिया जमींदारी गाँव सगोना के मालगुजार अघारीदास मंहत अउ परवार फसगे। दाना-दाना बर तरसगैं, कइसे परान बाँचय ? उदिम करै जोखा नइ माडिस। परवार लेके घर छोडे बर परगे । सुवारी बुधियारिन, बेटी चाउँरमती, पारबती अउ देवमती ल लेके अघारी गौटिया गाँव छोड दिस, बिलासपुर रेलवाही आगे। राहत के नाव म अंग्रेज सरकार जगा-जगा सरकारी कीचन म बघरी बांटय । रेल्वे टेसन के कीचन म बघरी खाय बर मिलगे। ओ बखत के सियान मन किच्चक खाना काहैं। खाय के बाद परवार सहित टेसन के रुख तरी सोगैं, नींद कहाँ आवै ? विपदा आगू ठाढे। असाम चाय बगान के अड्कारी (ठेकादार) ठउका मिलगे। भूख मिटाये बर बटोही मिलिस। असाम जाय बर अघारी तियार होगे। परवार ल लेके रेलगाडी म चढगैं, बिना बिलमे रेलगाडी छुक-छुक दउडे बर धरलिस । नान्हे-नान्हे लइका भूख म बियाकुल, एक दाना अन्न निंही, भूख म अतङडी अइठे लागीस ।




रेलगाडी म बेटी पारबती बेमार परगे । भूख-पियास म काया रूरगे राहै, हाथ म कौडी पइसा निंही, कहाँ ले दवई-दारु लानै ? रद्दा म बेटी के हंसा उडगे। करम ठठावत रहिगे अघारी |

महतारी के आँसू कहाँ थरकै ? चेत ल बिचेत होगे। बेटी के काया धरती ल कइसे सउँपै ? अघारी गौटिया सदगुरू बाबा घासीदास जी ल सुमरिस । बिचारिस रद्दा म गंगा माई दरस देतिस त सउँप देतेंव, रेल दउड्ते रहिस, गंगा के पाट दिखगे । बेटी के काया महतारी बुधियारिन के गोदी ले उठावत अघारी के हाथ थर-थर काँपत रहै, सतनाम! ल सुमरके चलती गाडी म गंगा माई ल सउँप दिस…अभागिन ल तार लेबे दाई…

‘कठिन कल्पना म डारे साहेब मोला
काबर तैंहा अवतारे साहेब मोला”?
रेल म बइठे मुसाफिर मन घटना ल सउँहात देखिन, सबके करेजा फाटगे । महतारी बिसुध, दुनों बेटी रहिगे चांउरमती अउ देवमती ।
“माटी के काया
माटी के चोला
के दिन रहिबे बतादे मोला”?
कलकत्ता से असाम बर गाङी बदलीन, येती बेटी चाउँरमती घलु मुरछा खागे, अघारी निच्चट कठवाये निहारत राहै, करम के रेख कोन टारै ? देखते देखत दूसर बेटी चाउँरमती परान तेज दिस’…। हाय मोर दाई…! गोहार पार के महतारी रोय लागीस आँखी उसवागे राहै।

“‘चार खुरा चार पाटी, पाटी म बरे दीया”।
संतन बोह ले जाही, तरही माटी म काया
चार खुरा, पाटी न दीया–बाती, चार संत मुक्तिधाम नहीं, भट्टगे! बाप अकेल्ला, बेटी चाउँरमती के काया पद्मा नदिया म सउँपत गुरु ल सुमरथे…
‘”दु:ख हो गुरू मोरा, हरिहा गुरु मोरा
तन दुरखिद, मन के विपदा हटैहा गुरु मोरा
दु:ख के हावे लागे आगी
जीव लेके उठही कहाँ भागी ?
अरजी सुनिहा साहेब मोरा”।
दाई बुधियारिन कंदरन लागिस, कोरा सुन्ना होगे…. ।
दुनों नोनी दाई के कोरा ले उतरगे, गंवा डारीस बेटी मन ल…. अघारी के आँखी पथरागे, रोवै फेर आँखी म आँसू नीयें…. रहिगे छ: बछर के बेटी देवमती।

असाम के चाय बगान म रहिके मंझली बेटी देवमती, दाई संग काम–बुता सीखे ल धर लीस । कोरा ले उतरे दुनों बेटी के चिंता म दुरखियारिन दाई रूरगे…परगे बेमार, खटिया धरलीस, अघारी अब्बड दवा करीस खर नीं खाइस, दुनों बेटी के संगवारी होगे… धरती के कोरा म समागे दाई ह। अघारी के मुड उपर पहाड अस दु:ख, का करै बिचारा…? गाँव के बडका किसान अघारी गौटिया काहत लागै…कभू बुता करे नइ रहिस जीव बचाये बर का करही…? बुता करे बर परगे | रात-दिन के संसो, सरीर निच्चट सोखवा होगे… दुकाल लपेटलीस अघारी ल…।

देवमती मुरही बनगे, दाई न ददा सात बछर के नान्हे लडका कहाँ जावै ? कोन ल गोहरावै? बेमार परगे, कोनो सहारा निहीं.. एक झिन दयालु मनखे दोलगाँव के अस्पताल म भरती कर दीस ।
‘तरफत मछरी ल गुरु
पानी म ढीले हो
उदी दिन मछरी ल
नवा जनम मिले हो’।




दोल गाँव के अस्पताल म देवमती के ईलाज–पानी होइस, बने होगे। बिचारी कहाँ जातीस ? अस्पताल धाम बनगे, अउ नसबाई मन के दुलौरिन होगे, बेसहारा ल परवार मिलगे। उमर संग भूख बाढत गिस, बुता धरलीस, रोजी एक तांमा पइसा। बुडत ल तिनका सहारा। अस्पताल म बूता करइया बगांलीन मौसी मिलगे, अपन घर ले आइस, सिखाइस-पढाइस मन ल बोधिस ।

मीनाक्षी के जनम —
असम के जिला नवागाँव ग्राम सलना निवासी बुधारी दास मंहत, सतनामी समाज के भंडारी रहिस। एक दिन मौसी संग भेंट होगे, कैसे भंडारी…? भंडारी जी इस कन्या (देवमती) का हाथ पीला कराकर ठौर ठीकाना नहीं लगवागें…? भंडारी देखिस…. सगियाँन, हसमुख, जात–जतुवन देवमती ल… मौसी ल कहिस, तोर मन असीस त मौसी… अपन घर के लछमी बना लेतेंव । बुधारी अउ देवमती के जोडी बनगे, नता–गोता, संगी-सजन, जान-पहचान सबो सुग्घर असीस दिन। मुरही ल घर मिलगे, देवमती आरुग मन के राहै, नता-कुनेता ल चुम्मुक असन अपन कोती खींच लेइस ।

आसा-बिसवास अउ सुन्ता बने रहे ले जिनगी भर नर-नारी सुख के रहचुल घर-अँगना मया म बगिया असन गमकत रिथे। इही मया संसार बसाथे; दू जिनगी ले बिस्तार बाढथे।

जोडी-जाँवर सुख-दु:ख के संगी होथे, मया-पिरीत पूजा ये, जान डारीन देवमती अउ बुधारी, बिसवास के गठरी म बँधागे । दूनो के संग नइ छूटै। बारह महीना बीतिस, देवमती ल आओकियासी आइस, सखी-सहेली आरो पाइन, कहिन, देवमती भारी पांव हे, बुधारी के भाग खुलगे, सुनतें मन म खुसी समागे, सोचे लागीस मोरो अँगना म किलकारी ।

हिन्दू धरम के परमुख तिहार होली के दिन 13 मार्च सन 1913 के अधराति नोनी अवतरीस । (माता जी के जन्म दिन पर लेखको का मत भिन्न है रायपुर के बस स्टैंड में माता जी की आदमकद प्रतिमा के शीला पट्टी पर जन्म तारीख 15 मार्च सन 1911 अंकित है) घर-परवार म उछाह मंगल मनाइन। कोन जानत रहिस ? दुरखियारिन देवमती के कोख ले अवतरे बेटी एक दिन छत्तीसगढ के महतारी कहाही ।

नान्हेपन ले आजादी के लडई म संघरना —

नोनी के जनम बाद बुधारीदास परवार सहित सलना ग्राम ले जमुना मुख आगे इहाँ गाँव म मीनाक्षी हर मिडिल तक पढहिस, इही सिक्छा नवा रद्दा देखाइस । जमुना मुख के मदरसा म मिले गियान छत्तीसगढ के अंधियारी म अंजोर बगराये के उदीम होइस | मीनाक्षी हर पुन्नी कस चंदा सुग्घर रहिस, पढई-लिखई म गुनवतींन। हिन्दी, अंग्रेजी, असमी भाखा म गियान पाइस ।

भारत भर अंग्रेजी सासन उखान फेंके बर अंग्रेज भगाव के नारा सुनई देत रहिस। इही बीच असम म जगा–जगा हडताल सुरु होगे, महिला दल के संग महतारी देवमती संघरजै अउ आने महिला असन खादी के कपडा पहिरय, घर म चरखा चलावै; महतारी ल देख के बेटी कहाँ पीछू राहै ? मीनाक्षी घलु बालपन सुभाव म आजादी के लडई म संघरगे आगू चलके बच्चा दल के अगुवई करीस । सन 1920 म भारत भर स्वदेसी ओनहा अपनाये बर आंदोलन चलीस, अंग्रेज ल हीनहर करके भगाये खातीर बिदेसी कपडा-लत्ता के होरी बारीन स्वदेस म बने जीनिस बढउरे बर जन–जागरन चलाइन। असम म मीनाक्षी लइका दल संग घर-घर जाके बिदेसी कपडा-लत्ता सकेलय, तहाँ चउँक-चौराहा म आगी लगा देवयं | राजनेता मन के आंदोलन देख के नकल करत बच्चा दल ल उछाहित करै. नवा जोस भरै, ये बुता म खुब्बेच नाव कमाइस |

मीनाक्षी, ले मिनी गुरूमाता




देस सुतंत्र होगे। सतनामी समाज उपर अट्दताचार कम नई होइस । अनुमान मुताबिक सन 1880-85 के तीर-तार छ.ग. छेत्र म सिक्छा के दुवार खुलगे रहिस । सहर अउ कस्बा म मदरसा (पाठशाला) खुलीस | भेदभाव के चलते समाज म सिक्छा उपर चेत नट करत रहिन तभो ले समाज के मालगुजार अठ गौटिया परवार के कोनो-कोनो लइका पढे-लिखे बर धरलिन। आजादी के बाद भारतीय संविधान म छुआछूत ल अपराध माने गिस । उल्लंघन करइया ल दंड के भागी बनाइस | तब जाके सोसित समाज म सिक्छा पाये के हिम्मत आइस | भंडारपुरी गुरुद्वारा सामाजिक दसा के सुधार बर चिंतन-मनन के ठउर रहिस। संत, महंत, भंडारी, साटीदार मिलके गुरु अगम दास जी के संग समाज के बेवस्था बनाये रखे बर गुनान करैं । जेन गाँव म भंडारी, साटीदार नइ रहिस उहां चुने गिस। समाज ल एक फेट करे खातीर दुरिहा-दुरिहा बसे खातीर दुरिहा–दुरिहा बसे सतनामी समाज के बीच पहुँच के गुरुजी संत समाज के बिचार जानै, समाज के बढोत्तरी (विकास) अउ सुमत बर जोर दै।

रामत म गुरू अगम दास जी के असाम पहुँचना —

सतनामी समाज के जगत गुरु अगमदास जी अपन सेवादार, सिपाही, राजमहन्त मन ल लेके समाज सुधार बर रामत निकलै । बाबा गुरू घासीदास जी के सतनाम संदेस के परचार-परसार करत सन 1932 म असाम पहुँचगे, भंडारी बुधारी घर डेरा पारीस। असाम के सतनाम पंथी नर-नारी अउ भंडारी बुधारी के परवार सहित गुरु दरसन पा के मगन होगैं.

अपन भाग सहरावत कहिस–

“मोर सोये भाग आज जागे हो साहेब
हमार अँगना म आइके बिराजे हो”…।

गुरू के चरन पखारके परवार सहित भजीन…दाई-ददा संग मीनाक्षी घलु भजीस । मीनाक्षी ल देख के गुरुजी नांव पूछीस | पढई-लिखई अउ नाव बताइस । गुरूजी के एको झिन संतान नीं रहिस। गद्दी के अधिकारी बर संसो राहै, गुरुजी के इसारा समझ के राजमहन्त मन बात चालीन, बुधारी अपन भाग सहरावत हामी भर दिस।

“कंहुवा ल लानव साहेब, आरुग फुलवा
कइसे के तोला आरुग फुलवा”?




