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माटी के दीया जलावव : सुघ्घर देवारी मनावव

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देवारी के नाम लेते साठ मन में एक परकार से खुसी अऊ उमंग छा जाथे। काबर देवारी तिहार खुसी मनाय के तिहार हरे।
देवारी तिहार ल कातिक महीना के अमावस्या के दिन मनाय जाथे। फेर एकर तइयारी ह 15 दिन पहिली ले सुरु हो जाथे। दशहरा मनाथे ताहन देवारी के तइयारी करे लागथे।
घर के साफ सफाई – देवारी के पहिली सब आदमी मन अपन अपन घर, दुकान बियारा, खलिहान के साफ सफाई में लग जाथे। घर ल सुघ्घर लीप पोत के चकाचक कर डारथे। बारो महिना में जो कबाड़ सकलाय रहिथे वो सब साफ हो जाथे। घर के खिडखी दरवाजा मन ल भी साफ करके पालीस लगाके चमकाय जाथे।

छबाई – पोताई – आज भी गांव में घर के चंउरा मन ओदर जाय रहिथे वोला माटी में छाब के बढिया बनाय जाथे अउ साथे साथ घर कोठार के जतका माटी वाला कोठ ओदरे रहिथे वोला छाब के सुधारे जाथे।
किसान मन ह अपन बियारा ल रापा में छोल छुली के साफ करथे अऊ भांडी ल ऊंचा उठाके ओकर उपर कांटा लगाके छेका करथे। ताकि कोनो आदमी या जानवर झन खुसर सके।

माटी के दीया – देवारी तिहार में माटी के दीया जलाय जाथे। कुमहार मन ह माटी के दीया बनाथे अऊ वोला बजार में जाके बेंचथे। माटी के दीया जलाय से घर में लछमी के आगमन होथे अइसे माने जाथे ।



देवारी काबर मनाथे – देवारी मनाय के पीछे भी एक कारन हे कि भगवान श्री राम चन्द्र जी ह इही दिन चौदह बरस के बनवास ल काट के अयोध्या वापिस आइस हे । ओकर खुसी में पूरा अयोध्या वासी मन ह दीया जलाके सुवागत करे रहिसे। वो दिन अमावस्या के घोर अंधियारी रात ल दीया जला के जगमग अंजोर कर दीस । तब से दीपावली या देवारी तिहार ल मनात चले आत हे।

धनतेरस – देवारी के दू दिन पहिली धनतेरस के तिहार मनाये जाथे । धनतेरस के दिन बजार में खूब भीड़ भाड़ रहिथे । सब आदमी मन ह बरतन अउ सोना चांदी खरीदथे । ये दिन ए सबला खरीदना शुभ माने जाथे। सांझ के समय घर में तेरह दीया जला के पूजा करे जाथे ।

नरक चौदस – धनतेरस के दूसर दिन नरक चौदस के तिहार मनाय जाथे । एला छोटे देवारी भी कहे जाथे ।नरक चौदस के दिन बिहनिया ले उठ के स्नान करना सुभ माने जाथे । ए दिन सब आदमी मन ह अपन अपन पसंद के अनुसार मिठाई खरीदथे । खील बतासा के मिठाई ह परसिद्ध हे। गनेस लछमी के फोटू खरीदथे। लइका मन बर कपड़ा अउ फटाका खरीदें जाथे।

दीपावली – देवारी के दिन तो लइका मन ह बिहनिया ले फटाका फोरे के सुरु कर देथे। सांझ के समय मुहुरुत देख के लछमी माता के पूजा अऊ आरती करे जाथे। पूजा करे के बाद पारा परोस में परसाद बांटे जाथे अऊ एक दूसर ल दीपावली के शुभकामना दे जाथे। लइका मन ह खूब फटाका फोरथे। फटाका फोरे में लइका मन ल बहुत मजा आथे। लइका मन के साथे साथ बड़े मन भी फटाका फोरथे अऊ मजा लेथे।

जुंवा खेले के परंपरा – लछमी पूजा करे के बाद जुंवा खेले के गंदा परंपरा हे। ए दिन छोटे बड़े सब आदमी मन जुंवा खेलथे। सियान मन कहिथे कि ए दिन जे जुंवा नइ खेलही वोहा अगले जनम में छुछु बन जाही।
जुंवा खेल के कतको आदमी बरबाद घलो हो जाथे। ए परंपरा ल दूर करना जरुरी हे।

गोवर्धन पूजा – देवारी के दूसर दिन गोवर्धन पूजा करे जाथे। ए दिन गाय बैला के पूजा करे जाथे अऊ खिचरी खवाय जाथे। इही दिन भगवान श्री कृष्ण ह गोवर्धन परवत ल उठा के सबके रक्षा करे रहिसे। ओकरे याद में ए तिहार ल मनाय जाथे।

भाईदूज – एकर बाद भाईदूज के तिहार मनाय जाथे। जेमे बहिनी मन अपन भाई के पूजा करथे अऊ मिठाई खवाथे। ओकर बदला में भाई ह अपन बहिनी ल उपहार भी देथे ।
ए परकार से देवारी तिहार ल सब कोई मिलजुल के उतसाह पूरवक मनाथे। ओकर बाद किसान मन ह अपन खेती किसानी के काम में लग जाथे ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम छ. ग)
8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com



