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धिक्कार हे

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सुकमा जाय मा कांपत हे पोटा
दिल्ली ले कहत हे चुनौती स्वीकार हे
बंद करव अब फोकटे बोल बचन
नेता जी तुंहला बड़ धिक्कार हे

कतेक घव बार-बार ये बात ला दोहराहु
बोलते रहि जहु फेर कुछू नइ कर पाहु
दम हे ता थोरकु बने दम ला दिखावव
दिल्ली वाले नेता आपो ग्राउंड जिरो ले हो आवव

आतंक वाले मन तो हजार दू हजार हे
तुहंर कना तो पूरा सरकार हे
बंद करव अब फोकटे बोल बचन
नेता जी तुंहला बड़ धिक्कार हे

थोरकुन बांचे होही लाज-शरम
ता अब आर-पार के उठावव कदम
कब तक बस्तर पिसही-मरही आतंक के बीच
आशांति के इलाका मा शांति के लकीर तो खींच

कब तक कइहु शहादत नइ जावय बेकार हे
ये बताव कहां लोकतंत्र के सरकार हे
बंद करव अब फोकटे बोल बचन
नेता जी तुंहला बड़ धिक्कार हे
तुहंला बड़ धिक्कार हे

वैभव बेमेतरिहा

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एक बित्ता के पेट : सियान मन के सीख

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सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! नानकुन एक बित्ता के पेट हर मनखे से का नई करवावय रे। फेर संगवारी हो हमन उंखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। संगवारी हो हमन 1 मई के अंतर्राश्ट्रीय मजदूर दिवस मनाथन। मजदूर दिवस सबले पहिली 1 मई 1923 के मद्रास (चेन्नई) में मनाए गै रहिस हावय जेला विश्व स्तर में मनाए के शुरूवात 1 मई 1886 से होय हावय। विश्व के 80 से जादा देश 1 मई ला मजदूर दिवस के रूप में मनाथे। अंतर्राश्ट्रीय मजदूर दिवस ला अंतर्राश्ट्रीय कर्मचारी दिवस, श्रमिक दिवस या मई दिवस घलाव कहे जाथे। हमन मजदूर के मतलब समझथन गरीब मजबूर इंसान जउन हर दिन.रात घाम.पियास में जी तोड़ मेहनत करथे जबकि अइसन नई हे। मजदूर वर्ग में वो जम्मों मनखे मन आथे जउन मन दूसर बर काम करथे अउ बदला में मेहनताना लेथे। तन अउ मन से मेहनत करने वाला हर इंसान मजदूर आय फेर चाहे वो ईटा.सीमेंट ढोवत मनखे होवय के एसी आफिस में बइठे फाईल के बोझ में दबे एक कर्मचारी एखरे सेती मजदूर ला कभू भी मजबूर समझे के भूल नई करना चाही। मजदूर ला मजबूर समझना हमर सबले बडे़ भूल आय। मजदूर हमेंशा अपन मेंहनत के कमाई ला खाथे। इमन स्वाभिमानी होथे । अपन मेंहनत अउ लगन में विश्वास रखथे। इमन कखरो आगू में हाथ फैलाना पसंद नई करय। मजदूर के उपर ही संसार के विकास अउ विनाश दूनो आश्रित हावै। वास्तव में मजदूर के कोनो जाति या धरम नई होवय। केवल अउ केवल मेहनत ही ओखर पहिचान होथे। स्वाभिमान का होथे अउ कम कमाई में अपन जिनगी सुख से कइसे बिताए जाथे ऐ मजदूर ही बता सकथे। 1 मई के दिन पूरा संसार इंखर ताकत के लोहा मानथे। पूरा संसार ला सुंदर बनाए मा मजदूर के हाथ हे। फेर आज स्थिति थोरकन बदल गे हावय। आजादी के पहिली भी मजदूर वर्ग गरीबी, भूखमरी अउ शोशण के शिकार रहिस हावय तो आज आजादी के अतेक साल बाद घलाव उंखर स्थिति में बहुत जादा बदलाव नई आय हवै ए हर हमर बर अड़बड़ सोचे के बात हवै। आज घलाव एक मजदूर के न्यूनतम रोजी औसतन 300 रूपिया हावै जउन कि महिना में अगर हर दिन काम मिलिस तब मुश्किल से 9000 रूपिया होथे। अगर महिना में 10 दिन भी कोनो मजदूर ला काम नई मिलिस या कोनो कारणवश काम में नई जा पाइस तब 6000 रूपिया में दाई.ददा के संग अपन अउ अपन परिवार के जेमा जोड़ी.जांवर अउ लइकन मन ला मिलाके कम से कम 6 सदस्य के जीवन.यापन कइसे होवत होही ये बहुत ही गंभीर बात आय। 14 साल से कम उम्र के लइका जउन मन काम करे बर जाथे उमन ला बाल मजदूर कहे जाथे। का 15 अउ 16 साल के लइकन मन मजदूरी करे के लइक होथे? का उंखर मन बालमन नई होवय यहु हर हमर बर सोचे के बात आय। संगवारी हो हमर समाज हर दू भाग में बंट गे हावय। एक तो शोशक वर्ग अउ दूसर शोशित वर्ग। हालाकि सरकार हर ए खाई ला पाटे बर बहुत बडे़ कदम नोटबंदी के उठाइस हावय। फेर इंखर बीच में एक ठन अउ बड़का खाई हावय शिक्षा के। संगवारी हो जब तक ए खाई ला पाट के बरोबर नई करे जाही तब तक हमर मानव समाज में कई प्रकार के अपराध होवत रही काबर के हर अच्छाई अउ बुराई के जड़ होथे शिक्षा। हालाकि सरकार हर बहुत अकन योजना बनाए हावय फेर ये योजना के लाभ कतका झन ला मिलत हे ? ये बात के हमला धियान रखना बहुत जरूरी हावय। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उंखर सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।
रश्मि रामेश्वर गुप्ता







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अकती तिहार : समाजिकता के सार

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बच्छर भर के सबले पबरित अउ सुभ दिन के नाँव हरय “अक्षय तृतीया” जउन ला हमन अकती तिहार के रुप मा जानथन-मानथन। अक्षय के अरथ होथे जेखर कभू क्षय नइ होवय,जउन कभू सिरावय नही,कभू घटय नही अउ कभू मिटय नही। एखरे सेती ए दिन हा हिन्दू धरम मा सबले परसिद्ध अउ लोकपिरिय दिन माने गे हावय। अकती तीज के तिहार हा बइसाख महीना के जीज के दिन मनाय जाथे एखर सेती ए तिहार ला अकती तीजा घलो कहे जाथे। ए तिहार हिन्दू अउ जैन मन के एकठन सोनहा दिन के रुप मा बङ उछाह अउ धूमधाम ले मनाय जाथे। ए तिहार मा सारवजनिक छुट्टी रहे के संगे-संग सरी संसार भर मा अउ कहू नइ मनाय जाय। एखरे सेती ए तिहार के महत्तम हमार भारत भुँइयाँ मा अब्बङ हावय। भारतीय संसकिरति मा अक्षय जइसे धन,रुप,बैपार,रिसता-नता पाये बर अकती तीज के दिन सबले सुभ माने गे हावय। ए दिन कोनो भी कुछू भी नवा उदिम ला सुरु करे बर कोनो पंचांग अउ मुहुरत देखे देखाय के जरुरत नइ परय। सरी सुभ काम बर ए दिन हा सुभ माने गे हे। इही सुभ दिन मा सोन चाँदी अउ गहना बिसाय ला सुभ माने जाथे।
अकती के दिन जनम लेवइया लइकामन अउ बिहाव करइया नवा जोङी मन हा जिनगी भर बङ भागमानी,सफल अउ खुसहाल होथें। ए दिन असनांद दान,जप,तप,जग,पूजा-पाठ अयादि ला अपन सक्ती हिसाब करे ले ओखर फल अक्षय रुप मा हमला मिलथे। इही दिन पबरित नंदिया मा असनांद के हूम-जग,देवता-पुरखा मन ला तरपन,जप,दान-पुन करे ले सबले सुभ फल मिलथे। अकती तीजा के पबरित दिन मा अटके-फटके बिगङे-बिसरे कारज,बैपार मा बिरिद्धि,कोनो नवा निरमान गृह परवेस,कोनो बङका जीनिस के बिसई-बेचई अउ वो बुता-काम जउन ला सुरु करे बर कोनो सुभ मुहुरत नइ मिलत रहय ता अइसन जम्मो परकार के कारज ला साधे ले सिध परथे। एखरे सेती ए अकती के महत्तम जादा हे,जग परसिद्ध हे।
अकती तिहार के हमर मन के जिनगी मा घलाव मा अब्बङ महत्तम हावय। अकती तीजा ले बङ अकन कथा-कहिनी अउ मानियता जुरे हावय। बसंत ले गरमी के अवई,खेत-खार मा फसल -ओनहारी के पकई, लुवई-टोरई अउ एला सकेल के किसान भाई मन के खुसी मनाय के ए पबरित तिथि हरय। ए पबरित परब ले अउ आन तिथि-तिहार मन हा जुरे हावय। अकती तीज के दिन धरम के रक्छा करे खातिर भगवान सिरी बिसनू हा अपन तीन रुप के अवतरन इही सुभ दिन करे रहीन। एखरे सेती ए पबरित तिथि “अक्षय तृतीया” या अकती तीजा कहे जाथे। भगवान बिसनू हा इही दिन बरनरायन,परसुराम अउ हयग्रीव के रुप मा अवतरे रहीन तभे ए दिन तोनों अवतार मन के जयन्ती एके संघरा मनाय जाथे। पराचीन पुरानीक मानियता के अनुसार महाभारत युद्ध हा सिराइच अउ त्रेता जुग हा सुरु होइस। ए सेती अकती तिथि हा जुग तिथि घलाव कहाथे। ब्रम्हाजी के बेटा अक्षय कुमार क अवतरन हा इही तिथि मा होय रहीस। अकती के पबरित दिन सिरी केदारनाथ अउ बदरीनाथ के कपाट हा फेर खुलथे। बिरिन्दाबन इस्थित सिरी बाँके बिहारी मंदिर मा सिरिफ इही दिन भर सिरी विग्रह के चरन दरसन अउ दुसर दिन अँगरक्खा ले तोपाय रथे। ए तिथि मा दान-पुन करे के सतकर्म करे के अचार-बिचार ला पबरित करे के दिन आय। अकती तीजा के दिन जउन-जउन जीनिस के दान हमन करबो वोही जीनिस हा हमला परलोक मा अउ आगू जनम “अक्षय” रुप मा वापिस मिले के मानियता हावय। ए दिन भगवान नरायन अउ देबी लछमी के संघरा पूजा-पाठ,सादा कमल फूल या सादा गुलाब फूल या फेर पिंवरा गुलाब फूल ले करे ले पूजा सुभ होथे।
अकती तीजा मा अपन आचरन ,करम अउ सतगुन ले बङे-बुजुर्ग मन के आसीरबाद लेवई हा सदा “अक्षय” के समान सुभ अउ कलयानकारी होथे। ए दिन बानी अउ बेवहार ले सत आचरन करके अक्षय आसीरबाद प्राप्त करना चाही। अकती तीज के दिन के सादी-बिहाव हा बङ सुभ माने जाथे। साल भर के सबले जादा बिहाव इही सुभ घरी मा होथे। देव लगन, सुभ मुहुरत अउ “अक्षय” फलदायी तिथि होय के सेती “अकती भाँवर” के पुन पाय बर कोचकीच ले बिहाव के भरमार रथे। बिहाव लाइक लइका मन के बिहाव “अकती भाँवर” जादा ले जादा होवय एखर बङे सियान मन हा अब्बङ परयास करथे।




