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लगिन फहराही त बिहाव माढ़ही

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बर बिहाव के दिन म जम्मों मनखे इहिच गोठ म लगे रथे, अऊ ठेलहा मनखे हा तो ये मऊका म जम्मों झन के नत्ता जोरे बर अइसे लगे रथे जइसे ओखर नई रेहे ले दुनिया नई चलही, इंजीनियर, डागटर ल घलो ऊखर मन के गोठ सुने ल परथे। छोकरी-छोकरा मन के दाई-ददा ले ज्यादा ओखर घर के सियान मन ल संसो रथे, ओमन तो छोकरी-छोकरा के काच्चा ऊमर ले पाछू परे रथे, ओमन सोचथे के परलोक सिधारे के पहिली नाती-पोता मन के बर-बिहाव देख लेवन। बड़ कन समाज म छोकरी घर छोकरा हा हांथ मांगे बर जाथे, ये परंपरा जुन्ना हरे, पहिली बर बिहाव म छोकरा के मनमर्जी राहय त ये परंपरा के सेतन कतको छोकरी ल बिन पसंद के छोकरा संग बिहाव करे ल परे, फेर अब जमाना उलट गे हे, अब छोकरी के मनमर्जी चलथे त अब इही परंपरा के सेतन छोकरी खोजत ले छोकरा वाला मन हा हलाकान हो जथे, काबर के नवा जुग म नवा-नवा नखरा हो गे हे। कोनहो करा छोकरा के नखरा त कोनहो करा छोकरी के। अब अइसन म ठेलहा मनखे किंजर-किंजर के मजा उड़ाथे त बुता काम वाला मनखे के मुड़ पीरा हो जथे। पहिली सोजहे में पारा परोस अऊ चिन-पहिचान के घर म नत्ता बना लेवय, वोहा तईहा के गोठ होगे। अब तो बिहाव के दू-तीन बछर पहिली ले जोड़ी खाप खाये अऊ अपन घर म मिंझर जाये तइसन छोकरी अंताजे जाथे, अऊ असल नजारा तो छोकरी देखे बर नवा कपड़ा-लत्ता अऊ नवा पनही पहीर के ऊखर घर पहुंचथे ततका बेर रथे, पहिली तो घर वाला मन आदर के संग बइठारथे, भीतर ले छोकरी के बहिनी हा आके परदा लगाथे अऊ परदा के पाछू ले झांक के छोकरा ल देख के लहुट जथे, छोकरा उही ल छोकरी समझ के खुश हो जखे, अऊ कई घंव तो सटका अऊ अपन संगवारी मन ल मोला छोकरी पसंद हे कइके घलो कही डरथे। छोकरा भले कतको नकटा राहय फेर ओतका बेर जम्मों लाज-सरम ओखरे भीतर हमा जाये रथे, सिधवा गाय सरीक मुड़ी ल गड़िया दे रथे कोनहो कही पुछथे ततकी बेर मुड़ ल उचा के दू भाखा जवाब देथे, जम्मों झन वो बपूरा ल आंखी बटेर के गोड़ के नख अऊ मुड़ के चुंदी ले देखत रथे, त बपूरा अतका तो लजाहिच, अब छोकरी के निकरे के अगोरा म दुनिया भर के गोठ सियान मन कर डारथे, इंहा के ठन स्कूल हे नोनी कहां पढे हे, इंहा के सरपंच कोन आय, फला-फला ल चिन्थस का, अऊ कते कते गांल म नत्तेदारी हे, इंहा के बाजार कब लगथे, भाई-बहिनी मन का करथे, जम्मों गोठ बात होथे फेर छोकरा छोकरी के बिसय म कोनहो घसलाहा मनखे जाय रथे तिही गोठियाथे नई ते ओखर तो गोठ होबे नई करय। बड़ अगोरा म छोकरी बिस्कुट अऊ मिच्चर धर के निकलथे, बईठक कुरिया म ओखर गोड़ राखते साठ फेरन लबली अऊ स्नो ममहाथे, पऊडर मुहु म अल्लिग दिखत रथे, छोकरी ल देख के छोकरा अपन होय भोरहा ल मने-मन हांसथे, सोंचथे के पहिली निकरे रीहिस तेला छोकरी समझ के हव कहूं सोचें रेहेंव, फेर अब येखर बर सोचे ल परही। अऊ ओती छोकरी हा पलेट ल टेबुल म मढ़ा के जम्मों झन के पांव परथे, ताहन सियान मन गाय-गरु छांटे सरीख परखे लागथे, गोड़ बने माढ़त हे के नही, आंखी कान बने हवय के नही, मोठ हे के पातर हे, धार मुहु हे के गोल थोथना हे, गोरी हे के बिलई हे, अऊ ताहन पेशी चालू होथे नोनी तोला रांधे-गढ़े ल आथे के नही, का पढ़े हस, कतका ऊंच हस, के भाई-बहिनी होथव, कतका प्रतिशत ले पास होथस, बिहाव के बाद नौकरी करबे का, अऊ गोत्र ल तो खच्चित पुछे जाथे, अऊ लफरहा मन हा तो तोला छोकरा पसंद हे के नही कइके सबके आघूच म पुछ देथे, छोकरी जम्मों सवाल के जवाब ल लजा-लजा के देथे, अऊ जेन हा नई लजावय तेन ल आज के आधुनिक जमाना में घलो छोकरा घर वाला मन कम पसंद करथे, इही करा हमर समाज के सच हा दिख जथे।
अब छोकरा के पेशी के बारी आथे छोकरा ल छोकरी के भाई, कका, नइते जीजा ह बुला के भीतर डाहन लेगथे, अऊ आघु म बईठार देथे, अब छोकरा के लजाय अऊ नई लजाय म ज्यादा फरक नई परय, जइसन छोकरी ले सवाल जवाब होय रथे वइसने छोकरा ले घलो होथे, फेर दू-चार ठन सवाल ऊपराहा पुछे जाथे जइसे कतका कमाथस का करथस, तुमन बांटा होगे हव का, हमर नोनी ल कहां राखबे, अऊ सबले फंसऊला सवाल की पीथस-खाथस का? ये सवाल के जवाब पहिली जम्मों छोकरा पीये ते झन पीये नहीच म देवय, फेर अब कतको झन कभू-कभू चलाय ल परथे कही देथे। अऊ छोकरा बड़े नौकरिहा हे त ये सब सवाल जवाब ल औपचारिकता म पुछे जाथे, अऊ छोटे नौकरी, धंधा, किसानी वाला मन ल तो पुछ-पुछ के पछिना छोड़वा डरथे। अऊ कोनहो बेरोजगार होगे त कोन जनी बिचारा ल छोकरी मिलही घलो के नही। इही हाल नौकरिहा छोकरी मन संग होथे, ओमन अपन मन के छोकरा छांट के अऊ जब मन आथे तब बिहाव करे के सोंचथे, ओमन अपन दाई-ददा के घलो नई सुनें, अऊ कतको छोकरी मन के ऊमर बाढ़ जथे फेर बिहाव नई हो सकय। अब अतका होय के बाद ऊंहा ले बिदा लेके छोकरा मन लहुटथे, त मोटर म गोठ-बात शुरु होथे, सटका हा छोकरा ल कथे कइसे जी तोला छोकरी मन अईस के नही त बपूरा लजा के कथे तुमन जानो मोला झन पुछो अऊ कतको झन ठेठ हाँ, नही घलो बता देथे। त दुसर कथे मोला तो एक कन आंखी टेड़गा लागिस, त फेर एक झन कथे मोला तो मोठ देहे हे त अलाल होही लागथे, हमर घर के बुता ल सकही के नही ते! त फेर एक झन मोठ नई हे यार मोला तो पातर लागिस, अऊ बिहाव के बाद सब सपोटा हो जथे, कोनहो पढ़ई ल कम हे कथे, त कोनहो रंग ल सांवली हे कथे, चार झन के मुहु ले चार गोठ निकलथे, अऊ घर म बइठे अपन नोनी ले सुग्घर छोकरी म घलो कमी नजर आ जथे, अऊ ये बात तय होथे के अभी दू चार जगा अऊ छोकरी देख लिया जाय। छोकरी वाला मन घलो कम नई राहय, छोकरा कोनहो बड़े नौकरी, अऊ जायदाद वाला नइये त बारा बहाना करके टरका देथे। अऊ अतका अकन तामझाम धरे के धरे रही जथे।
बर बिहाव म सटका, ढेड़हा-ढेड़ही, अऊ सारी-सारा, समधी-समधीन के जबर बुता रथे, येमन बिहाव मढाये ले लेके बिहाव के सिरात ले जम्मों बुता संग हंसी ठिठोली घलो करके बिहाव म रंग जमावत रथे। येखर छोड़ अऊ कई ठन बात हा बिहाव टोरे, जोरे बर बुता करथे, कोनहो मूल,जेठ,मंगली-मंगला के गोठ करथे त कतको झन पंचांग के बहाना करथे, कोनहो चरितर ऊपर सक करथे, त उढरिया भागे रथे तेखर भोगना ल परवार भोगथे, ये ऊपराहा उदीमेच हा हमर समाज के ढकोसला हरे, ये गोठ हा हमर बर हांसे के बिसय हो सकत हे फेर कतको परवार इही म सिरजथे-उजरथे, हमर समाज जतकी आघू बढ़त हे ओतकी पछवाय दिखथे। सिरतोन कबे त भगवान ऊपर ले जोड़ी बना के भेजे रथे, जब जेखर लगिन फहराही तेखर बिहाव माढ़ही।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525

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बिचार : नैतिकता नंदावत हे

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आज में ह बजार कोती जात रहेंव, त रसता म मोर पढ़ाय दू-झिन लईका मिलिस, वोमा के एक झिन लईका ह मोला कहिथे- अउ गुरूजी, का चलत हे ? त तूरते दूसर लईका कहिथे- अउ का चलही जी, फाग चलही| अतका कहिके दुनोंझिन हांसत हांसत भगागे, में ह तो ये सब ल देख-सुन के सन्न रहिगेंव, देख तो! ये लईका मन ल, गुरूजी ल घलो नइ घेपत हे, मोर करा ये हाल हे त दूसर करा अउ का नइ कहत-करत होही| एक हमर जमाना रहिसहे, जब गुरूजी ल दुरिहा ले आवत देखन त चुप्पे कोनो कोती लुका जन, नहिते दूसर गली म भाग जन, अब्बड़ डर लागय ग गुरूजी ले |देखते देखत अईसन बदलाव कईसे आगे, गुने ल परही|का ये बदलाव ह समय के मांग हरे, के का लईका मन भटकत जात हे |
बहुत सोंचे के बाद मोला तो एक्केठन बात ह समझ म आथे, वो हे- नैतिकता म गिरावट आ जाना| त ये नैतिकता म गिरावट ह कईसे अईस होही, ये बात म थोरकिन बिचार करे के जरूरत हे — लईका मन सबले जादा अपन समय ल अपन परवार म बिताथे, ओखर बाद ईस्कुल के नंबर आथे|आज परवार के रहन-सहन अउ बात-बेवहार म बिकास के सेती भारी बदलाव दिखथे, घर-घर म आज टेलीविजन पहुंच गेहे, जेमा रोज पस्चिमी-कचरा परोसे जात हे,जेमा सिरियल,कारटून, फिलिम,बिग्यापन परमुख हे, समाचार घलो म हत्या, अपराध, बलत्कार जइसे नकारात्मर खबर जादा रहिथे, जे ह हमर धरम-बेवहार अउ संस्कृति ल बड़ नकसान पहुंचावत हे|वईसने आज हर हांथ म मोबाईल पहुंच गेहे, जेमा आनी बानी के संदेस भेजे अउ पढ़े जात हे, जईसे हलो, हाय,कोनो रिस्ता ल आहत करत चुटकूला अउ मजाक, अलकरहा मजाक| ये सब आम बात होगे हे, नेट के महिमा तो अउ बड़ भारी हे, ये सब ह हमर बेवहार-संस्कार अउ संस्कृति ल बड़ नकसान पहुंचावत हे|
ईस्कुल म घलो अभी सिक्छा के अधिकार आय हे, जेमा नवाचार करे जात हे के लईका मन ल बिना डर भय के खेल-खेल म सिक्छा देना हे, एखर पाछू तरक ये दे गेहे के लईका मन खेलत खेलत हुदुक ले सीख जथे, त गुरूजी मन घलो लईका बन के लईका संग खेलत हे, ये बिधि ह सीखे सीखायबर तो बहुत अच्छा हे, फेर अनुसासन ल बिलकुल खतम कर देहे, लईका मन अब गुरूजी ल नइ घेपत हे, घेक्खर बन गेहे, गुरूजी जघा कांही भी बोल देथे, जेखर बानगी ह ये लेख के सुरूवात म दिखे हे|
परवार अउ ईस्कुल दुनो जघा हमर बिचार-बेवहार म पहिली ले बड़ फरक आय हे, जेखर नकसान हमर परवार, समाज अउ देस ल होवत हे, इही नैतिकता हरे जेखर सेती हमर देस ह बड़ अकन जाति धरम के लोगन संग एक सूत म बंधे हाबय, इही नैतिकता हरे जेखर ले हमन उमर, पद अउ नाव के के हिसाब से अपन बेवहार ल निभाथन, इही नैतिकता हरे जेखर सेती पुरा दुनिया के महामानुस मन हमर देस के संस्कृति के अब्बड़ बड़ई करथे| मोला लागत हे के हमर एकता के ये सूत ल टोरे खातिर हमर संस्कृति ल छोटे समझईया ये पस्चिमी सोंच के लोगन मन आधुनिकता के आड़ म हमन ल चौंधिया के हमर एकता रूपी पेड़ के जर ले जुरे नैतिकता के माटी ल बड़ जोर लगा के खिसकावत हे| जेखर असर हमर लईका मन के चाल ढाल म दिखत हे| आज लईका मन बड़े मन ल घेपय नहीं, पांव परेबर कहिबे त आनाकानी करथे, उंकर बेवहार म अभद्रता, गाली-गलौच ह आम बात होगे हे| आज बड़े मन घलो एखर कू-परभाव म फंसत जात हे, जे खातिर आज परवार अउ समाज म बिखराव, धरम के पाछु झगरा, बाल सुधार घर, बुढ़वा आश्रम मन बाढ़त जात हे|
आज ये नैतिकता अउ नैतिक सिक्छा के बारे म गंभीरता ले धियान दे के जरूरत हे, यदि लईका मन जेमन हमर देस के अवईया करनधार ये एखर सिक्छा-दिक्छा के खातिर हमर अईसनहे लापरवाही चलत रईही त ये मन अउ जादा ढिल्ला हो जही, जेखर ले हमन ल पाछू बड़ पछताय ल परही| त आप मन ले मोर बिनती हे के यदि हमला हमर भविस्य ल सुघ्घर गढ़ना हे त परवार अउ ईस्कुल दुनो जघा नैतिक सिक्छा ल बढ़ावा दे बर सरकार जघा अपन अवाज ल पहुंचाय ल परही, अउ घर म लईका मन का करत हे, टेलीबिजन म का देखत हे, मोबाईल म का करत हे एमा घलो परवार के बड़े मन ल सावचेत रहे ल परही, संगेसंग ईस्कुल कोती चलत सिक्छा के अधिकार कान्हून म घलो सुधार करवाय ल परही, काबर के अनुसासन मुक्त वातावरन ह लईका का कोनो ल भी उच्छृंखल बना देथे| लईका बिगड़गे, तहां ले हमर भविस्य घलो बिगड़गे |