इही ओ समे ये छत्तीसगढ के भाग सँवारे बर बुधारी अउ देवमती बड सर्वा के संग फूल असन बेटी मीनाक्षी ल गुरूजी के चरन सौंप दिस। देवमती उही महतारी ए, दुकाल, छत्तीसगढ ले दुरिहा दाई-ददा संग असाम के चाय बगान पहुंचा दे रहिस । गुरुघासीदास बाबा जी के लीला देख, गुरूमाता कणुका देवी के कोख ले 07 दिसम्बर सन 1895 ग्राम तेलासीपुरी धाम ‘ अम्मरदास बाडा’ म जनमें अपन तीसर पीढी के गुरु अगमदास जी पिता सिरी अगरमन दास गुरू गोसाई संग नाता जोर के पैंतिस बछर ले छूटे छत्तीसगढ भूईंया म फेर लहुटा लिस।

मीनाक्षी के बिहाव

मीनाक्षी हर परवार संग छत्तीसगढ आगे। गुरू अगमदास जी सतनामी समाज के राजमंहत, सेवादार, भंडारी, साटीदार, अउ लाखों लोगन के बीच म गाँव बरडीह (खरोरा) जिला–रइपुर 2 जुलाई सन 1930 म बिहाव रचाइस । सब संतन जयकारा बोलाइन, नाव बदलगे, मीनाक्षी ले मिनीमाता कहाइस ।

“छत्तीसगढ के धन भाग
बिहाव रचाये गुरू अगमदास
गुरुमाता के दरजा पाइस,
मीनाक्षी, मिनीमाता कहाइस” ।




मिनीमाता के गिरहस्ती जीवन हर सुख म बितीस, संतोसी सुभाव के, छल-कपट, ईरखा, लोभ माता जी के तीर आये बर डर्रावय। फेर एको झिन संतान नीं रहिस, नारी जात के कोख सुना रहें ले, संतान सुख नइ पाये ले भीतरे-भीतर उंखर मन म चिंता के घुना खावत रडथे जिनगी अबिरथा अड्डसन म जेन नारी हर दूसर के लइका ल अपन समझ के संवास लेथे अउ मया बरसाथे तहाँ आधा दु:ख भुला जाथे गुरू माता घलो स्त्री ये, संतान नई रहे ले अंतस म पीरा काबर नइ रहिस होही ? फेर छोटे बहिनी करूनामाता के पुत्र विजयकुमार गुरू ल खुद के संतान ले कम नई समझीस, घाद-दुलार पुरोइस । संगे संग लाखो सतनामी समाज ओकर बेटा-बेटी बरोबर रहिन।

जब देस अंग्रेजी गुलामी से छुटे बर जुझत रहिस, उही समे गुरू परवार म माता के गिरहस्ती बसीस । माता जी गुरु परवार के चंदा रहिस । गुरु अगम दास के संग भारत के सबों जगा जाय–आय के मउंका मिलीस अ देस-परदेस म जनता के समस्या ल जानिस, समझिस। गुरूजी घर सुराजी जोधा मन चिंतन-मनन करै। रयपुर मं मोवा भाठा के मकान आजादी बर लडइया सेनानी मन के बइठका ठउर राहय । पंडित सुन्दरलाल शर्मा, ठाकुर प्यारेलालसिंह, डॉ. खूबचंद बघेल, कान्तिकुमार भारती, मंहत नैनदास महिलांग, मंहत भुजबल जइसन देसभक्त मन गुरू परवार के घरौधी बरोबर रहिन। सतनामी समाज के गुनीजन, जोद्वा आजादी के लडई म समरपित होके लडीन अउ अगवई करीन । ये जोधा रहिन राजमंहत नैनदास महिलांग सलौनी (बलौदाबाजार) अंजोरदास कोसले देवरी (मुंगेली) रतिराम मालगुजार केंवटा डबरी, राजमंहत अंजोरदास सोनवानी हरिनभठ्ठा, (सिमगा) मूलचंद जाँगडे, रेशमलाल जाँगडे परसाडीह (बिलईगढ) नकुलढीढी भोरिंग (महासमुन्द) नन्दू भतपहरी जुनवानी (पलारी) अउ हजारो सतनामी बघुवा अपन तन, मन, धन निछावर कर दिन। देस के आजादी खातीर जेल गिन । बडका नेता सुराजी मन के सांघरो माता जी पाइस, काम करे के मंउका मिलीस । गुरू अगमदास बघुवा बेटा मन ल तियार करै। रयपुर अउ भंडारपुरी के गुरूद्वारा म बडका बइठका करके लडे के रद्दा तियार करत अंग्रेजी सत्ता ल उखान फेंके बर उदीम करैं। अंग्रेज सोचय सामाजिक सुधार बर बइठका म एकर सेती नजर नई फायदा सुराजी मन ल मिलै।

गुरु अगम दास जी सन 1932 म रयपुर मं जमीन बिसाइस जिहां सतनामी आसरम बनाइस | जेला साहेब बाडा के नाम से जाने जाय। सन 1937 मं ग्राम बरडीह (खरोरा) ले छोड के परवार सहित बलौदाबाजार तहसील के गाँव खडुवा (सिमगा) म बसगे ।

छत्तीसगढ के हर गाँव गुरूजी के अपन गाँव रहिस, गाँव के मन परवार। रामत म कोनो गाँव पहुँतीस, सरद्वा म लोगन मन के माथ नव जाय, पानी ओछारैं, गुरुजी अउ माता के चरन पखारके असीस लेवैं। गुरूजी असीस देत गियान बांटत काहै…..’संसार विराट हे, जउन नजर म देखत हन इही सत आय, जेला देख नई सकन, संग म गोठिया नई सकन, ओकर जगा अपन दुख गोहराथन, फूल, पातर चढाथन, मठ, मंदिर के चक्कर म पंडा, पुरोहित मन करा लुटाथन, कुछु नइ मिलै तभो ले फोंफा असन झपावत दुख मोल लेथन । कस्तुरी मिरगा कस भटकत र्थिन। जब अपन अंतस के देव ल जान-परख लेबोन, पहिचान जाबो, तहाँ कोनो मंदिर म जाके ठोकर खाय बर नट परै । सतनाम! के संदेस ल जानव, गुरू घासीदास बाबा के बताये मारग म चलव। गीत गायन मन पंथी गीत म गाथें…

‘”मंदिरवा म का करे जइबो ?
अपन घट के देवा ल मनइबो’।

बाबा जी के सतनाम! रूपी डोंगा म भवसागर ल पार करे जा सकथे।

गो रक्षण समिति म गुरू अगमदास जी —

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बने के पाछु जुलई 1888 म गो रक्षण समिति बनाय गिस | आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयांनद के सुझाव म देस भर समिति गठन होइस | गो रक्षण समिति म बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय जी मन घलो रहिन। छत्तीसगढ म पंडित सुन्दरलाल शर्मा, धर्म गुरू अगमदास जी, राजमंहत नैनदास महिलांगे, राजमहन्त रतिराम मालगुजार, महंत अंजोर दास सोनवानी, महंत बिसाल दास, महंत बिसौहाराम अउ मदन ठेठवार जी जट्टसन देसभक्त, समाज सेवक मन समिति म रहिन।

बलौदाबाजार (नवा जिला) के नजीक गाँव ढाबाडीह, करमनडीह म अंग्रेज मन बूचडखाना चलात रहिन। जिहां हर सप्ताह सैंकडों मवेशी (गाय-बैल) काटे जाय तहां मांस ल भाटापारा रेल्वे टेसन से मद्रास, कलकत्ता बर भेजे जावै। कत्लखाना अंग्रेज के देख-रेख म चले के सेती बिरोध करे के ताकत कोनो कर नट सकत रहिन। गुरु अगमदास के असीस पा के राजमहन्त नैनदास महिलांगे आगू आइस । सन 1914 से 1924 तक बूचडखाना बंद कराये बर आंदोलन करिस। ये आंदोलन म पंडित सुंदरलाल शर्मा, राजमहन्त रतिराम, महंत अंजोर दास सोनवानी, मदन ठेठवार मन पूरा संग दिन। आखिर म बूचङडखाना बंद होगे। सन 1924 म राजमहन्त नैनदास महिलांगे ल कानपुर कांग्रेस अधिवेशन म देस के परथंम ‘गो रक्षक सपूत’ के उपाधि देके सम्मान करे गिस। गुरु अगमदास साहेब धर्म गुरु होय के नाते सतनामी समाज के समाज सेवक, देसभक्त मन ल असीस अउ बल देत राहै।




गुरू अगमदास के सतलोकी होना —
संसार म प्रकृति के नियम हे, सिरजन अउ बिनास। सिरजन संग अवरदा लिखा जथे, चेतन होय या अचेतन अवरदा भर र्थि। बिसाल महल एक दिन खंडहर दिखथे । जनम के पीछु मिरतुका अटल सत ए। आतमा (जीव) मर्जी के मालिक होथे, जाय के बेरा धरे-बाँधे, रोके–टोके नीं जाय सकै। लाख छेका पर जाय, चाहे कछु उदीम होय, चोला ले हंसा कब उड जथे ?

गम नी मिलै। सन 1952 म गुरू अगम दास जी आपसरू सतलोकी होगे | तब गुरूजी रयपुर लोकसभा के परथंम संसद सदस्य रहिस । सतनामी समाज ठगागे, गुरूजी संग छोड दिस । गिरहस्ती सुख म माता उपर जिनगी भर के दुख झपागे, बडका समाज, पतवार कोन खेवै, गुरू विजय कुमार नाबालिक, परवार, समाज अउ राजनीति के बोझा माता जी के मुड खपलागे। गुरू मान (गरिमा) घलु बना के रखना रहिस। गुरुमाता गुनवतींन अउ हिम्मतवाली रहिस। काबर नट रडही ? असम के धरती म उपजन–बाढन, बडे-बडे नदिया के लहरा संग

खेले, जुझे, घर-परवार अउ समाज के धुरा थाम लिस । सन 1953 के लोकसभा उपचुनई म पहली संसद सदस्य बनीस । पुत्र के नाबालिक रहे ले गुरुगद्दी घलु सम्हारे ल परगे।

गुरू अगम दास जी के साथ मिनी माता जी

भाग-तीन
सतनामी रीत के बनइया पहिचान

भारत से अंग्रेजी सत्ता उखान फेंके खातीर सन 1920 म महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन देस भर चलिस। असम म मिनी माता जी दाई देवमती संग चरखा चलावै, तहां ले देसभक्ति के भाव मन म जागिस। नान्हे पन ल माता जी देस के आजादी बर जुझत देसभक्त मन ल देखे रहिस। गुरु अगम दास जी के संग सन 1930 म छत्तीसगढ आइस ।

मिनीमाता जी के राजनीति जीवन

15 अगस्त सन 1947 मं भारत सुतंत्र होगे। आजादी के बाद ले छत्तीसढ सहित देस भर सन 1950 से 1970 के समे राजनीति म कांग्रेस के जोर रहिस। गुरू अगमदास जी कांग्रेस पार्टी से रयपुर लोकसभा ले सन 1952 म पंरथम संसद सदस्य बनीस। गुरुजी के सतलोकी होय के पाछु मिनीमाता जी लोकसभा उपचुनई म पहली संसद सदस्य सन 1953 म चुने गइस । छत्तीसगढ म परथंम महिला संसद सदस्य बने के एतिहासिक नाव जुडगे। दूसर लोकसभा सदस्य सन 1957 में बनिस। तीसर चुनई सन 1962 अउ चउंथा सन 1967 के चुनई म सरलग जीत के रायपुर, जांजगीर, बिलासपुर अठ सारंगढ लोकसभा छेत्र ले संसद सदस्य बनिस | जब-जब माता जी चुनई लडिस, जीतते गिस। कहे जाथे न…. |

कर्मयोगी के साथ होकर
हर पत्थर साधक बन जाता है।
दीवारें भी दिशा बताती है
जब इंसान आगे बढ जाता है।।

अपन चुनई छेत्र ल कार्यकर्ता भरोसा छोडके दूसर के छेत्र म जाके परचार करै। लोगन म माता जी उपर अतेक भरोसा राहै, खुद के परचार म जाये बिना भारी अंतर ले जीत मिल जाय। संसद सदस्य के बने ले देस बर अब्बड काम करीस।

“भेदभाव चतुवारन कानून लाइस ।
दलित के हक मान देवाइस ।।
बियाकुल देख नारी दसा ।
बुझाइस, बेटी पावै सिक्छा” ।।




संविधान बने के बाद भारतीय समाज के कोढ छुआछूत नड मिट पाइस दलित के उपर होवत भेदभाव अउ अत्याचार खतम न् होइस । तब अनुसूचित जाति के संसद सदस्य मन मिलके छुआछूत के खिलाफ कानून पास कराय बर पंडित जवाहर लाल नेहरू अउ तत्कालिन गृहमंत्री डॉ. काटजू से निवेदन करीन। कानून पास कराये बर श्री एन. एस काजरोलकर (बम्बई), श्री रानानंद दास (पश्चिम बंगाल), श्री पन्नालाल बारुपाल, (राजस्थान) श्रीमती मिनीमाता (मध्यप्रदेश), श्री रेशम लाल जाँगडे (मध्यप्रदेश), श्री बी.एस. मूर्ति (आंध्रप्रदेश), श्री कन्हैयालाल वाल्मीकि (उत्तरप्रदेश), जडसन दलित नेता मन प्रस्ताव बनाइन अउ मिनीमाता ल अगुवाई करे के बुता दिन। पंडित जवाहर लाल नेहरू अउ बाबा साहेब आंबेडकर के मार्गदर्शन म 17 अप्रैल 1953 म संसद म प्रस्ताव (अस्पृश्यता निवारण कानून) ल रखिस । 28 अप्रैल 1955 म लोकसभा 2 मई 1955 म राज्यसभा ले भेदभाव चतुवारन कानून पास होगे | 8 मई 1955 म राष्ट्रपति के मंजूरी मिलगे । 1 जून 1955 म देस भर कानून ल लागू कर दिए गिस।

ये कारज म देस भर माता जी पहिचाने गिस अउ सनमान पाइस । बडे-बडे राजनेता सहराइन। बाबा अम्बेडकर, बाबू जगजीवन राम, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्लीराधाकृष्णन, वाय.वी. एस.चब्हाण, लालबहादुर शास्त्री, पंडित रविशंकर शुक्ला, पंडित सुंदरलाल शर्मा जइडसन दंबग नेता मन माता जी के साहस अउ लगन देख के अचरित राहै। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपन सखी मानै। येकर सेती माता जी जगा विपदा लेके गोहरड्डया मनखे के कमीं न् राहै। फरियादी मन के काम कराये बर माता जी कोनो कसर नई छोड्य | खुद दप्तर जावै, काम करा के लहुटय | माता सरूप ओकर हरेक कारज म परगट होय, दुवा-भेदी न् जानीस | जात, परजाता सबो बर मरती मरय, मया–दुलार दै। गरीब, अमीर, राजनेता, बैपारी, किसान, बनिहार जम्मो के बिपदा हरै। दुखिया मन ल भरोसा राहै माता जी छोड कोनो दूसर दुख नीं हर सके। सरन म पहुँच जावै । साहित्यकार श्रीकांत वर्मा ल अपन दुलार पुरोइस, टिकट देवा के संसद म पहुँचाइस | इहाँ तक बहू पंसद करके श्रीमती वीणा वर्मा संग बिहाव करा दिस | कामरेड मुक्तक मजदूर नेता के पूरा मदद करै। कवि मैथ्यु जहानी ल अपन अंचरा के म रखीस | सिरी भंवर सिंह पोर्ते, सिरी कन्हैयालाल कोसरिया, सिरी किशनलाल कुर्रे अउ चन्दू लाल चंद्राकर ल राजनीति के उच्च पद तक ले जाके छोड्रिस। अट्टसने रयपुर लोकसभा के संसद रहे सिरी केयूर भूषण मिश्रा ल गोदनामा लेये संतान बरोबर मानिस, येकरे सेती केयूर भूषण जी अपन नाव म मिश्रा सरनेम लिखबे नइ करीस । जेन मनखे माता जी ल गोहराइस, सबो ल सुख बांटिस, महतारी के करतब निभाइस । इही गुन कर्म माता जी ल ऊँचा उठा दिस।

समाज सेवा के कारज म समरपित —
‘”करुणा की तुम सागर हो
ममता की बनी ।
डूबती नाव सागर में माता
दुखियों का पतवार बनी” ।।