हमर छत्तीसगढ़ राज मा अकती तिहार के अङबङ महत्तम हावय। गाँव-गँवई अउ सहर मन मा अकती के दिन पुतरा-पुतरी के खेल-खेल मा बिहाव के खेल हा अपन समाजिक रीति-रिवाज ला सिखे-सिखाय के सुग्घर मउका मिलथे। पुतरी-पुतरा के बिहाव खेल हा एकठन खेल भर नइ होके खुदे करके देखे-सीखे के एक ठन बने उदिम हरय। करके देखे बुता हा कभूच नइ भुलाय जा सकय। एखरे सेती लइकामन ला लोक बेवहार के सिक्छा अउ सीख खेल-खेल मा सोज्झे सरल ढ़ंग ले मिल जाथे। अइसन समारिज कारज के जिनगी मा का महत्तम हे जेला समझे मा सहुलियत होथे। समाजिक कारज ला लइकामन उछाह अउ जोस के संग खेलथें अउ सीखथें। खेल-खेल मा अपन जिमेदारी ले घर-परवार अउ पारा-परोस ला एकमई सकेल के राख देथे। ए परकार ए अकती परब के पुतरा-पुतरी के बिहाव हा हमर अवइया पीढ़ी ला समाजिक अउ लोक संस्किरति ला करके देख सीख के जिमेदार बने मा मदद करथे। ए अइसन तिहार हरय जेमा लइका,जवान अउ सियान मन हा अपन समाजिक समरसता के गुरतुर भाव ला पोठ अपन जिमेदारी अउ ईमानदारी ले निरवहन करके करथे। इही सुभ दिन किसान भाई मन हा बच्छर भर के खेती-किसानी बर सुभ सगुन समे ला देख के ए दिन बाउग करथे। जउन हा सत प्रतिसत सत होथे। बरसा बरसे बर इही सुभदिन कामना करे जाथे। ए परकार अकती तिहार हा हमर लोकजीवन सैली के प्रसिक्छन अउ दरसन कराथे। ए सुभ दिन “अक्षय” आसीरबाद ला पाये बर कोनो मनखे हा अपन जिनगानी मा चुक करना कभू नइच चाहय।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड-भाटापारा
संपर्क~9200252055







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गीत : मउहा बिने ल जाबो

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चल बिने ल जाबो रे संगी , मउहा के दिन आगे बिनेल जाबो ।…….2
सुत उठके बड़े बिहनिया, टूकनी धर के जाबो।
टुकनी टुकनी मउहा संगी, बीन के हमन लाबो।
झरत हाबे मउहा संगी -2, धर के हमन आबो ।
चल बिने ल जाबो रे संगी, मउहा के दिन आगे बिनेल जाबो ।
लट लट ले फरे हाबे, अब्बड़ ममहाथे ।
खुसबू ल पाके ओकर, भालू घलो आथे ।
जगा जगा फरे मउहा -2, सबोझन खाथे ।
चल बिने ल जाबो ………………………….
डोंगरी पहाड़ चढबो, तेंदू चार लाबो।
आमा अमली फरे हाबे, टोर के हमन खाबो ।
अब्बड़ मजा आही संगी -2, गाना हमन गाबो ।
चल बिने ल जाबो ………………………..

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़






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हिम्मत हे त आघु आ

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लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर
हिम्मत हे त आघु आ,
देखथँव के दाँत हे तोर जबङा में
लुकाके तैं झन पुछी हला।
मुसवा कस खुसरके बिला म
शेर ल झन तै ताव देखा,,
लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर
हिम्मत हे त आघु आ।।
खात बुकबुकी मारत हे तुमला
घर अँगना ले भटके हव,
तीन सौ कुकुर ह जुरयाके
पचीस झन शेर ल हटके हव।
कुकुर तै मरबे कुकुर के मउत
अपन बहादुरी झन जता,,
लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर
हिम्मत हे त आघु आ।।
24 अप्रेल के दिन सुरता रखबे
आज आँसु हमन बोहावत हन,
फेर काली हाबय तोर पारी
तोर बर कफन हमन बनावत हन।
पाताल ले भी झींकत लाबो
मंइन्ता हमर झन भोगा,,
लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर
हिम्मत हे त आघु आ।।
साहत ले हम अङबङ सहेन
अब हमन नई साहन,
अंतस ल हमर चुरो डारेस तै
तोला काँटे बिना नई राहन।
कुदा कुदाके पिटबो अब हम
बिला ले बाहिर तो आ,,
लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर
हिम्मत हे त आघु आ।।
सुकर मना तोर मुखिया के
जेन गोल्लर कस तोला ढील देथे,
हमर मुखिया खुद मुँहू लुकाथे
अउ हमरो हाँथ गोड़ सील देथे।
नहिते रमंज देतेन माछी कस तोला
हवा म जादा झन उङा,,
लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर
हिम्मत हे त आघु आ।।
मोर विनती हे सरकार ले
शहरिया अउ गंवार ले
कुकुर के पुछी टेङगा हे तेन
सोज तो कभु होवय नही,
पेंड़ ह जागे हे बमरी के
वोमा मोंगरा फुल उलहोवय नही।
नक्सलवाद ह एक ठन कचरा ए
येला मिल जुलके जला दव,
समाज के विनास ले
देश ल हमर बचा लव।
रही नही बाँस ह त
कहाँ ले बाजही बसरी,
मिटाय बर एके दिन काफी हे
नक्सलवाद के खजरी।

सोमदत्त यादव
मोहदी, रायपुर, छ. ग.
मो न 9165787803






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सवच्छ भारत अभियान

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गांव ला सवच्छ बनाये के सनकलप ले चुनई जीत गे रहय । फेर गांव ला सवच्छ कइसे बनाना हे तेकर , जादा जनाकारी नी रहय बपरी ल । जे सवच्छता के बात सोंच के , चुनई जीते रहय तेमा , अऊ सासन के चलत सवच्छता अभियान म बड़ फरक दिखय । वहू संघरगे सासन के अभियान म । अपन गांव ल सवच्छ बनाये बर , घरो घर , सरकारी कोलाबारी बना डरीस । एके रसदा म , केऊ खेप , नाली , सड़क अऊ कचरा फेंके बर टांकी …। गांव म हांका परगे के , कनहो मनखे ला , गांव के खेत खार तरिया नदिया म , दिसा मैदान बर नी जाना हे , जे जाही , तेकर ले , डांड़ बोड़ी वसूले जाही ।
एक ठिन तिहार म भगवान ल , अबड़ अकन भोग लगीस । पेट के फूटत ले खा डरीस । रथियाकुन पेट पदोये लागीस । भगवान सोंचीस मनदीर भीतरी म करहूं , त पुजेरी सोंचही भगवान घला मनदीरेच म …….। चुपचाप लोटा धरीस अऊ निकलगे भांठा । जइसे बइठे बर धरीस , कोटवार के सीटी के अवाज सुनई दीस । भगवान सोंचीस – कोटवार कहूं मोरे कोती आगे अऊ चिन डरीस त बड़ फजित्ता हो जही । धकर लकर हुलिया बदलीस तब तक , कोटवार पहुंचगे अऊ केहे लागीस – तैं नी जानस रे हमर गांव ओ डी एफ घोसित हे , इहां खुल्ला म सौच मना हे । भगवान पूछीस ‌- कती जगा बईठंव , तिहीं बता ? कोटवार किथे – तोर घर सौचालय निये तेमा , भांठा पहुंचगे गनदगी बगराये बर । भगवान किथे – मोला तो पूरा गांवेंच हा सौचालय दिखत हे अऊ अतेक गनदा के , बइठना मुसकिल हे । कोटवार अकबकागे , सोंचत हे के , कइसे गोठियाथे येहा…।
भगवान फोर के बतइस – मनदीर म धरम के ठेकेदार मन , कोनटा कोनटा तक म अपन सोंच के सौच म दुरगति कर देहें । कोटवार किथे – मनदीर मा रिथस त , पुजारी अस जी ? तोर घर म तो घला सौचालय हाबे , उहें नी बइठथे गा…..। मोर तो कतको अकन घर हे बाबू , तेकर गिनती निये । मनदीर म मोर नाव ले अपन अपन रोटी सेंक के , मोर रेहे के जगा म सौच कर देथें । मसजिद म रिथंव त , अलगाववाद अऊ कट्टरवाद के विसाद ला जतर कतर बगरा देथे । गिरिजाघर म खुसर जथंव त , वहू मन , झूठ के परचार परसार म भागी बनाथय अऊ पूरा खोली म , एक ला दूसर ले लड़ाये के गनदगी ला , बगरा देथे ।
आम जनता के घर के , सरकारी सौचालय के तो बाते निराला हे । बनत बनत देखेंव के ओकर हरेक ईंटा म मिसतरी , ठेकेदार अऊ इनजीनियर के , मैला के निसान पहिली ले मऊजूद हे । खुसरतेच साठ , ये मैला ले निकले भरस्टाचार के बदबू म , नाक दे नी जाय । कोटवार किथे – तोर पारा के पंच ला नी बताते जी …..। उहू ला बतायेंव , थोरेच दिन म एक ठिन ओकरो नाव के मैला ईंटा लगगे । सरपंच हा , सौचालय म बेइमानी के कांड़ लगावत रहय । अधिकारी मन करा का सिकायत करतेंव – ओमन कपाट बर , सनडेवा काड़ी के फरेम तियार करत रहय , जेमा सरहा मइलहा बोरा के पेनल , वहू अतका भोंगरा के ……… झांके के आवसकता निही , कती मनखे भीतरी म खुसरे हे , कतको दूरिहा ले जना जही । बिधायक के घर म , पलसतर बर मैला सकले के जोजना बनत देखेन । दिल्ली तक पहुंच गेंव , उहां येकर बर छत के निरमान होवत रिहीस । छत के हाल तो झिन पूछ , अतका कस टोंड़का अऊ हरेक टोंड़का ले , देस ला बरबाद करइया बदबूदार सोंच , बूंद बूंद करके टपकत , गनदगी बगरावत रहय ।
अभू तिहीं बता कोटवार कती जगा जाके गोहनावंव । कती मोर बर सवच्छ सौचालय बना सकत हे ? मोर देस म सवच्छ भारत के कलपना कइसे अकार लिही ?
कोटवार किथे – जब अतेक ला जानथस , त , तिहीं नी बइठ जतेस दिल्ली म । कोन गनदा बगराये के हिम्मत करतीस । भगवान जवाब देवत किहीस – मय भगवान अंव बेटा । मय सरग म सासन कर सकत हंव फेर , तोर भारत म सासन मोर बर मुसकिल का असमभव हे । कोटवार लमबा सहांस भरत किथे- का करबे भगवान – जेला हमन दिल्ली म बईठारथन तेला अच्छा जानके ……….फेर उहां बइठते साठ , कोन जनी काये खाथे बियामन… , पचा नी सकय अऊ भीतरी म एती ओती , जेती तेती , जतर कतर , मैला फइलाथे । जे खुसर नी सके तेमन , तोरे कस लोटा धरके गनदगी करे के जगा अऊ मउका तलासत किंजरत रहिथे …….।