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सुरहुत्ती तिहार

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हमर हिन्दू समाज मा तिहार बहार हा सबके जिनगी मा बड़ महत्तम रखथे। पुरखा के बनाय रीति रिवाज अउ परम्परा हा आज तिहार के रुप रंग मा हमर संग हावय। अइसने एकठन तिहार हे जौन हा हिन्दू समाज मा अब्बड़ महत्तम के हावय जेला धनतेरस के तिहार कहीथन। हमर हिन्दू मन के सबले बड़े तिहार देवारी के दू दिन पहिली मनाय जाथे धनतेरस के तिहार जेला सुरहुत्ती घलाव कहे जाथे। ए सुरहुत्ती तिहार जौन हा धनतेरस के नाँव ले जग प्रसिद्ध हे एखर पाछू अलग-अलग मानियता हे।
देवता अउ दानव मन के समुंदर के मथे ले जइसे लछमी देवी निकले रहीस हे ठीक वइसने जग के सबले बड़े बइद भगवान धनंवतरी हा घलाव इही दिन समुंदर ले निकले रहीन। धनवंतरी हा समुंदर ले अपन हाथ मा अमरित कलश धरके अवतरित होय रहीन। देवी लछमी हा धन के देवी हे फेर लछमी के किरपा पाय बर हमन ला स्वस्थ अउ लंबा उमर घलाव चाही। धन ले बड़े सुग्घर स्वस्थ तन के देवइया महाबइद धनवंतरी हा हरय। एखरे सेती धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी के पूजा अराधना करे ले निरोग होय के वरदान मिलथे।
कारतिक महीना के अंधियारी पाख के तेरा दिन मा भगवान धनवंतरी के जनम हा होय रहीस तेखर सेती ए दिन ला धनतेरस के नाँव ले जाने जाथे। धनवंतरी हा जब समुंदर ले अवतरे रहीस ता उँखर हाथ मा अमरित ले भरे कलश रहीस हे। धनवंतरी हाथ मा कलश धरे प्रगट होय रहीस एखर सेती ए दिन बरतन खरीदे के मानियता हे। लोक मानियता के हिसाब ले धनतेरस के दिन कुछू बरतन या धन खरीदे ले वोमा तेरा गुना बाढ़ होथे। कहूँ-कहूँ धनतेरस के दिन धनिया के बीजा ला बिसा के घर मा राखथे अउ देवारी मनाय के बाद मा अपन खेत-खार मा बोथें। धनतेरस के दिन चाँदी बिसाय के घलो सुग्घर परथा हावय। जौन चाँदी नइ बिसाय सकँय तौन मन हा काँहीं बरतन बिसा सकथें। अइसन एखर सेती के चाँदी हा चंदा के प्रतीक हरय जौन हा शीतलता प्रदान करथे अउ मन मा संतोष धन के वास लाथे। संतोष धन ला संसार के सबले बड़े धन होथे, जेखर तीर मा संतोष हे वो हा स्वस्थ हे, सुखी हे। ए वरदान सबले बड़े धन वाला भगवान धनवंतरी के पूजा-अरचना करके माँगे जाथे। धनतेरस के दिन पूजा पाठ करे बर नवा बरतन बिसाथें।.इही दिन बैपारी मन घलाव अपन नवा बही खाता के सुरुवात पूजा-पाठ करके करथे।
सुरहुत्ती के दिन संझा बेरा मा घर के बाहर सिंग दरवाजा मा अउ अँगना मा दीया बारे के परथा हावय। ए परथा के पाछू मा एकठन लोक कथा प्रचलित हावय। ए कथा के हिसाब ले कोन्हो प्रीचीन समय मा हेम नाँव के राजा रहीस। देवता मन के आसीरबाद ले राजा के घर बड़ दिन मा एक झन बेटा पइदा होइस। राजा अपन लइका के कुण्डली बनवाइच ता जान डारीस के जौन दिन लइका के बिहाव होही ओखर चार दिन पाछू लइका के मउत हो जाही। ए बात ला जान के राजा हा बड़ दुखी होइच अउ अपन बेटा ला अइसन जगा भेज दीस जिहाँ कोनो नारी परानी के छँइहाँ घलाव झन परय। देव किरपा ले एक दिन दुसर राज के एक राजकुमारी उही जगा ले गीस ता दुनो झन एक दुसर उपर मोहागे अउ तुरते गंधर्व बिहाव कर डारीन। फेर बिहाव के पाछू बिधि के बिधान हा आगू मा आगे। बिहाव के चार दिन पाछू राजकुमार के परान ला हरे बर यमदूत हा आगीस। जउन बेरा मा यमदूत मन राजकुमार के परान ले बर जावत रहीन उही बेरा मा राजकुमार के सुवारी के छाती पीट-पीट के रोवई ला देखीन ता उँखर हिरदे हा दुख ले भरगे। बिधि के बिधान ला दुख भरे मन ले यमदूत मन हा पूरा करीन। यमदूत मन यम देवता यमराज ले राजकुमार जइसन कोनो भी ला अकाल मउत ला बाँचे के कोनो उपाय पूछीस। ता यमराज हा एकठन उपाय के रुप मा बताइस के कारतिक महीना के अंधियारी पाख के तेरा दिन के रतिहा यमराज के नाँव ले पूजा-पाठ करके एकठन दीया दक्षिण दिशा मा बारही ता वोला अकाल मउत के डर-भय नइ राहय। एखर सेती धनतेरस के दिन लोगन मन हा घर के बाहिर दक्षिण दिशा मा दीया बार के राखथें। ए मानियता ले धनतेरस के रतिहा (संझा) अपन अँगना मा यम देवता यमराज के नाँव मा दीया बार के अउ कतको झन मा यमराज के नाँव ले के उपास घलाव रहीथें।