ललित वर्मा”अंतर्जश्न”
छुरा




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महतारी दिवस विशेष : महतारी महिमा

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महतारी महिमा

(चौपई/जयकारी छन्द 15-15 मातरा मा)

ईश्वर तोर होय आभास,
महतारी हे जेखर पास।
बनथे बिगङी अपने आप,
दाई हरथे दुख संताप।।१

दाई धरती मा भगवान,
देव साधना के बरदान।
दान धरम जप तप धन धान,
दाई तोरे हे पहिचान।।२

दाई ममता के अवतार,
दाई कोरा गंगा धार।
महतारी के नाँव तियाग,
दाई अँचरा बने सुभाग।।३

काशी काबा चारों धाम,
दाई देवी देवा नाम।
दाई गीता ग्रंथ कुरान,
मंत्र आरती गीत अजान।।४

भाखा बोली हे अनमोल,
दाई मधुरस मिसरी घोल।
महतारी गुरतुर गुलकंद,
दाई दया मया आनंद।।५

दाई कागज कलम दवात,
महतारी लाँघन के भात।
मेटय सबके भूँख पियास,
दाई चिन्हथे सरी उदास।।६

दाई थपकी लोरी गीत,
महतारी संग हार हा जीत,
दाई पुरखा पबरित रीत,
दाई सुग्घर सुर संगीत।।७

दाई आँखी काजर कोर,
गौरैय्या कस घर भर सोर।
दाई तुलसी चौंरा मोर,
दाई बिन हिरदे कमजोर।।८

जननी तैं जिनगी के मूल,
महतारी तैं पूजा फूल।
माँफी करथे सबके भूल,
चंदन तोर पाँव के धूल।।९

महतारी बिन अमित अनाथ,
काबर छोंङे दाई साथ।
सुन्ना होगे जग संसार,
कोन पुरोही तोर दुलार।।१०

कन्हैया साहू “अमित”
भाटापारा

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महतारी दिवस विशेष : दाई

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दाई

(चौपई छंद)

दाई ले बढ़के हे कोन।
दाई बिन नइ जग सिरतोन।
जतने घर बन लइका लोग।
दुख पीरा ला चुप्पे भोग।

बिहना रोजे पहिली जाग।
गढ़थे दाई सबके भाग।
सबले आखिर दाई सोय।
नींद घलो पूरा नइ होय।

चूल्हा चौका चमकय खोर।
राखे दाई ममता घोर।
चिक्कन चाँदुर चारो ओर।
महके अँगना अउ घर खोर।

सबले बड़े हवै बरदान।
लइका बर गा गोरस पान।
चुपरे काजर पउडर तेल।
तब लइका खेले बड़ खेल।

कुरथा कपड़ा राखे कॉच।
ताहन पहिरे सबझन हाँस।
चंदा मामा दाई तीर।
रांधे रोटी रांधे खीर।

लोरी कोरी कोरी गाय।
दूध दहीं अउ मही जमाय।
अँचरा भर भर बाँटे प्यार।
छाती बहै दूध के धार।

लकड़ी फाटा छेना थोप।
झेले घाम जाड़ अउ कोप।
बाती बरके भरके तेल।
तुलसी संग करे वो मेल।

काँटा भले गड़े हे पाँव।
माँगे नहीं धूप मा छाँव।
बाँचे खोंचे दाई खाय।
सेज सजा खोर्रा सो जाय।

दुख ला झेले दाई हाँस।
चाहे छुरी गड़े या फाँस।
करजा छूट सके गा कोन।
दाई देबी ए सिरतोन।

बंदव तोला बारम्बार।
कर्जा दाई रही उधार।
कोन सहे तोरे कस भार।
बादर सागर सहीं अपार।

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)

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महतारी दिवस 14 मई अमर रहे : महतारी तोर महिमा महान हे

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महतारी शब्द के अर्थ ला संसार के जम्मो जीव-जन्तु अउ परानी मन हा समझथें। महतारी के बिन ए संसार के कल्पना करना बिलकुल कठिन हे। महतारी हमन ला सिरिफ जनम भर नइ देवय बलकि करम ला घलाव सिखाथे। वो करम जेखर बिन हमर एक पाँव रेंगना असंभव होथे। मया पियार दुलार के संगे-संग अमोल संस्कार ला घलो सिखोथे। जिनगी जीये के बीज बोथे। नौ महीना लइका ला अपन ओदरा मा बोह के सरी बुता-काम ला सरलग करइया एके झन जीव ए जगत मा हे जेखर नाँव हरय महतारी हावय। वो ए पीरा ला अपन लइका के मुसकान मा निछावर करइया अद्भुत जीव हरय। महतारी, अम्मा, माँ, माई, दाई ए सब एके झन के मया भरे नाँव हे। अपन परान ले जादा अपन लइका के परान ला जादा कीमती समझइया महतारी हा होथे अउ कोनो हा नइ होय। महतारी के मया भरे अँचरा हा महतारी के परिभासा होथे। महतारी हा जिनगी देवइया देवता हरय, एखरे सेती महतारी के मान सरग ले बढके हावय। देवता घलाव मन अपन जनम देवइया दाई के माँथ नवाथें। महतारी वो मया-दया के फुलवारी हरय जेमा के फूल कभूच नइ मुरझावय। महतारी ममता के मूरत हरय। महतारी के ममता हा वो महासागर हरय जौन कभू नइ अटावय।
वइसे तो अतका जादा महतारी उपर लिखे/कहे जा चुके हे मोर लिखना हा काँहीं नइ हे उंखर आगू मा। कोनो महतारी ला देवी ता कोनो महतारी ला भगवान के सरूप मानथें। इंखर कहना हा कोनो गलत घलाव नइ हे। महतारी हा घर चलाथे ता देवी लछमी होते, रँधनी घर मा अन्नपूर्णा होथे, अपन लोग-लइका ला सिखाथे-पढाथे ता सरसती सरूप होथे अउ बिपत ले जूझे बर देवी दुरगा होथे। जइसन समे परथे तइसन रूप मा महतारी हा अपन आप ला रंगथे अउ दिखथे। भगवान ला तो कोनो देखे नइ हे फेर मोला अइसन लागथे के भगवान हा जरुर महतारी बरोबर होही जौन बिना सुवारथ के सबके सेवा करथे। धरती मा भगवान के कमी ला महतारी हा अपन इही सेवा भाव ले पूरा करथे। महतारी बङे फजर उठ अधरतिया के होवत ले बिन थके-हारे अपन परवार के सुख-सान्ति बर समरपित हरिथे। घर-दुवार, खेत-खार, आफिस अउ लइका-सियान के सकला-जतन, देख-रेख एके झन महतारी हा पूरा करे मा अकेल्ला समरथ रथे। वोला काखरो मदद के जरुरत नइ परय फेर सबला महतारी के मदद के जरुरत खच्चित परथे। कोई भी जिमेदारी होवय वोला ईमानदारी ले निभाय मा महतारी के बरोबरी कोनो नइ कर सकँय। तियाग-तपस्या,मया,ममता करुना, दया,जप-तप,भक्ति अउ बिसवास के जीयत मूरती होथे महतारी हा। महतारी के बखान ला शब्द मा करना असंभव हावय। ए हा वो जीवनदायिनी हवा हरय जेखर बिन संसार के एको जीव जिन्दा एक छिन नइ रही सकँय।
महतारी हमर रूप रंग अउ व्यकितत्व के चिन्हारी होथे,एखर बिन ए जग मा हमर अवतरन अउ पहिचान नइ हो सकय। दाई हमर हिरदे ले जुरे रथे। वो हमर छँइहाँ बरोबर सदा आगे-पाछू रहिथे। सुख-दुख, बने-गिनहा बेरा मा हमर संग मा हमर हाथ धर के खङे रथे। दाई हमला कभू अकेल्ला नइ छोंङय भले हमन वोला अकेल्ला छोङ देथन। जिनगी के इस्कूल के पहिली गुरु हमर महतारी हा होथे जौन हा हमला जीये के सहीं अन्दाज सिखाथे। अपन सिखोना ला लइका कतका अउ कहाँ तक पालन करथे एकरो घरी-घरी धियान देथे दाई हा। महतारी अपन अनुभव के खजाना ला फोकट मा अपन लइका उपर लुटाथे ताकि लइका उपर काँही अलहन झन आवय। दाई ला सब जिनिस पता रहिथे के मोर लइका बर का सहीं हे अउ का गलत हे। एकरे सेती महतारी हा सबले जादा समे अपन घर-परवार ला देथे। हमर महतारी हमर मन के सबले बङे हितवा अउ प्रशंसक होथे। वो हा अपन लइका-सियान अउ घर के उपलब्धि मा सबले जादा खुश होथे अउ ओखर अथक प्रचार-प्रसार घलाव करथे। दाई हमला सदा सत मारग मा चले के सुग्घर सीख देथे जिनगी भर। आसा अउ बिसवास के पाठ हर बखत पढाते महतारी हा। महतारी के सिखोना ही जिनगी के डहर ला सरल अउ सुग्घर बनाथे। दाई जीयत भर इही आस मा जीथे के मोर लइका मोर बताय रद्दा मा रेंगय अउ दुनिया मा नाँव कमाय। दाई कभू नइ चाहय के मोर लइका हा गलत संगत मा परके गलत करम मा बूङय। एकरे सेती दाई हा रात-दिन चोबीसो घन्टा लइका के संसो अउ आरो करत रथे। लइका ला आँखी-आँखी देखत रहीथे।
महतारी के महिमा ला भगवान घलाव पार नइ पा सके हे। बङे-बङे गियानी-धियानी, संत-महात्मा अउ बिद्वान मन घलाव दाई के हिरदे ला समझे मा फेल खागें। दाई जतका कोंवर होथे ओतके कठोर घलाव होथे। महतारी शब्द हा एकठन जादू बरोबर लागथे जेखर नाँव लेते साठ सबो दुख-पीरा हा गायब हो जाथे। अइसे नो हे के महतारी एक अबूझ पहेली हरय। महतारी ला दिल मा जघा देले सबो अपने आप समझ आथे फेर दिमाग मा राखे मा अउ मुसकुल हो जाथे। ए पबरित रिश्ता के डोर दिल ले जुरथे ता जादा मजबूत होथे अउ दिमाग ले जोरे मा ओतके कमजोर होथे। महतारी के ममता अपन लइका के जतन मा जिनगी भर मासूम रही जाथे अउ लइका कब बाढथे पता नइ चलय। इही कारन महतारी बर ओखर बुढुवा बेटा घलाव नान्हे लइका लागथे। इही महतारी के ममता के आरुग भाव हरय जौन हा जिनगी मा बर के छँइहाँ बरोबर जुङवास करथे। दाई ले ए जिनगी सबल बनथे।
महतारी के महत्तम जिनगी मा उही बने बता सकथे जेखर जिनगी मा महतारी के कमी हावय। जेवन के महत्तम ला अघाय मनखे हा जादा बने ढंग ले बता सकय जतका लाँघन मनखे बता सकथे। दाई हा दरद के नाँव हरय फेर लइका ला पखरा कस पोठ बना के जिनगी के रद्दा मा रेंगाथे। महतारी ले हमर चिन्हारी हे, ए जिनगी हा महतारी के अभारी हे। परवार मा मेल-मिलाप के मजबूत पुलिया महतारी हा होते,एखर बिन परिवार बगर जाथे। महतारी सबो ला एकमई राखथे अपन मया, ममता अउ दया ले। आज जरुरत हे महतारी के मान अउ महत्तम ला समझे के। जइसे रुख-राई मन हमर बिन जी सकथे फेर हमन बिन रुख-राई के एक छिन नइ जी सकन वइसने महतारी के बिन हमन नइ जी सकन, महतारी हमर बिन जी सकथे। महतारी के जघा कोनो आसरम मा नइ हे हमर घर-अँगना,हमर हिरदे मा हावय। महतारी बिन जिनगी के कोनो मोल नइ हे, कोनो चिन्हारी नइ हे।।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055/9200252055