हरिशंकर गजानंद देवांगन

छुरा







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छन्द के छ : एम.ए.छत्तीसगढी के पाठ्यक्रम मा जोडे जाना चाही

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निगम जी के “छन्द के छ’ पढे बर मिलीस। पिंगल शास्त्र के जानकारी देवइया किताब ल महतारी भाखा म पढ के मन आल्हादित होगे। आज के लिखइया मन छन्द के नाम ल सुन के भागथे अइसन बेरा म छत्तीसगढी साहित्य ला पोठ करे खातिर निगम जी पोठ काम करे हवय।
छन्द ला समझाये खातिर निगम जी ह सबले पहिली – अक्षर, बरन, यति, गति, मातरा, डांड अउ चरन (सम चरण, बिषम चरण), लघु (1) गुरू (5) काला कहिथे? तेला बिस्तार ले समझाये हे। मातरा ला कइसे गिने जाथे? मातरा ल गिने के नियम होथे ओला फोर-फोर के बताय हवंय। छत्तीसगढी मा छन्द विधा ला बिस्तार ले समझा के छन्द के जानकारी देवईया मोर जानबा मा ये पहलइया किताब आय। अपन किताब म उन लघु ला- छोटकू अउ गुरू ला- बडकू के रूप म परयोग करे हवय।
छन्द हा साधना के विषय आय अउ साधना करे बर गुरू के जरूरत परथे। बिन गुरू के छन्द ल साधना मुसकुल काम हे। हाँ ये किताब ल निगम जी ह अतका सरल, सरलग अउ सुग्घर बना के लिखे हवय के ये ला गंभीरता ले अध्ययन करे के बाद कोनो भी साहित्यकार छन्द म आसानी ले काम कर लेही। ये किताब म छन्द ला पूरा विधि-बिधान ले बताय गे हवय। छन्द के जम्मो उदहारण ल निगम जी अपन स्वरचित कविता के माध्यम ले दे हवय। नवा लिखइया अउ छन्द म रूचि लेवइया मन बर ये किताब ह बरदान साबित होही अइसन मोर बिसवास हवय। ये किताब म दोहा, सोरठा, चौपाई, सवैया, छप्पय, रोला, कुण्डलिया, बरवै, रूपमाला, गीतिका, आल्हा, त्रिभंगी, सवैया, घनाघक्षरी, कहमुकरी, उल्लाला, मऱ्तगयन्द, कुकुभ सहित कुल 50 किसिम के छन्द ल उदाहरण सहित समझाय गे हवय।
“छन्द के छ” किताब खातिर निगम जी के मिहनत साफ झलकथे। जाने कोन-कोन मेर ले अलग-अलग प्रकार के छन्द ला इकटूठा करिन होही? कोन-कोन पुस्तक के अध्ययन करिन होही? छन्द ह कइसे लिखे जाथे? ओखर मातरा कइसे चलथे? जम्मो जिनिस ला एक शोधार्थी ही एकत्रित कर सकथे। आज जब कि छन्द के परंपरा ह लगभग टूटे के कगार म आ गे हवय, छन्द म लिखइया मन ल अँगरी म गिने जा सकथे, अइसन बेरा म छन्द के किताब लिख के निगम जी ह पिंगल शास्त्र म जान के काम करे हवय। छत्तीसगढी मा लिखइया मन के कमी नई हे| हर गली चउराहा मा कोरी-कोरी रचनाकार मन मिल जहय फेर आधुनिक कविता के नाम म अदर-कचर लिखइया अउ तुकबंदी ल अपन ब्रम्हास्त्र समझइया मन ये किताब ल जरूर पद्य अउ छत्तीसगढी साहित्य ल पोठ करे खातिर पोठ रचना लिखय।
कालेज के बिद्यार्थी ल पढाना सहज हवय फेर पहिली कक्षा के बिद्यार्थी ल पढाना कतका मुसकुल हवय ये बात ल प्राईमरी के गुरूजी ही समझ सकथे। ठीक वइसने निगम जी ह छन्द ल समझाये खातिर पहिली कक्षा के बिद्यार्थी के स्तर मा जा के समझाये के परयास करे हावय जेकर फायदा ये होही कि कोनो भी पाठक छन्द के नियम-धियम ल सुगमता ले समझ जाही। अभी हाल तक छन्द पढे/समझे/ अउ लिखे बर हम या तो हिन्दी के किताब ल पढन या संस्कृत के किताब ह माध्यम रहय, फेर अब निगम जी के किताब आये ले ये सुविधा अब सोझ हमर महतारी भाखा छत्तीसगढी म उपलब्ध होगे हवय।
किताब ह उत्कृष्ट, प्रसंशनीय अउ संग्रहणीय हवय। छंद के छ” ला एम.ए.छत्तीसगढी के पाठ्यक्रम मा जोडे जाना चाही ताकि नवांकुर मन छत्तीसगढी साहित्य म छन्द के भरपूर लाभ उठा सकय। छन्द के छ जइसन भगीरथ परयास बर निगम जी ल अंतस ले बधाई।
अजय अमृताशु

साहित्यकार – अरूण निगम
प्रकाशक – सर्वप्रिय प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य – 100/- मात्र







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मंजूरझाल : किताब कोठी

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तीरथ बरथ छत्तीसगढ म, चारों धाम के महिमा
अन्न-धन्न भंडार भरे, खान रतन के संग म
पावन मन भावन जुग-जुग गुन गावा
अंतस किथे लहुट-लहुट ईंहचे जनम धरि

— गुरतुर भाखा छत्तीसगढी —
दया-मया के बस्ती बसइया ल कहिथें छत्तीसगढिया ।
छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।।
चुहुक-चुहुक कुसियार के रस म, जीभन जउन सुख ।
अड्डसन हे दुध भाखा मनखे के मान बढाथै ।।
भूखन के हे भूख मिटइया अन्न म भरे जस हंड्रिया ।
छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।।
कुरिया भीतर गोठियाथै जांता, ढेंकी भरय जी हुँकारू |
हरथे अपन बोली अंतस के पिरिया, नी छोडन ये मयारू ।।
अमरैया कस जुड ये, हिरदे होथै जुडवैया ।
छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।।
भोजली, जेंवारा, पंडवानी, करमा, सुवा, पंथी, ददरिया |
गा-गा के जाँगर टोर कमइया, दुख के होथें भुलैया ।।
गीत झोरी नंदियाँ-नरवा, जंगल-झाडङी पुरवैया |
छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।।
मया दुलार मिंझार गाय-बछरू संग ग्वाला |
मिठाथे, जस कलिंदर चानी, सुवाद काला-काला ।।
माटी ह महकै चंदन जइसे, तइसे ये बोली बोलइया ।
छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।।

अनिल जाँगडे
ग्राम- कुकुरदी
पो.. जिला- बलौदाबाजार-भाटापारा छ.ग.
मो. 8435624604











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मजदूर दिवस म कविता: मजदूर

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पसीना ओगार के मेंहनत करथे
दुनिया ल सिरजाथे
रात दिन मजदूरी करथे
तब मजदूर कहाथे ।

नइ खाये वो इडली डोसा
चटनी बासी खाथे
धरती दाई ल हरियर करथे
माटी के गुन गाथे ।

घाम पियास ल सहिके संगी
जांगर टोर कमाथे
खून पसीना एक करथे
तब रोजी रोटी पाथे ।

बिना मजदूर के काम नइ चले
दुनिया ह रुक जाही
जब तक मेंहनत नइ करही त
कहां ले विकास हो पाही ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com






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तलाश अपन मूल के

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आज आसाम के दुलियाजान ले सुभाष कोंवर जी के फोन आये रिहिस। मार्च म रइपुर आये के बाद ले सुभाष के बैचैनी थोरकन ज़ादा बाढ़ गे हे। बेचैनी का बात के, अपन पुरखा मन के गांव अउ खानदान ल जाने के। सुभाष पहली घव मार्च 2017 म छत्तीसगढ़ आये रिहिन रइपुर म आयोजित पहुना संवाद म शामिल होये बर। पहुना संवाद के जुराव छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति विभाग करे रिहिस, आज ले तकरीबन डेढ़ सौ साल इंहा ले कमाए खाये बर असम गे अउ फेर उन्हें बस गेय छत्तीसगढ़िया मन के बंशज मन संग एक ठन सांस्कृतिक पुल बनाये के उदिम करे अउ उँहा छत्तीसगढ़ी भासा अउ संस्कृति के मौजूदा हालत ल जाने बर।
आज सुभाष बताईंन के उनखर बबा मनबोध छत्तीसगढ़ के नांदघाट भांठापारा मेर ले असम गे रिहिन। उँहा ओमान कुछ बच्छर रिहिन फेर लहुट गए। अउ सुभाष के बूढ़ी दाई बड़े ददा अउ पिताजी असम म ही रही गे। बबा फेर आखिर तक इन्हें रिहिन अउ उंखर फौत घला इन्हचे होये रिहिस। सुभाष एहू गोठ ल बताइस के ओ हर खोज-खाज के पता लगाएं है के उंखर समाज ल छत्तीसगढ़ म गांडा, गंडवा या गंधर्व के नाव ले जाने जाथे।
ए समाज के उप्पर सुभाष ह नेट ले जऊन जानकारी पाए हे ओ सब ओडिशा के गांडा मन के बारे म हावय अउ ओ हर छत्तीसगढ़ के गंडवा मन उप्पर जानकारी खोजत हे। ओ एहू पता कर डारे हावय के ओखर समाज के मनखे म कपड़ा बुने के बूता करय। मैं जब केहेंव के बाज़ा घला बजाथें तव बताइस के ओखर बबा दफड़ा बजावय अउ ओखर मेर एक ठन दफड़ा घला रिहिस जाऊन ल बबा के गुज़रे के बाद ओ मन नंदी म सरो दिन।
सुभाष काहत रिहिस के ओहर एक घव एकात महीना बर आहि अउ अपन गांव अउ कुटुम ल खोज़ही। सुभाष अउ ओखर परिवार के कोनो मनखे ल छत्तीसगढ़ी नई आवै, एखर पाछु कारण बताथे के ओमन टॉउन मॉने दुलियाजान जइसे बड़े जगहा म रहिथें तेखर सेती छत्तीसगढ़ी नई जानय। ओ बताइस के ओकर एक झंन दोस्त रहिथे बोंगईगांव म जेखर सरनेम तांती हावय ओहु ओखरे समाज के आय। सुभाष कहिस के ओइसे तांती हर ओडिशा के ए लेकिन अपन ल छत्तीसगढ़ी कहिथे।
में केहेंव के आप ल छत्तीसगढ़ी नई आवय, अपन जगह ठौर, नाता गोता कुछु ल नई जानव तभो ले अतेक बेचैन काबर हावव। सुभाष के उत्तर बहुत मार्मिक लागिस “छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी मेरी पहचान है, मेरी अस्मिता है, अपना गांव और कुटुम्ब नही जानने के कारण अधूरा लगता है, इसलिए मुझे हर हालत में अपने गांव और रिश्तेदारों को ढूंढ निकालना है, उसके बाद ही अच्छा लगेगा, बिना जड़ के वृक्ष कैसे जीवित रह सकता है। पूर्णता तो जड़ के बगैर नही हो सकती न।”
में बहुत सम्मान के साथ सुभाष के भावना ल आदर देवत हावव अउ अपन आप ल समझाए के कोसिस करत हवव के मोर भाषा, मोर संस्कृति, मोर गांव ये सब मन के बिना मोर पहिचान अधूरा हाबय।
अशोक तिवारी