धनवंतरी भगवान हा विष्णुजी के अंश अवतार घलाव हरय। धनवंतरी हा देवता मन के बइद अउ डाक्टर रहीन। एखरे सेती हमर देशभर के डाक्टर अउ बइद मन बर धनतेरस के दिन हा बड़ महत्तम राखथे। लोगन मन हा घलो धनतेरस के दिन तेरा ठन दीया अपन अँगना मा बार के भगवान धनवंतरी के पूजा-अरचना करथे अउ सुग्घर सेहत के वरदान माँगथें। धनतेरस के दिन धनवंतरी के संगे संग धन के देवता कुबेर अउ धन के देवी लछमी के घलाव पूजा-पाठ करे जाथे। अइसन करे ले मनखे के जिनगी मा कभू धन-दोगानी के कमी नइ होवय। धनतेरस के दिन बजार ले कुछू ना कुछू जीनिस खरीदे के परथा हावय, बिसेस करके बरतन अउ गहना के खरीदी ला शुभ माने गे हे। पीतल के बरतन खरीदी ला जादा शुभ माने जाथे। चाँदी के बरतन या फेर गनेश लछमी छपे चाँदी के सिक्का घलाव धनतेरस के दिन खरीदना चाही। चाँदी के जगा मा कोनो भी नवा जीनिस ए दिन खरीदना शुभ माने जाथे। ए प्रकार ले धनतेरस के तिहार हा हमर हिन्दू समाज मा वैभव, खुशी, अउ उछाह के तिहार के रुप मा इस्थापित हावय।
धनतेरस के दिन घर अँगना के सजावट हा सुरु हो जाथे। देवारी के दीया धनतेरस के दिन ले बरे के सुरु हो जाथे। एक प्रकार ले देवारी तिहार के सुरुवात हो जाथे एखर सेती धनतेरस के नाँव सुरहुत्ती घलाव हावय। धनतेरस हा देवारी के दुवारी आय। हमर देश मा सबो जात समाज मा सबले जादा उछाह अउ उमंग के तिहार देवारी हा कहाथे अउ ए देवारी के श्रीगणेश सुरुहुत्ती ले सुरु हो जाथे। घर-अँगना, दुवार के साफ-सफाई, लीप बहार के, चउँक पुर के रंगोली पार के फूल माला, तोरन, नरियर, गुलाल, बताशा, लाई ला थारी मा सजा के संझा के बेरा अँगना मा रिगबिग दीया बार के धनतेरस के तिहार मनाय जाथे। धनतेरस के दिन कोन्हो हा कोन्हो ला अपन काँहीं जीनिस ला मंगनी मा उधार नइ देवँय। ए दिन हा धन-दोगानी घर मा आय के सबले सुग्घर सरेस्ठ दिन हरय। ओरी ओर चारो खूँट रिगबिग रिगबिग माटी के दीया ए तिहार मा सोन संग सोहागा कस लागथे। घर-अँगना, दुवारी, कोठी-डोली, बारी-बियारा, खेत-खार कुआँ-बावली, नदिया-तरिया, मंदिर-देवाला, गौशाला-धर्मशाला अउ जम्मो जगा दीया के अँजोर मा चुकचुक ले दिखथे। ए तिहार हा सरी मनखे के जिनगी मा खुशी अउ उछाह के अँजोर बगराथे। धन ले जादा तन के सुग्घर समरिद्धी बर जप तप के परब ए सुरहुत्ती तिहार हा हरय। तन के सुघरई अउ सुवास्थ खातिर अपन तीर तखार के सफई, कचरा, जाला के सफई ए तिहार हा सबला सिखोथे। बिन साफ सफाई कखरो नइ हे भलाई। सिरतोन मा तिहार के आनंद लेना हे ता तन ले जादा मन के मइल ला सफई करना चाही। तिहार पोगरी खुशी के नाँव नो हे ए जुरमिल के मिलबाँट के मनाय मा जादा सार्थक हे। तिहार हा हमला करम करे सीख देथे आलस ला तियाग करे ला कथे। जौन हा ए करम सोलाआना करही तेखर जिनगी मा रोजेच तिहार होही।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9753322055



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दीया अउ जिनगी

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अँजोर के चिन्हारी दीया हा हरय। बिन दीया के अंधियारी ला हराना बड़ मुसकुल बुता हे। अंधियारी हे ता दीया हे अउ दीया हे ता अँजोर हे। अंधियारी हा जब संझा के बेरा होथे ता अपन पसरा ला धीरे-धीरे पसराथे अउ जन मन ला अपन करिया रंग मा बोरथे। जभे अंधियारी हा जन मन ला मुसकुल मा डारथे तभे सबला दीया के सुरता आथे, दीया बारे के सुरता आथे। दीया हा जर-जर के अंधियारी ला खेदथे अउ अँजोर ला बगराथे। अँजोर बगरथे, बिहनिया होथे ता जम्मो झन मन हा दीया ला भूला जाथे। फेर एखर ले जादा दीया ला दुसर के दुख पीरा ला हरे मा जादा खुशी मिलथे। अइसने मनखे ला कखरो मुसकुल ला हरे मा जादा खुशी होना चाही।
मैं हा एक ठन नान्हें दीया ला रोज संझौती बेरा तुलसी चौरा मा बरत आँखी भर देखँव। वो नान्हें दीया के तेल हा धीरे-धीरे सिरावत जाय अउ दीया मा लगे बाती हा धीरे-धीरे जर-जर के घपटे अंधियारी ला भगावत जाय।अँजोर खातिर दीया के बलिदान ला रोजेच देखँव। फेर एक दिन मैं हा वो नान्हें दीया ले पूछ पारेंव के तैं हा अपन जिनगी भर पर बर अँजोर बगराथच, पर ला रद्दा देखाथच, ए तोर जिनगी हा परहित मा सिरा जाथे फेर तोला का मिलथे? तोला का कोनो मान-गउन, सहीं ठिकाना मिलथे? तेल सिरागे बाती बरगे तहाँ ले तोला कोन पुछथे? नान्हें दीया हा अपन गुरतुर भाखा मा मोला कहीच- सुन संगी रे ए लोक मा जौन जनम धरे हावय ओखर मिरित्यु घलाव अटल हावय। हमन मिरित्यु ला काँहीं उदिम कर लीन फेर टारे नइ टरय। फेर मरे के पहिली एक ठन बुता खच्चित कर सकथन के अपन जिनगी ला पर बर खुआर कर दीन। परहित मा अपन सरी खुशी ला तियाग दीन। इही करम मा जादा खुशी हावय। इही मा जिनगी के सार हे अउ नइ ते सरी जिनगी बेकार हे। नान्हें दीया हा बिदा होय के पहिली एकेच ठन गोठ ला गोठियाइच के ए जिनगी के असल धरम करम खुद ला खुआर करके अंधियार ला खेदे मा हे। अपन आप ला जरो के पर पीरा ला हरे मा जादा सुख अउ शाँति हे।
दीया के सवाँगा अउ सिंगार अंधियारी हा आय। जतके जादा अंधियार दीया मा वोतके जादा उछाह अउ जोस संचरथे। अंधियार बिन दीया के अँजोर हा अबिरथा हावय। दीया के जनम करम अउ धरम अँजोर हा आय। दीया के अपनेच उपजाये दीया के अँजोर हा होथे। दीया हा बरथे तभे अँजोर हा बगरथे अउ अंधियार हा अपन मुँहू ला करिया करके भागथे। दीया के बाती के बरत लउ हा सरग डहर उपरेच उठथे। जीयत भर आगू डहर बढ़थे अउ बरथे। हारे ला नइ जानय कभू पाछू नइ घूँचय। जर के अँजोर हा दुख के करिया अंधियार ला जीत के खुशी के देवारी बनाथे।