कहूँ मनखे के सुभाव सुंदर हे, अंतस पबरित हे, तब घर म सुमत रिथि। सुमत अउ सांति रहे ले घर-परवार, पारा-परोस, के संग देस राज के बिकास म बढोत्तरी होथे। गुरू घासीदास बाबा जी के अमरितबानी हे… “अपन ल देख दूसर ल देख; बेरा देख, कुबेरा देख, जउन हे तउन ल बाँट बिराज के खाले”। खुद के पीरा असन दूसर के पीरा होथे, समझे के बात आय; दूसर के दु:ख म खडा होय ले दु:ख बंटा जथे; दुखिया ल हरू लागथे। गुरू बाबा जी के सात उपदेस अउ बियालिस अमरितबानी कर्मयोग के सिक्ठा सनमान हे। सात उपदेस म जीवन मुक्ति के बिधान हे अउ बियालिस अमरितबानी म निस्कपट जीवन जीये के मंतर (सूत्र) हे। इही मंतर ल माता जी अंतस म बसाके सेवा भाव के रद्दा धरिस अउ जीवन के साधना समझ के समाज सुधार के बुता म समरपित होगे। भंडारपुरी गुरूद्वारा दुखिया मन के दरबार रहिस । अट्टसने नई दिल्ली के नार्थ एवेन्यू निवास म फरियादी के रेम लगे राहै। सबके सुख-दु:ख पूछय; खवातिस-पियातिस, रात रूकइया मन बर ओढे-बिछाये के जोखा मडावै। पूस के रात जाड बाढे राहै; एक घवं दुरिहा-दुरिहा ले आये फरियादी माता के निवास म रात रहिगैं; पूरत ले सब बर चद्दर, कंबल दिस; जइसे जगा पाइन सोगे। सब के सोये उपर माता जी चारो कोती घुम के सरेखा लेथै; काकरो बर ओढना-दसना तो नट खंगे ये ? तभे सीढी म सोये एक झिन मनखे दिखगे; ओहा जाड म कांपत राहै; माताजी अपन ओढे कंबल ल ओढा के अपन खोली म आके सुतगे । ओढे बर माता जी जगा कुछु नीं रहिगे; जस रात तस जाड। नंडकरानी करा सिगङडी जलवाइस; पंलग तीर रखवा के किवाड बंद करके सोगे। सिगङी के कुहरा खोली म भरगे; माता ल अकबकासी लागिस; नींद उच्चगे; माथा चकराये ल धरलीस; कपाट खोलीस तहाँ मुहटा म मुरछा खाके गिरगे | डॉक्टर ल बलाके इलाज करवाइन तब परान बांचिस । अपन जान जोखिम म ढारके दूसर के जान बचइया राजनेता कहाँ मिलथे ? अट्टसन संत हिरदे वाली माता जी रहिस।

मनखे ल समाजिक परानी माने जाथे; समाज म रहिके सुख-दु:ख बांटत जीथे–मरथे। मनखे–मनखे म मया–पिरीत राखे खातीर सामाजिक बंधन, कायदा होथे।

जेकर से सुमत बने रिथि। बिसाल समाज म मनखे एक सुभाव के नई राहै; गुनान एक नीं होय, उच्च-नीच होथे। बिचार भले अलग-अलग होय, फेर घर- परवार, समाज के सुमत बर अंतस एक करे बर परथे। तभे उन्नति के अगासा छूये जा सकथे। सतनामी समाज म गुरू पद उच्च माने जाथे। मिनीमाता जी समाज के गुरू गद्दीसीन रहिस। जाने, अन्जाने म समाज के मनखे से उच्च-नीच हो जाय तब कसुरवार जगा डाड म एक नरियर लेके जैतखाम! म फोरवा दै; निहीं त कसुर देखत सामरथ देख के अर्थदंड लेवै ओ रकम ल सामाजिक हित म लगा देवै। गुरू घासीदास बाबा जी के सतनाम संदेस, उपदेस के परचार अउ समाज सुधार बर गाँव-गाँव बइला गाडी म रामत निकलै । माताजी ल गाँव म पहुँचत सुन के समाज के लोगन मन आरती-मंगल के संग पंथी नाचत-गावत गाँव के मेडो ले परिघावत ले जावैं, चरन पखारैं, भजैं तहाँ सुख. दु:ख बतावैं। अउ सरदा म सक्ति मुताबिक गुरू टीका देके बिदा देवयै ।

“कवच दलित, सोसित के ।।
पहिचान बनाये सतनामी रीत के |
सेत बसन, माथ म चन्दन ।
भाग सहरावैं पा के दरसन”।।

माता जी करा अगला–उछला धन-दोगानी रहिस; तभो ले अंहकार ओला छुये नइ सकीस । जन सेवा ल सबले बडे धन समझीस | गुरूघासी दास जी अमरितबानी म कहे है-

‘”मोर हीरा ह तोर बर हीरा आय
तोर हीरा मोर बर कीरा आय”।

“मोर धन जम्मो संत मन के आय फेर धन मोर बर कीरा बरोबर ये, काबर ? पर धन के लोभ दु:ख के कारन होथे।’ माता जी धन नड् कमाइस, जन के मान पाइस । अपन हिसा के सुख बाँट दै; रोजी-रोटी बर भटकत मनखे ल सहारा दिस। पेट के खातीर अपन धरम बदलइया मन ल समझाइस; भटके ल रोकिस, भेदभाव करड्या ल टोकीस, लालच देके सतमारग से भटकइड्या मन ल फटकारिस, दिन-रात जन सेवा म लगे राहै। सादा जीवन उच्च बिचार के रहिस; मन म कुछु छल, कपट नीं राखीस।

माता मिनी जी परवार, समाज अउ राजनीति म कतको उच्च-नीच छल, छद्म देखीस, तभो हार नई मानीस | धन, सम्पति मान-सनमान बढई के गुमान मन म नई पोंसीस । बाबा जी अपन संदेस म कहे है-

“मोर संत मन मोला काकरो ले बडे झिन
कइहीं नइते मोला हुदेसना म हुदेसन आय”।

बाबाजी के बताये एक-एक संदेस ल गांठ बांध के धरिस अउ तपस्या मान के सतमारग म चलीस | खादी के सादा लुगरा म जिनगी खपा दिस। जन सेवा के बलदा ओला कुछु नइट भट्टस ।

किसान, बनिहार बर छलकत पीरा —

दूसर से कुछु लेये म ही सुख नींये, देये म भी सुख हे। दुखी-भूखी ल भोजन देके या हीनहर के मदद करके जउन आंनद मिलथे एकर ले बढके अउ कोनो खुसी नइये। जेन मनखे अपन अउ परवार के सुख भुलाके दूसर बर ओला कोनो दुख नई बियापै; अट्डसन मनखे जीवन म सच्चा सुख के भागी होथे। जस, अपजस अपन हाथ म हवै। दया. मया के भाव जतेक जादा अंतस म रहिथे, ओतके चंदा कस उजियारा जस बगरथे।




छत्तीसगढ के खेती-किसानी सरग भरोसा, जुआ खेले असन, सुकाल कभू दुकाल । नहर नाली नहीं के बरोबर; बादर बने बरस जाय त अमरित, निंही त धरती पियासे रहि जाथे।

बछर-बछर के दुकाल, किसान के करलई देखे नइ गिस । माता जी के नाना-नानी अउ परवार इही दुकाल म तिडी-बिडी होय रहिन। दुकाल के विपदा ले जुझत किसान ल बचाये बर गुनान करै, रद्दा नइ दिखय । बाबाजी के संदेस म परमारथ के सीख मिलथे। इही सीख ल माता जी धरिस। सतगुरु के मुखारबिंद ले निकरे अमरितबानी हे–

‘मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा संतद्भारा बनावन मोला भावै नई, तोला बनायेच बर हे, तब जलाशय बना तरिया बना, कुँआ बना, धर्मशाला बना अनाथालय बना, नियालय बना दुर्गम ल सुगम बना”।

सतनाम साधिका मिनीमाता ल रद्दा दिखगे | हसदो बांध बर संसद म प्रस्ताव रखत कहिस, बांध बन जाय ले हजारों एकड खेती म पानी पहुँचही, फसल म बढोत्तरी होही । घेरी- घेरी दुकाल के मार से किसान ल बचाये जा सकत हे। सरलग दउड- धूप म हसदो बांध बनाये के मंजूरी मिलीस; काम चालू होगे | माता के सुरता म सन 1981 म बाँध के नाव मिनीमाता बांगो बांध रखे गिस ।

आजादी के बाद छत्तीसगढ म भिलाई इस्पात संयंत्र, बालको के एल्युमीनियम प्लांट, बैलाडीला, कोरबा, बचेली म बडका कारखाना खोले गिस | छत्तीसगढी पढे-लिखे जेवान मन ल नौकरी देत रहिस । येकर से माता जी ल अब्बड दु:ख पहुँचय । केंद्र अउ मध्यप्रदेश सरकार छत्तीसगढ छेत्र बर भारी दुभेदवा करै। इहाँ के समस्या के समाधान बर माता जी अपन अंतस के बात कहिके अलग छत्तीसगढ राज के दर्जा बर जोर दय | जेकर से छत्तीसगढ के बिकास हो सकै अउ बेरोजगार ल रोजगार मिलै। खनिज संपदा के दोहन छत्तीसगढ के विकास बर होय।

मजदूर समस्या ल लेके छत्तीसगढ मजदूर संघ के गठन होइस । सिरी विमल कुमार पाठक जी अध्यक्छ रहिन। मजदूर संघ दुवारा लगभग पाँच हजार छंटनी करे मजदूर, भू अधिग्रहण ले प्रभावित संयंत्र से निकाले 1500 किसान अउ छत्तीसगढिया बेरोजगार मन के रोजगार बर घेरी घंव धरना-प्रदर्शन होय। संघ के अध्यक्छ पाठक जी ल संयंत्र के मनेजर एक नई गमहेरत रहिस, तब हार–थक के मजदूर साथी मन ल लेके पाठक जी समस्या के निदान बर माता जी जगा पहुँचगे । माताजी समस्या दूर करे के भरोसा देथे अउ मजदूर मन के बिनय म मजदूर संघ के आजीवन अध्यक्छ बने बर तियार हो जथे।

सन 1967 के फरवरी महीना, माता जी के अगवाई म बढका रैली निकाले गिस। जेमा क्धियक सिरी धरमपाल सिंह गुप्ता, सिरी शिवनंदन प्रसाद मिश्र, डॉ. पाटकर, सिरी सम्बल चकवती, अउ सिरी सुधीर मुकर्जी छत्तीसगढ के हितवा अउ मजदूर नेता मन जुरियइन। भिलई इस्पात कारखाना म जउन किसान के भूईंया निकरे रहिस उही म के 1500 मजदूर मन ल छंटनी करके नउँकरी ले निकाल दे रहिस। इही रैली म छत्तीसगढ राज के मांग बुलंद करे गिस । दस हजार से जादा मजदूर, किसान जुलुस म रहिन। कारखाना के जनरल मनेजर चरचा करे बर माता जी जगा नेवता भेजीस | माता जी कहिस मैं रैली लेके आये हव; चरचा अकेल्ला नइ फेर एक घव जनरल मनेजर सरदार इन्द्रजीत सिंह बिनय करत अपन साथी सहित पहुँचे बर माता जी जगा संदेस भेजीस । साथी मजदूर नेता सिरी धरमपाल सिंह गुप्ता, सिरी शिवनंदन प्रसाद मिश्र, विमलकुमार पाठक, सिरी सुधीर मुकर्जी मन ल लेके माताजी इस्पात भवन गिस | चरचा सुरू होइस, जनरल मनेजर सरदार इन्द्रजीतसिंह ल माता जी एकटप्पा सवाल करीस–

”आप लोगों ने हमारे किसान, मजदूर पर अत्याचार किया है मैं आप से पूछना चाहती हूँ जनरल मनेजर आदेश क्रं. 20 के तहत अनुबन्ध में प्रभावित किसानों को पर्याप्त मुआवजा व संयत्र में स्थायी नौकरी पर रखने का प्रावधान है इसी तरह स्थानीय बेरोजगार युवकों को रोजगार देने केंद्र सरकार का स्पष्ट निर्देश है. फिर आप लोगो ने खिलाफत क्यों किया” ?

गलती तो कर डरे राहै, जनरल मनेजर के बोलती बंद होगे। हाथ जोर के मनेजर ह कहिस, “माताजी क्षमा करें इस समस्या का हल करना मेरे वश की बात नहीं है मुझे समय दीजिए इसके लिये इस्पात मंत्रालय भारत सरकार के पास प्रस्ताव भेजना होगा” । माता जी अउ मजदूर नेता मन लहूट के आगैं। आम सभा होइस, माताजी गोठियावै छत्तीसगढी, भासन घलु छत्तीसगढी म दिस | सुनके मजदूर, किसान अधिकार बर जागीन। आमसभा उसले के बाद गुरु माता दिल्ली पहुँच के प्रधानमंत्री जी श्रीमती इंदिरा गांधी जी अउ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री सिरी श्यामाचरण शुक्ल जी से भिलाई संयंत्र के मजदूर समस्या ल रखिस आखिर म निकाले भू-अर्जन से परभावित 1500 मजदूर ल नौकरी म फेर लहुटाइस संग म छंटनी करे अउ मजदूर मन के घलु फायदा होइस । अपन आखिरी सांस तक छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढिया के हक खातीर लडुई लडीस; कतको ल नंउकरी मिलीस। माता जी सर्वहारा के पूज्यनीय होगे ।
”गुथे, बुने देखाये, राज छत्तीसगढ सपना ।
कहे उंघवा गंवाथै, हवै हक बर जागना ।।
कोरबा, भिलई, हसदो, तोरेच गुन गाथा ।
अंतस भीतरी छत्तीसगढिया के मिनीमाता” ।।




माता जी दक्षिण-पूर्व रेल्वे बोर्ड के सलाहकार सदस्य रहिस, रेल्वे म अब्बड कन काम सवारी (यात्री) मन के सुभित्ता ल देखत केंटिन अउ छोटे रेल टेसन माता जी के सुझौती म बनाये गिस। कोयला लोडिंग बर रेल्वे युनियन बिलासपुर म गठन करके मजदूर मन ले सोसन से बचाय के उदिम करीस ।

गुरुवइन डबरी हंड्ताकांड म बघनीन रुप —

जात-पात, धरम के ईरखा जादा अलहन लाथे, देस, समाज ल बाँट देथे, रीस–राड म मनखे के मगज भस्ट हो जथे, सोचे बिचारे के ताकत हीनहर हो जथे। मनखे रीस म अंधरा बरोबर होथे। गुरूघासी दास बाबा जी रावटी म कहे हे-