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गाय निकलगे मोर घर ले

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समारू आज गजबेच अनमनहा हे। 40 बच्छर ले जौन कोठा म पैरा, कांदी, भुसा, कोटना म पानी डारत रहिस ओ आज सुन्ना परगे। पांच बच्छर के रहिस तब ले अपन बबा के पाछू पाछू कोठा म गाय बछरु ल खाय पिये के जिनीस देय बर, गाय ,बछरु , बईला, भईसा ल छोरे बर सीख गे रहिस। बिहाव होईस त गऊअसन सुवारी पाईस। कम पढ़े लिखे रहिस त दूनो के खाप माढ़ गे। छै ठन पिलहारी गाय, दू ठन बईला ,दू नंगरजोत्ता भंईसा 4-6 ठन छोटे मंझोलन बछिया बछवा सबो के गोबर कचरा ल दूनो परानी समिलहा करे ।गांव म सबो के घर इही हाल राहय।गंऊटिया , पटेल, दाऊ अऊ मालगुजार मन घर दूध के नदिया बोहावय।कभू राऊत ह नई आवय त समारु के बुलावा गाय दूहेबर आवय।वो हा एकठन नोई राखे राहय।गरमी के दिन म राऊत छोड़ दय त समारु गरवा छेकेबर जावय।समारु के तीन बेटा अऊ दू बेटी होईस। बेटा बेटी ल घलाव गाय गरु के सेवा सीखाईन संगेसंग पढ़े लिखेबर इस्कूल भेजिस।सबो लईका मन हुसियार रहिस, बनेच पढ़लिख के नऊकरी घलो पा लिन। समारु अपन बेटी मन के बिहाव बने घर में समधी बना के नऊकरी वाला दमांद संग करा दिन।नऊकरी वाला लईका मन बर बने पढ़ेलिखे नई ते नऊकरी वाली बहू लाहूं कहिके खोजबीन करिस।भागमानी रहिस ओला बड़े बहू कालेज पढ़ेलिखे, मंझली बहू नरसबाई अऊ सबले छोटकी ह मास्टरिन मिलगे। नऊकरी वाला लईका मन के बिहाव जैईसने उछाह मंगल से होयके चाही वैईसने होईस। समारु के घर लक्ष्मी ,अनपूरना मन आय हे त काय के कमती, ओकर माटी के घर ह टाईल वाला घर म बदले लगिस। पीछू के गरवा कोठा ल कतको नहीं कहे ले गच्छी वाला बनायबर परिस। बहू बेटा मन का-का नई सुनाईस फेर समारु अऊ ओकर गोसाईन कान नई धरिस।अपन गाय गरु के सेवा करत जिनगी सुख से काटत रहिन। बेरा आईस बेटा बहू मन संग ल छोड़ के जावत गईन। गांव म अईसने एक घर नई बहुतेच घर केे हाल रहिस। पढ़ेलिखे नवा बहू मन गाय के गोबर कचरा उठाय बर नई धरय।घर के मोहाटी ह सिरमीट के होय ले लिपे के झंझट ले छुट्टी मिलगे। गांव म अब नवा गाय गरु देखेबर नोहर होय लगिस। 8-10 बच्छर होय हे जिंकर घर के कोठा गायगरु ले भरे राहय अब उहां गिनती भर के दिखत हे। पुरखा के गरवा मन दिन बादर पूरो के अपन धाम म चल दिन। मालगुजार, पटेल,दाऊ सबो ल पाहटिया नई मिलत हे।ऊंखरो मन ऊचाट होगे।सब गाय गरु ल कोचिया मन कर बेचत हे।कोचिया कहां ले जावत हे कोनो ल खभर नई हे। बेरा निकलत पता नई चलय। अब समारु के नाती नतनीन आ गेहे,ओमन सहर म रथे,अंगरेजी इस्कूल म पढ़ेबर जाथे। सहर जादा दूरिहा नई हे फेर बहूबेटा मन दुरिहा गेहे। तिहार बार बर सकलाथे त अपने अपन मन गाय गरु अऊ कोठा ल देख के छिनमिनात रथे। अब देवारी तिहार म खिचरी खवाय ल रसम मान के निभावत हे। एक दिन छोटकी बहू मास्टरिन ह अपन सास कर कही दिस, गाय मन ल बेंच नई देतेव मां, अब तो दूद ,दही,मही, घीव सबो दुकान म बेचाथे। ले ले के खातेव।ओकर गोठ म नाती नतनीन मन पूरोनी मार दिन- हां दादी !”इहां आने से गोबर गोबर बदबू आता है” गोसानिन चूप रहिगे, जौन बछिया ल जनमधरिस तौन दिन ले पाले पोसे हंव आज ओ ह मोर घर म गरु नई होय। गांव म जतका घास भुंईया रहिस तौन अबादी अऊ अतिक्रमन म चल दिस। चाराचरे के जगा नई बाचीस। खेती खार म रसायनिक के परयोग ले पेरा भूसा खाय के लईक नई रहिगे। गरमी म तरीया के पानी अटा जथे। अब समारु के घर बैईला,भैईसा बछरू बछिया नई हे एक ठन पिलहारी ल दूनो परानी संग संगवारी कस राखे हे। गांव म एसो भागवत कथा होईस , कथा कहईया ह बृंदाबन ले आय रहिस। एक दिन गऊ कथा काहत सब ल हमर देस के पुराना जमाना के कथा बताईस। अऊ अपन गौसाला म राखे 3000 गाय के बिसय म बताईस। घोसना कराईस कि जौन अपन घर म गाय नई रख सकय ओमन हमन ल अपन गाय ल दान कर देवय। अऊ कोनो पून कमाय बर 1100 रुपया गाय सेवा बर दान कर सकत हे। गांव के कतको मनखे पईसा कूढ़ो दिन। पईसा देवईया म सहर ले आय मंतरी , अधिकारी, करमचारी,सेठ साहुकार मन सबले जादा रहीन।जौन अपन घर म हजारो रुपया के कुकुर पोसे हावय। रोज ओखर खाय पिये बर सौ-दूसौ खरचा करत हे ओ हा एकठन गाय नई पाल सकय। आखिर दिन समारु के बेटा-बहू नाती -नतनीन बेटी दमांद अऊ ऊंखरो लईका मन जम्मो सकलाईन। कथा सने के पाछू रातकन एके जगा सुतीन बईठीन। गोठेगोठ म नरसबाई अऊ मास्टरिन ह कहिन कि हमर गाय ल संत मन ल गोसाला बर दान कर देतेव। अऊ ये कोठा ल दूमंझला बना लेतेन। थोरिक दूरिहा म ऊही मेर ओ गाय घलो बंधाय राहय जौन उंखर गोठ ल सुनत राहय। रात बितीस बिहनिया गोबर कचरा करेबर गोसानिन गईस त देखते कोठा म न गोबर हे, न गाय बछरु। दऊड़त आके समारु कर हियाव करथे। समारु कथे -लईका मन संग बेंझा के गाय ल बांधेबर भुलाय होहूं। आज अठोरिया बीत गे गाय लहुटे नई हे , समारु बहूमन के रातकन के गोठ के सुरता घेरीबेरी करत हे।मोर कर बताईस गाय निकलगे मोर घर ले, ओकर सेती मोर मन अनमनहा हे।
आज टीवी के हर चैनल म सुने बर मिलथे, गाय के रच्छा करव,गोसाला बनाव, गो सेवा बर दान करव।फेर कोनो घर घर म गाय पाले अईसे ऊदीम नई बतावत हे, सब जानत हे गोबर कोन उठाही, पैरा कोन देही,पानी कोन भरही, सबला सुन्दर साफ सुथरा रहे के निसा चढ़गेहे। पाकिट वाला दूध पीके भले हमर भविस्य मन कमजोर हो जाय या मर जाय। फेर हमर घर ले गाय निकलना चाही। हमर देस म दूध के नदिया कब बोहाही ,कब घरोघर गाय होही अब सपना हे।

हीरालाल गुरुजी” समय”
छुरा, जिला- छत्तीसगढ़

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श्रद्धांजलि –गीत संत: डॉ. विमल कुमार पाठक

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हमर जइसे कबके उबजे कोलिहा का जाने खलिहान मन के सामरथ म डॉ. विमल कुमार पाठक के व्यक्तित्व अउ कृतित्व के उपर बोलना आसान नइ हे. तभो ले हम बोले के उदीम करत हन आप मन असीस देहू. एक मनखे के व्यक्तित्व के महत्व अउ ओखर चिन्हारी अलग अलग लोगन मन बर अलग अलग होथे. इही अलग अलग मिंझरा चिन्हारी ह ओखर असल व्यक्तित्व के चित्र खींचथे. जइसे हमर मन बर ‘राम‘ ह भगवान रहिस त केवटराज बर ‘पथरा ला मानुस बनईया चमत्कारी मनखे‘, परसराम बर धनुस ला टोरईया लईका.. आदि इत्यादि. त छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन के प्रमुख आन्दोलनकारी, भिलाई स्पात संयत्र के माध्यम ले छत्तीसगढ़ के लोक कला ला एक नवा आयाम देवईया अधिकारी, साहित्यकार, ख्यात मंचीय कवि, प्रखर पत्रकार, डॉ.विनय कुमार पाठक के बड़े भाई डॉ. विमल कुमार पाठक.. आप बर अउ मोर बर अलग अलग आय.

उंखर व्यक्तित्व के आंकलन मोर हिरदे म एक समग्र मानव के रूप म हावय जेखर हिरदे म प्रेम, दया अउ सहानुभूति हे. सबले बड़े बात के उमन आज तक ले तप करत हांवय, दुखमय जिन्दगी के बावजूद मुस्कान ढ़ारत रचनासील हांवय ये मोला बड़ नीक लागथे, उंखर इही व्यक्तित्व हम युवा मन ला प्रेरणा देथे. डॉ. पाठक जी कोनो जघा ये बात ला लिखे घलो हांवय के चलते रहो चलते रहो.