देवारी ला हमर जिनगी मा रोजेच मना सकथन। परपीरा ला हिरदे के दीया मा तेल बरोबर समो के मया के बाती ला बार के जब-जब अँजोर करबो तब-तब असल देवारी होही। दीया हा बाती बिन अधूरा हावय। बाती हा तेल बिन अउ तेल हा माटी के नान्हें-नान्हें अकार बिन अधूरा हावय। बाती हा पोनी ले बनथे। पोनी हा सादा अउ उज्जर होथे। सादा अउ उज्जर रंग हा सद्गुन अउ सदाचार के रुप हरय। पोनी ला बिसेस बल देके बाती बरे जाथे। हमर जिनगी मा घलाव सद्गुन अउ सदाचार के बल ले बिसेस अकार मिलथे। इही अकार हा जम्मों सफलता बर खच्चित होथे हमर जिनगी मा। तेल बिन बाती अधूरा हावय। तेल हा तरल अउ सरल होथे। तेल हा जम्मों अकार मा अपन आप ला समो लेथे,ढाल लेथे। कोन्हों ले तेल हा अपन अस्तित्व बर झगरा लड़ई नइ करय जइसने मा तइसने ढल जाथे। तेल कस हमरो जिनगी मा स्वयं ला वातावरण के हिसाब मा ढाले के गुन होना चाही। वातावरण मा ढलना, घुलना अउ मिलना हा सफलता के.चिन्हारी हरय। तेल तरल अउ सरल होथे, तेल मया कस होथे। मया मा बैरी घलो संगवारी बन जाथे। मया हा जिनगी के सार होथे। मया बिन जिनगी जुच्छा हावय अबिरथा हावय।
माटी के दीया हा तेल ला अपन कोरा मा समा लेथे। दीया हा कोंवर होथे जौन ला कुम्हार भाई मन हा गढ़थे। माटी कस कोंवर हमर जिनगी घलो हा होना चाही। माटी के दीया , तेल अउ बाती के मेल जोल ले अँजोर के जनम होथे जौन हा अंधियार ला हरथे अउ जिनगी मा चारों खुँट अँजोर भरथे। अइसनहे हमर जिनगी मा सफलता के रगरग झम्मक ले अँजोर लाय बर मया , कोंवर भाव अउ सदचार के दीया अंतस मा रोजेच बारे ला परही।
दीया बिन देवारी नइ होवय अउ देवारी बिन जिनगी मा खुशी के अँजोर नइ होवय। ए देवारी के दीया मा समाय जम्मों नियम-धरम हा हमर जिनगी मा घलो समाय हावय।दीया हा हमला जिनगी जीये के सुग्घर रंग ढ़ंग ला सीखोथे। जिनगी ला पर बर परहित मा जीये ला , जिनगी मा सदा आगू बढ़हे ला दीया हा बताथे। सतगुन अउ सदाचार के संगे संग मया अउ कोंवर भाव ला जिनगी मा समोय बर सीखोथे। दीया हा हमन ला जिनगी के दुख पीरा ले लड़ के आगू बढ़हे के प्रेरना देथे।
दीया बाती अउ तेल हा हमन ला अपन जिनगी मा लक्छय, लगन अउ इच्छसक्ति के पाठ ला पढ़ाथे। जौन हा दीया के संदेश ला समझगे ओखर जिनगी मा रोजेच देवारी हे। दीया अकेल्ला अंधियारी त्र नइ हरा सकय भगा सकय। दीया कै संग मा बाती अउ तेल हा जभे संघरथे तभेच दीया ले अँजोर के पीका फुटथे। इही दीया के अँजोर हा अंधियार के गढ़ ला जीतथे। अइसने हमर जिनगी घलो मा असफलता अउ निराशा के अंधियार ले सदाचार के बाती मया के तेल अउ वातावरण के रंग मा रंगे बर कच्चा माटी कस कोंवर भाव हा आही तभे हमन जिनगी मा सबो सफलता ला पाबो। जौन अपन जिनगी मा सफल हे फेर तो ओखर रोजेच देवारी तिहार हे।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9753322055



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देवारी तिहार संग स्वच्छता तिहार

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आप सबो झन जानथव हमर छत्तीसगढ़ मा बारो महिना तिहार होथय।संगे संग उपास धास, नवरात्रि, गनेस आनी बानी के उछाह। फेर देवारी तिहार के महत्तम अलगेच हावय।कातिक महिना के तेरस ले सुरु होके पांच दिन तक मनाय जाथे।कहे जाथे देवारी तिहार ह भगवान राम के सीता संग अजोध्या लहुटे के खुसी मा मनाय जाथे। छत्तीसगढ़ कौसिल्या माता के मइके अउ रामजी के ममागांव आय।तेकर सेती इहां जादा उछाह ले मनाथे।अइसे देवारी तिहार पांच दिन के कहिथे।फेर एकर तियारी 15 दिन पहिली सुरु हो जाथे। कहे जाथे लछमी माता ह दरिद्र घर अउ गंदा जगा मा नइ जाय। एकरे सेती सबो घर मा देवारी के पहिली अरोस परोस के बन बक्खर ल चतवारथे। घर के ओन्हा कोन्हा (ओन्टा कोन्टा) ल साफ सफई करथे अउ लिपथे पोतथे।जुन्ना पुराना टूटे फूटे जिनीस , बिगड़हा उपरहा जिनिस, सब के सफई देवारी मा होथे। स्वच्छता अउ देवारी के नत्ता सुघ्घर हे।जब तक अरोस परोस, घर कुरिया के साफ सफई नइ होही तब तक तिहार के उछाह नइ होय।बड़हर होय कि गरीब सब अपन सक्ति उपर भक्ति करथे। स्वच्छता मा सिरिफ घरेच सफई नइ रहय। ओढ़े जठाय के कथरी गोदरी, परदा ,सजावटी जिनिस , दीवान आलमारी, सोफा टेबल सब के साफ सफई करे जाथे।स्वच्छता अतकी मा नइ रुकय।देवारी तिहार बर लछमी पूजा के दिन नवा कपड़ा पहिर के पूजा करे के उदिम करे जाथे।जौन नवा कपड़ा नइ बिसार सकय ओमन अपन जुन्ना कपड़ा ल उजरा के पहिर के पूजा करथे।पांच दिन ले अंगना ल गोबर मा लीपे के उदीम करथे। जौन जगा मेर पूजा करे जाथे ओ जगा के स्वच्छता के जादा धियान रखे जाथे।अइसनेच पूजा मा लगइया जिनीस, मिठई, फर, खाय पिये के जिनिस, दूध दही , के स्वच्छता के धियान रखेबर परथे।कुल मिलाके देवारी तिहार स्वच्छता के तिहार आय। फेर आज के पढ़े लिखे मनखे अउ परिवार कहाने वाला मन चाहे वो पइसा वाला होय कि नउकरिहा, तिहार मा साफ सफई ल पइसा खर्चा बताथे। तीन चार बच्छर मा एक घांव लिपई पोतई कराथे अउ कहात रथे हमर उपर लछमी माता के किरपा नइ होवत हे।घर के अंगना अब कंक्रीट अउ टाइल्सवाला हो गे हावय।गोबर मा लिपे के जरुरत नइ परय। सबले जादा पढ़े लिखे पीढ़ी मन एला मानय नहीं अउ साल भर लछमी बर रोवत रथे।बड़े बड़े अस्पताल, इस्कूल, मंदिर देवाला जिहां स्वच्छता उपर जादा धियान देय जाथे एकर सबले बड़का परमान आय।जौन परिवार अपन घर ल देवारीच तिहार मा ही नहीं सबर दिन स्वच्छ राखही ओकर घर मा लछमी माता के किरपा जरुर बरसही।स्वचछता अपनाव देवारी मनाव किरपा पावव।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला- गरियाबंद