‘”‘झगरा के जर नई होय, ओखी ह खोखी होथे”।

सतनामी समाज के मनखे धार्मिक सुभाव के होथें। कोनो जात–धरम के देवधामी ल माने बर कोर कपट नइ करैं; सबो बर मन म सरद्धा गुरु परब तो मनाबे कोनो-कोनो छेत्र म रामायन पाठ त कहूँ रहस (कृष्ण लीला) घलु बिलासपुर जिला मुंगेली, बैगाकापा अउ गुरुवाइन डबरी म राम चरित मानस पाठ के करई ल उच्च जात के मनखे मन नई भाइन; देख के जरजरी समागैं, धरलीन भंइस बैर, तहाँ पांच झिन निरपराध सतनामी ल घर भीतरी के बइरी मन आगी लगा दिन। 19 जनवरी 1968 म जात-पात के ईरखा चलते पाँच सतनामी बेमउत मारे गइन। ए कांड सतनामी समाज ल झकझोर के रख देथे | मामला संसद म उठाइस; ए हंड्ता कांड म एक अकेल्ला मिनीमाता जी संसद भीतर म बघनीन अस गरजत कहिस, मोर लटका मन कोनो गाजर, मुली नोंहे जिंहला मारे, काटे, जाथे। मैं अपन समाज के उपर जुलुम होत नइ देख सकौं; नियायिक जांच होना चाही, आदेस दव, चारों कोती सन्नाटा छागे। भट्टगे! एक नारी के दरद अउ चीत्कार संसद म गूँजत रहै । माता जी अपने दल के कांग्रेस सरकार ल कटघरा म लाके खडा कर दिस। सिरीमती इंदिरा गांधी जी परधानमंत्री रहिन; संसद सभा ले जांच के आदेस देये बर परगे । अंग्रेजी गजट वाले मन माता जी के देये भासन उपर लिखे रहिन–

”स्तब्ध संसद में एक अकेली तीखी आवाज चीख की तरह गूँज रही थी” ।

मुरगे ली म घटना के बिरोध बर आमसभा —

गुरूवइन डबरी हंइता कांड के बिरोध करत मुंगेली म देस भर के सतनामी जुरियइन। जुराव के मंच ले माता जी सरकार ल चेतावत कहिस, (ओ बखत सिरी गोविंदनारायन सिंह मध्यप्रदेश के मुखमंत्री रहिन) ये मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री आँखी म पट्टी बाँध के राजगद्दी म बइठे रहे ले नई बनै ? देख, मोर लडका मन ल दंदोरे, रौदें जात हे, टोरे-फोरे, तरसाये जावत हवै। ए मन कोनो भेड, बकरी नोहें, सब ल सम्मान के संग जीये के हक हे । तैं ईंकर रहच्छा (रक्षा) नइ कर सकच त झिन कर, मैं रइच्छा खुद करिहों। अपन हक, पाये बर हथियार उठाये बर परही तभो हम पाछू नइ घुचन । आगू चलके मोला दोस झिन देबे। आगू का होही ? येला समे बताही, मैं नइ जांच होइस, हंड्तारा मुलजिम मन पकडे गइन, खटका टरिस, समाज म सान्ति आइस | माता जी समाज के लोगन ल सचेत करत कहिस-सतनामी समाज ल अंधियार म रखइया, जात-पात के नांव म आगी बरड्डया मन से सावचेत रहे बर लागही, समे आगे हे आँखी उघारे म बनही, मुँह लुकई म हक, नियांव नई मिलय, जोम्मस म मिलथे। हमला हँसिया टेना नीं ए, धीरज राखे सद्गुरू जी के बताये सतमारग म रेंगना हे, अभी समाज उपर बिपत आये हे, टरही। गुरुमाता के बुझे ले सतनामी समाज जागीस अउ सुमत दीखिस।

घर अंधियार, मंदिर म दीया बारे ले का होही ? अन्जान सक्ति (आदिशक्ति) जब धरती ल सिरजाइस होहय, तब ओकर अंतस म ममता के धारा बोहात रहिस होही। येकर सेती आज तलक हमन धरती ल माता के रूप म पूजथन, मान देथन, नारी रूप म बंदना करथन । नारी महतारी रूप धरके जिनगी नीं देतीस त ये संसार के बिस्तार कहाँ ले होतिस | डॉ. राजेश कुमार उपाध्याय अपन कविता म लिखे हे (सत्यध्वज पत्रिका ले) :-

”नारी उन्नति नारी समता
नारी वैभव जग में उज्ज्वल
पग-पग में सम्मान भाव का
दिव्य ज्ञान बतलाओ जी
सतगुरु के ज्ञान गावो जी”।




नारी हक सिक्छां बर जोर —

माताजी के विचार म जब तक नारी के उन्नति, सम्मान अउ सिक्छां के दुवार नई खुलही तब तक समाज के मरजाद अउ देस के बिकास के बात सोचई सपना बुनई ये। आदमी जात (पुरुष) ये भूला जथे, नारी के कोख म पलके जनम पाये हन; धरती म पांव रख सके हन । नारी, महतारी, सुवारी, (पत्नी) बहिनी, बेटी, अठ देवी रूप म घलु माने जाथे। अपन सुख बर आदमी जात सुवारथी किसम के हो जथे। आदिकाल से नारी जाति के जिनगी ल पराधीन बनाके हक नंगाये गिस । जब-जब दासता जिनगी से मुक्ति बर छटपटाइस तब-तब दबाये के उदीम करे गे हवे। एक कोती नारी ल देबी मानके अउ दूसर कोती भोग के जीनिस (वस्तु) मानें।

नारी, तपसी, तियागी, अउ ममता के बरसइया होथें। छत्तीसगढ म गाँव के तिरिया मन ल माता जी देखिस, अंधविस्वास के सेती नोनी जात ल पढाये, लिखाये बर नइ पढही तहाँ घर के बुता कोन करही ? कतको पढ जाही घर के चूल्हा फूंकही, दाई संग घर–दुवार के बुता सीख जाही तब, ससुरार के बोझा नड् बनही। अट्टसन सोचइया दाई-ददा ल माता जी बुझिस, नोनी मन सिक्का पाही तभे अपन हक ल जानही, समझही, परखही, उच्च सिक्का पा के अपन पांव म खडा होही। दाई-ददा के मरजाद बाढही, समाज देस राज के उन्नति होही।

महतारी लटका के परथंम गुरु माने जाथे; लडका ल सुग्घर सिखौना (संस्कार) तभे मिलही जब महतारी पढे-लिखे रइही। बनिहारिन बना के कब ले रखिहा ?

लोगन मन नारी के सुन्दरता ओकर काया रूप-
रंग म देखथे; जे हर प्रकति के देये आय माता जी के संदेस रहिस–

“नारी के सुन्दरता, सिक्छा, संस्कार, बेवहार ले झलकथे | इही सुन्दर रुप परवार, समाज के मान-गौरव होथे | नारी सुन्दरता तन ले निहीं मन, सादगी से देखे जाथे” ।

माता जी जादा जोर सिक्छा के उपर दिस । आज सबो जात बिरादरी के नोनी मन पढत-लिखत हे; अपन पांव म खडा होय बर धर ले हवैं।

समाज के पय-पाखर चतुवारे के बुता घलु माता जी करीस, बालविवाह, अनमेल विवाह के विरोध करत मानव समाज म जागृति लाये के उदिम म लगे रहिस। नारी उत्थान बर दहेज निवारण अधिनियम 1961, मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 समान पारिश्रमिक अधिनियम अउ शारदा एक्ट जइटसन समाजिक सुधार बर कतको उपाय हे।

गुरू घासीदास जंयती अउ गिरौदपुरी मेला ल बढावा —

गुरू घासीदास बाबा जी के जंयती के जन्मदाता सिरी नकुलढीढी जी ग्राम भोरिंग निवासी सन 1938 म गुरू घासीदास बाबा जी के जंयती मनाये खातीर पहली उदीम करीस । तब अंग्रेजी सासन रहिस । ग्राम भोरिंग ले जंयती मनाये के सुरुवात तो होगे; फेर सतनामी समाज म जागरन नीं आये ले 20–30 साल ले परचार-परसार म कमी देखे बर मिलिस ।

आजादी के बाद सतनामी समाज सिक्छा–दीक्छा बर चेत करीन मिनीमाता जी संसद सदस्य होगे रहिस । बाबा जी के जंयती मनाये बर जोर-सोर से माताजी परचार म भिड्के धार्मिक अउ सांस्कृतिक गियान बगराइस ।

गुरुघासीदास जयंती परब 18 दिसंबर के दिन सरकारी छुट्टी रखे बर मध्यप्रदेश के राज्यपाल सिरी के.सी. रेड्डी जी से मिनीमाता जी मांग रखिन । जेकर से बाबा जी के अनुयायी मन गुरु जयंती सबो परवार-समाज मिलके मना सकै अउ बाबा जी के सतनाम संदेस जन-जन तक पहुँचे। मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल जी सन 1970 म गुरुघासीदास जयंती 18 दिसंबर के दिन रायपुर अउ बिलासपुर संभाग म छुट्टी घोषित करीस। आगू चलके मुख्यमंत्री सिंह जी हर सन 1972 म पूरा मध्यप्रदेश म 18 दिसंबर के छुट्टी घोषित करके गुरु बाबा घासीदास के उपर अपन सरद्धा भाव परगट करीन।




गिरौदपुरी मेला लगे के सुरुवात सन 1935 ले होय रहिस, मांधी पुन्नी के दिन मेला होवय। एकर पहली गुरू दरसन बर कमती मनखे जावय । मेला के विस्तार बर मिनी माता जी, सिरी नकुलढीढी जी, गुरू आसकरनदास, राजमंहत दीवानचन्द जी सोनवानी, सखाराम बघेल, मंहत जगतु सोनवानी, संत, मंहत, भंडारी जइसे सुजानिक मन विचार करत मेला तिथि ल बदलके सन 1961 से फागुन महीना अंजोरी पाख के पंचमी, छठ साते म तीन दिन के मेला तिथि के ऐलान करीन तब ले आज तलक हर बछर इही समे म मेला लगथे । संगे–संग बाबा जी के नांगर जोते खेत सफूरा मठ, बछरु जीवन दान, पथरा उपर बाबा के चरन चिन्ह, छाता पहाड, अमरित कुंड, चरनकुंड, पंचकुंडी जइसन पबरीत अउ चमत्कारी जगा मन के चिन्हारी करीन । गिरौदपुरी म गुरू अगमदास के बनाये मंदिर ल परमुख मान के गुरूगद्दी पूजा सुरु करे गिस । माताजी संत, मंहत के संग गिरौदपुरी मेला के विस्तार बर गाँव-गाँव म फागुन महीना के पंचमी, छठ अउ साते म मेला होय के आरो देवत दरसन बर नेवता देवय। परचार होत गिस; गिरौदपुरी म अब संसार के सबले बडे सतनाम मेला लगथे । 77 मीटर ऊंचा जैतखाम सत के संदेस बगरात हवै।

‘कहि देबे संदेस’ सनिमा मंजूरी बर माता के भूमिका —

सन 1965 मनुनायक के बनाये छत्तीसगढी सनिमा ‘कहि देबे संदेस’ सामाजिक कुरीति के उपर बने हवे। ये सनिमा म बाम्हन जात के मुटियारी अउ सतनामी चेलिक के परेम अउ बिहाव रचाके सामाजिक बराबरी (समानता) के संदेस देवत कहिनी गढे गे हे। ते पाय के बाम्हन समाज के मन रोसियाये बिरोध करीन। रिलिज होने नई देत रहिन; बिरोध ल देख के सूचना प्रसारन मंत्रालय के सदस्य मन छत्तीसगढ के संसद सदस्य अउ गुनी जन ल देखाये बर सुझाव दिन। ओ समे मिनीमाता जी, डॉ. खूबचन्द बघेल के संग सिरी बाबू जगजीवन राम अउ सिरीमती इंदिरा गांधी जी तक ‘कहि देबे संदेस’ सनिमा देखीन। मिनीमाता जी आगू आइस, सनिमा बनइया मनुनायक जी ल इंदिरा गांधी जी से मिलवाइस अउ कहिस, फिलिम सामाजिक बुराई उपर बने हवै। येकर उपर रोक लगवाना न्यायसंगत नोहे। सूचना प्रसारन मंत्री इंदिरा गांधी जी रहिस। देखाये बर मंजूरी मिलगे । तहाँ सनिमा ल चलाये गिस। माता जी रोक लगन नई दीस |

गुरु घासीदास जयंती 18 दिसंबर 1968 के कार्यक्रम म छत्तीसगढ सनिमा कहि देबे संदेश बनइया सिरी मनुनायक, संगीत, निर्देशक सिरी मलय चक्रवर्ती अउ संगी कलाकार मन ल सतनामी समाज कोती ले सनमान करत माता जी सबो झिन कलाकार ल असीस देवत फिलिम के सफलता बर बधाई दिस।

माताजी के गुनान —

घाट अलग-अलग बनगे, धारा तो एक हे, ओकर काम एक हे, प्यासा के पियास बुझाना । घाट के अलग होय ले तरिया, नदिया, नरवा नई बदल जाय। आने–आने धरम, जात-बिरादरी हे, सतपुरष तो एक हे, देवधामी के नाव कतको हो सकत हे, फेर सत के सरूप नीं बलदै। घाट के भेदभाव म अपन मनखे पन ल गंवा डरथन | देखमरी, खो, ईरखा (मतभेद) भूला के निरमल धारा पाय बर मन एक करे बर परही | अंतस म मनखे पन आये ले सुख के लेवना पाये जा सकथे। फूल रंगबिरंग के होथे, एक सुत म पिरोये ले सुन्दर माला (हार) के रूप ले लेथे। अट्टसने मनखे घलु ल अपन अंतस म भाव गढे बर परही, जात, धरम के ईरखा भूलाये बर परही तभे मानुस जनम के कलियान होही।

माता जी के विचार म नता-गोता के डोर बढ नाजुक होथे, सम्हार के रखे बर परथे। अगास म उड्त पतंग ल जादा ढिल्ला छोडे म उडे के जगा भूईंया म गिरे लगथे; अपन कोती जादा ताने म पंतग के डोर टूट जथे। जबरदस्ती म नता के मया डोर टूटे के डर रिथि। बचाये रखे बर खुद के गलती सुधारे ले अउ दूसर के गलती संवासे म बनथे। गलती होय से छिमा मांग लेये म कोनो छोटे या नीचा नई हो जाय; येकर से मन के मइल धोवा जथे।

आज नता-कुनेता ल म तउले जात हे; परवार म मया-पिरीत खरा माते अस दिखथे। वीरान अठ अनचिन्हार असन लागथे। आगू चलके नवा पीढी ल का इही सिखौना सीखा के छोडबो ? मया के मंदरस म महुरा घोरे ले नइ बनय; कोकडा खिंधोहिल म सुमत नई माडै। अवइया बखत समाज, परवार के कउन दसा होही ? समझे बर परही । ‘घर अंधियार हे, तब मंदिर म दीया बारे ले का होही”?