मैं दू-तीन बरिस पहिली जब उंखर मेर मिले उंखर घर गे रेहेंव तेखर पाछू अपन ब्लॉग म उंखर बारे म लिखे रेहेंव के छत्तीसगढ के नामी साहित्यकार डॉ. विमल कुमार पाठक पाछू कइ बछर ले अडबड गरीबी म दिन गुजारत हांवय. उखर हाल देख-सुनके मोला दुख के संग अति अचंभा होइस. सरलग गिरे हपटे अउ बीमारी म पानी कस पइसा बोहाए के पाछू आजकल डॉ. पाठक छत्‍तीसगढ सासन कती ले साहित्‍यकार मन ला मिलत मानदेय अउ पत्र-पत्रिका मन म प्रकासित लेख के मानदेय म अपन गुजारा करत हावय. एक समय रहिस जब डॉ. पाठक भिलाई स्पात संयंत्र के प्रसार अधिकारी रहिन तब उनखर नाम के डंका चारो मूडा लोक कला अउ साहित्‍य के पुरोधा के रूप म बाजय. जम्मा संसार म लोहा उदगारे बर बजरंगा भिलाई स्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग के माइ मूड के अब का हाल हावय येला आप मन सब देखते हावव, वैभवपूर्ण पद म काम करे डॉ. पाठक ये हाल म घलव पहुंच सकते हें, विस्वास नइ होवय, फेर इही नियति आय.

आप सब मन ये समय के फेर जानत हावव, अउ इहू जानत हावव के डॉ.पाठक जी ल ये सबके चिंता नइ हे, ना वो ह ये बात ला सोंचय. समय ले जूझत डॉ.पाठक जी के जीवन निराला जइसे कठोर हो गे हावय जेखर भीतर ले संवेदना रूपी गीत मन के उलुव्हा पीका लगातार फूटत हावय.

अब गोठ बात डॉ. पाठक के साहित्यिक व्यक्तित्व के, त पाठक जी के रचना यात्रा बड़ लम्बा हावय. देस भर म कवि सम्मेेलन के मंच, रेडियो, टीबी मन म छत्तीसगढ के धजा फहरावत, पेपर गजट मन म छपत लगभग ३० किताब के प्रकासन तक, डॉ.पाठक जी के लिखइ आज तक ले चलत हावय. डॉ.पाठक जी हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दूनों भाषा म लिखथें, साहित्य सृजन बर उंनला कोरी कोरी पुरस्कार अउ सम्मान मिले हावय.

उंखर रचना यात्रा म गद्य अउ पद्य दू विधा देखे बर मिलथे, मोर उंखर गद्य ले भेंट प्रखर समाचार म छपत सरलग कड़ी “कहां गए वे लोग” ले होइस. ये कड़ी अंदाजन ६० ठन छपिस, जेमा हमर पुरखा मन के मान बढ़इया हमर सियान मन के बारे म पाठक जी ह बड़ सहज अउ सरल ढ़ग ले लिखे हांवय. ये कड़ी पाछू म एक किताब के रूप म “छत्तीसगढ के हीरे” के नाव ले छपिस. जीवन परिचय जइसे सहज लेखन ला रूचिकर बनाये के कला ये किताब म देखे बर मिलथे. समाज, संस्कृति, परम्परा अउ इतिहास संग परिस्थिति के ताना बाना जोड़त डॉ.पाठक जी ह भूले बिसरे सियान मन के जउन गौरव गाथा लिखे हांवय वो ह छत्तीसगढ़ के एतिहासिक दस्तावेज बन गए हावय. ये अकेल्ला एक ठन किताब ह उंखर लेखन ला अमर करे के समरथ रखथे.

मैं डॉ.पाठक जी के जम्मो रचना ला पढे सुने त नइ हंव, फेर जतका ला पढे सुने हांवव ततकेच म मोर हिरदे म उखर संवेदनसील कवि के व्यक्तित्व परखर रूप म उभर के सामने आथे. डॉ.पाठक जी गीत कवि आंए, उमन परम्परा ले जुरे प्रेम, सौंदर्य अउ दर्सन के गीत लिखथें. उमन हिंदी गीत मन म घलव हमर आंचलिक संवेदना ला उभार के आघू लाथें. इंखर कविता म स्‍वर साधना अउ छंद-योजना लाजवाब रहिथे. इमन अपन रचना म गौ भक्ति अउ आध्यात्मिकता के सुर तको भरे हांवय जउन मन म बाबा सिरीज के गीत मन ला छांट दन त बांचे मन एके नजर म कखरो मान खातिर बनाये नजर आथे, सिरजे के भाव अउ अंतस के पीरा जइसे उंखर सौंदर्य अउ बिरोधी स्वर के गीत मन म हावय वो उमन म नइ हे.

अपन बिरोध के कविता मन म डा. पाठक दलित, किसान अउ कमइया मन के दुख ला सुर देवत समाज के बुराई अउ अनीत उप्पर तेल डार डार के खंडरी घलो निछथें. कोन जनी कब आही नवा बिहान म इमन कहिथें –
नेता मन बेंच डारिन अपन इमान,
कोन जनि कब आही नवा बिहान!
अफसर बेपारी मन बनके मसान,
पीस डारिन जनता ला,
कर दिन पिसान.
दमित सोसित मनखे के पीरा ह इनला अतका अंतस ले जियानथे के इही गीत म आघू कहिथें –
नइ तो फेर हम उठाबो धनुस, जहर बान,
मरकनहा मन के हम लेबोन परान.
ये कवि के हिरदे ले उदगरे अकुलइ ये, जहर बान धरइया मन के जल जंगल जमीन जब छिनाही त इही बात होही.

अइसन वामपंथी सुर के संगें संग इंखर छत्तीेसगढ़ी कविता मन म लोक जीवन के उभार घलो रहिथे, प्रेम, सौंदर्य, श्रृंगार, प्रकृति के संग इमन जनजीवन ल अपन गीत म बहुत सुघ्घर रंग म उतारथें-
चंदा झाकै चनैनी,
लरजत गरजत रात म.
धान के हरियर लुगरा पहिरय,
धरती हर चौमास म.
येमा चंदा के चनैनी ल झंकई अउ रात के लरजई गरजई संग देह के भाषा के मानकीकरन देखव, आघू इही गीत म कवि कहिथें- चूमा लेवय हवा, लजावय खेत खार हर, सांस म. अइसनेहे सौंदर्य के चित्र कवि अपन अडबड अकन गीत मन म कोनो मूर्तिकार कर गढे हावयं, तेन म कोनो कोनो जघा अतिरंजन घलो हो गए हे तइसे कस लागथे-
फरकय अंग अंग तोर अमरित,
पीके मैं हर गएंव मताय,
टिप टिप भरे रखे हस करसी,
दू ठो छाती म बंधवाए.

भक्ति, प्रेम सौंदर्य के पाछू कवि के प्रिय विसय प्रकृति आय, प्रकृति के दुख ला गोहरावत कवि पानी जइसे आम अउ खास जिनिस बर एक ठन लम्बा गीत रचथे जेमा पानी के सहारे जीवन ला जोरथे जउन म जवानी के घुरे ले पानी के महमहइ के बरनन करथें-
महर महर महकत मम्हावत हे पानी ह,
लागत हे घुरगे सइघो जवानी ह.
अइसनेहे प्रकृति के बरनन करत कवि छत्तीसगढी के सटीक सबद मन के घलो प्रयोग करथें जउन हा एक नजर म भले अटपटा लगथें फेर जब दूसर पइत सुनबे त सार बात समझ म आथे कि कइसे कवि ह पानी बरसइ ला लंगझग लंगझग कहिथे, फेर उही पानी जब नरवा नदिया तरिया म बरसथे त झिमिर झिमिर अउ रद रद रद पानी बरसइ के अंतर समझ म आथे.

अइसनेहे कइ ठन गीत हावय जउन कवि के कविता के असल सास्त्रीय रूप के बखान करथे. सबद मन के बाजीगर ये कवि ह अपन अउ समाज के अभी के हालत उप्पर कोनो कोनो जघा दुखी दिखथें, फेर अपन गीते म उमन येला फलियार के कहिथें कि कवि निरास बिल्कुल नइ हें उनखर आसा के डोर उखंर अडबड अकन गीत मन म परगट होये हे. उमन आवाज लगावत हें सब ला जुरमिल के ये संकट के घरी ला टारे बर-
आवव अधिंयारी ला मेटन,
हम पिरथी के बिटियन बेटन.
अपन मया के तेल अउ बाती,
चलव जलावन हम सरी राती.
आपो मन हरदम सुख पावौ,
सुख ला बांट बांट बगरावव.
दीया सही सुघ्घर बरके,
घर घर म अंजोर बरावव.
उंखर इही आसावादिता हमर मन बर प्रेरना आए अउ इही उखंर व्यक्तित्व अउ कृतित्व के सार आए.

संजीव तिवारी


इतवार १४ जुलाई, २०१३ के संझा वीणा पाणी साहित्य समिति कोती ले पावस गोस्ठी के आयोजन, दुर्ग म सरला शर्मा जी के घर म होइस. कार्यक्रम म सतत लेखन बर छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अधियक्छ पं.दानेश्वर शर्मा, जनकवि मुकुन्द कौशल, हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ लेखिका डाॅ.निरूपमा शर्मा, संस्कृत हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ लेखिका शकुन्तला शर्मा के सम्मान समिति ह करिस. ये अवसर म डॉ. विमल कुमार पाठक के घलव सम्मान होवइया रहिसे फेर डाॅ.पाठक कार्यक्रम म पधार नइ पाइन. कार्यक्रम बर डाॅ.पाठक के उप्पर लिखे मोर आलेख गुरतुर गोठ के पाठक मन बर प्रस्तुत हावय –


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का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे

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का बतावव काला गोठीयावव,
अंतस के पीरा ल कईसे बतावव I
कोनों ककरो नई सुनय,
मनखे के गोठ ल मनखे नई गुनय I
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

संसों लागथे मनखे होय के,
कोन जनी कोन ह कतका बेर,
काकर गोठ मा रिसा जही I
अपनेच घर परवार ल
आगी लगा डारही,
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

अरे परबुधिया परिया भुईयां म,
सोना उपजा सकथस I
गुनबे त अंतस के अंधियार ल,
जुगजुग ले चमका सकथस I
फेर का हो जथे ऐके कनिक मा,
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

साँस ह आही साँस ह जाही,
फेर अपनेच बर काबर फांस बना डारेव I
माटी के काया माटी म जाही,
सरी दुनिया ह जानत हे I
जान बुझ के काया ल,
अपने हाथ मा उझार डारेव I
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

बड़ हिम्मतवाला हौ जी,
अपन साथ परवार के निवाला ल,
तको उलगा डारेव I
अपनेच काया के बईरी बनके,
घर परवार समाज ल तको रोवा डारेव I
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (रायपुर)