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सुरता तोर आथे

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पहाति बिहानिया हो चाहे,
संझाति बेरा के बुड़त संझा हो!
काम बुता म मन नी लागे,
भईगे सुरता तोर आथे!
का करवं तोर बिन,
ऐको कन मन नई लागे!
हर घड़ी बेरा कुबेरा,
सुसक सुसक्के रोवाथे!
बईहा पगला दीवाना होगेवं,
मया म तोर मयारु!
अब तो अईसे लागथे,
तोर बिन कईसे रहि पांहु!
जिनगी जिए जियत मरत ले,
किरिया तोला खवाहुं!
मया के जिनगी रहत ले,
अपन सजनी तोला बनाहुं!!

✒मयारुक छत्तीसगढ़िया
सोनु नेताम”माया”
रुद्री नवागांव धमतरी

मया तोला करथवं
तोर नांव के गोंदना गोंदाऐवं
मोर मया के चिंन्हारी बर
अब्बड़ मया तोला करथंव
मया पिरित के फुलवारी बर
कभु मोर ले तैंय
गोठिया बतरा ले कर
मिले के बहाना
फुलवारी म आंय कर
कमल फुल कस हमर मया
फुलत रहय मया के तरिया म
रद्दा बाट जोहत रहिथवं
आमा बगीचा के बगिया म!!

मयारुक छत्तीसगढ़िया
सोनु नेताम माया
रूद्री नवागांव धमतरी



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खेत के धान ह पाक गे

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दुख के बादर ह भाग गे ,खेत के धान ह पाक गे
देख किस्मत ह जाग गे ,जतनाए रखवारी राख के!

भागिस कुंवार कातिक आगे हमागे जड़काला
हरियर लुगरा पिंवर होगे,सोनहा सोनहा माला
बने फूलिस बने फरिस बोये बिजहा मांग के
दुख के बादर……..,

जोरा करले तै पानी पसिया के जोर ले संगी साथी
करमा ददरिया झड़त झड़त ,टेंवाले हंसिया दांती
बिताए दिन चौमासा लई मुर्रा ल फांक के,
दुख के बादर………,

चरर चरर हंसिया चले ओरी ओरी करपा
भरर भईया कोकड़ा भागे मुसवा जोरफा जोरफा
बिला म कंसी गोंजाये मुसवा डोहारे चाब के
दुख के बादर………,

तोर पछिना धरती म गिरके बनगे भईया अमरीत
जिंहा जिंहा तोर पांव धराये ,माटी होगे पबरीत
ए भूंईया के तिही गिरोंडी मुड़ी म शेषनाग के
दुख के बादर ……..!!!

ललित नागेश
बहेराभांठा (छुरा)
lalitnagesh83 @ gmail.com



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चाइना माडल होवत देवारी तिहार

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हमर छत्तीसगढ़ मा सबो देबी देवता मन ल मान गउन मिलथे।एकरे सेती नानम परकार के तिहार हमन बारो महिना मनाथन।सुवागत से लेके बिदई तक, खुसी, देबी देवता के जनम, बिहाव,खेती किसानी के तिहार मनाथन।अइसने पांच दिन के तिहार आय देवारी जौन ल दीपावली कहिथे।एला कातिक महिना मा मनातन।ये तिहार मा जनम देवइया , पालन पोसन करइया अउ मरइया यम के घलो पूजा करथन। धन तेरस के दिन ले सुरु तिहार मा धनवन्तरी भगवान जौन अमृत बरोबर दवई बुटई देय हावय ओकर पूजा करथन।दूसर दिन यम देवता के पूजा करे जाथे। तीसर दिन धन के देबी माता लछ्मी के पूजा करथन संग मा अउ सबो देबी देवता ल बलाथन अउ पूजा करथन।पाछू ईसर देव अउ गउरी के बिहाव संग बरतिया निकलथे। चंउथा दिन किसन भगवान , गोबर्धन भगवान के संग गउ माता के पूजा करथन। पांचवा दिन राजा बलि अउ लछमी के भाई-बहिनी के पबरित नत्ता के पूजा होथय।

छत्तीसगढ़ तो कौसिल्या के मइके अउ राम के ममा गांव आय, एकरे सेती देवारी तिहार ल इहां जादा उछाह ले मनाथे।अइसे देवारी तिहार ल सबो जात मन मनाथे। गरीब अउ बड़हर सन्गे हो जाथे।चरवाहा अउ ठाकुर दूनो एक जगा सकलाथे।राउत निकाले बर ठाकुर मन जाथे पाछू राउत मन ठाकुर जोहारेबर जाथे। छोटे बड़े के नत्ता मेटा जाथे। राउत के हाथ ले ठाकुर अपन माईकोठी मा हाथा देवाथे।सब दिन राउत ह ठाकुर के आसीस पाथे फेर देवारी के दिन ठाकुर ल असीस देथे।छत्तीसगढ़िया मन देवारी मा साफ सफईके संग नवा दिया चुकी करसा, कपड़ा लत्ता, फटाका अउ खवई पियइ इही मन परमुख खरचा करथे।