गुरू बाबा के सतनाम! मंतर ल अंतस म बसाये बर परही। बाबा जी के बताये गियान धरे म बनही । तभे परवार अउ समाज म सुन्ता बंधाही।




सतनामी समाज के संस्कार ल लेके माताजी के विचार रहिस; हमर समाज म नारी ल बराबर माने-गउने जाथे। सनमान अउ बराबरी के दरजा मिलथे। समाज म आदमी जात के जतेक असथान हे ओतके नारी मन के हवे | नर-नारी दुनों मेहनती होथे, गरीबी विपदा ले जूझे बर जानथे। अपन हाथ सबो कारज कर लेथे; परभरोसिया नीं होय। ईरखा, देखमरी म घाट, पारा के बंटइया मन हमर समाज ल लेके तरह-तरह के पुरान दबाये रखे बर उदीम हमन देखत हन जतेक समाज सुधार होवत आवत हे ओहर अपन ल उच्च जात, बुधमान बतइया समाज म होत हे। सतीप्रथा, दाईज डोर, नारी ल भोग के जीनिस बताना, पराधीन बनाके के रखना, बालविवाह, रूढिवाद, पाखंड, जडसन बेमारी हमर समाज म नीयें।

“हमन ल सतनामी कहाये म गरब होथे | गुरू घासीदास बाबा जी! जइसे गियानी, मुक्तिदाता अवतार लेके आइस अद बुद्भ! असन तप–तपस्या म आत्मगियान पा के मानव जाति म सामाजिक क्रांति लाइस; जीवन म सतकर्म के बोध कराइस; अटके–भटके डरे, थके ल पार नकाइस । म छबडाये मनखे ल रद्दा बताइस: आसा-बिंसवास जगाइस, मनखे के करु कस्सा मिटाके नवा नता–गोता, संगी-साथी, हितवा-मितवा जोरीस । मनखे–मनखे एक बताके सतनाम! संदेस बगराइस ।”

माताजी कहै समाज म असिक्छा, बाल विवाह, नसाखोरी, घेखराहीपन, जइसन अवगुन हवे जेकर से जुझत हन । बिचारौ कब ले जुझबो ? चलनी म दुध दूह के, भाग ल दोस, अट्डसन म नइ बनै, करम सुधार के चले म बनही, अपन भाग खुद ल गढे बर लागही। काकरो आँच-पाँच ले दुरिहा रहिके डट के कमावा, डट के खावा, अउ छाती तान के रेंगव, चोरी करे म डर, मिहनत म का के डर ? जुआ-चित्ती, मंद-मउंहा, बीडी, गाजा, ये सब अरकट्हा रद्दा रेंगाथे; दुरिहा रहे बर परही, तभे हमन सच्चा सतनामी बनके रही सकत हन । पढे-लिखे म आगू आये ले सबो समस्या के निपटारा होही। बडहर मनखे के घलु अप्पढ रहे म कोनो दरजा नई राहै। हक अउ सनमान पाये बर सिक्छा सब ले बडे हथियार होथे, अग्यानता के अंधियारी मिटाये बर गियान जोत जलाये म बनही। समाज संसार म फबते, अलग चिन्हारी, मान सनमान पाथे।

माता मिनी के संदेस —

माता जी सिक्छा, संगठन, खान-पान, बोली-भाखा, आचरन अउ समाज के विकास बर जादा जोर देवत संदेस देये हवै…

1. सामाजिक निंयाव वेबस्था म चेत करिहा। निंयाव दीया बरोबर होथे; कहूँ निंयाव के दीया बुझा जथे, ओ समाज अंधियार म बुड जथे।

2. मिहनत से जी न चुराना चाही।

3. बेटी-बेटा ल जतेक जादा हो सकै पढोवा-लिखावा कोर-कपट झिन करिहौ।

4. गुरु घासीदास बाबा जी के बताये सतमारग म चलना हे।

5. अपन ल हीनहर नड समझना ये।

6. रहन-बसन साफ सुथरा अउ बानी के मिठास ले बइरी घलु जुरथे।

7. दूसर ल सनमान देये म सनमान मिलथे। फेर ओतके देना चाही जतका जरुरत हे।

8. आज जमाना संगठन के आय, जुग झुकाने वाला के ये; समाज म एक फेंट होके रहे म बनही ।

9. सोसित बनके नई रहना ये, सोसन के बिरोध म जुझे बर परही, तभे हक पाये जा सकथे।

10. सादा खान-पान, उज्जर चरित्र, मन, वचन, आचरन के पबरित रहे ले मनखे पन झलकथे।

11. अंतस म आत्मविश्वास के जागे ले, आत्मबल मिलथे, अंधियारी म उजियारा लाथे, बिसवास के दीया जलाके रखव, जिनगी सँवर जाही।




माता जी के सतलोकी होना —
माताजी भंडारपुरी ले रयपुर होवत दिल्ली जाय बर निकलगे। दिल्ली जाय के पहली भोपाल म पुत्र विजयकुमार से मिलके पढई-लिखई के आरो लेवत हवाई जिहाद म बइठगे | जिहाद म माता जी सहित 14 झिन मनखे सवार रहिन । दिल्ली पहुँचते-पहुँचते पालम हवाई अड्डा नजीक तूफान म जिहाद पहाडी म ठोकर खाके गिरगे। 11 अगस्त 1972 के अधराति मिनीमाता जी बिसाल समाज ल आँसू म बुडोके रोवत, कंदरत छोडके सतलोकी होगे । सतनामी समाज अपन महतारी ल गंवा डारिस।

ग्राम चटुवापुरी धाम (सिमगा) म गुरू अगमदास अउ माता जी के समाधी हवै जिंहा हर बछर पूस पुन्नी म गुरू दरसन मेला लगथे जिहां गुरूजी अउ गुरूमाता ल माथ नवाके सर्वा अरपित करथें।

छत्तीसगढ राज बनगे, माता जी के सपना पूरा करे के भार हम जम्मो छत्तीसगढिया मन उपर हे; तभे हम अपन हक, सनमान पा सकत हन । निंही त परभरोसिया रहि जाबो।

माता मिनी जी हमर बीच नइये, ओकर बताये संदेस हवे, जेकर ले बल मिलथे। हम सब ल नवा रद्दा देखाइस; उही रद्दा म आगू बढना हे। नांव अम्मर हे, आज लाखों लोगन के अंतस म माताजी बसे हव्य |

“संग छूटगै, मिटगे काया, रहिगे माता सतकरम्।
जुग-जुग रहही नाव अम्मर, जनाये मनखे धरम” ।।
जय सतनाम




गुरू माता मिनी
दुबर-हीनहर के देख आँसू जावै करेजा फाट
दुलरैया-बरसैया मया, माता मिनी के हिरदे विराट
अम्मल म देवमती, पबरीत अन्तस भाव-भक्ति
उन्नीस सौ पन्द्रह फागून महीना, अवतरे मगन सबीना
अँगना गूंजे सोहर गीत, तक धिन्ना मांदर खटका बीत
सहरावैं भाग किलकारी सुन, उछाहित परवार बिधुन
मुच-मुच हास, हरसवि मन, असम म धरि जनम
नाव देवी मीनाक्षी धरावे, चन्दा बरन रूप पाये
छत्तीसगढ के धन भाग, बिहाव रचाये गुरू अगमदास
गुरू माता के दरजा पाइस, मीनाक्षी मिनीमाता कहाइस
चिन्हारी कहाँ जात-पात ? दुलारिस सबन ल महतारी
जुलमी देखाये आँखी जब-जब, रूप बघनीन के तब-तब
कवच दलित-सोसित के, पहिचान सतनामी रीत के
सतनाम! के सोर बगराइस, अँचरा भटके पाइस
सेत बसन माथ म चन्दन, भागमानी जन पावै दरसन
थर्राजय संसद जब गरजै, देस भर तहाँ चिहूर परजै
भेदभाव चतुवान कान्हून लाइस, दलित मान हक देवाइस
बियाकूल देख नारी दसा, बुझाइस बेटी पावै सिक्छा
गुन माता के कतेक छोडव कङन-कउन सुनावं
भाईचारा परमारथ खातीर, होइस माता कुर्बान आखिर
उन्नीस सौ बहत्तर गियारा अगस्त, परगे जउंहर बिपत
सतलोकी दुलार पुरवइया, मिलगे माटी म कंचन काया
खायेन किरिया हम संतान, अबिरथा नीं जावै बलिदान
रहिगे सुरता के चंदन, असीस दे माता हवै बन्दन ||




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पुस्तक समीक्षा : अंतस म माता मिनी

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छत्तीसगढ म जतका महान विभूति अवतरित होईन ओमा मिनी माता के प्रमुख स्थान हवय। माता मिनी न केवल कुशल राजनेता रहिन बल्कि बहुत बडे समाज सुधारक, गुरूमाता अउ दूरदृष्टा भी रहिन। एक विभूति के भीतर अतका अकन सद्गुण के समावेश ये बात के परिचायक हवय कि माता मिनी छत्तीसगढ म परिवर्तन लाये खातिर अवतरित होय रहिन। आज जब हम मिनी माता के जीवन उपर कुछ पढना चाहथन त उँकर उपर लिखे गे साहित्य के कमी के कारण अध्ययन से वंचित रहि जाथन। गौरतरिहा जी के ये किताब सार्थक पहल हवय। मोर जानबा म मिनी माता उपर विस्तृत जानकारी देवइया ये पहिली किताब आय।
लेखक ह किताब ल सुव्यवस्थित ढंग ले चार खण्ड म विभाजित करे हवय। पहिली खण्ड बड़ मार्मिक हवय। छत्तीसगढ़ म अकाल परथे, अकाल ले प्राण बचाये खातिर राजमहंत अउ जमींदार अधारीदास (मिनीमाता के दादा) अपन तीन झिन बेटी के संग रोजी-रोटी के तलाश म पलायन करथे, कलकत्ता होवत असम के चाय बागान पहुंच जाथे। अपन तीन बेटी म से दू बेटी ल भूख के मारे काल के गाल म समाय ले नई बचा सकय। ये घटना सन 1896 के आय जेमा पलायन के पीरा ल लेखक चित्रित करे हवय।
दूसर खण्ड म मीनाक्षी के जन्म होना अउ गुरू अगमदास जी के जीवन संगिनी बनके मीनाक्षी ले मिनीमाता बने के घटना ल लेखक बताय हवय। गुरू अगमदास जी के साथ मिनीमाता के असम ले सपरिवार छत्तीसगढ वापस आना वर्णित हवय। गुरू अगमदास जी के सतलोक वासी होय के उपरांत गुरू माता उपर गुरूगददी अउ घर परवार दूरों के जिम्मेदारी आगे। सन 1953 म तात्कालीन म.प्र. के प्रथम महिला सांसद होय के गौरव गुरूमाता ल मिले हावय।
तीसरा भाग म मिनीमाता के राजनीतिक, सामाजिक अउ धार्मिक संघर्ष के उल्लेख हवय जेन प्रेरणादायी हवय। 1953 म मिनीमाता के अगुवाई म अस्पृश्यता निवारण कानून संसद ले पास होना उँकर कुशल राजनीतिक जीवन के परिचायक हवय। 1967 म भिलाई स्पात संयत्र द्वारा भू-अर्जन ले प्रभावित 1500 मजदूर अउ छटनी करके निकाले गे मजदूर के हक खातिर जमीनी लडई करके उन ला फेर नौकरी देवाय के काम मिनीमाता करिन जेकर ले उन सर्वहारा वर्ग बर पूजनीय होगिन। 1968 म घटित गुरूवइन डबरी हतियाकांड ह मिनीमाता ल अंतस ले झकझोर दिस, इही बेरा म मिनीमाता के रौद्र रूप देख बर मिलीस। संसद म बघनीन बरोबर गरजत मिनीमाता के कहना कि- मोर लइका मन कोनो गाजर मुरई नोहय जिंहला मारे, काटे भूंजे जाथे मैं अपन समाज के उपर जुलुम होत नइ देख सकव।” अइसन बात ल कोनो लौह महिला ही कर सकथे।
चौथा भाग गुरूमाता के सामाजिक जीवन उपर केन्द्रीत हवय। सतनाम धर्म अउ बाबा गुरू घासीदास जी के उपदेश के प्रचार-प्रसार, सामाजिक जीवन म छुआछुत, उँच नीच अउ जाति-पाति के विरोध ल लेखक ह मुखर होके लिखे हवय। मिनीमाता के कहे 11 संदेस अउ उंकर सतलोकवासी होना भी इही खण्ड म हवय। कुल मिलाके गौतरिहा जी ह मिनीमाता के जीवन के कई पहलू ल सामने लाय केपूरा प्रयास करे हवय।
आने वाला बेरा म मिनीमाता के उपर अउ गहन शोध करे के जरूरत हवय ताकि न केवल सतनामी समाज बल्कि सर्वहारा वर्ग भी मिनीमाता के जीवन दर्शन, उंकर संदेश अउ आदर्श से लाभान्वित हो सकय। शोधार्थी छात्र बर ये किताब ह बड उपयोगी साबित होही।
अजय अमृतांशु

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कईसन राज ये कका

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कईसन राज ये कका ये का होवत हे,
ठुड़गा ह हासत हे अऊ हरियर मन रोवत हे।
माते मतवना पियत हे दारू,
सरकार खोलत हे जगा जगा दूकान तको दुलारू।
कतको अपटही कतको मरही,
फेर अंधरा मन ल नईये संसो ककरो समारू।
अभिचे सुने हौव झोला छाप मन ल तको तंगावत हे,
नई पढ़े लिखे ये तेकरो करा दवई बटवावत हे।
गाँव म जाहू पता चलही,झोला छाप के उपकार ह,
पुछहूँ जनता ल तभे तो बताही अंधरा सरकार ल।
अपने अपन नियम कानून लादत हे,
मरत हे तेला अऊ मारत हे।
रमन तोर राज म का होवत हे,
न मरत हन न मोटावत हन।
तभो ले कका तुहीं ल सहरावत हन,
अब तो आही बने दिन कईके,
बाट जोहत मुड़ धरे पछतावत हन।

विजेंद्र वर्मा ‘अनजान’
नगरगाँव (रायपुर)