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जुग जुग पियव

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भरे गरमी म , मंझनी मंझना के बेरा । जंगल म किंजरत किंजरत पियास के मारे मरत रहय भोलेनाथ । बियाबान जंगल म , मरे रोवइया नी दिखत रहय । तभे मनखे मन के हाँसे के अवाज सुनई दीस । अवाज के दिसा म पल्ला दऊड़िस । जवान जवान छोकरा छोकरी मन , रन्गरेली मनावत खावत पियत मसतियावत रहय । पहिली सोंचीस के ओकर मन के तीर म कइसे जांवव । पारवती मना करे रिहीस के , मनखे के रूप धर के झिन जा पिरथी म । जतका बेर तक मनखे बने के सनकलप ले रहिबे तेकर ले पहिली , वापिस नी लहुंटन दे बरम्हा जी हा । फेर भोलेनाथ कहां मानही काकरो बात । ओला तो गराम सुराज देखे के भूत सवार रहय । ओहा गराम सुराज के माडल ला सरग म लाने खातिर , तीर ले देखे बर पिरथी म अमरे रहय ।
भगवान सोंचत रहय , ऊंकर तीर म जाहूं ते ऊंकर मसती म बाधा पर जही । ओमन मोला देख के लजा जहीं । पियास के मारे टोंटा सुखागे रहय , बोले नी सकत रहय । फेर , मरता का नी करता । तीर म जाके येजी ….. ओजी….. पानी दुहू काजी….. केहे लागीस । कनहो धियान नी दीस । ओतके बेर भरर भरर बाजत टेप रिकाड के सेल सिरागे । सनगीत चुमुक ले बंद होगे तब , ओमन ला धियान अइस के , ऊंकर बीच अऊ कनहो दूसर मनखे घला हाबे । गारी बखाना करतीस तेकर पहिली , पियास के मारे भगवान ला भुइंया म उनडत घोनडत देखीस । कतको बेर के खुल्ला माढ़हे बोतल के पानी ला धरके , तीर म गीन । खुल्ला माढ़हे माढ़हे बोतल के पानी तात होगे रहय । भगवान के मुहूं म पानी जइसे परीस थोकिन चेत अइस । तात के मारे पिये नी जावत रहय , , धीरे धीरे आधा बोतल पानी पी डरीस । ओतका बेर ओ पानी बड़ सुहइस भगवान ला फेर , ओकर दिमाग खराब होये लागीस अऊ अपने अपन काये काये बड़बड़ाये बर धर लीस । अतका के होवत ले , भगवान के मनखे बने रेहे के टेम सिरागे , ओहा छटपटाये लागिस अऊ देखेते देखत , पुट ले मरगे । वापिस भगवान के रूप म आगे अऊ ओमन के करतूत ला जान डरीस के , जुड़ पानी ला अपन बर राख , तात तात पानी ला मोर मुहूं म डारीन हे येमन । फेर भगवान तो भगवान आय । ओहा अपन ऊप्पर पथरा मारने वाला ला घला मीठ फर देथे । मनखे मनला आसीरवाद देवत किहीस – जुग जुग पियव ।
मनखे मन भगवान ला उदुप ले , असली रूप म देखीन त सुकुरदुम होगे । सन खाके पटवा म दतगे । तभे बरम्हाजी खुद , भोलेबाबा बर अलग ले बिमान धरके पिरथी म अतरिस । भोलेनाथ अपन बिमान म बइठके चल दीस । बरम्हाजी घला अपन बिमान म चइघे बर , रेंगे लागीस तइसने म , एक झिन मनखे ओकर गोड़ ला धर लीस – जुग जुग जियव ला सुने रेहेन भगवान , ये जुग जुग पियव काये आसीरवाद आय , हमन समझेन निही । भगवान किथे – तूमन भोलेनाथ ला पानी पिया के बचाये हव तेकर सेती , तूमन ला कलजुग म , पियास म , मरे बर नी लागे । हां एक बात जरूर हे के , जइसे तूमन जगत के पालनहार ला पानी देहव तइसने , कलजुग म तुंहर पालनहार मन , तुंहर बर बेवस्था करही । ताते तात बोतल के पानी ला भगवान के मुहूं म रिकोये हव अऊ ओकर दिमाग ला खराब करे हव , तइसने कलजुग म तुंहर पालनहार के दिये बोतल के पानी ला जइसे पीहू , तुहंर दिमाग हा गरम होवत खराबेच होही अऊ जइसे भोलेनाथ हा छटपटावत अपन परान तियागिस तइसने तहूं मन ओला पीहू त छटपटा छटपटा के मरहू । बरम्हाजी अनतरधान होगे ।
कलजुग अइस । मनखे मन पियास के मारे , तहलबितल होये लागीन । बरम्हा जी के बरदान के पालन के समे आगे तब , सरसती माता , इहां के मुखिया मन के दिमाग म हमागे । उही दिन ले मनखे के पियास बुझाये बर सरकार बोतल म , कतको समे के खुल्ला पानी ला , अपन सरकारी दुकान ले बांटे लगीस । भगवान ला , ओ जुग म पानी पियइया जीव के परिवार वाले मन , इही पानी ला , घेरी बेरी पियत , अपन संग दूसर के जिनगी अऊ दिमाग खराब करत , छनिक सुख पावत , जिनगी बितावत , छटपटावत , मउत ला निमनतरन देवत , भगवान के “ जुग जुग पियव “ आसीरवाद ला परमानित करत हें ।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा

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साहित्य हरे अंधरा के तसमा

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मटमटहा राम हा नवा-नवा साहित्यकार बने रथे, ओकर लेखनी के चारो खुंट परसंसा होथे वोहा कम दिन मे ज्यादा नाम कमा डरथे, त वोला लागथे के वोहा सबे जिनिस ल जान डरे हे अऊ इही बात के घमंड में साहित्य ल बिन जाने समझे जेन मिले तेन ल साहित्य काय आय कइके पुछथे, वोहा सबले पहिली अपन संगवारी साहित्यकार मन ल पुछथे, त बड़ सुग्घर जवाब पाथे, एक झन कथे साहित्य तो अंतस के दरपन आय, फेर मटमटहा अपन घमंड पाय के जवाब ल नई समझे, वोहा दुसर संगवारी ल पुछथे त जवाब मिलथे साहित्य गियान अऊ भावना के सागर आय, मटमटहा ल यहू जवाब पसंद नई आय, अऊ वोहा रोज ये सवाल पुछे अऊ कोनहो कतको सुग्घर जवाब दे वोला वोहा हांस के छोटेच देखाय के जतन करे, अइसन करत-करत ओकर घमंड अऊ बाढ़ जाथे त वोहा चारो खुंट घोसना करवा देथे के जेहा मोला साहित्य काय हरे बता के सरेखवा दिही तेला मेहा आधा एकड़ खेत ईनाम मे देहूं, ये गोठ ल जम्मों डहर के मनखे मन सुनथे अऊ मटमटहा राम करा पहुंचे लागथे फेर वोहा एको झन के जवाब ल नई माने, त एक दिन ओकर करा बड़का साहित्यकार आथे अऊ वोहा मटमटहा के सवाल के जवाब म कथे के जब सब्द ल मथबे त जे लेवना निकरथे तेला साहित्य कथे साहित्य हा हमर जिये के साधन अऊ सब्द-आखर के जाप हरे, साहित्य हा सुख, दुख, मया, हांसी ठिठोली, ल अंतस मे पहुंचाय के साधन अऊ समाज ल आघू बढाय के रद्दा हरे, अऊ अइसन कतको अकन पोठ जवाब देथे फेर मटमटहा वहू ला नई माने अऊ ईनाम दे बर नट जथे।
अब दुनो झन झगरा सरीख हो जथे, मटमटहा के पेलाही ले खखवा के बड़का साहित्यकार हा ओकर घमंड ल टोरे के सोचथे। वोहा चार दिन के बिते ले अंधरा डोकरा के सवांगा रच के आ जथे त मटमटहा कथे काये बबा ते काबर आय हस त अंधरा बने साहित्यकार कथे मेहा तोर सवाल के जवाब दे बर आय हंव त मटमटहा हांस देथे अऊ कथे कतको झन साहित्यकार मन बता नई सकीस त ते अंधरा काला बता सकबे त अंधरा कथे सुन तो ले मटमटहा ताहन अंटियाबे त वोहा ले सुना कही के बईठ जथे ता अंधरा कथे साहित्य मोर तसमा हरे, त मटमटहा फेर कथे जा अपन काम कर मोर करा हांसी ठिठोली के बेरा नई हे त अंधरा कथे मोरे भर तसमा नई होय तोरो तसमा हरे अऊ मेहा ये बात ला सरेखवा सकत हंव त मटमटहा अब अकचका जथे अऊ कथे ले तो सरेखवा ताहन तोला आधा एकड़ खेत ईनाम मे देहूं।
त अंधरा एक झन मनखे ल तिर म बुलाथे अऊ खिसा ले करिया रंग के फरिया ल निकाल के मटमटहा के आंखी म बांधे बर कथे, वो मनखे ओसनहे करथे अब अंधरा कथे मेहा अभी तोला कबिता बना के सुनावत हंव अऊ तेहा सुन के मोला बताबे तोला का समझ अइस, अऊ अंधरा पहिली कबिता सुनाथे-
ढका गे सुरुज करिया होगे आगास
अब बुझाही तरिया के घलो पियास
मटमटहा घलो साहित्य के भाव ल थोक बहुत समझे त तुरते अंताज डरथे, अऊ कथे बादर आये हे का जी अंधरा हव कइके दुसरा कबिता सुनाथे,
खिसा होगे जुच्छा आधा भरीस झोला
मंहगाई होगे बड़ भारी का करे जी भोला
मटमटहा तुरते कथे सिरतोन म जी हर जिनिस मंहगी होगे अंधरा फेर हव कथे अऊ अइसने वोहा चार-पांच ठन नान्हे नान्हे कबिता अऊ सुनाथे जम्मों ल सुन के मटमटहा सही-सही जवाब देथे त अंधरा कथे मटमटहा तोर आंखी म तो पट्टी बंधाय हे फेर ते सही जवाब कइसे देवत हस मोला तो लागथे पट्टी बने नई बंधाय होही तोला सब दिखत हे, त मटमटहा कथे मोला कुछु नई दिखत हे मेहा तो तोर कबिता ल सुन के सही जवाब देवत रेहेंव त अंधरा हांसे ल धर लेथे अऊ अपन सिरतोन रुप म आ जथे अऊ ओतका बेर ले मटमहा घलो आंखी के फरिया ल हेर डर रथे अऊ वोहा वो साहित्यकार ल चिन डरथे त मुडी ल गडिया के कथे मोला सही रद्दा म लाने के तोर उदीम बने रीहिस अब मोर घमंड टूट गे हावय सिरतोन म साहित्य अंधरा के तसमा हरे, अऊ अइसन काहत वोहा अपन घोसना ल पुरा करथे।

ललित साहू “जख्मी”
छुरा, जिला – गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525

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बेटी ऊपर भरोसा रखव

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गांव के रंगमंच म रतिहा 8 बजे जेवन खा के सकलाय के हांका परत रहिस ।आज रमेसर के बेटी के आनजात होय के निपटान के बैइठक हे। रमेसर के बड़े बेटी कामनी ह पऊर कालेज पढ़ेबर सहर गय रहिस। रगी (गरमी) छुट्टी म आईस त मांग म सेंदुर, हाथ म चूरी पांव म माहुर लगा के दमांद धर के आगे।गांव म आनी बानी के गोठ होय लागिस। समेसर गांव समाज म अपन पीरा ल राखे खातिर बईटका बलाय रहिस।रतिहा सबो सियान मन लईकामन के ऊमर, राजीनामा ले बिहाव अऊ सरकारी पंजीयन के जनाकारी कर ऊंकर बिहाव ल सही मानके संगे जिनगी बीताय बर फईसला कर दिन। बिहनिया रामकुमार जब तोरन घर चाय पियेबर गईस,तब देखथे तोरन माथा धर के मुड़ी गड़ियाय बैईठे हे। भऊजी ह रामकुमार ल बताईस कि रतिहा बईटका ले आय के पाछू ले अईसने होय हे। बने खोधर के पूछिस तब तोरन बताईस, रामकुमार भैईया पऊर ले मोरो दू झन बेटी मन ल दूसर सहर म अकेल्ला भेजे हंव। बड़े बेटी डाक्टरी पढ़ही अऊ मंझली ईंजीनिरिंग करही। अवईया बच्छर म छोटे बेटी ह घलो सहर जाय बर तियार हे।फेर कामनी के हाल ल देख सुन के अऊ आज के बेरा देखत मोला कहीं रद्दा नई दिखत हे।काय करंव तैईसे जी लागत है।रामकुमार कहे लागिस सुन भाई तोरन , पहिली के सियान मन कहाय “कालेज जाय काल कराय” फेर आज अइसन नई हे ।लोग लईका मन घर के संस्कार ले घलाव आगू बढ़थे।सबो लईका के मति अलग होथे। तोर बेटीमन बने संस्कार पाय हे। आज दुनिया में बेटी मन सबो कोती नाम कमाथे अऊ बेटा मन सही बुता करत हे। मास्टर,डाक्टर,इंन्जीनियर ,पुलिस, तहसीलदार, कलेक्टर अऊ पायलट तक बनत हे।चंदा म पहुंच गेहे। राजनीति म परधानमंतरी अऊ रास्टरापती घलो बन गेहे।बेटी जतका पढ़ सकय ओतका पढ़ाना चाही।बेटी ल पढ़ाय के संगे संग संस्कार अऊ नानम परकार के कला घलो सिखाना चाही जौन ओला अपन परवार म मान देवाय।नारी म ममता , नांव के गुन भगवान ह अलगेच देय हे । हां, नऊकरी करे के बेरा म बिचार अलग अलग हो सकत हे। एक जैन मुनि नारी के सिच्छित होय ल बने कहात रहीस फेर नऊकरी बर जरुरत म करेबर सुझाव देत रहीस।नऊकरी वाला नई ते बेपार वाला दमांद मिले ले बेटी ल नाऊकरी झन कराव। बेटी परवार के मान बढ़ईया सबो नत्ता ल बटोरईया हरे।हमन अपन बेटी ऊपर भरोसा रखबो तभे तो आगू बढ़ा पाबो। हमर जिला अस्पताल के बड़े डाक्टरिन बंगाल परांत ले आय ,जिला के अपर कलेक्टर उत्तर परांत के हरय। मितानिन सुपरवाईजर दीदी आने जिला ले इहां आय हे।पर प्रान्तिक बेटी मन पढ़े अऊ नऊकरी करेबर छत्तीसगढ़ आथय,अईसने छत्तीसगढ़ के बेटी मन दूसर परांत म जाथय। मोला देख मोर बेटी रिंकी के दाखिला मैं भारत देस ले बाहिर परदेस म कराय हंव।ऊहां मोर दाई के सगा न ददा के तभो ले पढ़े बर भेजे हौं। बेटी पराया होथे फेर पढ़ाय लिखाय के जिम्मेवारी हमर आय , अईसन झन करव। बेटी ऊपर भरोसा रखव।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा,जिला–गरियाबंद
8720809719