फेर आज हमर छत्तीसगढ़ के तीज तिहार ह चाइना माडल हो गे हावय। घर ल पोताय बर रंग बिरंग के चूना, पालिस, चूना मा मिला के लिपे के रंग सब चाइना होगे।घर ल सजाय बर नानम परकार के बिजली के बुगबुगी बलब, रंगोली, दिया , मोमबत्ती यहू चाइना माडल हो गे। बाती बरे, तेल डारे के झंझट ले मुक्ति।कपड़ा लत्ता तो फैंसी नाम के माडल मा चलत हे,ओहा जापान, रुस , चाइना कहां के आय नइ आकब होय।पूजापाठ के जिनीस पाकिट या मिलत हे, कब के बसियाहा, किरापरे वाला रथे वहू ल नइ जानन।दिया चुकी से लेके, जुगुल बुगुर बरत बिजली सबो चाइना माडल हे। देवारी तिहार बिन फटाका के गोठ पूरा नइ होय। फटाका के बेपारी मन पूरा बजार ल चाइना फटाका बजार मा बदल देथे।एकर परभाव काय परथे एला आप सब जानत हव।

अइसे तो छत्तीसगढ़ के चीन के संग जुन्ना नत्ता हे। बेपारी मन इहां के जिनीस ल चीन मा बेचय।छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति के सोर चीन तक मा होवय।हमर इतिहासकार मन लिखथे जब व्हेनसांग भारत आइस तब 618 ई. मा छत्तीसगढ़ के सिरपुर मा बनेच दिन ले रुके रहिस।आज घलो सिरपुर मा ओकर चिन्हा हावय।मैन पाट में चीनी संस्कृति के परछो(झलक) देखे जा सकत हे।फेर चीनी संस्कृति परभाव इहां के संस्कृति मा नइ परिस।

देवारी तिहार मा नवा जिनिस बिसाय के गजबेच महत्तम हे। नवा बरतन,गाड़ी मोटर अउ सोन, चादी घलाव लेथे।फेर जतका गहना गुरिया लेथे वहू ह फैंसी रथे।अब तो सोनार मन रसाय के बुता भर करथे। बजार मा जम्मो सिंगार समान टिकली,नखपालिस से लेके जतका जिनीस मिलथे सब चाइना माडल के रथे। गरीबीन, नउकरिहीन, बड़हर सबो चाइना जिनिस मा सजे के उदिम करत हे।ए सब वैस्विक ग्लोबलाइजेसन, बिस्व बेपार, अंतर्राष्ट्रीय बेपार नीति , गेट समझौता नांव के घानी मा पेरत हे। आज प्रांत अउ देस के अर्थबेवस्था ह चकरी असन घूम के फूस होगे हावय। बेरोजगारी अउ गरीबी हमागे हावय।कुटीर उद्योग नास होगे हावय।

अब तो हमर छत्तीसगढ़ सरकार घलो चीन के हेमान प्रांत के संग हाथ मिलाके 6600 करोड़ के पूंजी निवेस करावत हे।मेक इन छत्तीसगढ़ मा हजारो झन ल नउकरी मिलही कहात हे।फेर जब सोन चिरइया भारत के किसान, कुम्हार, तुरकिन, लोहार , कंडरा, कोस्टा के कुटीर बुता मा आगी धरा के चुरचुटिया फटाका असन भुंज के बुता दिन अउ चाइना फटाका मन गंधक के फटाका ला बारुद मा भर दिन अउ परदूसन बगरादिन तब हमर सरकार ह आंखी मुंद ले हावय। अर्थसास्तरी मन जानथे पूंजी निवेस करइया ल बियाज संग ओकर पूंजी ल लहुटाय बर परथे जेमा अड़बड़ अकन धन चल देथे।अउ करजा लदा जाथे।

तब छत्तीसगढ़िया मन कब तक अपन तिहार ल चाइना के हाथ मा गिरवी रखबो।एकरे सेती हमला भोला अउ परबुधिया कहिथे।गांधीजी ह एक बात कहे हे-
“भारत के कल्याण ओखर कुटीर उद्योग मा निहीत हे”

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा,जिला-गरियाबंद
8720809719



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पारंपरिक गीत देवारी आगे

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देवारी आगे रे भइया, देवारी आगे ना।।
घर घर दिया बरय मोर संगी,
आंधियारी भगागे ना।
देवारी आगे रे भइया —–।।
कातिक अमावस के दिन भइया,
देवारी ल मनाथे ।
सुमता के संदेश ले के, बारा महीना मा आथे।।
गाँव शहर के गली खोर ह, जगमगागे न ।।
देवारी आगे रे भइया —–।।
घर दुवार ला लीप पोत के, आनी बानी के सजाथे
गौरी गौरा के बिहाव करथें, सुवा ददरिया गाथे
फुटथे फटाका दम दमादम, खुशी समागे ना।।
देवारी आगे रे भइया —–।।
ये धरती के कोरा मा, अन्नपूरना लहलहाथे।
लक्ष्मी दाई के पूजा करथे, मन में मनौती मनाथे।
आशीस दे तै हमला दाई, भाग जगा देना।।
देवारी आगे रे भइया —–।।

मालिक राम ध्रुव
पंडरिया
जिला – कबीरधाम



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फटाका नइ फुटे’ (दिल्ली के बिषय म)

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नइ बाजे जी ,नी फूटे न
आसो के बछर म दिल्ली शहर म
ढम ढम फटाका नइ फूटे न
देवारी तिहार म एनसीआर म
अउ तिर तखार म
फटाका नइ फूटे न

नान्हे नान्हे नोनी बाबू
जिद करही बिटाही
सुरसुरी चकरी अउ अनार
कहां ले बिसाहीं,
दुसर जिनिस म भुलियारही
लइका मन ल घर घर म
आसो के बछर म

एकर धुआं ले बाताबरण म
कहिथे भारी होथे परदुषण
तेकरे सेती बेचईया मन के
जपत कर ले लयसन,
ऊंकरो जीव होगे अभी अधर म
आसो के…..,

देश चढ़त हे बिकास कै रद्दा
का इही हरे बिकास
जिंहा सफ्फा पीये बर पानी नी मीले
हवा नइ मीले लेय बर सांस,
सब देखत सुनत हे खोज खबर म
आसो के …..,

एक दिन के हे उछाह मंगल
फटाका फोरेबर छेंकत हें
बारो महीना एसी बड़े बड़े कारखाना
एला कोनो नइ देखत हें,
एकर धुआं ले छेदा होवत हे हमर ओजोन परत म
आसो के बछर म !!!