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खेत के मेड़

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पूनाराम अपन 10 बच्छर के बेटी मोनिका ल फटफटी म बैईठार के भेलाई ले अपन पुरखौती गांव भुसरेंगा छट्ठी म लेजत रहीस।भुसरेंगा गांव पक्की सड़क ले एक कोस म जेवनी बाजू हावय।नहर के पार के खाल्हे म मुरुम के सड़क बने हे जौन ह अब डामर वाला पक्की सड़क बनईया हे। तीरे तीर गिट्टी के कुढ़ा माढ़े हे। दुनो बाप बेटी गोठियात फटफटी म बैइठ के जावत हे। पूनाराम अपन नानपन म बिताय दिन ल सुरता कर-करके नोनी ल बतावत हे।येदे गौटिया के खेत आय, येदे पटइल के, ये दाऊ के खेत आय।राहेर बोंवाय हावय ते मेंड़ के पीछू म हमर मंझला कका के खेत हावय। मोनिका घलाव कभू नाहर के पानी ल देखय त कभू खेत म बोंवाय धान के हरियर हरियर पेंड़ ल अऊ अड़बड़ खुस हो जाय।वोकर जनम ह भेलाईच म होय हे, पहिली घांव गांव आवत हे। बेलौदी ले एक कोस जावत ले बहुत कन गोठ बात होवत होवत लईका ह ऊदुपहा पूनाराम ल पूछ परीस – बाबू ! ये मेंड़ काय होथे अऊ काबर बनाय जाथे। उदूप ले पूछे लईका के सवाल ले पूनाराम अकबका गे। तुरते ताही कहीं नई सुझीस त कही दिस कि अपन अपन खेत ल चिन्हे जाने बर मेंड़ बनाय जाथे।फेर ओकर मन म ऐ बात रहिगे। छट्ठी के परोगराम ल निपटा के रतिहा नौबज्जी अपन घर अमरगे। बिन खाय खटिया म चल दीस। खटिया म ढलंगीस त फेर ऊही बात घूमे लगीस कि खेत म मेंड़ काबर बनाय जाथय।भुईंया ल बिन मेड़ के बऊरे जा सकत हे। ढलंगे ढलंगे बिचार करिस कि मेड़ बनाके अपन खेत के चिन्हारी ल करथन फेर मेड़ ह पानी भरे अऊ रोके बर बनथे।रद्दा रेंगे बर बनथे।




एक कथा म साधु के बताय दिस्टांत ह सुरता आईस। हमर काया ह खेत आय, अऊ मेंड़ माने मरयादा। अईसे सरीर घलाव खेत आय जेमा काम, क्रोध, लोभ, मोह के नीदा जागे रथे।ऐला उखाड़ना जरुरी हावय। सरीर रुप खेत म घलाव मेंड़ बनाय के जरवत हावय।मेंड़ माने हद, हक अऊ सीमा।परवार के बड़े ल अपन संस्कार अऊ परंपरा ल आगू चलायबर, बेवहार, आचार बिचार, के मेंड़ बनाना चाही। खेत म मेड़ नई रहे ले न ओकर पानी रुकय न फसल होय, उसने घर परवार म नियम नीतके मेड़पार नई रहेले परिवार के मान मरयादा बोहा जाथे।एकर सेती लोग लईका बर मेड़ बनाय रहना चाही। *रामचरित मानस म तुलसीदास* ह अरण्यकांड म बताय हे कि सीता ह लखन ल राम के तीर भेजत रहीस त लखन ह डांड़ खींच के मेड़ बना दिस।अऊ कहिस के ऐला फोर के बाहिर झन निकलबे। फेर ओ मेड़ ल फोरे के पाछू काय होईस तौन सब जानथव। अइसने लोग लइका मन बर ,बाढ़े बेटा बेटी मनबर, खाय -पिये, पहिरे-ओढ़े , बड़े छोटे संग गोठियाय बताय के मेड़ पार बनावव। बिना मेड़ के अपन खेत के चिन्हारी नई हे लोग लइका सुछंद हो जाथे।वइसने बिना संस्कार के हमर जात ,धरम, राज्य अऊ देस के चिन्हारी नई होही। फेर अरोसी परोसी म अइसने कतको हावय जौन दूसर के मेड़ ल फोरइया हे। अपन मेड़ के हियाव करना चाहिये।कहे जाथे- *जौन नई करही रखवारी, ओकर ऊजरही कोला बारी*।आज बेपारी, करमचारी, सरकार अऊ अधकारी जम्मोझन ल छोटे, मंझोलन अपन अपन खेत के मेड़ बनाय बर परही।आज हमर इस्कूल म गुरुजी मन अनुसासन के मेड़ बनावत रहीस, जौन सरकारी चोचला म फंसगे अऊ आरटीआई के अजगर ह लील दिस। बेपारी ल अपन बेपार के , करमचारी ल अपन कामबुता के, राजनीति करइया ल अपन पाल्टी के मेड़ बनाय बर परही नहीं ते भ्रस्टाचार रुप रावन अऊ आलसी रुप कुम्भकरन हमर ऊपर अइताचार करही। संस्कार, संस्कृति रुप सीता ल हर लेही।

हीरालाल गुरुजी” समय”
छुरा, जिला- गरियाबंद


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चिरई चिरगुन बर पानी निकालव

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मनखे जनम बड़ भागमानी आय।चौरासी लाख योनी म इही जनम ल पुन पाय के भाग मिलथे। पुन कमाय बर जादा मिहनत करेबर नई परय।हमर बेद पुरान म सुघ्घर ढंग ले संदेस देय हावय भूखे ल भोजन, पियासे ले पानी अऊ सगासोदर के मानगऊन अतका म अबड़ेच पुन मिल जाही। मनखे मन के संगवारी म गाय गरु, कुकुर बिलई संग चिरई चिरगुन घलाव आय। घाम पियास के दिन आ गेहे। गरमी के सेती रुख राई के पाना सुखाके झरगे। दूसर कोती कुंआ बाऊली नंदावत जावत हे,अऊ जेन हावय ओखर पानी अटावत हे।तरिया सुखावत हे। अइसन मे मनखे अपन खाय पीये बर कहिचो ले पानी के बेवस्था कर डारथे फेर संग में रहईया गाय गरु, कुकुर बिलाई ल फेंकावत पानी ल दे देथे। फेर सबले जादा दुख चिरई चिरगुन ल हो जाथे।पहट बिहनिया ले दाना पानी बर निकले रथे । रुख राई के छईहां नई पावय त हमर घर के छानी ओरछा म आ के थिराथे बईठथे। इही बखत पानी मिल जाथे त ओकर जी हरिया जाथे। भगवान के बनाय जीव ल पानी पियात देखथे त ऊपर वाला के आसीस मिलथे। छोटे मोटे बहुत अकन जीव ह मनखे के आसरित आय।अपन डेरौठी,छज्जा, बारी बखरी म टुटे फूटे बरतन म चिरई चिरगुन बर पानी जरुर निकालव।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, जिला- गरियाबंद






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छत्तीसगढी शब्द में भ्रम के स्थिति….

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जेन भाखा म जतके सरलता,सहजता अउ सरलगता होही वो भाखा उतके उन्नति करही, अँग्रेजी भाखा येकर साक्षात उदाहरण हवय । अउ जेन भाखा म क्लिष्टता होही वो भाखा ह नंदाये के स्थिति म पहुंच जाथे जइसे कि हमर संस्कृत । यदि हम ये सोचथन कि छत्तीसगढी ह वैश्विक भाखा बनय त ओखर सरलता अउ सहजता उपर हमन ल ध्यान दे बर परही । खास करके संज्ञा शब्द के उपयोग करत बेरा । जडउन शब्द मन हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी या अन्य भाखा ले आय हे वो शब्द ल ज्यों के त्यौ छत्तीसगढी म ले बर परही नहीं ते दूसर भाखा के शब्द ल छत्तीसगढी बनाय के प्रयास म हम पाठक के आघू म भ्रम के स्थिति पैदा करे के काम करबो येहा हमर छत्तीसगढी भाखा के विकास बर रूकावट बनही । जइसे साईकिल ल हिन्दी म द्वि चक्रवाहिनी तो करिन फेर सफल होईस का ….नहीं । आपरेशन रूम ल शत्य क्रिया कक्ष कहिबो तक कतका झिन समझही … ? इही समस्या अब छत्तीसगढी भाखा म आवत हव्य ।

ये मेर बात केवल छत्तीसगढी भाखा के जानकार या छत्तीसगढी बोलईया मन के नई हे,ये मेर बात बाहिर ले हमर छ.ग. म आये मनखे अउ आई.ए.एस. मन के घलो हवय जङडन ल हम चाहथन कि उन छत्तीसगढी बोलय । यदि संज्ञा शब्द मन ल हम परिवर्तित करके लिखबो त उँकर आघू भ्रम के स्थिति निर्मित हो जही अउ उन ला छत्तीसगढी सीखे म अड्चन घलो होही । हर शब्द के छत्तीसगढी बनाय के प्रयास म हम क्लिष्टता ल जनम देबो जउन हमर भाखा बर उचित नइ होही । छत्तीसगढी भाखा म सरलता अउ सहजता ल स्वीकार करे ल परही यदि हम छत्तीसगढी के विकास के बात करथन ।

व्यक्तिबाचक,जाति वाचक, स्थानबोधक संज्ञा शब्द ल बिना परिवर्तित करे मूलरूप म लिखना चाही – शिवनारायण – सिवनारायण (×), निशा – निसा (20), शिवाजी -सिवाजी (2), शशिभूषण -ससिभूषण (×), शिव – सिव (×), शंकराचार्य – संकराचार्य (×), संतोष- संतोस (×), नंदकिशोर-नंदकिसोर (×), त्रिभुवन-तीरभुवन (×) लिखना अनुचित हवय । अब यदि शंकर ल हम संकर (×) लिखत हन त येकर अर्थ ह बदल जाथे – संकर माने क्रास प्रजाति होथे । प्रयोग ल- परयोग (×), प्रदीप ल हम परदीप (×) लिखबो तब परदीप माने – पर+दीप-मतलब दूसर दीप ये मेर शब्द के अर्थ ह बदल जाथे अउ भ्रम के स्थिति उत्पन्न होथे ।

शर्मा-सरमा (×), वर्मा -वरमा (×), शुक्ल-सुकुल (2), मिश्रा-मिसरा (×), शक्कर- सक्कर (20), शास्त्री -सासतरी (×) या सास्तरी (×), प्रजातंत्र- परजातंतर (×) लिखना अनुचित हवय । अट्सन शब्द ल पढे के बाद हमी मन सोंच म पर जथन कि ये कोन से नवा शब्द आगे भाई ? तब सोचव कि जब येला दूसर भाखा के मनखे मन पढही त का समझही ? जब उन हमर भाखा के शब्द ल ही नइ त छत्तीसगढी ल उन काबर सीखही ?

कुछ स्थान बोधक संज्ञा शब्द ल देखव -जशपुर-जसपुर (×), शिवरीनारायण- सिवरीनारायण (×) कवर्धा -कवरधा (×) ,काशी-कासी (×), शिमला-सिमला (×) लिखे म ये स्थान ह कोनो दूसर जघा के बोध कराथे अउ हम सोंच म पर जथन अरे ये नवा जघा ह कोन मेर हवय । कुछ लेखक मन प्रचार-प्रसार ल छत्तीसगढी बनाये के चक्कर म “परचार-परसार , अउ प्रचलन ल परचलन लिखत हवय, ये मेर भ्रम के स्थिति उत्पन्न हो जाथे संगे-संग ये शब्द के अर्थ घलो बदल जाथे | प्रदेश ल परदेस लिखथन त ओकर अर्थ ह बदल जाथे पर + देस अर्थात दूसर देश । प्रदेश ल छत्तीसगढी म राज लिख सकथन । धन्यवाद ल धनियाबाद, धनबाद(×), ट्रेनिंग ल टरेनिंग(×), स्कूल ल इसकूल, संस्कृति ल संसकिरिती (×), श्री ल सिरी (×) अउ श्रीमती ल सिरिमती (×) लिखना कदापि उचित नई हे,येकर ले नवा पीढी के आघू भ्रम के स्थिति उत्पन्न हो जही जउन हा छत्तीसगढी विकास बर बाधा होही ।

वाचिक परंपरा म कई शब्द अलग बोले जाथे लेकिन लेखन म हम वो शब्द ल सही लिखन शब्द ला बिगाड के हम छत्तीसगढी भाखा के उत्थान नइ कर सकन । यदि छत्तीसगढी ल अंतर्राष्ट्रीय स्तर म स्थापित करना हे त खासकर संज्ञा शब्द ल प्रयोग करे के बेरा बनेच सावधानी राखे ल परही । छत्तीसगढी शब्द मन ह क्लिष्ट झन होय येकर पूरा खियाल रखे बर परही तभे छत्तीसगढी भाखा के समुचित विकास हो पाही ।

अजय अमृतांशु







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मोर लइका दारु बेचथे

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महेस, लखन अऊ संतराम आज अबड़ खुस हे ऊंखर दाई ददा ,परवार के सबझन खुस हे अऊ अरोसी परोसी मन घलाव ऊंखर उछाह म संघरगे।आजेच तीनों झन ल नौउकरी म आय बर आदेस मिलीस हे। महेस ह सहर ले मिठई लाय हे तौन ल बांटत हे।लखन जलेबी बांटत हे ।संतराम के सुवारी ह तसमई अऊ सोंहारी बनाके परोसी मन घर भेजत हे। सबो संगवारीच हरय। तीनों झन गजब दिन ले बेरोजगारी , नकारा अऊ ठेलहा के ताना झेले रहीन। महेस 26 बच्छर के कुंवारा गबरु ऊंचपूर जवान लइका हे।अइसने लखन घलाव 27 बच्छर के गोरानारा दुहरी देहें के गबरु जवान हे।ओखरो बिहाव नई होय हे। संतराम के बिहाव होय पांच बच्छर होगे हे। ओकर 4 बच्छर के टूरा घलो हे। तीनोझन बारवीं पास हावय। आगू के पढ़ई नई करीन अऊ दुसर डिगरी नई होय ले ऊनला नौउकरी नई मिलत रहीस। भला होईस सरकार के जौन फइसला लेईस कि अब दारु सरकार बेंचही। बिग्यापन निकालीस कि दारु बेचेबर कम पढ़ेलिखे जवान के जरुवत हे। तीनों संगवारी फारम भरे रहीन अऊ भगवान के असीस पाईन तीनों ल दारु बेचे के नौऊकरी मिलगे।अईसे ये तीनों संगवारी मन गांवबर बहुत कुछ करे रहीन। गांव म सट्टा लिखय तौन ल बंद कराय रहीन। गांव के लईका सियान मन नसापानी म फंसत रहीस तेन ल उबारे रहीन। दारु ठेकादार के कोचियामन ल मार के खेदारे रहीन।दारु बेचईया मन ल दुसर बुता करेबर समझाय रहीन। फेर आज बरम्हा ह ऊंखर किस्मत म दारु बेचे बर लिखे रहीस।जेने बुता ले दुरिहा भागे उही म दाना पानी लिखाय हे। तीन महिना के परसिक्छन बर जाना रहीस। तीनोझन अपन बोरिया बिस्तरा धर के रईपुर चलदिन। उहां लेन-देन, आवक-जावक के रखरखाव, कम्पुटर म सब ल हिसाब किताब रखे के तरीका सीखाईस। तीन महीना पाछू घर आईन तब तीनों घर के रुप रंग बदले कस लगीस। महेस के नऊकरी लगे के सुनके ओकर बिहाव के तियारी करे लगीन, फेर जौन सगा घर बात चलाय त पहिलीच सवाल पूछय- बाबू काय करथे? घरवाले मन बताय *हमर लईका दारु बेचथे*। सगा मन अकबका जाय। तुरते ताही हव,नहीं के जुवाप नई दे सकय। अपन मूहूं घर आयबर परय। लखन के छोटे बहिनी के घलो जोरंधा म लगीन मढ़ाना राहय।ऊंकरो घर सगामन आय फेर जईसे सुने ,हमर लईका ह दारु बेंचथे ,सुटूर सुटूर निकल जाय। ऐती संतराम के ससुर सास आय हावय। ऊहू मन अपन दमांद ल बतावत राहय जब ले गांव वाला मन सुने हे परेमिन के गोसईया ह दारु बेचेबर जावतहे तब गांवभर म नानम परकार के गोठ होवत हे। संतराम के टूरा ल सहर के पबलिक इस्कूल म भरती करायबर लेगीस तब बड़े मेडम ह पूछिस – बच्चे का फादर क्या करते हैं? संतराम के ददा बताईस – हमर लईका ह दारु बेंचथे । बड़े मेडम चुपेच रहिगे। फारम ल गजबेच सोच बिचारके ले दे के दिस अऊ उंहा ले टारेबर कहिस- बच्चे के मम्मी पापा से मिलने के बाद एडमिसन करेंगे। तीनों संगवारी संझा तरिया म सकलाय अपन अपन घर के राम कहानी बतावत मुड़ी धरे बईठे हे। आगू काय होही ओला पाछू बताहूं।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला- गरियाबंद