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दसवा गिरहा दमांद

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जोतिस के जानकार मन ल नौ ले उपरहा गिनतीच नइ आवय। तेकर सेती जोतिस म नौ गिरहा माने गे हे। फेर लोकाचार म दस गिरहा देखे बर मिलथे। ओ दसवा गिरहा के नाँव हे दमांद।
अलग -अलग गिरहा के अलग- अलग प्रभाव होथे। सबले जादा खतरा सनि ल माने गे हे। जेन हँं मनखे ल जादा ढेलवा -रहचुली झुलाथे।
कोनो जब जादा परेसान हो जथे त कहिथे एकर उपर सनि चलत हे गा ! तेकर सेती पेरावथे बिचारा हँ। फेर ओकर ले जादा पेरूक तो दमांदमन होथे।
एकर मतलब मैं तुमन ल पेरूक नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
जोतिस सास्तर के नियम हे के कोनो बात ल सोज्झे -सोझ नइ केहे जाय। अइसे कहा जेन मनखे के समझ घलो आ जय अउ रंज घलो झन लगय।
साँपो मर जाय अउ लउठी तको झन टूटय।
ओ साँप काहत हे तेला तैं डोरी कहा। ओ डोरी मानत हे तेला तैं साँप कहा।
त समझव दमांद दसवा गिरहा कइसे होथे ?
सबले पहिली तो जेकर घर बेटी जनम ले लिस माने ओकर घर दसवा गिरहा के छईहाँ पर गे समझौ। काबर के बेटी के पीछू ही दमांद होथे। गिरहा के छईहाँं पहिली परथे। तेकर पीछू गिरहा आथे। लगथे तेकरे सेती बेटी ल हमर जुग म कलंक माने गे हे। फेर सोंचे के बात ए हे के असली कलंक कोन आय ?
एकर मतलब मैं तुमन ल मुरूख नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
गिरहा के छईहाँ परिस ताहेन मनखे के माथा म चिंता हँ इस्पस्ट बहुमत के साथ डांड़ बना लेथे। ए बात अलग हे के काकरो माथा म भारती कुपोसित लइकामन बरोबर दुब्बर -पातर पैडगरी रद्दा होथे त काकरो म गाड़ी रावन के खोल्दावन पर जाय रहिथे। कखरो दिखथे त कखरो नइ दिखय ।
कोढ़िया मनखे घला ओ दिन ले कुकुर कस लाहक -लाहकके कमाए बर धर लेथे। बेटी के बिदा करे बर सरी चीज के जोरा -जंगारा तो करेच बर परही न। अइसने थोरे बिदा देबे। अइसने के बातेच् नइ ए !
कतको दाइज -डोरा दे। दमांद गिरहा बर कमेच् रहिथे। दमांद तो ससुरार के चीज -बस बर मुँह फारे खड़ेच् रहिथे बेटी के पीछू म।
टीकावन म साइकिल देबे त दमांद भीतरे-भीतर चैन राहत घलो बेचैन होके छटपटाही -फटफटाही : नहीं गा ! फटफटी होना रिहिसे।
पंखा देबे त बिन गरमी के तँवारा मारे कस फड़फड़ाही- नहीं गा ! कूलर होना रिहिसे।
कोनो दमांद भीखमंगा सरेनी म सबले उप्पर होथे। मुँह फटकार के माँग देथे। आजकाल अइसन दमांद कुकुरमुत्ता कस उगे लग गे हावय। अब तो अइसनो चलागन चालू हो गे हावय के मोर घर म टीबी हे । हाँ ! त तुमन टीबी के जघा दूसर चीज दे देवव । या नही ते ओकर नगदी बना देवव।
घोसना -पत्तर बनाके ससृरार म थमा दे रहिथे। ए घोसना -पत्र के पूर्ति ससुरारी सदस्यमन बर अगिन परीक्छा ले कम नइ होवय।
सनि कइ परकार के होथे । साढ़ेसाती , अढ़ैया तइसे दमांदो के कइ परकार होथे। कइ घँव कोनो गिरहा हँ पेरे के संगे -संग मनखे ल फायदा घलो पहुँचाथे।
माने गिरहा के परभाव हँ ओकर नजर उपर होथे। फेर दमांद के गिनती हँ ए अपवाद के सबले नीच पयदान म होथे। माने अइसन दमांद बिलुप्त होए के करार म अँटियावत खड़े हे।
समाज ल अइसन दमांद के संरक्छन खातिर भक्कम उदीम -उपाय करना चाही। अइसे मोर डिमाक म ओ उदीम हवय फेर लेवइया होना चाही। मैं बिन माँगे मुफत म अनचित सुलाह देना उचित नइ समझवँ।
अउ अइसे भी योग्य गुरू के असल सिक्छा हँ योग्य सिस्य तीर जाके ही गुरू अउ ग्यान के सान -मान ल बढ़ाथे।
एकर मतलब मैं तुमन ल भीखमंगा नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
अइसे हर दमांद पेरूक अउ जीछुट्टा नइ होवय। ओकर परभाव हँ दमांद के नियत उपर होथे । गिरहा के सीधा -सीधा नजर ओतका जादा घाती नइ होवय जतका ओकर तिरछी नजर होथे।
ककरो होवय तिरछीच् नजर हँ घाती होथे । तिरछी नजर ले ही दुनियाँ म कोनो ल नजर लगथे। चोरहा ,ढोरहा अउ नीयतखोर मन के नजर निसदिन तिरछीच् रहिथे। तेकरे सेती तिरछी नजर वालेमन ल नीयतखोर माने गे हे।
अइसन नीयतखोर के सरेनी म दमांद गिरहामन दमांदबाबू नाँव के उज्जर सोनहा आखर म सबले तिलिंग म हावय। तिरछी नजरवाले मन ले मनखे ल हमेसा सावधान अउ दूरिहा रहना चाही ।
कभू न कभू सबो ल तिरछी नजर म देखे बर परी जथे। माने कभू न कभू सब के नजर तिरछी होथेच्। अब जेन जनम के तिरछा आँखी के हे तेकर बात अलग हे भई ! ओ समझ -समझ के बात हे।
एकर मतलब मैं तुमन ल तिरपट नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
जिहाँ तक मोर अनमान के बात हे। दमांद मन सुग्घर दोगला प्रजाति के होथे। अपन गला के सुर ल बेटी के गला से निकलवाथे। अपन नइ कहि सकय। बेटी तीर कहवाथे। ससुरार म बोले बर मुँह सिला जथे । ओमन बाइ ल सकउ पाथे।
माने दमांद गिरहा हँ ससुरार ल पेरे के माध्यम बाइ ल बनाथे। एकर ले ए सिध होथे के दमांद मन के सक हँ बाइच् भर तीर चलथे। मरद मन तीर नइ चलय।
बेटी के जात हँ ओ घुना कीरा होथे जेन हँ दू परवार के बीच जिनगी भर पीसावत -रमजावत रहिथे।
दोगला के संगे -संग इन दुमुँहा प्रवित्ति के घलो होथे। बेटी संग मइके म अलग अउ ससुरार म अलग बात करथे। इन्कर मुख्य वाहन बेटी माने दमांदबाबू के गोसाइन होथे। नानमुन बात बर घलो इन बेटी के मुड़ म सवार रहिथे।
इन्कर कार्यसैली अउ किरिया-करम अइसे होथे के तोर दाइ -ददा ल बलाहूँ । घर ले तोर निकाला कर देहूँ कहि- कहिके बेटी अउ ससुरार म कम दबाव के छेत्र बना देथे। जेकर पर-भाव से सबके आँखी ले भारी बरसा होए ले दमांद के आसरा अउ माँग के फले- फूले- घउदे के संभावना बाढ़ जथे।
रिस्तादारी म दमांद के गिनती हँ सबले अव्वल होथे। कतको दमांद अइसनो होथे जेमन बाईब्रता माने पत्निसेवक होथे। अइसन बेगमदास मनखेमन ल समाज म मेड़वा के संग्या ले सम्मानित करे जाथे।
अब दमांद तो बन गे। ससुरार म बेटी दमांद के आना- जाना लगेच् रइही। जब -जब दमांद आही। ओकर बर चाहा -पानी ,खान -पान के सुग्घर जोरदरहा बेवस्था करेबर परथे।
इन अतेक कोंवर अउ घुरघुरहा होथे के इन ल बिहिनिया के गरमागरम दूधवाले चाहा हँ सूट नइ करय। तेकर सेती इमन संझा बेरा के लाल वाले जुड़ चाहा ल जादा सोरियाथे।
दमांद मन अपन घर म भाजी- भाँटा अउ कढ़ही -बासी भर खाए बर जानथे। मुरगा -मटन ससुरारे म देखे बर पाथे। ओकर सेती उन्कर बर कुकरी से लेके कुकुर अउ बोकरा से लेके बघवा तक के कुछू भी होवय बेवस्था होना चाही।
अइसे नइ होही त गिरहा के मुँहू फुग्गा कस फूल जाही। गिरहा जादा झिन पेरय तेकर बर हवन -पूजन , फूल -पान , दान- पुन के बिधान बेद सास्तरो म बताए गे हे।
जोतिस म गिरहा के टोर -भाँज के घलो नियम हे। पालन होवय चाहे झन होवय। नियम बनाना हमर देस के हर किसम के माने धारमिक, सांसक्रितिक, राजनितिक समाजिक पहिचान अउ सान हरे।
हर मनखे सुख चाहथे कोनो जानबूझके अपन मूड़ ल खलबत्ता म नइ घुसेर देवय। गँहू संग कीरा रमजाथे तेकर बात अलग होथे।
सियान के करनी ल लइका भुगतथे। तइसे कस ससुरार म दमांद गिरहा के भाव-भगत के कमी ल बेटी ल भुगते बर परथे। लोग लइका के सुख दाइ -ददा के सुख। नइते दमांद हँ ससुरार ले जाके बेटी के रार मता देथे।
दमांद गिरहा के पेरूक कथा तो आए दिन देखत -सुनत रहिथव। बहू के होरा भूँजके दही के भोरहा म कपसा ल खा डारथे अउ सबो ससुरारी सरकार के मुख अतिथि बन जाथे। माने बेटी के सास , ससुर अउ ननंद ,देवर मन दमांद गिरहा के सहायक गिरहा होथे।
घर म सुख -दुख के कोनो काम होवय। सबले पहिली दमांद ल नेवत के मनाए जाथे। नहिते ओकर कुपित होए के चायनस चार सौ बीस परसेंट बाढ़ जथे।
कोनो दमांद होय। ससुरार म आते साठ ओखर दिमाक के पारा हँ अपने -अपन एक सौ नौ डिगरी ले उपर हो जाए रहिथे। अइसन अपन मइके ले बाई के मइके जाए से आबहवा अउ इस्थान परिवर्तन के प्रभाव के सेती होथे।
कभू अइसनो दमांद होवत रिहिसे जेन हँ ससुरार ल मइके समझ के घरजियाँ रहि जावत रिहिसे। जेन हँ अब तइहा के डाइनासोर कस कहानी नंदा- खिया गे हे।
पहिली गउर -गनेस आगू नेवतावय अउ आगू पूजावय। अब पूछे -पूछाए पूजे -पूजाए के अंक तालका म गौर -गनेस ल एक पयदान खाल्हे ढकेलके दमांद गिरहा हँ सबले उप्पर बिराजमान हो गे हवय।
दमांदमन अतेक प्रभावसाली होथे के ससरार के हर कार्यकरम अउ किरिया-करम के सिरजन से लेके बिसरजन तक उन्कर संग सुलाह -मसवरा करना अति आवस्यक होथे। नइते ससुरार म कब कतका बेरा भूकम आ जही तेकर कोई ठिकाना नइ रहय।
नेवता मिले के पहिली इन पहुँच जथे। हर काम म इमन ल आघू म रखना परवार के नाक अउ नाम दूनो बर गजब जरूरी रहिथे।
कोनो काम ल इन कर सकय चाहे झन कर सकय। हमला नइ पूछिस कहिके मुँह ल कोंहड़ा कस फूलोए बर आगू रहिथे। ताहेन इन अप्पत घेक्खर ल मनावत रहा। घर ले बरात निकालना हे। दूल्हा ल संभराना -ओढ़ाना हे। ओतके बेर इन गाइब। खोजत रहा।
सिकार के बेरा कुतिया गायब। दमांद के नेंग ल कोन करही ?
अच्छाच टेम म इन घालथे । माने जे मेरन इन्कर जररत परथे। इन गाएब हो जाथे। फालतू टेम म कुकुर कस लूट -लूट करना दमांद गिरहा के पैदइसी गुन होथे। दमांदे मन के बात नइ हे। ए जम्मो मनखे जात के सर्वोपरि सिरमउर गुन होथे। अब देखेव -जानेव , सुनेव -मानेव के दमांद जात हँ कतका गुहरा होथे तेन ल ।
एकर मतलब मैं तुमन ल गुहरा नइ कहत हौं। समझइया बर इसारा काफी होथे। मुरूखमन ल समझाए बर परथे। समझना नइ समझना तुँहर उपर हे।
अइसने गुहरा ,नीयतखोर ,मतलबिया, जीछुटटा दमांदमन के सेती भारती समाज अउ संस्कृति के दुनियाभर म सोर उड़त हे। अतका पहिचान हमार नाक ल उँच राखे बर गजब हे।
बेटी हँ जनम ले कलंक माने जात हे फेर ए कलंक ल हम मिटा सकथन। बेटी ल अच्छा सिक्छा अउ संस्कार के धन -दाइज देके। जेकर परभाव से ओ हँ मनखे के बिचार ल संस्कारवान बना सकय। ससुरार म बने संस्कार बगराके समाजो ल सुधार सकय। अउ बेटी हँ बेटी भर नइ रहिके नवा जुग सिरजइया जगजननी बन सकय।

धर्मेन्‍द्र निर्मल

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मजबूर मैं मजदूर

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करहूँ का धन जोड़,मोर तो धन जाँगर ए।
गैंती रापा संग , मोर साथी नाँगर ए।
मोर गढ़े मीनार,देख लमरे बादर ला।
मिहीं धरे हौं नेंव,पूछ लेना हर घर ला।

भुँइयाँ ला मैं कोड़, ओगथँव पानी जी।
जाँगर रोजे पेर,धरा करथौं धानी जी।
बाँधे हवौं समुंद,कुँआ नदियाँ अउ नाला।
बूता ले दिन रात,हाथ उबके हे छाला।

सच मा हौं मजबूर,रोज महिनत कर करके।
बिगड़े हे तकदीर,ठिकाना नइ हे घर के।
थोरिक सुख आ जाय,बिधाता मोरो आँगन।
महूँ पेट भर खाँव, पड़े हावँव बस लाँघन।

घाम जाड़ आसाड़, कभू नइ सुरतावँव मैं।
करथों अड़बड़ काम,फेर फल नइ पावँव मैं।
हावय तन मा जान,छोड़हूँ महिनत कइसे।
धरम करम हे काम,पूजथँव देबी जइसे।

जुन्ना कपड़ा मोर,ढाँकथे करिया तन ला।
कभू जागही भाग,मनावत रहिथों मन ला।
रिहिस कटोरा हाथ, देख ओमा सोना हे।
भूख मरँव दिन रात,भाग मोरे रोना हे।