ललित नागेश
बहेराभाठा(छुरा)
४९३९९६



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मया के अंजोर

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तोर मोर मया के अँजोर संगी,
निक लागय महकय अँगना खोर I
नाचय पतंगा आरा पारा,
चिरैया चहकय डारा डारा I
बांधे कईसन तै बंधना के डोर,
तोर बर मोर मया सजोर I
तोर मोर मया के अँजोर संगी I2I
पुन्नी के जईसे चमके चंदा,
सावन मा बरसे रिमझिम बरखा I
झर झर झरे मोती मया के,
जुरागे पीरा करके सुरता I
तोर मोर मया के अँजोर संगी I2I
हिरदे के अईना मा बसे हस मोर,
झुलत रहिथे चेहरा ह तोर I
पाखी बांधे जईसे जीव उड़ाथे,
तोर बिना कुछु नई सुहाथे I
मोर आंखी के तेंहा भोर,
चंदा सुरुज कस करे अँजोर I
बाँधे कईसन मोहनी के डोर,
तोर बर मोर मया सजोर I
तोर मोर मया के अँजोर संगी I2I

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव(जिला-रायपुर)


पारंपरिक गीत देवारी आगे



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देवारी तिहार आवत हे

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हरियर हरियर लुगरा पहिरके
दाई बहिनी मन नाचत हे
आरा पारा खोर गली मोहल्ला
सुवा गीत ल गावत हे

सुग्हर संदेश के नेवता देवत
देवारी तिहार आवत हे
घर अंगना कोठा कुरिया
पेरौवसी माटी म छबावत हे

जाला जक्कड़ खोंदरा कुरिया
निसैईनी चड़के झटावत हे
लाली सफेद पिंवरी छुही
घर अंगना ल लिपावत हे

कोल्लर कोल्लर माटी लाके
गईरी माटी ल मतावत हे
ओदरे खोदरे भाड़ी ल
चिक्कन चिक्कन चिकनावत हे

घर मुहाटी के तुलसी चउंरा
मारबल पथरा म बनावत हे
खिड़की फुल्ली कपाट चौखट
रंग रंगके कलर म पोतावत हे

पिंवरी छुही महर महर
चारो खुंट म ममहावत हे
सुरहिन गईया के गोबर म
अंगना ल खुंटियावत हे

गउं माता बर राउत भैया
सुग्हर सोहई ल बनावत हे
रंग रंगके मंजुर पिक
कउंड़ी माला ल सजावत हे

करसा,कलौरी,ग्वालिन,दीया
गांव म बेचाय बर आवत हे
कुमड़ा कोचई सुपा डलिया
खिचरी खवाए बर बिसावत हे

जिंस टीशर्ट कपड़ा लत्ता
लईका मन लेवावत हे
सुरसुरी चकरी बम आनारदाना
फटाखा बाजार म बेचावत हे

लईका मनके नखरा अब्बड़
बड़े फटाखा म अंगरी ल देखावत हे
सुग्हर संदेश के नेवता देवत
देवारी तिहार आवत हे!!

*✍मयारुक छत्तीसगढ़िया*
सोनु नेताम माया
रुद्री नवागांव धमतरी


गुरतुर गोठ म प्रकाशित सोनु नेताम माया के रचना मन के कड़ी



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बोनस के फर

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जबले बोनस नाव के पेड़ पिरथी म जनम धरे हे तबले, इंहा के मनखे मन, उहीच पेंड़ ला भगवान कस सपनाथे घेरी बेरी…….। तीन बछर बीतगे रहय, बोनस सपना में तो आवय, फेर सवांगे नी आवय। उदुप ले एक दिन बोनस के पेंड़ हा, एक झिन ला सपना म, गांव में अमरे के घोसना कर दीस। गांव भर म, ओकर आये के, हल्ला होगे। ओकर आये के भरोसा म, गांव म बइसका सकलागे। बोनस के सवागत म, काये काये तियारी करना हे तेकर रूप रेखा, बने लागीस। बिपछ के मन हल्ला मचाये लगीन अऊ गांव के मन ला चेताये लागीन के, तूमन धोखा म झिन रहव, येहा फकत चुनई इस्टंट आय, येहा फकत वोट बर आय। किसान मन बिपछ के नेता बर भड़कगे अऊ केहे लगीन – हमीं मन तो वोट अन, हमरे मन बर जोजना आवत हे त फायदा तो हमींच मनला मिलही ….। बिपछ के मनखे मन के बोलती बंद होगे।
दूसर दिन बोनस के पेड़, गांव के गोड़ धोवा तीर जागगे…..। जम्मो मनखे, ओकर अबड़ पूजा अरचना करे लागीस। कुछ दिन म, बिहिनिया बिहिनिया, खेत जावत मनखे मन ला, उही पेड़ म नाननान फूल दिखे लागीस। गांव के मनखे मन बड़ परसन्न रहय। देखते देखत फर आगे, पाकगे, टपके लइक होगे। बोनस के फर ला लबेदा मारके, गिराये के सोंचिन। फेर अतक चेम्मर ढेंठा रहय ओकर के, कतको ढेला अऊ लबेदा म नी गिरीस। तब गांव के सरपंच बतइस के, सरकार के मनखे जब्भे ये पेड़ ला हलाही, तब्भेच, फर, टपकही। तब जम्मो झिन, अपन अपन पात्रता के हिसाब ले, सकेल लेहू।