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गरमीं के छुट्टी मा ममा गाँव

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कलकूत गरमी मा इस्कूल मन के दु महीना के छुट्टी होगे हे। अब फेर इस्कूल खुलही असाढ मा। लइका मन मा टी.वी.,मोबाइल, कंप्यूटर, लेपटाप, विडियो गेम, देख-खेल के दिन ला पहाही अउ असकटाही घलाव। एकर ले बाँचे बर दाई-ददा मन हा गरमी के छुट्टी बिताय खातिर कोनो नवा-नवा जघा मा घुमे जाय के उदिम करहीं। कोनो पहाड़, कोनो समुंदर , कोनो देव-देवाला अउ कोनो पिकनिक वाले जघा मा जाँही अउ सुग्घर समे बिता के आहीं। ए हा अच्छा बात हे के नवा-नवा जघा देखे अउ घुमे ला मिलही,ओखर बारे मा जाने-समझे के मउका घलाव मिलही। फेर ए दरी लइका मन के संग हम सबो झन अपन-अपन दादा-दादी अउ नाना-नानी के घर गरमी छुट्टी बिताय ला चलीन। मोर गोठ कोनो आरूग अउ नेवरिया गोठ नो हे फेर ये हा समे के माँग बनत जावत हे। पहिली के समे मा गरमी छुट्टी के मतलब हा कका-ममा के गाँव जवई होवय। सबले जादा लइका मन सधाय रहंय के कब गरमी के छुट्टी लगही अउ तुरते ममा गाँव जाबो।
गरमी के छुट्टी हा हमर दिन-रात एकसुरहा जीवन शैली ले थोरिक बिसराम लेके नाँव हरय। कुछू नवा करे के समे हरय। अइसन मउका मा हमन काबर कुछू नवा करे के जघा मा अपन जरी ले जाके मिले के सुअवसर ला गवाँईन। एखरे सेती लइका मन के संगे-संग हमु मन ला संघरा अपन सियान मन के आसिरबाद अउ अनुभव के मोती पाय बर ए दरी गरमी के छुट्टी मा कका-ममा गाँव चलीन। लइका मन तकनीक के आय ले अपन सरी संसार अपन एकठन नान्हें खोली ला समझे लागथें। संसार के सरी जिनिस के गियान अउ दरसन उन्ला एक बटन दबाय ले हो जाथे। उंखर इही भरम ला टोरे खातिर पुरखा मन के गाँव-गंवई बच्छर मा एक बेर जरुर जाना चाही। आजकाल के लइका मन ला नहर, नंदियाँ, तरिया, कुआँ,पहाड़, खेत-खार, बारी-बखरी, बगीचा ए सबके सउँहत दरस करे खातिर ममा गाँव जाना चाही। अइसन ला देखे ले,इंखर ले खेले ले गजब मजा आही लइका मन ला। एक बेर आय ले घेरी-बेरी इहेंच आय के ओखी खोजहीं। परकीति ला छु-टमर के देखहीं अपन सवाल के जवाब घलो पाहीं। इंखर जिनगी मा का महत्तम हे एहू ला बने लकठा ले जानही। एखर रक्छा अउ संरक्छन काबर जरुरी हे एहू ला गुनहीं। कुल मिलाके तकनीक के संगे-संग अपन परियावरन अउ परकीति ले घलाव जुङ पाहीं।
गरमी के छुट्टी मा अपन पुरखा के गाँव जाय के सबले कीमती अउ जबर फायदा हे अपन परवार,अपन दादा-दादी अउ नाना-नानी ले भेंट करई। ए मन हा गियान अउ अनुभव के खजाना होथे जेखर लाभ हमन ला सोज्झे मा मिलथे। गाँव परवार मा जाय ले कका-काकी, बुआ-फुफा, बङे ददा-दाई ,ममा-मामी अउ इंखर लोग-लइका ले मेल-मिलाप होथे। अइसन जघा मा मान अउ मया भरपुरहा मिलथे जेखर सुरता जिनगी भर नइ भुलावय। आजकाल के उत्ता-धुर्रा भरे जिनगी मा बने ढंग के अपन बाप-महतारी अउ भाई-बहिनी भर ला जान पाथे अउ बाँकी नता-गोता परवार ला टीवी मा देखथे-सुनथे। गरमी के छुट्टी हा हमला सोनहा मउका देथे के अपन परवार ला काम-बुता ले समे निकाल के समे देइन अउ उंखर बीच मा रहीन। लइका मन ला तो बिक्कट मजा-मस्ती, मया अउ मान मिलथे अइसन जघा मा जाके। परवार के मया महत्तम समझ मा आथे। दिनभर बदमासी अउ मस्ती ममा गाँव मा लइका मन के चिन्हारी बनथे। बाग-बगीचा मा आमा-अमली टोरई अउ तरिया-नंदिया मा दिन भर डुबकई गाँव-गंवई मा ही होथे अउ कहूँ नहीं।
परवार मा संघरा रहे के नेंव परथे लइका मन के मन मा। जुरमिल के बुता-काम अउ जिमेदारी ला निभाय के सीख एकमई परवार ले लइका मन ला मिलथे। सब मा सहजोग के सुग्घर भावना के दरस होथे। गाँव मा सादगी,सफई अउ सुद्ध जीनिस के भरमार होथे। हवा,पानी के संगे संग मया-दुलार मा कोनो परकार के कोनो मिलवट नइ रहय। बिन तकनीक के, बिन बङे-बङे सुख-सुबिधा के असल अराम कइसे गाँव के जिनगी मा होथे एला देखे-सीखे के मउका गरमी के छुट्टी मा ही मिल सकथे। अपन भाखा, अपन बोली,अपन रीति-रिवाज, तीज-तिहार,परमपरा अउ मान्यता के साक्छात दरसन होथे। ए सब जिनिस हा लइका के जिनगी मा बङ भारी बदलाव ला सकथे। लइका के सोंच अउ समझ हा बिकसित होथे। अपने घर-परवार अउ जरी ले जुरे के समे मिलथे। अपन दादा-दादी, नाना-नानी ले गियान अउ अनुभव के बीज मंतर पाय के इही बेरा होथे। किसा-कहिनी के अथाह सागर होथे ए सियान मन हा। इंखर ए सरी वो जरुरी जानकारी मिलथे जौन जिनगी जीये बर बङ जरुरी होथे। जिनगी के मीठ अउ करू अनुभव ला अपन सियान मन ले सीखे के बेरा गरमी के छुट्टी मा ए दरी झन गवावव। घुमे-फिरे के संगे-संग जिनगी के नीक अउ गिनहा गोठ के गियान अपने सियान ले मिलना सोना मा सोहागा जइसन बात हरय। हमला अइसन कोनो मउका ला कभू नइ चूकना चाही।
लइका मन मा मया,मान-गउन, सहजोग, जिमेदारी अउ परवार,नता-लगवार के जरी ले जुरे के महत्तम खच्चित बाँटना चाही। अच्छा संस्कार , संवेदना अउ एखर सुद्धता हा हमर जिनगी मा बहुत महत्तम राखथे। अइसन कीमती जिनिस ला पाय बर हमला कोनो दुकान, इस्कूल अउ संस्थान मा जाय के जरुरत नइहे। सिरिफ गरमी के छुट्टी मा अपन पुरखा के गाँव-गंवई, घर-परवार ले सहज अउ सरल होके जुरव। अपन बबा-ददा ले मिलव अउ सेवा करव। एखर बदला मा गियान अउ अनुभव के मेवा पावव। लइकामन ला तो जरुर ए दरी गरमी के छुट्टी मा जिनगी के अमोल अनुभव ले बर कका-ममा गाँव ले चलव। ए कदम हा,ए उदिम हा हमला अउ लइकामन ला नवा जोस अउ उरजा दीहि अपन रास्ता ला निभाय बर। अपन जिनगी के सिरतोन सबक सीखे बर बबा-ददा के कोरा मा समे बिताना बङ जरुरी हावय आज के समे मा। आज हमर संस्कार मा गिरावट, मया मा मिलावट,तन-मन मा नकली सजावट के चलन बाढ गेहे। एखर ले बाँचे खातिर अपन पुरखा के जरी ले जुरे रहना अति आवश्यक हे अउ जरी ले जुरे खातिर अपन सियान मन के आसिरबाद अउ गियान के गंगा मा डुबकी लगाना बङ जरुरी होथे। ए सब ला सिद्धो मा सकेले बर हमला अपन कका-ममा गाँव-गंवई गरमी मा जाना बङ जरुरी हावय। ता फेर आवव चलिन अपन-अपन ममा-कका गाँव गरमी के छुट्टी मा मया के छँईहा मा समे बिताय खातिर।

कन्हैया साहू “अमित”
*शिक्षक*
मोतीबाङी परसुराम वार्ड~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9200252055 / 9753322055







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हीरा मोती ठेलहा होगे

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चंदू गजबेच खुस रहिस जब ओकर धंवरी गाय ह जांवर-जियर बछरु बियाईस।लाली अऊ सादा, दुनों बछवा पिला ल देख चंदू के मन हरियागे ।दुनों ल काबा भर पोटार के ऊंखर कान म नाव धरिस- हीरा अऊ मोती।ओकर गोसाईन समारीन ह पेऊंस बनाके अरोस-परोस म बाटीस ।चंदू के अब रोज के बुता राहय बिहनिया उठके गोबर कचरा फेंकय ,धंवरी ल कोटना मेर बांधके ओकर खायपिये के बेवस्था करय,फेर कलेवा करके खेती बारी में कमायबर जाय । लहुटके संझौती म हीरा-मोती संग खेलय।ओखर चार बछर के लईका संतोष घलो संगेसंग खेलय। समारीन येला देखके गजब खुस होवय ।येकर एक कारन अऊ हे ये धंवरी ह ओखर मईके ले आय रहिसहे।तीन बछर खेलत कूदत बीतगे अब हीरा-मोती दांते ला धर लीस। बढ़नउक बछरू अब धाकड़ अऊ धींगरा होगे।दईहान म जाय त गाय-बछिया ल दंउड़ाय ले धर लेवय।गहिरा के बात ल चंदू कान नई धरय। एक दिन परोसी परदेसी ह कहिस हीरा-मोती ल धनहा डोली कती घुमायबर लेगे कर भईया।
उंखर जोडी बनाके देख । चंदू ल बात जंचगे वहू ल लगीस अइसने छहेल्ला घुमही त जोजवा हो जाही,इंकर जांगर ल खइत्ता नई करंव।बारी म लेके जोतेबर सिखाहूं।एक बछर म हीरा-मोती चंदू के कमईया बनगे ।अब गांवभर चंदू नंगरिहा के सोरपूछ होय लागीस। बाढ़े बनी पाय लागीस। बाउंत, बोवई, मतई, बियासी, भारा डोहरई,ईंटा पखरा, मांटी-गोटी जम्मो बुता में हीरा-मोती जोड़ी गाड़ी के पहिली पुछई राहय ।अपन खेतीबारी अऊ बनी कमाके चंदू अब पनके लागीस। बेरा बीत ले माटी के कुरिया ले ईंटा के खोली बनगे। एती संतोष ल पढ़े बर भेजीस।तीनों परानी बड सुघ्घर जिनगी बितावन लागिस। अईसने सात बछर बीतगे। गांव के दाऊ मोहन ह परिहार नवा टेक्टर बिसा के लाय रहीस। गांवभरके देखेबर गईन चंदू घलो गे रहिस। ये बछर दाऊ के खेत म टेक्टर ले जोतई बोवई होइस। काम कखगन सिरागे। टेक्टर ल ठेलहा देखके बरातू घलाव अपन खेत ल जोते ल कहिस । चंदू ल बहुतेच बनी लेगईया रहिस त ए बछर ओला फरक नई पड़ीस ।पऊर गांव में दू ठन अऊ टेक्टर आ गे। अब
चंदू ल येकर सेती फरक परे लागिस।बढ़का अऊ मंझला किसान मन टेक्टर में जोतई-बोवई , मतई अऊ मिंजई घलो करा डारिन। सेठ हा छोटा हाथी घलो लान डरिस।येकर सेती अब चंदू ल बुता अऊ बनी नई मिलीस।खरतरिहा हीरा-मोती अब ठेलहा रहे लागिस।येसो चंदू अपन खेत ल आगू बो डारीस फेर नांगरबनी लेगईया कोनो नई आय। गांव के चारो कोती टेक्टर के अवाज सुनाय लागिस। जम्मो किसान येसो टेक्टर में बोवावत हे।येला देखके चंदू के हाथ पांव थोथवा परे लागिस अउ थरथरा के बर रूख के छैइहां म बईठगे। ओकर हीरा-मोती दूनों ठेलहा होगे। अब जम्मो काम ल टेक्टर नंगालीस।ईसवर ल बिनती करे लागीस अब जिनगी कइसे चलही मोर हीरा-मोती दूनों ठेलहा होगे।