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नवा बछर म करव नवा शुरुआत

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हमर भारत म बारो महिना तिहार अऊ खुसी के दिन आवत रथे, फेर अंग्रेजी कलेंडर के एक चक्कर पुरे के बाद फेर एक जनवरी आथे अऊ ओला हमन नवा बछर के रुप म अब तिहार असन मनाये ल धर ले हन। येकर चलन हा अभी-अभी बाढ़ीस हवय, अऊ अब दिनो दिन बाढ़ते जावत हे। पहिली के मनखे मन चैत्र महिना में नवरात्रि के पहिली दिन आने वाला हिन्दी नवा बछर ल पारंपरिक ढंग ले मनाये अऊ ओला बड़ माने।
अंग्रेजी हिन्दी दुनो नवा बछर के अपन-अपन ठऊर म अलग-अलग महत्ता हवय। फेर मोला लागथे मनखे मन हा ओला भुला के दिखावा करत हवय। नवा बछर मनाये बर देस परदेस म इक्कतिस तारीख के रतिहा कोरी खेरखा फटाका फोरही अऊ कतको जगा तो फटाका फोरे के रिकार्ड बनाये म घलो लगे रथे। रिकार्ड के मतलब मोर हिसाब ले अइसन बुता करके देखाना होथे जेखर मनखे अनुसरन करके अपन जिनगी म नवा मुकाम बना सके, कुछु सिख के अपन अऊ अपन देस के नाव ल आघू बढ़ा सकय। फेर आधा घंटा, एक घंटा, दू घंटा ले लगातार फटाका फोरे म रिकार्ड असन का बात होवत हे मोला समझ नई आवय। अऊ फेर अइसन अतलंगहा फटाका फोरे ले पईसा अऊ पर्यावरण के नुकसानी कतका होवत हे ते बात ल सबो जानत हव। ऐखर ले आने हिन्दी नवा बछर हा हमर मन बर सोजहे कलेंडर पलटे के बेरा नई राहय। ये बेरा हा हमर मन के धार्मिक अऊ समाजिक बुता काम ल करे के बेरा रथे, इही बेरा म हमर मन के बर-बिहाव असन पोठ बुता घलो होथे। अऊ जतका गोठीयाबो गोठ हा पुरते रही। फेर अभी अभी अंग्रेजी कलेंडर के गोठ होना चाही।
सरकारी काम बुता हो चाहे बिहाव के कारड हो अऊ चाहे कोनहो मनखे के जनम तारीख बताना हो जम्मों बर अंग्रेजी कलेंडर के तारीख अऊ दिन ल सुरता राखे जाथे। अऊ अब तो हमन ल हिन्दी महीना के जानकारी घलो नई राहय। अंग्रेजी कलेंडर हा लोगन ल सरल लागथे अऊ सबो झन एक बिचार ले येला अपना घलो डरे हे। ते पाय के येकर नवा बछर सबो झन बर बड़ मायने घलो राखथे।
एक जनवरी ले नवा बछर के शुरुआत मान के कतको झन नवा बुता शुरू करथे कतको झन गाडी बिसाथे ये सबो मानथे कि जिनगी भर ये तारीख मन सुरता रही अऊ उमंग उल्लास संग म ये बेरा ल सुरता करत बनही। अऊ कतको झन के जनम दिन, बिहाव होय रथे तेन दिन, काखरो छट्ठी, घर पूजा, दुकान के शुरुआत, सबो ल मनखे मन अंग्रेजी कलेंडर के तारीख ल देख के मनाथे। लईका के स्कूल म भर्ती अऊ ओकर बिहाव करे के ऊमर होगे यहू ल तय करे के आधार इही हरे। अऊ कतको झन के रिटायर होना, अऊ बीमा के दिन पुरना अऊ हिसाब-किताब जम्मों बुता इही तारीख मन के भरोसा म होवत हवय।
जनवरी महीना के एक तारीख ल घलो अब के मनखे मन तिहार असन मानथे। अऊ अब तो मोबाईल म बधाई संदेस भेजईया अऊ अपन प्रचार के बहाना खोजईया नेता मन बर घलो ये मऊका हा बने सुहाथे। हर बखत गोठ होथे की हमर देश हा दू सौ बछर ले गुलाम रीहिस त ओखर काय असर अभीच ले दिखथे। त मोर मानना हे अंग्रेजी कलेंडर ल जगा देना अऊ अतका मानना ये बात के सबले बडे चिन्हा हरे। अऊ कोनहो गलत समझे चाहे सही ये अंग्रेजी कलेंडर ल बऊरे बर अब नई छोड़ सकय।
अब नवा बछर ल मनाना कईसे चाही ये गोठ ल करबे त जतकी मुहु ओतकी गोठ होही। फेर नवा बछर में पिकनिक, पार्टी, फटाका, बधाई भेंट ( उपहार, ग्रिटिंग कार्ड), डी.जे. लगा के नाचना, कार्यक्रम करवाना सरीखे कई ठन नवा उदीम हा जम्मों झन के धियान अपन कोती करे हावय। ये बेरा म आने-आने कंपनी हा अपन समाना के किमत म छुट देके ग्राहक ल रिझाय के जतन घलो करथे अऊ कतको कंपनी हा अपन कर्मचारी मन ल बोनस अऊ बेतन बढोतरी असन उपहार घलो देथे।
ये सब तो नवा बछर ल माने के अपन-अपन ढंग हरे। फेर एक ढंग अईसे हवय जेहा हमर समाज ल पाछू ढकेल देथे, अऊ जम्मों मनखे के घेरी-बेरी आलोचना के बाद घलो दिनो दिन बाढतेच हे। मेहा बात करत हंव नशा अऊ जुंआ के। नवा बछर में कतको झन मंदीर के सिढीया चढना अऊ देवधामी जाके पुजापाठ करना बने समझथे। फेर बने देखबे त अईसन मनखे कम दिकथे अऊ नशा करईया आंय-तांय गाडी चलईया अऊ जुआं खेलईया मन के आरो ये दिन ज्यादा मिलथे।
अब हिन्दी नवा बछर हो चाहे अंग्रेजी कलेंडर के नवा बछर, ये सब बुता कोनहो बछर के कोनहो दिन नई फबे। फेर हिन्दी म एक ठन कहावत हे ना “पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए”। त मोर कहना हे कि मनखे पीये बर बहाना तो कर डारथे फेर अपन जिनगी गढे के लईक बेरा ल सोजहे म गंवा डारथे। फेर एक ठन गोठ ल अऊ माने जाथे कि नवा बछर के पहिली दिन जेन बुता करबे अऊ जइसन रहिबे वइसनहे बछर भर रेहे ल मिलथे। अऊ ये बात ल जम्मों मनखे जानथे तभो ले अपन आदत ले बाज नई आवय। मंद, कुकरी, बोकरा, जुंआ, अऊ आंय-तांय गाडी चला के झपईया मन ना अपन सरीर बर नई सोंचय, ना परवार बर अऊ ना समाज ना पर्यावरण अऊ ना अपन देस बर सोंचय। ओ मन ल तो बस अपन मस्ती हा बने लागथे।
अऊ मोर तो ईही मानना हे की जेन दिन हमन अपन धरम-करम ल जानबो, देस बर हमर का सेवाबुता हे तेला समझबो, समाज अऊ परवार बर का जिम्मेदारी हे तेला जानबो, पर्यावरण जिनगी बर कतका जरूरी हे तेला जान के प्रकृति के रक्छा करबो उही दिन हमर बर सबले अच्छा नवा बछर के शुरुआत होही। मनखे चाहे त हिन्दी नवा बछर हो चाहे अंग्रेजी कलेंडर के जनवरी महीना ले ये बुता मन के शुरुआत कर सकत हे। अऊ मोर दावा हे कि अइसन करे ले आत्मा ल जेन खुसी मिलही ओ आने तरीका ले नवा बछर मनाये म नई मिलय।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525







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परघनी

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जगा जगा बाजत हे, मोहरी अऊ बाजा ।
गांव गांव में होवत हे,विडियो अऊ नाचा ।
बर तरी आके , खड़े हे बरतिया ।
सुघ्घर परघाय बर, जावत हे घरतिया।
बड़े बड़े दनादन , फटाका फूटत हे ।
आनी बानी गीत गाके, टूरा मन कूदत हे।
पगड़ी ल बांध के, दूनों समधी मिलत हे।
घेरी बेरी चकाचक , फोटू खींचत हे ।
कूद कूद के बजनिया मन, बाजा बजावत हे।
गांव भरके मिलके, बरतिया परघावत हे।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com

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घाम तो घाम मनखे होवई ह बियापत हे

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ददा ह मोर, चौरा म बईठ के हमर खेती के कमईया गाँवे के भैय्या पुनऊ करा काहत रहय, पुनऊ ऐसो के घाम ह बाबु बड़ जियानत हे ग, कोनो मेर जाय बर सोचे ले पड़थे I त अतका सुन के पुनऊ ह तिलमिला गे, हमन कईसे करत होबो हमू मन तो मनखे यन कका, तुमन घरे म खुसरे रहिथव तभो ले अईसना गोठीयावत हौव, फेर एको अक्षर नई पढ़े राहय पुनऊ ह तभो ले अतेक गियान भरे हे ओकर मती म कि पढ़ईया लिखईया मन फेल हे ओकर आगू म I फेर बोलिस, दाऊ ये बता ऐसो तेहा कतेक अकन रूख लगाय हस, कटवाय बर तो सबो खेत के रूख ल कटवा डरेच अऊ मिही परबुधिया तोर बुध ल मान के काटे हौव, खेत में बईठ के दाऊ गिरी भर मारेच, पुनऊ येला काट दे, वोला काट दे, फेर ये नई केहेच काटे हस रूख ओकर जगा एका ठन लगा कईके, तभो ले मेंहा बतावत हौव काटे बर रूख जरूर काटत हौव फेर ओकर जगा एक ठन पऊधा लगावत हौव I अऊ बोलथस दाऊ, घाम बियापत हे कईके, मेंहा पढ़े लिखे नईअव फेर मोला अईसने लागथे, पहिली खेत खार म रूख राई के जमवाड़ा रहय,जेती जान तेती हरीयरे हरीयर राहय, तेकरे सेती घाम ह कम जनावय I अभि के समे म खेत खार चिक्कन, परिया भुईयां चिक्कन, कोनो करा रूख राई नईये सब रूख कटईया गरकट्टा बन गेहे I तेकरे सेती घाम ह बड़ जियानत हे कका, मोर ईहा बाबु ह बोलथे बने केहे रे पुनऊ हमन पढ़ लिख के अंधरा होगे हन, फेर पुनऊ बोलिस अंधरा नहीं दाऊ कनघटोर बन के बईठे हौव, अपन बाटा के काम ल घलो नई कर सकव, सब फोकट में मिलजय कहिथव, थूके थूक म बरा ल चुरोय बर धर लेहौव, गाँव के सियान बने हौव फेर सियानी रद्दा ल सब भुला गेव, गाँव के धरसा घेरा गे, मईदान के मुरमी बेचागे,दईहान घेरागे, कतको डबरी बऊली पटागे, तरिया म कचरा पटागे पंचईत म बईठ के गोठीयाथव भर फेर एको ठन काम ह सिध नई परय, नरवा म पहिली दाहरा में पानी गर्मी के दिन म भराय रहय तेनो सुखागे,अरकट्टा रद्दा ह छेकागे त मरे बिहान कईसे नई होही कका I पहिली सुख म दुख म सब जुरिया जन गाँव में कोनो अनहोनी होवय त, मनखे मन झूम जय, अभि के समे म गिलौली करे बर पड़थे चल तो ददा चल ग भईया कईके, अब तो मनखे ल मनखे ऊपर बिसवासे नईये I एक दूसर के लिगरी लाई में बुड़े हन, ककरो बनऊका ल देखे नई सकन, अब दुरिहा कहा जाबे कका तुहरे परवार ल देखले, भाई भाई म नई बनय सबो भाई छतरंग, पहिली सुमत राहय त तुहर परवार के, मनखे मन गुनगाय, आज भाई ह भाई बर कसाई होगे I त गाँव बसेरु मनखे के मया ह दुरिहा के गोठ ये, पहिली कतेक मीठ लागय गुड़ी म सियान मन के गोठ ह अब तो सियानों देखेबर नई मिलय, गुड़ी म देखबे लपरहा टूरा मन लपर लपर मारत कोनो बीड़ी पियत हे त कोनो मंजन घिसत हे, कोनो बड़े छोटे के लिहाज नई करय अभि के लईका मन, त ये सब ल देखके जियान तो परही कका I पुनऊ बोलतेच हे हमन काहत हन गाँव के बिकास होवत हे, फेर मोला बता कका काय बिकास होवत हे, मोला अईसने लागथे येहा बिकास नोहय कका बिनाशे ये, खेत बेचावत हे खार बेचावत हे, तरिया,बऊली,ढोड़गा बेचावत हे का परिया का भर्री, रिहीस हे थोड़किन ईमान तेनो बेचावत हे, मनखे मनखे ल बेचत हे, काही नई बाचत ये जेला देखत हे उही ल बेचत हे, अतेक कचरा होगे हे कका गाँव में घुरवा कम पड़त हे, अब तो अईसे लगथे कका घाम तो दुरिहा के बात ये मोला तो मनखे होवई ह बड़ बियापत हे, बने काहत हस पुनऊ तेहा तो आँखी ल मोर खोल देच हमन खुदे मनखे ह मनखे के बईरी बन गेयन त घाम तो बियापबे करही I

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (रायपुर)