जीतेंद्र वर्मा”खैरझिटिया”
बालको(कोरबा)
9981441795

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नमस्कार के चमत्कार

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हमर पुरखा-पुरखा के चलाय मान-सम्मान परमपरा मा सबले जादा एक दुसर के अभिवादन ला महत्तम दे गे हावय। ए परपपरा हा आज घलाव सुग्घर चले आवत हे फेर चाहे एखर रकम-ढकम हा बदलत जावत हावय। हमन ए अभिवादन परमपरा मा देखथन के एक दुसर ला नमस्ते या नमस्कार करथन फेर एखर का अरथ हे सायदे जादा झन मन जानथन। आवव आज ए लेख के माधियम ले जाने के परयास करबो के अभिवादन मा नमस्ते कहे के का मतलब हावय।
हिन्दू धरम सास्त्र मन के हिसाब ले ले अभिवादन के कुल पाँच परकार होथे अइसे कहे जाथे। एमा सबले परमुख हे नमस्ते या नमस्कार। नमस्कार ला तो कई परकार ले देखे अउ समझे जाथे। संस्कृत सब्द के रुप मा एखर अरथ ला अइसन रूप मा समझे जा सकथे:- नम:+असते। ए मेर नम: के अरथ होथे नव गे, झुक गे अउ असते के अरथ होथे वो मुँङी, वो सिर जौन हा गरब अउ गुमान ले भरे हे। एखर मतलब इही होथे के मोर अहंकार ले भरे सिर हा आप मन के आगू मा नव गे, झुक गे। नम: के एकठन अउ अरथ अइसन हो सकथे के न+मे यानि के मोर नहीं सब आपके हे।
अभिवादन के पाँच परमुख परकार अइसन हे।
1- प्रत्युथान- ककरो सुवागत मा उठ के खङा हो जाना।
2-नमस्कार- दुनो हाँथ जोर के सत्कार करना।
3-उपसंग्रहन- अपन ले बङे-बुजुर्ग अउ गुरुजी मन के पाँव परना।
4-सास्टाँग- पाँव, माँङी, पेट, मुँङ अउ हथेरी के बल भुँइयाँ मा सुत के सम्मान करना।
5- प्रत्याभिवादन- अभिनंदन के अभिनंदन ले जवाब देना।

ए पाँच परकार के अभिवादन पुरखा-पुरखा ले चले आवत हावय। धीरे-धीरे एहू मन हा बिदेसी परेम के कारन नंदावत जावत हे। आजकाल हमन हा पयलगी, प्रणाम अउ पाँव छुवे ला भुलावत जावत हन। एखर जघा मा हाय, हलो, गुडमारनिंग अउ गुड नाईट कहे ला धर ले हन। अइसन सब्द मन के अरथ अउ अनर्थ कुछू काँहीं के पता नइ चलय। बस एक दुसर के देखा सीखी मा नकल करत चले जावत हन। पता नहीं ए नकल संस्कीरति हा हमला कहाँ अउ कती ले के जाही।
पाँव, पयलगी करे ला छोंङ के माँङी अउ जाँघ ला छु के छाती मा हाँथ लगाथें। अइसन करनी हा बङ अलकर लागथे देखे भर मा। ए सब बिदेसी फेसन के परभाव हरय जौन हमर पुरखा के पबरित संस्कीरति ला पाछू धकेले के उदिम हरय। नमस्कार के जघा मा सरी संसार भर मा हाँथ मिलाय अउ हलाय के उटपटांग संस्कीरति के चलन हा बाढत हावय। हमर भारत भुँइयाँ हा घलाव ए छूत के बेमारी ले नइ बाचे हे। चितरी कस चपलत हे हमर नमस्कार संस्कार के सोनहा फसल ला।
नमस्कार सब्द हा संस्कृत के नमस सब्द ले जनमे हावय जेखर अरथ होथे ए आत्मा हा दुसर आत्मा के आभार परगट करना। नमस्कार करे के सइली भले जुन्ना होगे हावय फेर एखर पाछू मा छुपे बैज्ञानिक रहस्य बहुते हावय। हमन जब भी अपन दुनो हाँथ ला जोर के नमस्कार करथन ता अपन छाती के आगू मा जोरथन जिहाँ अनाहत चक्र इस्थापित होथे। ए चक्र हा मया, परेम अउ दया ला उजागर करथे जौन हा हमर संपर्क भगवान ले कराथे। एखर सेती नमस्कार के समय ए हाँथ जोरे के प्रक्रिया ला पूरा करना चाही। अइसन करे ले मनखे बीच मा मनमोटाव हा दुरिहाथे अउ मया-परेम हा बाढथे। नमस्कार करे ले हमन मनखेमन के चहेता तो बनबोच फेर हाँथ जोरे ले भगवान के घलाव दुलरवा बने के मउका मिलथे। एखर सेती दुनो हाँथ जोर के सादर नमस्कार करना चाही।
नमस्कार करे के सहीं तरीका- सोज खङे होके अपन दुनो हाँथ ला एक सीध मा लान के साँटना चाही। अंगरी मन हा एक सँघरा जुङे रहय अउ अंगठा हा थोरिक दुरिहा छट्टा मा रहय। धीर लगा के अपन दुनो जुरे हाँथ ला अपन छाती के तीर मा लान के नमस्ते कहत, बोलत अपन मुँङ ला थोरिक नवाना चाही।

नमस्कार मन, बचन अउ सरीर ए तीनों मा से कोनो एक ठन माधियम ले करे जाथे। नमस्कार करत समे हथेरी ला दबाय ले या फेर जोरे ले हिरदे चक्र अउ आज्ञा चक्र मा सक्रियता आथे जेखर ले जागरन बढथे। ए जागरन ले मन सान्त अउ आत्मा मा परसन्नता आथे। एखर संगे-संग हिरदे मा ताकत आथे अउ डर-भय हा पल्ला भागथे। हमर देस मा नमस्कार करई हा एक मनोबैज्ञानिक पद्धति हरय। नमस्कार करत समे हमन हाँथ जोर के जोरदरहा बोल नइ सकन, जादा गुस्सा नइ कर सकन अउ एती-तेती भाग नइ सकन। नमस्कार,पयलगी करे ले हमर आगू मा खङे मनखे हा अपनेच आप बिनम्र हो जाथे। हमर भाव-भजन ला देख के वोहू हा एकदम सोजबाय सिधवा बन जाथे
नमस्कार करे के महत्तम अउ फायदा- नमस्कार या फेर पयलगी करई हा एक ठन मान-सम्मान हरय, एक संस्कार हरय पाँव परई हा एक यौगिक प्रक्रिया हरय। अपन ले बङे-बुजुर्ग मन ला हाँथ जोर के नमस्कार, प्रणाम करे ले घलाव बैज्ञानिक महत्तम हावय। नमस्कार के अध्यात्मिक महत्तम घलाव हावय। जेवनी हाँथ अचार याने धरम अउ डेरी हाँथ विचार याने दरसन के होथे। नमस्कार करत समे जेवनी हाँथ अउ डेरी हाँथ ले जुङथे। देंह के जेवनी पार इङा अउ डेरी पार पिंगला नाङी हा होथे। अइसन मा नमस्कार करत बखत इङा हा पिंगला के तीर मा पहुँचथे अउ मुँङी हा सरधा ले नव जाथे।

नमस्कार करत समे हाँथ जोरे ले सरीर के लहू-रकत,नस नस मा सुग्घर प्रवाह आ जाथे। मनखे के आधा सरीर मा सकारात्मकता के समावेस हो जाथे। कोनो ला प्रणाम करे ले आसिरबाद मिलथे अउ उही आसिरबाद हा हमर बिपत ले जुझे बर बल बनथे। आसिरबाद हा धन-दोगानी, रुपिया-पइसा मा नइच मिलय। ए आसीस के अनमोल खजाना हा सरधा ले मुँङी नवा के, हाँथ जोर के पयलगी करे ले फोकटिहा मा मिलथे। काखरो से मिलत समे हमला अपन दुनो हाँथ एक सँघरा जोर के नमस्कार करना चाही। रोज कोनो ना कोनो मनखे ले हमन मिलथन या फेर हमर ले मिलथें, जेला हमन नमस्कार करथन या फेर वो हा हमला नमस्कार करथे। कभू भी अपन एक हाँथ ले नमस्कार नहीं करना चाही ना अपन घेंच ला हला के नमस्कार करना चाही। हमला हमेसा सदा दुनों हाँथ ला जोर के ही नमस्कार करना चाही एखर ले हमर आगू वाला मनखे के मन मा हमर प्रति अच्छा भावना के बिकास होथे। नमस्कार ला औपचारिक अभिवादन नइ समझना चाही। अइसन ढंग ले करे गे नमस्कार के चमत्कार हमन ला अपने आप दिखही। नमस्कार हा हमर भारतीय संस्कार के अधार हरय, एखर अस्तित्व ला बचाय के उपाय हर हाल मा करना हमर पहिली कर्तब्य हरय। हमला हाय हलो ला छोङ के दुनो हाँथ जोर के नमस्कार करना चाही।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055

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बंटवारा

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बुधारु अऊ समारु दूनों भाई के प्रेम ह गांव भर में जग जाहिर राहे ।दूनों कोई एके संघरा खेत जाय अऊ मन भर कमा के एके संघरा घर आय । कहुंचो भी जाना राहे दूनों के दोस्ती नइ छूटत रिहिसे ।ओकर मन के परेम ल देख के गाँव वाला मन भी खुस राहे अऊ बोले के एकर मन के जोड़ी तो जींयत ले नइ छूटे ।
बिचारा बुधारु अऊ समारु के बाप तो नानपन में ही मर गे रिहिसे ।बाप के सुख ल तो जानबे नइ करत रिहिसे ।ओकर दाई बिचारी ह बनीभूती करके लइका मन ल पालीस पोसीस अऊ बड़े करीस । महतारी के दुख ल दूनों भाई समझत रिहिसे एकरे पाय अब दूनों संघरा कमाय ल जाय अऊ जतका पइसा मिले ओला अपन दाई ल दे देवे । ओकर दाई बिचारी ह आधा पइसा ल बचाय अऊ आधा ल घर के खरचा चलाय ।
कुछ दिन में ओकर महतारी ह दूनों भाई के बिहाव कर दीस । बिहाव के होय ले दूनों भाई के जिम्मेदारी अऊ जादा बाढगे।
आदत के मुताबिक दूनों भाई रोज कमाय ल जाय अऊ पइसा ल लानके अपन महतारी ल धराय । ए बात ह दूनों बहू के अंतस में हजम नइ होवत रिहिसे । फेर मने मन में मसोस के रहि जाय।नवा नवा बहू आय हन जादा बोलना उचित नइहे कहिके चुपेचाप राहय ।
समय ह बीतत गीस बहू मन के मुँहू ह खुलत गीस ।अब वो मन ह अपन अपन गोसइया ल बोले के सुरु कर दीस ।तुमन ह एके संघरा कमाय बर जाथव त बने करथव ।फेर पइसा ल अपन दाई ल काबर देथो हमला धराय करो ।का हम ह घर के खरचा ल नइ चलाय सकबो । बुधारु अऊ समारु अपन – अपन बाई ल बहुत समझाय फेर ओकर मन में समझ नइ आय ।
बात ल ओकर महतारी ह सुन डरिस त ओहा बोलथे – बहू मन ह सही काहत हे बेटा ।मेंहा तो अब डोकरी होगे हंव ।घर ल तो अब बहू मन ही चलाही । पइसा ल मोला नइ देके उही मन ल दे दे करो।
अब दूनों भाई अपन अपन कमई ल लानके उही मन ल धराये। तभो ले बहू मन ल संतुष्टि नइ मिलत राहे ।थोर थोर बात में लड़ई झगरा सुरु हो जाय । झगरा ह बाढ़त गीस अऊ बात ह बंटवारा करे तक उतरगिस। गाँव के दू चार आदमी मन समझाइस के रोज रोज के लड़ई झगरा से अच्छा हे दूनों भाई बंटवारा हो जाव अऊ सुख से कमाव खावव।
एक दिन दूनों भाई गाँव के दू चार सीयान मन ल सकेलीस अऊ बंटवारा करे बर कहिस।गाँव के सीयान मन घर दुवार बरतन भाड़ा सबो के दू हिस्सा कर दिस । अब बात ह महतारी उपर अटक गे। महतारी ल कोन राखही । दूनों बहू सोज सोज सुनादीस के डोकरी ल हम नइ राख सकन ।महतारी ह फूट फूट के रोय ल धरलीस के कतका दुख पीरा ल सहिके एमन ल पाले पोसेंव। अपन पेट ल मार के एमन ल खवायेंव ।फेर दूदी झन मिलके मोला एक मूठा खाय बर नइ दे सकत हे , धन्न हे मोर भाग, का करम करेंव तेकर सजा भोगत हों। दूनों बेटा तक ह महतारी के दरद ल भुलागे अऊ नावा नावा बहू के फेर में मोहागे।बिचारी डोकरी जोर जोर से रोय लागीस ।फेर कोनों ओकर दुख ल नइ समझत राहे ।
तब गाँव के सीयान मन बोलीस के महतारी ल तो दूनों भाई ल राखे बर परही । छै महीना बुधारु राखही अऊ छै महीना समारु ह ।
दूनों भाई ह बेमन से तैयार होगे।
एती महतारी के सुसकई ह बंद नइ होवत राहे अऊ सुसक सुसक के बेहोस होके गिरगे ।
सब कोई हड़बड़ा गे । डाक्टर ल बलाइस।डाक्टर ह हाथ नाड़ी ल देखीस अऊ बोलथे अब दूनों भाई आराम से बंटवारा कर सकत हो।
जादा हे त एकर शरीर के भी आधा आधा बंटवारा कर लो ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com

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छत्तीसगढ़ी गोठियावव अऊ सिखोवव –बेरा के गोठ