हीरालाल गुरूजी”समय”
छुरा:-घर गरियाबंद
मोबा:-9575604169







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मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे

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मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे
मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग,
करमा ददरिया सुआ पंथी
संग म नाच लव गा लव ग।
मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे
मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग।।
रसगुल्ला कस मोर छत्तीसगढी
भाखा बने सुहाथे ग,
छत्तीसगढी हाँसी ठिठोली
मन ला सबके भाथे ग।
अंग्रेजी के तुँहर घर अंगना म
हमरो भाखा के रंग उठियालव ग
मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे
मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग।।
साग म जैइसे डुबकी कढही
अमटाहा भाँटा मिठाथे ग,
उसने हमर भाखा बोली म
सुवाद गजब के आथे ग ।
चिरपोटी पताल के चटनी संग म
बोरे बासी खा लव ग,
मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे
मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग।।
केंङे मेंङे अंग्रेजी बोले म
मान ह तुँहर बढथे ग,
अउ अपन महतारी के बोली बोले म
जीभ ह काबर जरथे ग।
छत्तीसगढी ए रस के तरिया
ये तरिया म डुबकी लगा लव ग,,
मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे
मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग।।

सोमदत्त यादव
ग्राम – मोहदी (जावा), रायपुर (छ ग)
मो न – 9165787803






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सुरता : डॉ. विमल कुमार पाठक

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डॉ. विमल कुमार पाठक सिरिफ एक साहित्यकार नइ रहिन। उमन अपन जिंदगी म आकाशवाणी म उद्घोषक, मजदूर नेता, कॉलेज म प्रोफेसर, भिलाई स्टील प्लांट म कर्मचारी, पत्रकार अउ कला मर्मज्ञ संग बहुत अकन जवाबदारी निभाईन। आकाशवाणी रायपुर के शुरुआती दौर म उंखर पहिचान सुगंधी भैया के रूप म रहिस अउम केसरी प्रसाद बाजपेई उर्फ बरसाती भैया के संग मिलके किसान भाइ मन बर चौपाल कार्यक्रम देवत रहिन। एखर ले हटके एक किस्सा उमन बताए रहिन -27 मई 1964 के दिन आकाशवाणी रायपुर म वोमन ड्यूटी म रहिन अउ श्रोता मन बर सितार वादन के प्रसारण जारी रहिस। कान म लगे माइक्रोफोन म एक म सितार वादन सुनत रहिन तो दूसरा ह दिल्ली ले जुड़े रहिस। एती सितार वादन के रिकार्ड बजते रहिस के अचानक माइक्रोफोन म दिल्ली ले सूचना आईस कि ”हमारे देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया।” तब के बरेा ओ मुश्किल हालात ल उमन कइसन अपन आप ल संभालिन अउ सितार वादन बंद करके नेहरूजी के निधन के सूचना देत श्रोता मन ल दिल्ली स्‍टेशन ले जोडि़न, ये प्रसारण जगत बर एक केस स्टडी हो सकत हावय।
एक दौर म डॉ. पाठक छत्तीसगढ राज्‍य आंदोलन के तहत भिलाई स्टील प्लांट म स्थानीय लोगन मन ल नौकरी म प्राथमिकता देहे बर बेहद मुखर रहिन, तब ओ मन पत्रकारिता घलोक करत रहिन अउ भिलाई स्टील प्लांट के परमानेंट मुलाजिम घलोक हो गे रहिन। दिन म नौकरी के बेरा अपन अफसर मन के हुकुम मानय अउ नौकरी के बाद ओही अफसर मन के घर मजदूर मन ल ले जाके धरना प्रदर्शन घलोक करवावंय अउ फेर ओखर खबर घलोक अपन अखबार म छापंय। ये अउ मजे के बात के अपन अखबार बर विज्ञापन घलोक भिलाई स्टील प्लांट से लेवंय। आज शायद एके मनखे अतेक ‘रोल’ एके संग नइ निभा पावंय।
भिलाई स्टील प्लांट के छत्तीसगढ़ी लोक कला महोत्सव के शुरूआत करे ले लेके ओला ऊंचाई देहे वाले तिकड़ी म रमाशंकर तिवारी, दानेश्वर शर्मा के संग तीसर सदस्य डॉ. पाठक रहिन। साहित्यकार के तौर म उंखर कलम हमेशा जीवंत रहिस। भिलाई इस्पात संयंत्र के नौकरी के संग उमन यश घलोक खूब कमाइन तो कई बार आलोचना के घेरे म घलोक रहिन। खास कर श्याम बेनेगल के धारावाहिक ”भारत एक खोज” म पंडवानी सुनात तीजन बाई के दृश्य म मंजीरा बजात बइठे म समकालीन लोगन मन हर उखर उपर कई सवाल उछाले रहिन।
बीते डेढ़ दशक म लगातार गिरत सेहत के बावजूद हमर जइसे पत्रकार मन ल ‘खुराक’ देहे बर उन हमेशा तैयार रहंय। पूरा हिंदोस्तान के बहुत से चर्चित हस्ति म न के संग ऊंखर कई अविस्मरणीय संस्मरण रहिस। हाल के कुछ दिन मन म उंखर सेहत लगातार गिरत रहीस। अब ऊंखर गुजरे के खबर आईस। जइसे उमन खुदे बताए रहिन कि उंखर अतीत आपाधापी ले भरे अउ संघर्षमय रहिस अउ बाद के दिन मन म उमन नाम-वैभव खूब कमाइन। फेर हकीकत ये हावय कि ए सब म भारी उंखर बेहद तकलीफदेह बुढ़ापा रहिस।
पहली तस्वीर कल्याण कॉलेज सेक्टर-7 म हिंदी के प्रोफेसर रहे डॉ. पाठक (बाएं से तीसर) के तत्कालीन सांसद मोहनलाल बाकलीवाल अउ कॉलेज कुटुंब के संग के हावय अउ दुसर तस्वीर सुपेला रामनगर म ओ जगह के हावय, जिहां आज शासकीय इंदिरा गांधी उच्चतर माध्यमिक शाला हावय। 1967 म उहां एक निजी स्कूल चलत रहिस अउ ”वक्त” फिल्म के सुपरहिट होए के ठीक बाद बलराज साहनी अपन जोहरा जबीं (अचला सचदेव) के संग भिलाई स्टील प्लांट के कार्यक्रम म आए रहिन। निजी स्कूल के बुजुर्ग संचालक हर पत्रकार विमल पाठक के माध्यम ले अनुरोध भिजवाइन त बलराज साहनी टाल नइ सकिन अउ अगले भिनसरहा बच्चा मन बर मिठाई अउ तोहफा लेके स्कूल आ पहुंचिन। तस्वीर म बलराज साहनी के पीछू अचला सचदेव अउ ऊंखर ठीक बाजू पत्रकार पाठक अउ ऊंखर बाजू स्व. डीके प्रधान नजर आवत हें। स्व. प्रधान देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बड़ी मौसी के बेटा रहिन अउ इहां भिलाई स्टील प्लांट म अफसर रहिन।

मो. जाकिर हुसैन के मूल हिन्‍दी पोस्‍ट के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद संजीव तिवारी द्वारा







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स्‍मृति शेष डॉ.विमल कुमार पाठक के श्रद्धांजली सभा, रामनगर मुक्तिधाम, सुपेला भिलाई के वीडियो

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ये पाना ल देखते रहव संगी हम लउहे डॉ.जे.आर.सोनी जी अउ एक ठन अउ वीडियो अपलोड करबोन.