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बियंग : बरतिया बाबू के ढमढम

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बिहाव के गोठ छोकरी खोजे ले चालू होथे अऊ ओखरो ले पहिली ले दुल्ही-दुल्हा दुनो घर वाला मन हा गहना-गुट्ठा बिसा डारे रथे। फेर अऊ नत्तादार मन ल का टिकबो, मुहु देखउनी का देबो तेखर संसो रथे। ताहन सगा पार मन ल पुछे के बुता फेर घर के लिपई पोतई, बियारा-बखरी ल छोलबे चतवारबे, पंडित बुलाबे, लगिन धराबे, कारड छपाबे त सस्ती-मंहगी अऊ आने-आने सगा बर आने-आने कारड सोंच के छपाय बर लागथे, सगा नेवते बर मुखियाच हा जाही नीते सगा रीसा जथे, अब मड़वा छाबे, समियाना परदा कुरसी दरी के बेवस्था करवाबे, बाजा लगाबे त दू ठन लगाय ल परथे नेघ बर गांव के बाजा म चल जथे अऊ बरात जाय बर बैंड बाजा नईते ढोल लगाय ल परथे, गाड़ी किराया करबे तभो दुल्हा बर नवा चमचमाती गाड़ी होना चाहि, भले दुल्हा रेमटा राहय फेर ठसन म कमी नई होना चाहि। फोटू वाला बुलाबे, रंधईया लगाबे, पानी डोहरईया अऊ सफई करईया बनिहार लटपट म मिलथे, ताहन नेघ के चीज पर्रा-झांपी,दीया-कलसा फूल-माला, सिंघौली-सील बिसा के लानबे, अऊ बिहाव के होवत ले कहीं कहीं खन्गेच रथे, अब दुल्ही-दुल्हा के बड़ अकन कपड़ा लत्ता लेना, ओला कटवा भोंगवा के देहे के लईक खिलवाना, दुल्ही ल मेहंदी रचाना, बिरौनी ल उखनवाना (आईब्रो सेटिंग), दुल्हा के दाढी मेछा रोखवाना, जूता पालिस करवाना, अऊ थोथना के मास उकलत ले रगड़वा के मुहु धोवाना(फेसियल) येला दुल्ही-दुल्हा दुनो झन करवाथे, यहू सब बड़ मिहनत के बुता आय, अऊ आजकल सबले बड़े बुता मिंझरा करना (मैचिंग) दुल्ही के लुगरा के रंग दुल्हा के कुरता संग मिलना चाही, मऊर, जूता, दुल्ही के पनही, सांफा, दुल्ही के होंठ के पोतना के रंग घलो सबो संग जचना चाही, अब ये सब ल तो जेन भुगते तेन जाने! फेर बरतिया मन ल येखर ले कोनहो फरक नई पड़े।
बरात जाये के दिन गांव भर के मनखे बिहिनिया ले घर मुहाटी ले झांकत रथे, देख तो रे मोटर अइस का? दाढ़ी मुछा रोखवा के फदफद ले पाऊडर चुपर के उछरे के लइक सेन्ट छित के बिहाव घर करा लुहुर-टूपुर होवत रथे, सियान मन अपन नाती-पोता ल तियार करके आ जाये रथे, बरात जावत हे त मुहु पान म रचना जरूरी हे, अपन सबले सुग्घर पेंट-कुरता ल पहिरही, अइसे तो सब जुता पहिरे रथे फेर पनही पहिरही त नवा होना जरूरी हे, अब कतको अतलंघा तियारी करबे फेर बरतिया निकरे म चार घंटा बिलंब होनच रथे, सब सकला के मोटर म अंटिया-अंटिया के चघथे त भीड़ अऊ गरमी के मारे जम्मों तियारी हा एकमई हो जथे, दस सीट के मोटर म पंदरा झन अऊ तीस सीट के मोटर म पचास झन हमाथे। सहर वाला बराती मन अतका डट्टाकुच्चा नई बइठे फेर ओमन ल भारी जोजिया के तियार करे ल परथे। अब गांव ले निकले पांच कि.मी. नई होय राहय अऊ कोनहो उछर देथे तिर-तिखार के मनखे मन उही म सना जथे, थोरुक सहर असन जगा म मोटर थिराथे त जम्मों मनखे बहाना करके मंद पी-पी के आथे, दुल्हा हा ढ़ेड़हा अपन भांटो, अऊ संगवारी मन बर खुदे बेवस्था करवाथे, अऊ कोनहो दुल्हा घलो मंदू होगे त संगवारी मन वोला कतका बेर पियाही कोनहो थाहा नई पावय, अब ये ढमढम ले आघू बढ़के दुल्हा बाजा-बरतिया संग अपन होवईया ससुराल हबरथे।
गांव के अहातच म दुल्हा डहर ले फटाखा संदेसा पठोय बर फोरे जाथे, गांव के मन हांथ देखा के बताही के मोटर ल कति लेगना हवय, नीते एक झन मोटर के आघू-आघू जगा बताय बर फरफटी कुदाथे, वोहा गांव के सबले टेसवा बानी के टूरा रथे, मोटर ले ऊतरत खानी जम्मों बरतिया मन के मुहु देखे के लइक हो जाय रथे, जिंहा जेवनासा दे रथे तिंहा पंखा कुलर होगे त बने हे नीते तोर बारा हाल ल तेरा हाल होय ले कोनहो नई बचा सके, उद्दे कलेवा आ जथे, पानी पीना हे त बाहिर म डराम रखाय हे उही म दतो, भीतर म तो कलेवा भर मिलही एक ठन पलेट म आलुगुंडा, मिच्चर, जलेबी, अऊ अंगूर इकमई होके रचाय रथे, अब एक पोरसना खाये के बाद म येला नई मिले हे वोला नई मिले कइके घेरी-बेरी नास्ता मंगवा के जम्मों झन हा पोठ दूदी घंव खाथे, अऊ दुख तब लागथे जतका बेर एक ठन आलुगुंडा बर पुरा पलेट ल मंगा के बांचे चीज ल फेंक देथे।
अब बाहिर म बाजा बाजे के चालू हो जथे, मंधवा मन एक घंव फेर मंद खोजे बर निकर जथे, ओतकी बेर घर वाला मन बाजा धर के, फटाखा फोरत परघाय बर पहुंचथे, त दुल्हा डहर ले गांव के गली खोर म परघावत ले फटाखा फोरे जाथे, काखरो झानी उजरत बांचथे त कोनहो लईका भूंजावत बांचथे, फेर बरतिया बाबू मन के ढमढम कम नई होवय। टूरेलहा मन दूनो बाजा के बीच म नाचथे, अऊ कोनहो भीड़ म समधीन मन दिख गे त नाचे के रफ्तार हा आंय-बांय हो जथे। अब दुनो डाहर के मन हा सुवागत के नेघ ल करथे, अऊ जम्मों झन के बेधुन होके नाचना चालू हो जथे, नवा नचईया मन हा नाचथे कम अऊ कोन-कोन देखत हे तेला ज्यादा गुनत रथे, जुन्नटहा हा बाजा संग ताल मिलाय रथे, अऊ भंगभंगहा हा चारो मुड़ा ल मता डरथे कभू येखर गोड़ ल खुंदही त कभू ओखर गोड़ ल, इही बेरा म झगरा-लड़ई घलो हो जथे, अतकी बेर मंद खोजईया मंदू मन पहुंचथे अऊ तब सबके पसंद के नाच नागिन डांस देखे ल मिलथे, सिरतोन म येहा अलगे किसम के कला आय, मंद बंद होय ले ये कला नंदाय सकत हे, एक झन रद्दा म घोलंड के नागिन बन जथे त बड़ झन मुहु म सांफी चाब के सपेरा बन जथे, नागिन फोस-फोस करथे त यहू मन भागे सरीख करथे, अऊ दूनो डहर के बाजा वाला मन जोस म आके समिलहा बजाय के चालू कर देथे त ओतकी बेर कतको झन पिटपिटी ढोंडीया सब बन जथे, पहिली डफडा निसान वाला बाजा राहय त दुनो डहर के बाजा वाला मन प्रतियोगिता करय, बाजा बजावत-बजावत दांत म नईते आंखी के बिरौनी म भुईंया म माढ़े सिक्का ल नीते नोट ल उठावय, अइसन करईया ल असल बजनिया समझे जाय, अऊ अइसे नाचत कुदत बराती दुल्ही के घर मुहाटी म पहुंचथे।
जम्मों झन के सुवागत में कोनहो कमी नई होवय, फेर बरतिया मन खाये के बेर लाडू ल ढूलोही नई ते चांऊर पापड़ ल बजाही, कोनहो कथे गिलास बने नइये, त कोनहो ल साग पसंद नई आवय जतका मुहु ततकी अकन रोंग-जोंग चलत रथे अऊ बेंदरा मन असन आनी-बानी के उधम मचाथे। फेर भूला जथे के वहू मन ल कभू अपन बहिन बेटी ल बिदा करे ल परही। घर वाला मन अपन हैसियत ले ज्यादा चीज-बस टीकथे, अपन करेजा चानी असन नोनी ल बिहाव करके भेजथे, सरी झेल-झपेट ल सहिथे, दिनोंदिन बरतिया मन बाढ़त जावत हे, पहिली बीस तीस झन बरतिया जाय, अऊ अब तो दू तीन सौ ले घलो ऊपराहा हो जथे, अऊ सब पहिली ले ज्यादा मानगुन घलो चाहथे, कई ठन समाज में फलदान ल बंद करव कइके कहे जावत हे, पईसा धराना, फलदान, लगिन पूजहा अऊ बराती अतका घंव सुवागत सत्कार करत ले घर के मन थर्र खा जथे। बर बिहाव हा हमर संस्कृति परंपरा आय, अऊ ये सब जरूरी घलो हवय फेर मे पुछथंव बरतिया मन के गनती ल कम नई करे जा सके का? समाज म जम्मों बेवस्था ल समाज ल आघू बढाय बर बनाय गे हवय फेर अब अइसन ल बरतिया बाबू मन के ढमढम नई कबे त का कबे!

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525

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गांव के संस्‍कृति के धरोहर : ओरिया के छांव

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“ओरिया के छांव” के मनीराम साहू “मितान” के पहिली छत्तीसगढी कृति आय। छत्तीसगढ के गॉंव-गँवई ल जेन जानना चाहथे उनला ये किताब जरूर पढना चाही। सावन, भादो, जेठ,अषाढ़, घाम, जाड जम्मो मास के सौंदर्य के बरनन मितान जी ये संघरा म करे हवय। कोन महिना म छत्तीसगढ़ के किसान का काम करथे, कोन से तिहार परथे तेकर सुघ्‍घर चित्रण ये संघरा म मिलही संगे-संग सँझा, बिहनिया, देवारी, फागुन, तीजा-पोरा, नवा बछर हमर छत्तीसगढ़ म कइसे होथे अउ कइसे मनाथे येकर जानकारी ये संघरा ल पढे़ म मिलही। कुल 51 रचना ये संघरा म हवय जेमा छत्तीसगढी़ के मानक शब्द के प्रयोग कवि ह करे हवय।
मितान जी जमीन ले जुडे़ रचनाकार आय जइसने देखे हें वइसने लिखें हवंय। बतर-बियासी, निंदई-गुडई, धान लुवई, करपा उठई, भारा बंधई तक के वर्णन ल पढबे़ त खेती किसानी के जम्मो दृश्य ह आँखी के आघू सनिमा कस दिखे लागथे। किसान के दु:ख-पीरा ल देख के मितान जी लिखथे –
हरहर-कटकट घेरे रहिथे /रात दिन हम ला किसानी म
बड़ चढऊ-उतारू हे संगी / किसनहा के जिनगानी म।
छत्तीसगढी़ संस्कृति म अँगाकर के महिमा ल सबो जानथव एकर बखान कवि ह जबरस्त ढंग ले करथे –
वाह रे अँगाकर /तोला कहिथे भँदाकर /तैं छेना कर चाकर…..
समाज म व्याप्त बुरई ले रचनाकार ह अनभिज्ञ नई हे, कन्या भ्रुण हत्या विरोध म उन मुखर होके अपन बात रखथे-
मारत हच तैं कोंख के बेटी / बहू कहाँ ले पाबे रे,
अरे हइतारा मनखे जात /तैं जर सुद्धा नाश हो जाबे रे।
गाँव-गंवई के संगे-संग देश के चिंता घलो कवि ल झकझोरथे, सीमा पार के संभावित खतरा उपर आह्वान करथे-
तैं खरतरिहा बीर बेटा / बीर नरायन बन जा
दुसमन मन के आघू म /बन्दूक बन के तनजा
अपन तीर तखार के गाँव म लगने वाला किरवई के प्रसिद्ध मवेशी बाजार अउ सोमनाथ मेला के वर्णन मितानजी अपन कविता म सुघ्‍घर ढंग ले करे हे जेन ल पढ के मन म उत्सुकता होथे के अतेक प्रसिद्ध जघा कोन मेर होही –
लखना सोमनाथ के मेला / चल ना जाबो संगवारी
भुइया फोर के उद्गरे हे / बबा भोले भण्डारी ।
गाँव म बोले जाने वाला ठेठ छत्तीसगढी़ शब्द ल कवि अपना रचना म प्रयोग करे हवय जेला पढे़च म बड मजा आथे- धनहा, भरी-भाठा, कोठी-डोली, नरवा-झोरकी, संसी-कोलकी, कुकुर-माकर, झुकुर-झाकर, नाहना, जोता, खुमरी, गेरवा,परई, कुड्रेरा, ठेकवा, भंदई, अकतरिया, काँसडा ये शब्द कुछ उदाहरण आय जेन ये संघरा म मिलथे। खोइला भाटा, रखिया के बरी, जीमी काँदा, कनसइया लेडगा बरी, अदउरी बरी, चेंच अमारी, पटवा, सुकसा, कुरमा भाजी, नून मिरचा के चटनी अउ अँगाकर रोटी ल अपन रचना म जघा दे के गाँव देहात के नंदावत संस्कृति ल बचाय के काम मितान जी करे हय। आज के नवा पीढी मन अइसन शब्द ले विमुख होत जावत हे जन गंभीर चिंता के विषय ये।
साहूजी जउन माटी म जनमिस, जिहाँ के पानी पीस, जेकर धुर्रा फुदकी म खेल के बडे होइस वो माटी के करजा ल उतारे के काम ए संघरा के माध्यम ले करे हवय जेमा रचनाकार पूर्ण रूप ले सफल होय हवय। चूँकि उँकर पहिली संघरा आय वो हिसाब से शब्द चयन अउ मात्रा उपर पूरा सावधानी बरते गे हवय। अनुस्वार, अनुनासिक, लिंग अउ वचन के पूरा धियान रखे गे हवय ये कारण से भी लेखक के परिपक्वता साफ झलकथे। पुस्तक के छपाई सुघ्‍घर अउ कव्हर पेज “ओरिया के छाव” शीर्षक के हिसाब ले सटीक बने हवय।
अजय ‘अमृतांशु’







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