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ऐसो हमर परोसी ठेकादार पवन अपन टूरी अऊ टूरा ल 18 किमी दूरिहा सहर के अंगरेजी इस्कूल म दाखिला कराईस। ऊंखर लेगे बर बड़का मोटर (बस) इस्कूल ले आही कहिस।नवा कपड़ा, बूट, पुस्तक कापी, झोरा( बैग ) जम्मो जिनिस बर पईसा देय के इस्कूल ले बिसाईस हे। पवन के गोसाईन ह बतावत रहिस उहां पैईसच वाला धनीमानी मनखे , अधिकारी, मंतरी मन के लईका मन पढ़थे। रोजीना नवा नवा कलेवा जोर के भेजे बर कहे हे। इस्कूल म लईका मन अंगरेजीच म गोठियाही कहात रहिस। हमन तो ठेठ छत्तीगढ़िया आवन । कोन जनी कईसे पढ़ई चलही।पवन ठेकादार के कार डरावर नकुल के टूरी घलो पढ़े बर ऐसो गांव के इस्कूल जाही।ओकर टूरी बड़ चटरी।इस्कूल जाय के पहिलीच ओला सौ तक गिनती , अनार, आम, ए बी सी डी सबोच जानडरे हे,चटर चटर सुना देथे।नकुल बड़ गुमान करथे अपन बेटी ऊपर फेर अपन इस्थिति जानथे। नकुल एक दिन ईलाज करायबर अपन गोसाईन संग बड़का अस्पताल गय रहिस।उहां के बड़का डाक्टरिन ल अलवा जलवा टूटहा फूटहा छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियात सुन दूनो परानी हांस डरिस। डाक्टरिन पूछिस- काबर हांसथव। नकुल कहिस- तुंहर अलकरहा गोठ सुनके हांसी आ जाथे डाक्टरीन । डाक्टरिन कहिस- मैं बड़का सहर के अंगरेजी इस्कूल म पढ़े हंव।घर म कोनो छत्तीसगढ़ी नई बोलय।मोर गोसईया बड़का इंजीनियर हे, वहु बड़े सहर म पढ़े हे । छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाय नई जानत रहिस। हमर बदली एती होईस तब मरीज मन हमेड़ी (हिंदी) नई जानय। अपन रोगराई ,पीरा छत्तीसगढ़ी म बतावय त ओला हमुमन समझबूझ नई सकन, ऊंखर ईलाज करे म दिक्कत होवय।तब हमर कम्पोटर ललित बीच म आके बुझावय।हमर गोसईया दऊरा जाथय उहां मजूर मिस्तीरी मन छत्तीसगढ़ीच गोठियाथे। कतको मन कामबुता म दिक्कत, तनखा पगार , मेट, मुंसी के बेवहार अऊ सिकायत बतावय। आधा समझाय आधा नई समझाय। दूसरईया घनी फेर ऊहीच गोठ। एक दिन हमन दूनो परानी किरया खायेन , कुछू उदीम करके पांच महिना म छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाय बर सीखबो।हमन घर के बाहरे बटोरे बर माईलोगिन रखेन। ओखरे संग छत्तीसगढ़ी म गोठियांव। सरकारी गाड़ी के डरावल तो रहिस फेर घर के कार बर गांव ले डरावल बलायेन।अस्पताल ले छुटे पाछू बजार हाट होवत आवंव। जईसन बन सकय ,जादा ले जादा छत्तीसगढ़ी गोठियायबर मिले उहां जावंव। अभी चार महीना पूरे हावय।अतका गोठियायबर सीखेहंव। डाक्टरिन कहिस– आज कम्पूटर,मोबईल के बेरा बखत चलत हे,अंगरेजी इस्कूल म अपन लईका दाखिला करायबर मुठा मुठा पईसा फेंकत हे।फेर पढ़ लिख के काय करही? नऊकरी , बेपार, राजनीति, समाजसेवा ईहीच तो।नान्हे करमचारी होय कि बड़े अधिकारी कोनो परकार के नऊकरी करय, छत्तीसगढ़ी गोठियाय बर परही। सिंधी , मड़वारी, गुजराती , बिहारी, छत्तीसगढ़िया कोन्हो बेपारी मन बिना छत्तीसगढ़ी गोठियाय अपन धंधा नई कर सकय ।राजनीति करईया नेता मन सबले पहिली छत्तीसगढ़ीच गोठियाय बर सीखथे अऊ भोकवा जनता ल भरमाथे।आने परांत ले आय मनखे छत्तीसगढ़ी सीख के मंतरी संतरी बन गे। डाक्टरिन कहिस -आज कलेक्टर, तहसीलदार बने के परिच्छा म घलो छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़ी भाखा के सवाल पुछथे। तुहंर लईका अंगरेजी इस्कूल म पढ़के छत्तीसगढ़ी ल भुला जाही अऊ नऊकरी पायबर घलो पाछू हो जाही। कोनो भी परांत अऊ देस के पहिचान ऊंकर भाखा बिना नई होवय।हमर देस म परांत घलो भाखाच ले बने हे।जौन परांत म कमाय खाय बर जाबे , ऊहां के भाखा सीखे बर परथे।
हमर परांत के दुरभाग आय ईहां के रहईया अपन ल छत्तीसगढ़िया कथे फेर गोठियाय बर लजाथे। सरकारी आदेस के ठोसलगहा पालन दुसर परांत ले आय अधिकारी मन नई होवन दय।हमन ल ऐकरबर एक होके गोठियायबर परही।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, गरियाबंद

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कहिनी : नाव बदले ले न गाड़ी बदले न ठऊर

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भटकुल नानचुन गांव रथे, फेर ऊंहा लड़ई-झगरा अऊ दंगा असन बुता होवते राहय। ऊंहा के गंउटिया इही झगरा के पीरा ल नई सही सकीस अऊ परलोक सिधार गे, ओखर माटी पानी में पुरा अतराब के मनखे सकलइस, ओमा एक झन साधु घलो आय राहय। वोहा गंउटिया के ननपन के संगवारी रथे, वोहा गंउटिया के जिनगी के हर-हर कट-कट ल जानत रथे, गंउटिया हा एक घंव अपन मया बिहाव बर जात बदले रथे, फेर ये बात ल ज्यादा मनखे नई जानय। गंउटिया के परवार वाला मन अपन छाती पीट के रोवत रथे, ओतकी बेर साधु हांस के कथे नाव बदले ले न गाडी बदले न ठऊर, जम्मों झन रीस म ओखर मुहु ल देखथे फेर साधु ल कुछु नई केहे सके काबर के साधु बड़ गियानी रथे, अऊ ओखर सोर सबो कोती बगरे रथे। अब माटी पानी ल करके जम्मों मनखे लहुट जथे। एक दिन गांव के चौरा म बइठ के मनखे मन साधु के गोठ करत रथे, त साधु के कहे गोठ ल सुरता करके एक झन मनखे कथे साधु के गोठ म रहस्य रथे, चलो न जी जाके पुछबो के वोहा अइसन काबर किहिस होही। त जम्मों मनखे तियार हो जथे अऊ साधु करा जाके पुछथे ‘नाव बदले ले न गाड़ी बदले न ठऊर’ के का मतलब आय? साधु जम्मों झन ल बइठे बर कथे अऊ पानी पियाथे, ताहन पुछथे तुमन कोन हरो अऊ का बुता करथो। त सब कथे हमन भटकुल गांव ले आय हन, अऊ हमन सहर के लोहा कारखाना म कमाथन। त साधु पुछथे कमाय बर कामे जाथो? त ओमन कथे रहीम (ट्रेवल्स) मोटर म चइघ के जाथन। साधु कथे ले बने हे अब तुमन तीन महीना बिते के बाद म आहू ताहन येखर मतलब ल बताहूं। जम्मों झन हव कही के लहुट जथे।
साधु ल जम्मों झन माने, बड़ पईसा वाला मन घलो ओखर चेला राहय, अऊ ओखर कहे ल कभू नई काटय। त साधु अपन चेला ल बुला के कथे तेहा रहीम ट्रेवल्स के मोटर ल बीसा ले अऊ मोटर म राम ट्रेवल्स लिखवा के चला। ओखर चेला वइसने करथे। फेर एक महीना के बाद म दूसर चेला ल तेहा उही मोटर ल बीसा के गोविंद ट्रेवल्स लिखवा के चला कथे, त वोहा गुरु के कहना मान के मोटर तो बीसा डरथे फेर बने नई चला सके त दस-बारह दिन म डेविड करा बेच देथे त वोहा मोटर ल बीसा के ईशु ट्रेवल्स लिखवा के चलाथे।
अब तीन महीना के गे ले, गांव वाला मन साधु करा आथे, त साधु ओमन ल बइठार के हालचाल पुछथे, अऊ कथे अब तुमन कमाय बर कते मोटर म जाथो त गांव वाला मन बताथे ईशु ट्रेवल्स में जाथन महाराज! त साधु कथे अऊ ओखर ले पहिली कामे जावत रेहेव? त गांव वाला मन सब नाव ल ओरियाथे। त साधु कथे आने-आने मोटर म जाथो त आने-आने ठऊर म जावत होहू! अऊ तुंहर गांव म भारी नवा-नवा मोटर चलथे जी! त गांव वाला मन कथे नही महाराज गाडी उहीच आय अऊ उहीच ठऊर म जाथन फेर नाव भर बदलत रथे। त साधू हांस के कथे इही गोठ ल तो महु कहे रेहेव के नाव बदले ले न गाड़ी बदले न ठऊर, त एक झन कथे, बने फरिया के बता न महाराज.!
त साधु कथे के ये हमर तन हा गाड़ी आय जेला हमन हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई अऊ कोन जनी का-का नाव ले चिन्थन। जइसे वो मोटर के नाव बदले ले ओखर काया हा नई बदलिस वइसने हमर जात-धरम के बदले ले काया ह नई बदले। तभो ले हमन ये नाव मन बर अपने-अपन कटथन मरथन, कतको झन हा ये धरम ले वो धरम नाचत रथे, कोनहो हा भेदभाव म अपन अंतस ल मइला डरे रथे, फेर भगवान के बनाय तन हा उहीच रही। अऊ जम्मों झन के आखिरी ठऊर का हरे? जम्मों मनखे ल आखिर में मरघट्टठीच तो जाना हे! त जात-धरम के नाव ले लड़ई-झगरा करे के का मतलब हे। ये तन हा मोटर बरोबर आय, थोकन बेरा बर येमा चघे ल मिल जथे त हमन बड़ इतराथन, ताहन फेर जुच्छा के जुच्छा। तिही पाय के तो कथो नाव बदले ले न गाड़ी बदले न ठऊर, अब गांव वाला मन के आंखी उघर गे अऊ जम्मों झन मिलजुर के रेहे लागिस।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला – गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525

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कन्या भोज (लघुकथा )

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आज रमेश घर बरा,सोंहारी,खीर ,पुरी आनी बानी के जिनीस बनत राहे । ओकर सुगंध ह महर महर घर भर अऊ बाहिर तक ममहावत राहे। रमेश के नान – नान लइका मन घूम घूम के खावत रिहिसे ।
कुरिया में बइठे रमेश के दाई ह देखत राहे, के बहू ह मोरो बर कब रोटी पीठा लाही ।भूख के मारे ओकर जी ह कलबलात राहे ।फेर बहू के आदत ल देखके बोल नइ सकत राहे ।बिचारी ह कलेचुप खटिया में बइठ के टुकुर – टुकुर देखत राहे ।
थोकिन बाद में पारा परोस के छोटे छोटे लड़की मन ह ओकर घर में आगे।रमेश के बाई सीमा ह सबझन ल बढ़िया परेम पूर्वक बइठारिस ,अऊ जे जे चीज बनाय रिहिसे सब ल थारी में परोसीस ।
एती ओकर दाई के भूख ह सहन नइ होत रिहिसे, त अपन बहू ल बोलिस – महूं ल खाय बर दे देतेस बहू ।अब्बड़ जोर से भूख लागत हे ।
अतका बात ल ओकर बहू सीमा ह सुनीस, ते ओकर तन बदन में आगी लगगे ।ओहा अपन सीमा लांघगे अऊ बोलीस – डोकरी गतर के चुपचाप बइठे नइ रहि सकस । आज संतोषी माता के उदयापन करात हों , ये सब झन ह कन्या भोज करे बर आहे ।पहिली ए माता मन ल भोग लगाहूं , तभे तो तोला देहूं। थोरको दम नइ धर सकस ।रात दिन बोजत हस तभो ले तोर पेट नइ भरे ,अऊ सबके सामने फदीत्ता कराथस ।
अऊ कोन जनी का – का बोलीस ते उही जाने।
नान – नान लइका मन कन्या भोज करे बर आय रिहिसे तहू मन ओकर बात ल सुनके डर्रागे।बिचारी मन चुपचाप खाके अपन अपन घर चल दीस।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं – 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com







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किसानी के दिन आगे

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नांगर अऊ तुतारी के
जुड़ा अऊ पंचारी के
रापा गैंती कुदारी के
मनटोरा मोटियारी के
मनबोध ला सुरता आगे
किसानी के दिन आगे ।

कबरा लाल धौंरा के
खुमरी अऊ कमरा के
आनी बानी रंग मोरा के
बांटी अऊ भौंरा के
भाग फेर जागगे
किसानी के दिन आगे ।

बादर अऊ पानी के
खपरा खदर छानी के
डोकरा डोकरी कहिनी के
लिमऊ आमा चटनी के
दिन फेर लकठियागे
किसानी के दिन आगे ।

धान खेती करइया के
जामुन लीम छईंया के
गीत ददरिया गवइया के
गोंदली बासी अमरईया के
सबके मन उम्हियागे
किसानी के दिन आगे ।

गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा







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घर तीर के रुखराई जानव दवई : बेरा के गोठ

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हमर पुरखा मन आदिकाल ले रुख राई के तीर मा रहत अऊ जिनगी पहात आवत हे। मनखे ह जनमेच ले जंगलीच आय। जंगल मा कुंदरा मा रहे।रुख राई बिन ओखर जिनगी नई कटय। हजारो बच्छर बीत गे , मनखे अपन मति ल बऊर के जंगल ले निकल के सहर बना डरिस फेर रुख राई के मोहो ल नई तियाग सकिन।घर मा फुलवारी बनाके जीयत हे। आज गांव अऊ सहर घर ,अरोस परोस म गजबेच रुख राई के दरसन परसन होथे।बर, पीपर, आमा, अमली, लीम, लिमऊ, जाम ( बीही), चिरईजाम ( जामुन), कटहर,मुनगा,पपीता,केरा अऊ नानम परकार के नान्हे बड़े रुखराई तीर खार म रहिथे।बेदपुरान मा बताय रद्दा ल धरके मनखे रुख राई मा देबी देवता के वासा अउ भगवान मानके पूजा पस्ट करथे।रुखराई ले आरूग हावा, दानापानी, अउ नानम परकार के जिनिस मिलथे।ऐला बिग्यानिक मन परमानित करे हावय।हमर घर, बारी–बखरी तीर तखार के ये रुख राई मन सिरीफ फर,फूल,लकड़ी,छंईहाच भर नई देवय ये हा डाक्टर अऊ बईद के बुता घलाव करथे।आज मनखे लईका,जवान,सियान,दाई,माई, बेटी महतारी सबोच कोई न कोई नान्हे बड़का रोगराई ल धरे हे।ऐकर निदान रुखराई म हावय।जौन ल रोजीना देख के हमन अपन आंखी मुंद लेथन ऊही रुख राई के पाना,फूल,फर,जर,डारा, छोलटा ह दवई आय।
आवव जानन कोन कोन रुख राई हमर दवई बनथे।

1.आंवरा–ऐलाआयुरबेद अमरित फर मानथे।ऐहा बिटामिन “सी” के खदान आय।ऐहा कसहा होते।ऐकर रसा आंखी के जोत बढ़ाय बर रामबान आय।ऐकर खायले हाजमा बने होथय।पेट म गैस बनन नई देवय।एखर खाय ले जवान अऊ बुढ़वा ल ताकत मिलथे।हर्रा बहेरा संग मिंझार के तिरफला बनाय जाथे।चुंदी घलो पढ़ाते।आंवरा ल कइसनो खाय मा फायदा मिलथे।