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बुद्ध-पुन्नी

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बईसाख के अंजोरी पाख के पुन्नी के दिन ल बुद्ध-पुन्नी काबर कहे जाथे ? त एखर उत्तर म ये समझ सकत हन के आज ले लगभग अढ़ई हजार बछर पहिली इही दिन भगवान बुद्ध ह ये धरती म जनम धरके अईस, अउ पैतीस बछर के उमर म इही दिन ओला पीपर रूख के नीचे म बईठे रहिस त ओखर तपस्या के फल माने सच के गियान ह अनुभव म अईस, अउ इहीच्च दिन अस्सी बछर के उमर म वो ह अपन देह ल छोड़ के ये दुनिया ले चल दिस| तब ले बौद्ध धरम म ये दिन के बड़ महिमा हे | हिंदु धरम म घलो ये दिन ल बुद्ध पुन्नी के रूप म मनाय जाथे, काबर के भगवान बुद्ध ल हिंदू धरम म होय चोबीस अवतार में एक ठन अवतार के मान मिले हे|
भगवान बुद्ध ह सिद्धार्थ नाव धर के राजा शुद्धोधन अउ रानी महामाया के घर जनम धरीस, कुछ दिन बाद रानी महामाया ह अपन सरीर ल छोड़ के भगवान घर चल दिस, तब सिद्धार्थ ल ओखर मौसी मां गौतमी ह पालीस, ते पा के सिद्धार्थ ल गौतम नांव मिलिस| जनम के बाद एकझिन साधु-महात्मा ह राजा ल बताय रहिस हे के तोर लईका ह या तो बहुत बड़ परतापी राजा बनही या बहुत बड़े गियानी महात्मा| तब ले राजा ह गौतम ल महात्मा झिन बनय कहिके बड़ सुख म पालीस, अउ वोला साधु-महात्मा के संग झन मिलय अउ कोनो भी परकार के दुख के कारन ले ओखर सामना झिन होवय ये बात के बड़ धियान रखिस| गौतम जब सोलह बछर के होईस त ओखर राजकुमारी यशोधरा संग बिहाव कर दिस, कुछ बछर म राहुल नांव के एकझिन लईका घलो होगे, बड़ सुख म दिन बीतत रहिस हे, फेर होनी ल कोन टाल सकत हे, एकदिन गौतम ह घोड़ा-गाड़ी म अपन राज म घूमे बर निकलिस त का देखथे एकझिन बीमरहा आदमी ह कल्हरत रेंगत जावत रहे, त वो ह सारथी ल पूछथे, ये कोन हरे अउ ये ह काबर कल्हरत हे, त सारथी ह बताथे के ये आदमी ल बीमारी घेर लेहे अउ दरद म कल्हरत हे, र्सोंच म परगे के का महुं बीमार परहूं महुं ह दरद म कल्हरहूं, थोरकिन देर म एकझिन बुढ़वा आदमी ल देखिस, ओखर बारे म सारथी ले जानिस, अउ सोंचे ल धरलिस के का महुं ह बुढवा होहूं, ओखर बाद एकठन लास ल देख डरिस, तब सोंचिस के का महुं ह मर जहूं, अंत म एकझिन साधु ल देखिस, त अपन सारथी ल फेर पूछिस, ये कोन हरे, त सारथी कहिथे- ये ह साधु-महात्मा हरे, जे ह जीवन के सच ल जाने खातिर अपन घर बार ल छोड़ के तपस्या करे म लगे हाबय, तब गौतम ह सारथी ल पूछिस त का सहीं म ये साधु मन ल सच के पता चल जथे? त सारथी ह हां कहि देथे| अब गौतम ह रात दिन इही सोंच म रहय के ये सरीर ह एकदिन खतम हो जही, ये चकाचक जिनगी, ये जेन भी दिखत हे, सबो एकदिन खतम हो जही, ये सब झूठ हरे जेन दिखत हे, त जीवन के सच का हरे ? अईसनें सोंचत सोंचत एक दिन सच ल पाय खातिर घर-परवार ल छोड़ के हमेसा बर निकल जथे, अउ जंगल म जा के पुरा छै-बछर कठिन तपस्या करथे, अईसनहे एकदिन वो ह पीपर रूख तरी बईठे रहिथे, तब वोला जीवन के यथार्थ सच के गियान हो जथे, जेला संबोधि घलो कहे जाथे, अउ तब ले वोखर नांव ह गौतम ले गौतम बुद्ध पर जथे| सच के गियान ल पाय के बाद मानव जाति के कल्यान खातिर अपन अनुभव ल पुरा दुनिया म बगराय बर घुमथे| वोखर गियान के खास महिमा ये हे के वो ह जेन बात ल आज ले अढंई हजार बछर पहिली कहे रहिस हे, वो ह आज घलो सोला आना खरा उतरथे | ओखर अनुसार सच के गियान ल यदि पाना हे, त ये संसार म चार ठन सच्चाई हे, जेला मान के चलना परही- १, संसार म दुख हे, २, ये दुख के कारन- अंतस के चाहना अउ जलनखोरी हरे, ३, ये दुख ह अब्बड़ अकन हे, ४, ये दुख ले दुरिहाय के उपाय घलो हे|
ये चारो सच्चाई ल अनुभव म लाये बर भगवान बुद्ध ह हमन ल जउन उदीम करे बर कहे हे, वो हे- अस्टांग मारग म सरलग चलना| अस्टांग मारग म सार बात ये कहे हे- हमेसा सम-स्थिति म अपन सोंच ल रख के चलव, या हमेसा बीच के रद्दा ल अपनावव, माने- न तप म अति करव अउ न ही संसार ल भोगे म अति करव|भगवान बुद्ध ह आगे कहिस- ये बीच के रद्दा म चलत चलत अहिंसा,दया, सेवा अउ हमेसा सच बोलना ह हमर जीवन के परम धरम होना चाही, तभे सच के गियान ल अनुभव म लाये जा सकत हे | ये रद्दा म सिरिफ दुए परकार के साधक ह फेल होथे, १-जेन ह रद्दा म चले बर सुरूवाते नइ करय, २- जेन ह रद्दा म चलत चलत बीचे म रद्दा ल छोड़ देथे|
भगवान बुद्ध ल जब कोनो ये पुछ दय के- का दुनियां म भगवान हे ? तब वो ह चुप राहय, जवाबेच नइ दय, येमा ओखर सोंच ये राहय के जेन बात के उत्तर ल समझाये नइ जा सकय ओखर उत्तर देत समय चुप रह जाना चाही, इही जवाब ह अईसन सवाल के सबले बढ़िया जवाब होथे| लेकिन कई झन ओखर चुप रहई ल देख के ये कहि देथे के बुद्ध ह भगवान ल नइ मानत रहिस हे| फेर असलियत म अईसन बात नइ हे, भई जे चीज ह इंद्रिय गियान के पहुंच ले बाहिर हे ओला इंद्रिय मन ले कईसे जाने जा सकत हे|
भगवान बुद्ध के बताय रद्दा ह आज घलो सोला आना खरा हे, काबर के वो ह साधक के बुद्धि म जमे जम्मो कचरा ल सफाई करत करत बुद्धि ल निरमल बना देथे, या कहे के बुद्धि ल तरक ल तरक ले काटत काटत तरकतीत म पहुंचा देथे, जिहां सच के गियान ह बगबग ले साधक के अनुभव म आ जथे| कहे जाथे के भगवान बुद्ध के समय म बांकी बुद्ध के मुकाबला सबले जादा मनखे मन सच के गियान के अनुभव ल पईन| आज के जुग ह घलो घोर बुद्धि के जुग हे, त यदि आज के मनखे मन भगवान बुद्ध के बताय रद्दा म चलही त ये तय हे के जीवन के परमसुख सच्चा गियान ल पाय म बड़ असानी होही|

ललित वर्मा “अंतर्जश्न”
छुरा






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बेरा के गोठ : गरमी म अईसन खावव पीयव

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जेवन ह हमर तन अऊ मन बर बहुतेच जरुरी हे।खानपियन ल सही राखबो त हमर जिनगी ह सुघ्घर रही।भगवान घलो हमर जनम के पहिली ले हमर खायपिये के बेवस्था कर देते।अभी गरमी के मऊसम चलत हे ऐ मऊसम म सबला खाय पीये के धियान रखना चाही।सबले जादा हमर काया ल गरमी म पानी के जरुरत पड़थे।तन अऊ मन ल ठंढा राखे के अऊ पोसक तत्व के बहुतेच जरुरत हे। एकरे सेती हमनल धियान रखना हे कि कोन जिनिस ल खायपिये म संघेरन।हमर सियान गियानिक मन गरमी के दिन म खायबर अऊ पियेबर जौन जिनीस ल बताय हे ओकर परयोग करना चाही।प्रकृति ह घलो मऊसम के अनुसार फर फूल अऊ सागभाजी के बेवस्था ल करथे।इही ल हमला समझना अऊ समझाना हे।सबो जिनीस हमर अरोस परोस म मिल जाथे,बजार ले बिसाय बर जादा नई परय।खायपिये के रुप म ऐला संघेर सकत हन।

1. लिमऊपानी–घर म नई ते आस परोस म लिमऊ मिल जाथे , रोज दू गिलास पानी म एकर रस मिलाके पी लेना चाही।एकर ले तन मन ठंढा रहिथे।
2. मही(छाछ)–मही म कैल्सियम, पोटेसियम , जिंक रथे जौन तन म फुरती लाथे। एक गिलास रोजीना पीये जा सकथे।एला खाय के पाछू पिये ले अऊ जादा फायदा होथे।छत्तीसगढ़ म महीबासी खाय जाथे।

3. खुसियार(गन्ना) रसा– गरमी के घुमई फिरई म पानी के कमती हो जाथे।घाम में घुमत बेरा एक गिलास खुसियार सरबत पी लेना चाही।

4. कलिंदर(खरबूज,तरबूज)– कलिंदर में 80 परतिसत पानी रहिथे ।एमा सबो बिटामिन बी1, बी2, बी5, बी6 ,पोटैसियम , सोडियम रहिथे । एला सरबत बनाके पीये जा सकत हे नई ते सीधा खा सकत हन।

5. पदीना सरबत– पदीना पान के रसा निकाल के सरबत बना के पीये ले गजबेच फायदा मिलथे। लू लगे म नान्हे लईका बर रामबान माने जाथे।

6. नरिहर पानी– नरिहर पानी म अड़बड़ अकन पदारथ रथे जौन हमर तन ल सुघ्घर ठंढा राखथे।

7. आमा के अमरसा / पना– आमा ह गरमी काटे के सबले बड़े फर आय।कच्चा अऊ पक्का दूनो आमा ह फायदा करथे। आया म आयरन अऊ बिटामिन रहिथे जौन हमर तनबर फायदा करथे। आमा के पना गरमी म बड़ फायदा करथे।

8. खीरा / ककड़ी– हमर जेवन म खीरा ककड़ी ल संघेरना चाही। बन सकय त रोजीना एक गिलास खीरा के सरबत बना के घलो पीना चाही।

9. बेल के सरबत– गरमी म हमर प्रकृति ह एक अमरित असन फर बेल देय हावय। एकर सरबत बनाके पीये ले कतको गरमी रथे ओ हा भाग जाथे।

10. कटहर– कटहर के फर गरमी म आथे। एला छत्तीसगढ़िया मन साग रांध के खाथे। बरबिहाव म कटहर साग ल अड़बड़ मागथे।गरमी म बीपी बाढ़े के जादा सिकायत रथे, कटहर खाय ले बीपी कमती हो जाथे।

11. तुमा(लौकी)– तुमा के तरकारी ह सबो मऊसम म मिलथे।कतको झन ऐला पसंग नई करय फेर एमा पानी के मातरा जादा होय ले सियान मन तुमा साग ल खाय के सलाहा देथे।

12. गोंदली(पियाज)– गोंदली ल तामसिक जिनिस कहे जाथे।ये ह गरमी लाथेफेर एला सलाद बनाके खाय म गजबेच फायदा मिलथे।

13. गुलकंद– एला जेवन करे के पाछू खाय जाथे।

अईसने किसम के अऊ जिनीस कांदाभाजी, अमारी भाजी, करमत्ता भाजी, लाल भाजी हावय जेन ल खाय ले बिमारी ले रोकथाम होथय अऊ ठंढा राखथे।संगे संग बताय हे कि गरमी म तेल अऊ मसालादार साग , मास, मछरी ,अंडा, दूध,दही, लेवना, के जादा खवई पियई नई करना चाही। काजू,किसमिस, बदाम (ड्राई फ्रूट्स) के परहेज करना चाही। चाय, काफी गरमी देवईया आय ओला बंद कर देय ले आधा बिमारी अईसने कमती हो जाथे ” जीयेबर खाना हे खायबर जीना नई हे” ।

हीरालाल गुरुजी” समय”
छुरा, जिला–गरियाबंद




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