2. आमा–आमा के दुसर नाव देवफर, राजाफर, आरुगफर (पवित्रफल) हावय।ऐकर पाना, छोलटा,डारा ,फर ,सबो पूजा पाठ म बऊरे जाथे।आमा घलो नानम परकार के रोग राई के दवई आय ।जौन मनखे म लहू कमती हे ओहा आमा खाय ,ये ह लहू बढ़ाते ।पक्का आमा ल दूध संग पीये ले थकासी मेटाथे अउ नवा ऊरजा लानथे।रोग राई ल रोके के ताकत (रोग प्रतिरोधक) बढ़ाथे।गरमी मा ऐकर पना बना के पीये ले लू नइ लगय।

3. लीम–लीम ल गांव के दवई दुकान (दवाखाना) कहे जाथे।ऐकर सुवाद करु रहिथे फेर लाख पीरा के एक दवई लीम आय।रोजीना बिहिनिया ले लीम के दतोन करेबर हमर पुरखा मन सिखोय रहिस फेर फेसन ह ब्रस धरादिस अउ मसकुरा पायरिया घलो धर डारेन। लीम के पाना फुसमंहा चाबे ले नइ ते एक चम्मच रसा पिये ले कभू कोन्हो रोग नइ हमाय । बिच्छी मारे , दतिया चाबे जगा म पाना ल पीस के लगाय म पीरा झींकते। फोरा–फुनसी, खाज– खजरी,घाव के रामबान दवई आय। लीम गुठलू ल पीस के भुरका बनाके खाय ले शक्कर बिमारी (मधुमेह/डायबिटीज) मा फायदा करथे।

4.लिमऊ– लिमऊ बारो महीना मिले वाला फर आय।ये बिटामिन सी के सगरी आय।जौन जादा मोटाय हावय अउ पातर दूबर होना चाहत हे त लिमऊ खाय। कब्ज,गैस बिमारी वाले मन जेवन संग जरुर लेवय अउ जौन जादा तेलहा मसलहा खाथे ओहा जरुर रोजीना लिमऊ खाय। लिमऊ ल हाजमा बढ़ायबर, चेहरा मोहरा के करियापन ल सफई करेबर बऊर सकत हव।चना पिसान हरदी संग लिमउ रसा मिंझार के चुपरे ले मुहूं ओग्गरा (गोरिया) जाथे।

5. मुनगा– संसार मा सबले जादा पुस्टई रुख कोई हावय त ओखर नांव मुनगा आय। ऐला पर परांत , परदेस म बिलगे नांव ले जानत होही।आयुर्वेद मा मुनगा ले 300 रोग राई ल बने करे जा सकत हे।ऐमा बिटामिन ए गाजर ले 4गुना, बिटामिन सी संतरा ले 7गुना, कैलसियम दूध ले 4गुना, पोटेशिसम केरा ले 3गुना अउ प्रोटीन दही ले 3गुना रहिथे।ऐकर पाना के रसा निकाल नान्हे लइका ल पियाय ले पेट के कीरा मारथे। साठिका,गठिया,बात (वातरोग) मा फायदा करथे। लोकवा मारे मनखे ल मुनगा साग खवाना चाही।हाड़ा ल पोठ बनाय बर मुनगा खावव। जचकी ले उठे सेवारी ल एकरे सेती पुस्टइ मुनगा खवाय जाथे।छत्तीसगढ़ मा छठ्ठी के दिन मुनगा बरी रांधे के परंपरा हावय।

6. कटहर–कटहर गरमी मा बर बिहाव मा अड़बड़ खायबर मिलथे। कटहर हा आयरन के देवइया फर आय।ऐकर खाय ले लहू बाढ़थे। कटहर पाना के रसा पिये ले अल्सर घलो बने हो जाथेे। सबले जादा फायदा आजकल के परमुख रोग ब्लडप्रेसर मा करथे।

7. जाम (बीही)– बीही लइका सियान सबो के मयारुक फर आय।ऐला गरीब के सेव कहिथे। मलरिया बुखार मा बीही खाय ले बुखार कमती हो जाथे।बीही मा नून मिंझार के खाय ले पेट पीरा माड़थे। बीही के पाना ल पीस के करिया नून मिंझार के चाटे मा फायदा करथे।बवासीर वाला मनखे ल 2–3 सौ ग्राम बीही रोजीना खाय ले अराम मिलही।जेवन करे के पाछू जाम खाय ले पचोय म सहजोग करथे।हाजमा बने राखथे।

8.चिरईजाम– ये गरमी के जाती अउ असाढ़ के निंगती म फरथे।बारो महीना हरियर रहईया रुख आय। ऐकर तासीर ठंडा होथे।मुहुं भीतरी गरमी फूटे म खाय ले माढ़ जाथे। चिरईजाम हाजमा ल बने करथे।भूख बढ़ाथे।आमाजुड़ी (पेचीस) ल बने करथे।चिरईजाम के गुठलू ल पीस के दही संग मिझार के खाय ले पथरी ह फेका जाथे।बाढ़े शक्कर मा ऐकर पाना ल पीस के खाय ले शक्कर कमती हो जाथे। ऐकर छोलटा, पाना, गुठलू तीनो ल सुखाके पिसान असन पीस के खाय ले घलो फायदा मिलथे।

9.पपई(पपीता)–ऐला आरम पपाई घलो कहिथे।पपई कच्चा होय कि पक्का दूनो म खाय जाथे।दवई असन घलो बऊरे जाथे। पिलीया होय मनखे ल पपई खाय मा फायदा होथे।जौन छेवारी (जचकी होय) के थन मा दूध कमती आथे ओला रोजीना पपई खाय ले फायदा होथे।डेंगू नांव के बुखार मा पपई पाना के रसा पिये ले फायदा मिलथे।रतिहा जेवन करे के पाछू पपई खाय ले बिहनिया पखाना साफ होथे।नवा पनही पहिरे पाछू पांव म फोरा परे ले काचा पपई पीस के लगाय ले तुरते अराम मिलथे।

10. केरा–केरा सबले सस्ता,गांव सहर सबो जगा मिलइया फर अऊ गरीब के मिठई आय।अब किसान मन एकर खेती घलो करथे।यहू दवई बुटई बरोबर घलो बउरे जाथे। गैस, कब्ज, खट्टा ढकार ल दुरियाथे।जादा टट्टी (पेचिस) होय मा केरा संग दही मिंझार के खाय ले टठियाथे।आगीबुगी मा जरे पाछू फोरा परे मा पक्का केरा ल पिचक के छाबे ले रगरगई कमती होथे।पक्का केरा अउ आंवरा के रसा मा शक्कर मिंझार के खाय ले घेरीबेरी किसाब (पेशाब)जवई कमती हो जाथे। बिहनिया केरा खाके दुध पिये ले ताकत मिलथे। रतिया जेवन पाछू केरा खाय ले पचे मा सुभीता होथे।

11.अमली–अमली के फर कच्चा मा हरियर अउ अम्मट रहिथे।पाके मा लाल अउ अमसुर मीठ हो जाथे। अमली पाचुक होथे।पेट पीरा,कान पीरा, चक्कर, बुखार उतारे,गैस, कब्ज, सुजन मा अराम, मोटई कमती करे,जादा टट्टी होय ल मढ़ाय के लहू सफई करे के दवई आय।पीलिया बर अमली खाय म फायदा होथे। दारु के निसा उतारे के रामबान दवई आय। लिमउ रसा संग अमली रसा मिझार के पियाय मा दारु के नसा उतर जाथे।अमली के बीजा ले नानम परकार के दवई बनथे

अईसने कइ रिकिम के रुखराई हे जौन ल सियान मन जानथे फेर आज सब पइसा वाला बनगे हावन। अंगरेजी दवई खा के नवा नवा रोगराई लावत हन।अति सबो जगा बरजे जाथे।जिनीस ल दवई बरोबर खाय ले फायदा होथे।असाढ़ अउ बरसात म आनी बानी के रोग राई होथे ,सावचेत रहे बर परही।अड़हा बईद ले सावचेत रहव।

संकलन
हीरालाल गुरूजी “समय”
छुरा, जिला –गरियाबंद







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असाढ़ के आसरा हे

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सूरुज नरायन ला जेठ मा जेवानी चढ़थे। जेठ मा जेवानी ला पाके जँउहर तपथे सूरुज नरायन हा। ताते-तात उछरथे, कोनो ला नइ घेपय ठाढ़े तपथे। रुख-राई के जम्मों पाना-डारा हा लेसा जाथे, चिरई-चिरगुन का मनखे के चेत हरा जाथे। धरती के जम्मों जीव-परानी मन अगास डाहर ला देखत रथें टुकुर-टुकुर अउ सूरज हा मनगरजी मा मनेमन हाँसत रथे मुचुर-मुचुर। सूरुज के आगी ले तन-मन मा भारी परे रथे फोरा,आस लगाय सब करत हें असाढ़ के अगोरा। गरमी के थपरा परे ले सबो के तन मा अमा जाथे अलाली अउ असाढ़ के पहिली दरस मा समाय रथे खुशहाली। इही खुशहाली के अगोरा मा जम्मो परानी अल्लर परे असाढ़ के परघनी करे बर सधाय रथें, कोनो पियासे ता कोनो भूँखे-लाँघन अउ कोनो खखाय रथें। असाढ़ हा अपन संग मा आस अउ बिसवास लाथे, जम्मो परानी मन के आलस अउ निरास ला भगाथे। असाढ़ के अगुवानी हवा, गर्रा, बड़ोरा अउ बुन्दा-बाँदी भरे बादर मन हा जुरियाय के करथें। असाढ़ के परघनी मा बादर हा दमा-दम बाजा बजाथे अउ बिजली चमचम-चम चमकाथे। बादर के हड़बड़ी बाढ़ जाथे, थार-थीर एक जघा बइठ नइ सकय।बिचित्र रंग-रूप बना के एती-तेती सरलग भाग-दउँड़ मा भिड़़ जाथे बादर हा।
सूरुज के घाम ले धरती के जम्मो परानी पाक के कोचराहा परे ला धर लेथें, फेर असाढ़ हा आके एकदम से हबेड़ के उठा देथे। असाढ़ हा सबला नवा जिनगानी देथे। भुँइयाँ घलाव हा जेठ के घाम अउ गरमी मा भुँजाय ला धर लेथे। एहू ला असाढ़ के अगोरा रथे, बादर ले निहोरा रथे। धरती के भीतर जीव लुकाय परानी मन ला घलाव अपन परान बचाय खातिर असाढ़ के अगोरा रथें। असाढ़ के सुवागत बर बर नान्हें-बड़े सरी जीव मन बयाकुल होगे अगोरा मा बइठे रथें। असाढ़ आही ता हमर परान बचाही। असाढ़ के हाथ मा सबके जिनगी के साथ हावय। असाढ़ बिन जिनगी मा हदास अउ निरास के मेकराजाला छाय ला धर लेथे। सबके जिनगी असकटहा अउ गरू लागे ला धर लेथे। असाढ़ ले अमरित बरसा के आस रथे सरी संसार ला। असाढ़ जिनगी मा आस अउ बिसवास के बरदान हरय, धरती मा रहइया जीव मन बर भगवान हरय। बिन असाढ़ जिनगी अबिरथा हे, खइता हे।
असाढ़ जोरदरहा गाजा-बाजा संग खूब चमकत आथे। असाढ़ के परघनी मा कोनो कमी ए धरती के भीतर अउ बाहिर मा रहइया जीव मन नइ करँय। असाढ़ सबके पियास ला ,हदास ला अउ निरास ला मिटाथे। एखर खुशी मा नवा-नवा नान्हें जीव मन के मेला लग जाथे। आनी-बानी के रंग-बिरंगी जीव मन धरती मा पटा जाथे अउ मनमाने मगन होके गाए-बजाए ला धर लेथे। कीरा-मकोरा, बेंगवा-बिच्छी, मेचका-टेटका, साँप-फाँफा, चाँटी-माछी अउ अइसनहे अनगिनती जीव मन पलपला जाथे। असाढ़ के आये ले बिधुन होके नाचे-गाए ला धर लेथें। असाढ़ आए ले जिहाँ खुशी बाढ़ते वइसने बुता-काम घलाव बाढ़़ जाथे। सबो परानी अपन-अपन ठउर-ठिकाना के बेवसथा चउमास बर पोठ अउ ठोसलगहा करे खातिर भिड़ जाथें। मनखे जीव उपर तो सबले जादा परभाव होथे असाढ़ के। खेती-किसानी हा बिन असाढ़ के होना मुसकुल हे। गरमी ले उसनाय अउ अधमरा परे तन-मन ला असाढ़ हा आके नवा परान फूँकथे। असाढ़ के आए ले अल्लर परे, हाथ मा हाथ धरे मनखे मन हा सावचेत हो के तियार होथे। असाढ़ के अगोरा सबले जादा हमर किसान भाई मन ला होथे। असाढ़ के अगुवानी मा किसान मन हा सबले आगू रथें। काबर के सियान मन हा केहें के *डार के चुके बेंदरा अउ असाढ़ के चुके किसान* कोनो काम के नइ रहय। इही पाय के किसान मन हा असाढ़ आय के पहिली अकती तिहार मान के असाढ़ के परघनी मा भिड़े रथें। असाढ़ के आए के खुशी अउ बादर के बदबदई मा किसान हा संसो फिकर मा पर जाथे के असाढ़ अवइया हे अउ मोर काँही बुता हा सिद्ध नइ परे हे। का होही अउ कइसे होही। घर के छानी-परवा मा खपरा लहुटे नइ हे, परछी बर जिझारी बँधाय नइ हे, कोठार-बियारा, बारी-बखरी के परदा मा पलानी चढ़ेच नइ हे, पैरा-भूँसा हा कोठार ले घर धराय नइ हे, खातु-माटी खेत मा पलाय नइ हे, खेत के मुँही-पार बँधाय नइ हे, काँटा-खूँटी बिनाय नइ हे अउ अइसने कतको बुता हा होय नइ हे अउ असाढ़ हा अवइया हावय। बैला-भैसा के जोंड़ी, नाँगर-बख्खर, गैंती, रापा, कुदारी, झँउहाँ, भँदई-अकतरिया, गाड़ी के जुड़ा, खूँटा अइसन सब के हियाव होय ला धर लेथें। ए मन ला सिरजाय ला लग जाथे किसान मन हा। अकरस जोंतई के संसो घलो रथे किसान ला असाढ़ के आगू। फेर चेतलगहा किसान हा अइसन सबो बुता-काम ला आगू ले आगू असाढ़ आए के पहिली पूरा करे मा लग जाथे। धंकिसान बर खेत धान बोंवाई हा असाढ़ मा हर हाल मा हो जाना चाही नहीं ते बोनी पछुवाय ले फसल के उत्पादन मा फरक परथे। जेन किसान ए बुता मा पछुवागे वो किसान बने किसान नइ माने जाय। वइसे तो धान बोंवाई हा असाढ़ के पहिली अकती के दिन हो जाय रथे फेर असाढ़ के अमरित बरसा ले बीजा हा जिनगानी पाथे। एखर सेती सबला असाढ़ के अगोरा रथे।
नाँगर-बइला, भइसा अउ किसान के जोंड़ी हा खेत-खार मा बड़ सुग्घर फभथे। खेती-किसानी हा नाँगर अउ बइला के संगे संग किसान के करम कहिनी कहिथे। बिन जाँगर के जिनगी अबिरथा हे एखर पाठ असाढ़ हा पढ़ाथे हमला। असाढ़ हा इही जाँगर अउ नाँगर के मरम ला अमर करथे। असाढ़ हा सुते जाँगर ला जगाय के एकठन बड़ महान परब हरय। असाढ़ के बिन सबके जिनगानी आधा अधूरा, जुच्छा अउ सुन्ना हावय। अन्नदाता किसान घलाव असाढ़ बिन अधमरा हावय। आसाढ़ के आए ले किसान के संगे संग जन-जन के बुता-काम हा कोरी खइरखा बाढ़ जाथे। असाढ़ ले धरती के सबो परानी मन ला जब्बर आस रथे। रुख-राई, तरिया-नँदिया, कुआँ-बावली, नरवा-नहर, जीव-जन्तु सबो ला असाढ़ मा पानी के आसरा रथे। असाढ़ ले आसरा के संगे संग संसो फिकर घलाव बादर मा छा जाथे। किसान ला जतका खुशी असाढ़ के अगोरा मा रथे वोतके संसो असाढ़ के आए ले हो जाथे। पानी गिरही के नहीं, पानी जादा गिरगे तभो मरन, पानी कमती गिरगे तभो मरन। इही संसो हा किसान के मन मा बादर कस घुमरत रथे। असाढ़ मा कहूँ पानी नइ गिरय तहाँ ले मनखे मन किसिम-किसिम के उदीम करे ला धर लेथें। देबी-देवता ला मनाय बर, बरखा रानी ला बलाय बर, परकीति ले अमरित पाय बर, पूजा-पाठ, जग-हवन अउ भजन-कीरतन मा लगथें। कइसनो करके असाढ़ मा अमरित के धार धरती मा बोहाय अउ जम्मो जीव जगत के परान ला बचाय।असाढ़ मा कहूँ सरीउदीम ले पानी नइ गिरय ता मेचका-मेचकी मन के बर-बिहाव घलाव करे जाथे। बिन पानी के सुन्ना सबके जिनगानी हे। असाढ़ के पहिली बरसा हा अमरित समान सबला नवा जीवन दान देथे। धरती दाई घलाव एखर अगोरा बियाकुल रथे। वइसे हमर भारत भुँइयाँ मा मउसम के दशा ला अटकर लगा के जाने जाथे। किसान घलाव असाढ़ मा बरसात के अटकर लगा के, करजा-बोड़ी करके बीजहा-खातू के बेवसथा जोरदरहा ढ़ंग ले कर डारे रथे। करिया-करिया बादर अउ ओकर गरजाई-घुमराई ला देख के किसान के मन मा आस संचरथे, बिसवास बाढ़ जाथे। जिनगानी के सुग्घर उज्जर आस हरय असाढ़ के करिया-करिया बादर हा, चमचम चमकत बादर के बिजली हा, बादर के बाजत बाजा हा। असाढ़ हे ता आस हे अउ आस हे ता असाढ़ हे।आस मा ये सरी संसार हा चलत हे। आस हा संचरथे ता जिनगी मा जोस भरथे अउ मनखे अचरज भरे काम-बुता ला घलो कर डारथे। बिन आस के जिनगी मुरदा जइसे हो जाथे। आस तो मनखे एक खास गुन हरय जौन वोला जिनगी जीये बर सरलग प्रेरित करत रथे।असाढ़ हा जम्मो जीव ला नवा जिनगानी, नवा जोस अउ नवा उरजा देथे। उछाह अउ उमंग के बरसा करथे असाढ़ हा जिनगी मा। असाढ़ हा करम के पाठ पढ़ाथे अउ एला सुरता घलाव देवाथे। असाढ़ ले हमर जिनगानी मा आस, आसरा अउ आस्था संचरथे जेखर ले हमला जिनगी जीये बर रद्दा मिलथे।असाढ़ बिन ए जिनगी के कुछू मोल नइ हे, असाढ़ एला जीए बर नवा मउका देथे अउ कथे के आस के अँचरा ला कभू झन छोंड़व। आवव असाढ़ के आस अउ बिसवास ले अगुवानी करीन के एसो हमर आस ले आगर हमला पानी दय, सबला जिनगानी दय। असाढ़ के अंतस ले अभिनंदन हे।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड~ भाटापारा
जिला – बलौदा बाजार (छ.ग)
संपर्क~9753322055







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मोला करजा नई सुहावय

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सार गोठ (मोर अंतस के सवाल ये हरे कि करजा नई सुहावय त जनम ले दाई-ददा हमर बर जे करे रथे वो करजा मुड म लदाय रथे तेला काबर नई छुटय? अऊ सिरतोन कबे त करजा करे के कोनो ल साद नई लागय फेर अपन लइका बर, परवार बर, जिनगी के बिपत बेरा म करजा घलो करे ल परथे।)
एक झन नौकरिहा संगवारी हा, अपन दाई ल मोटर म चघइस। ओ सियानिन हा चिरहा झोला ल मोटराये रहय अऊ मोटर म चघेच के बेरा ओकर पोलखर हा झोला ले गिर गे, बिचारी लटपट पोलखर ल उचइस अऊ मोटर म बइठ गिस। मे पुछेंव कहां भेजत हस जी सियानिन ल। ओ कहिस रइपुर भेजत हंव जी। मे फेर पुछेंव ते कहां जावत हस। त कथे “जाय बर तो महू रइपुर जाहूं फेर दाई संग फटफटी में जाय बर नई सुहावय”। मे अऊ कहि पारेंव संग म नई जावस त तोर मन.! फेर ओहा चिरहा झोला ल मोटराय हे जी.! एको ठन संदूक बिसा दे रते। “आज मोर खिसा जुच्छा हे ना, जतका पइसा हे ते सब गनती के हावय अऊ मोला करजा करना, करजा राखना नई सुहावय, जतका सकथंव ततकी खरचा करथंव, करजा करके कोनो बूता नई करंव”। सुन के बड आनंद अइस। अइसने एक झन दुकान वाला हा कहात रहिस के “महू ल करजा करना नई सुहावय, मोर करा ले कोनहो करजा लेगथे तेला सहि जथों फेर मेहा काकरो करा करजा नई करंव”। ओकरो बात बने लागिस।
सिरतोन कहिबे त अब मनखे पढ-लिख डरे हवय त करजा म लदाय ले का होथे तेला जान डरे हे। अऊ अब जम्मों झन करा अपन बुता हल करे बर अब्बड अकन रद्दा घलो बन गे हवय। सरकारी नौकरी नई मिलही तभो ले मिहनत करईया मनखे बर अब बुता-काम के कमी नई हे।
फेर मोर भेजा म सवाल रिहिस कि ये नौकरी कइसे पइस होही ? त मेहा पूछेंव कइसे भाई आज तेहा जे सरकारी नौकरी करत हस तेहा तो लटपट म मिलथे। तेहा कहाँ पढे लिखे कतका मिहनत करे त ये नौकरी ल पाये हस? त ओहा कथे “हव तेहा सिरतोन कहात हस मेहा दिनरात एक करके पढे हंव। पंदरा-सतरा घंटा पढई करे हंव जी..! तब ये नौकरी ल पाये हंव”। मेहा फेर पुछेंव “बने स्कूल म पढे होबे? अऊ सहर म टियुसन कथे तइसन घलो करे होबे? अऊ कापी किताब के खरचा घलो बिक्कट लागिस होही”? वो अपन सांस ल जोर के झिकिस अऊ कथे “झन पुछ रे भाई फारम भरेच म हजारो रुपिया सिरा गिस होही। रहना-खाना, अवइ-जवइ, के खरचा तो उपराहा खरचा हरे। पढई-लिखइ अऊ कापी-किताब मन घलो बड मंहगी मिलथे”। मे कहेंव “फेर सरकार घलो तो बने पढईया ल पढई के खरचा देथे का जी अऊ सुने हंव रेहे, खाय के बेवस्था(हास्टल) घलो करथे”? “ओहा अब्बड नंबर आये रथे ते मन ल मिलथे जी। मेहा तो अपने खरचा म किराय के कुरिया ले के राहत रेहेंव अऊ बासा ले डब्बा में भात मंगवा के खावत रेहेंव उहीच म कतको पइसा सिरागे”। मे कहेंव अच्छा..! त तेहा हुसियार नई रेहे का जी..! ओहा चिढ गे अऊ लडबडा के कथे रेहेंव..जी! फेर मोरो ले अऊ हुसियार रिहिस ते मन ल मिलिस। मोर अंतस के सवाल के जवाब अभी नई मिले रिहिस। मेहा केहेंव तुमन बड पइसा वाला होहू जी..! अतका खरचा करके पढ लिख डरे..! घर म सोन-चांदी के भंडार होही..! तोर ददा मालगुजार होही..! ओ कथे “नई भाई हमर तो चार एकड खेत के छोड अऊ कहिच नई रहिस, अऊ दाई करा घलो कभू गहना-गुट्ठा नई देखे हंव, दाई-ददा खेत कमाय बर जाय, बहिनी हा भात रांधे अऊ मेहा पढई करंव। मोर ले नई रेहे गिस त मेर फेर केहेंव त खरचा बर अतका अकन पइसा कहाँ ले अइस जी। ओकर थोथना ओरम गे अऊ धिरलगहा किहिस ददा कोनहो डाहर ले भिडाय रिहिस हे।
में अऊ कुछु नई केहेंव, फेर मोर अंतस के सबो बात सफ्फा होगे। ओहा अपन ददा के काम-बुता कहीं म संग नई दे रिहिस अऊ ओकर ददा-दाई हा करजा बोडी करके ओला पढाय रिहिस, गहना गुट्ठा ल घलो जमानत राख के पइसा भिडाय रिहिस। अऊ अब येहा साहब बन के टेसी मारत राहय अऊ ते अऊ ओला अपन दाई संग रेगें बर घलो नई सुहावत हे। अइसनहेच कहिनी तो ओ दुकान वाला के घलो रिहिस वहू ल ओकर ददा हा अपन जिनगी भर म दरर-दरर के बनाये खेत मे के आधा खेत ल बेच के दुकान लगा के दे रिहिस, अऊ दुकान बर बैंक ले करजा निकारे के बेरा म बाचे खेत ल जमानत धरे हावय। अब दुकान बने चलत हवय अऊ बने पइसा घलो कमावत हवय। अब तो ओ मन हा कहिबेच करही “मोला करजा नई सुहावय”। हव रे भई, तुंहरे सुग्घर जिनगी बर तुंहर दाई-ददा करजा म लदाय हवय अऊ हमर देस हा घलो बिदेसी करजा म लदाय हवय। अब तुही मन ल करजा नई सुहावय अऊ तुमन सोचत होहू कि तुंहर दाई-ददा अऊ देस ल तो साद लागे हवय..? फेर मोर अंतस के सवाल ये हरे कि करजा नई सुहावय त जनम ले दाई-ददा हमर बर जे करे रथे वो करजा मुड म लदाय रथे तेला काबर नई छुटय? अऊ सिरतोन कबे त करजा करे के कोनो ल साद नई लागय फेर अपन लइका बर, परवार बर, जिनगी के बिपत बेरा म करजा घलो करे ल परथे।
करजा घलो कई किसम के होथे। चीज-बस जमीन-जइदाद के करजा ल मनखे हा भारी करजा समझथे, अपन ल बडे बताय बर अपने आप ल धोखा म राखथे। फेर सिरतोन म देखबे त दाई-ददा, परवार, समाज, देस के करजा ल लादे बइठे रथे। जे दाई-ददा अऊ समाज हा अपन खून-पछीना बोहा के ओला आघू बढाय रथे, आघू बढे के बाद उही मनखे अपन दाई-ददा, समाज अऊ देस ल निच्चट समझथे अऊ आज कली तो बिरोध म गोठियात घलो दिखथे। पहिली लोगन हा बने पढई-लिखई ये पाय के करवाय कि ओहा पढ लिख के अपन दाई-ददा के बने सेवा-जतन कर सकही अऊ पइसा कमा के समाज अऊ देस ल आघू बढाय के उदीम कर सकही। फेर आज पढई अऊ पइसा ल मनखे अपन टेसी जताय के साधन बना ले हवय। अऊ अब तो उही मन जइसे कहि तइसे माने बर परही काबर कि अब पढे लिखे अऊ पइसा वाला मनखे के बिचार ल अडहा अऊ गरीब मनखे कइसे काट सकबे।

ललित साहू “जख्मी”
छुरा, जिला – गरियाबंद (छ.ग.)
मो.नं.- 9993841525

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प्रकृति के पयलगी पखार लन

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आवव,
परकीति के पयलगी पखार लन।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।
परकीति के पयलगी पखार लन।।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।।।

रुख-राई फूल-फल देथे,
सुख-सांति सकल सहेजे।
सरी संसार सवारथ के,,
परमारथ असल देथे।।
धरती के दुलरवा ला दुलार लन।
जीयत जागत जतन जोहार लन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।1

रुख-राई संग संगवारी,
जग बर बङ उपकारी।
अन-जल के भंडार भरै,
बसंदर के बने अटारी।।
मत कभु टँगिया,आरी,कटार बन।
घर कुरिया ल कखरो उजार झन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।2

रुख-राई ला देख बादर,
बरसथे उछला आगर।
बिन जल जग जल जाही,
देवधामी जस हे आदर।।
संरक्छन के सुग्घर संसार दन।
परियावरन के तैं रखवार बन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।3

रुख-राई ला बचाव संगी,
पेड़ परिहा बनाव संगी।
चिहुर चिरई चिरगुन,
सिरतोन सिरजाव संगी।।
बिनास ला बेवहार मा उतार झन।
पर हित ‘अमित’ पालनहार बन।।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।।4
परकीति के पयलगी पखार लन।।।।

कन्हैया साहू “अमित”
परशुराम वार्ड, भाटापारा
जिला बलौदाबाजार (छग)
पिनकोड 493118
संपर्क 9753322055
WAP 9200252055
लगाव रुख कमाव सुख







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