तै समे म, सरकार के परतिनिधि अइन। गांव के जम्मो किसान मन, अपन ओली फयलाये, बोनस के पेड़ तरी, फर झोंके बर, तियार खड़े रहय। सरकारी मनखे हा पेड़ हलाये के पहिली, भासन देवत बतइस के, ये फर हा बीते बछर के फर आय जेहा, केंद्र के खातू के अभाव म, नी फर पइस। ये बछर, उही खातू ला करजा कर के बिसाये हन तब, ये पेड़ म फर अइस हे। हमर सरकार हा तुरते, तूमन ला, तुंहर उचित हक देके, अपन जुम्मेवारी निभावत हे। सब झिन थपड़ी पीटे म मगन होगे। एती पेड़ हालथे, टपाटप फर गिरत हे, सरकारी मनखे के संग म आये, कोचिया सगा मन, सटासट बिन डरीन। भासन सिरावत सरकारी मनखे किथे – फर गिरना सुरू होगे हे, अपन अपन भाग ला, रपोट लेवव। तब तक, लदलद ले फरे पेड़ खाली होगे रहय। जइसे तइसे थोर बहुत पइन। कारयकरम झरे के पाछू, किसान मन, सरकार करा सिकायत करे बर, अमर गिन। सरकार किथे – बोनस के पेड़ ला तुंहर गांव म लगाये हन, तुंहर आगू म हलाये हन अऊ तूमन फर ला नी रपोट सकहू, त हमर का दोस……। किसान मनके बोलती बंद होगे। सरकार हा किसान मन ला सनतावना देवत बतइस – पेड़ ला तुंहरे गांव म छोंड़ देथन। ये बछर, जतका फसल बेचहू, तेकर हिसाब से, तूमन अपन अपन हिस्सा ला बटोर लेहू।
किसान मन चुचुवागे …….। किसान मन जान डरीन के, ओमन फकत थपड़ी पिटई म मातगे रिहीन, तेकर सेती, ओकर भाग के बोनस फर ला, कन्हो अऊ लेगगे। ये पइत, अइसन गलती नी करे के, किरिया खा डरीन। ये बछर पानी नी गिरीस, फसल चरन्नी होगे, दुकाल परगे। अपने खाये के पुरतन नी होइस, सरकार ला काये बेचय। किसान मन समझय के, बोनस के पेड़ तभे फरथे जब फसल बेचाथे। फेर उंकर समझ म गलती होगे, अतेक दुकाल म घला, बोनस के पेड़ हा लटलट ले फरे रहय। कन्हो ला यकीन नी होइस। किसान मन सोंचीन, हो सकत हे पाछू बछर म, बोनस बंटई के घपला के सेती, बोनस के पेंड़ ला हमर उप्पर दया आ गिस होही, तेकर सेती, बिगन फसल बेंचे फरे हे।
फर पाकगे, सरकारी मनखे पेड़ हलाये बर पहुंचगे। किसान मन, पेड़ तरी, ओली खोल के खड़े होगे, फर टपाटप गिरत हे फेर ये दारी सहींच म फर, ओकरे हिस्सा म जावत रहय जेमन, सरकार ला अपन फसल बेंचे रहय। गांव के पटवारी, गराम सेवक, पंच सरपंच अऊ सरकार के कार्यकरता मन के झोली, देखते देखत भरागे। दुबारा धोखा खागे किसान। ओकर अंचरा आजो सुक्खा ………। चुनई के घोसना संग, पेंड़ उखनगे अऊ जावत जावत किसान मनला बतइस के, मोर फर के सुख तुन्हर नसीब म न कल रिहीस, न आज हे, न काली रहि। मोर फर कोचिया बर आये, बियापारी बर आये अऊ पेंड़ के हलइया अऊ ओकर संगवारी मन बर आवय। तूमन गलत समझथव के, येहा वोट बर आय, मोर फर हा सिरीफ वोटर बर आय, तूमन सिरीफ वोट आव। नावा चुनई म तहूंमन, वोटर बनव, तुन्हरों झोली म कुछ न कुछ आबे करही। किसान मन, बोनस के पेंड़ के बात ला, कतका समझिन, भविस म पता चलही ….।

हरिशंकर गजानंद देवांगन, छुरा


मया के अंजोर






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छत्तीसगढ़ पुरातत्‍व और संस्‍कृति

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मानव इतिहास के समकालीन संस्कृति के अध्ययन में पुरातत्व का अहम महत्व है। हालांकि इसमें केवल निर्जीव निशानियां ही प्राप्त होती हैं, किन्तु इससे उस काल की संस्कृति को समझा जा सकता है। सिरपुर और अन्य उत्खनन ने यह सिद्ध किया कि, उस समय सभ्यता और संस्कृति के स्तर पर यह क्षेत्र काफी उन्नत था। छत्तीसगढ़ के समृद्ध पुरावैभव के आधार पर, पुरातत्विक युग की संस्कृति को विश्लेषित कर उस काल के समाज को वर्तमान समाज से जोड़ने पर कुछ ठोस काम होना चाहिए। प्रख्यात पुरातत्व विशेषज्ञ पद्मश्री अरुण कुमार शर्मा से श्री अशोक तिवारी जी की बातचीत।

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एक दीया अउ जलावव

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एक दीया अउ जलावव,
कखरो अंधियारी कुंदरा ह,
अंजोर होजय।
सुवारथ के गंवईं मा,
मया मा लिपे गली खोर होजय।।

एक दीया वीर सिपाही,
भारत के रखवार बर।
देश के खातिर प्रान गवईंया,
अउ ऊंखर परिवार बर ।।
देशभक्ति के भाव मा,
मनखे मनखे सराबोर हो जय…

एक दीया अजादी देवईया,
भारत के भाग्य बिधाता बर।
एक दीया ओ जम्मो मनखे,
जौन ,जियत हे भारत माता बर ।।
वन्दे-मातरम् ह,
मया म बांधे ,डोर होजय….

एक दीया मोर गाँव किसान बर,
जेन करजा ,बाढ़ही म लदाए हे।
जांगर तोड़के ,लांग्हन रहिके,
जेन पथरा मा धान उगाए हे।।
जेखर मन के पीरा,
हमर तोर होजय…

लाखो उछाह मनाके,
तैं फोर ले कतको फटाका।
गरीब के आँसू पोछके,
गोठिया, मया के गुत्तुर भाखा।।
गरीबी के तपन मा,
थोरकुन खुसी के झकोर होजय…
एक दीया……..

राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
मो नं.9977535388

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छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य : सेल्फी कथा

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जब ले हमर देस म मुबाईल सुरू होय हे तब ले मनखे उही म रमे हे।पहिली जमाना म मुबाईल ल सिरिफ गोठ बात बर बउरे।फेर धीरे धीरे एमा आनी बानी के जिनिस हमावत गिस।फोटू खींचे बर केमरा,बेरा देखे बर घडी,गाना सुने बर बाजा,अउ ते अउ फिलीम देखे के बेवस्था घलो इही म होगे।एकर आय के बाद कतकोन मनखे मोटर गाडी म झपा के मरगे।आधा बीता के मुबाईल ह छे फिट के मनखे ल नचावत हे।पहिली के मुबाईल ह गरीबहा टाईप रिहिस बटन वाला ।
फेर जब ले मनखे ह कोढिया अउ परबुधिया होय हे फोन ह स्मार्ट होगे हे।मनखे ल बटन चपके म घलो परसानी लागत हे।अतेक अलाल होगे हे आज के मनखे ह की हर काम ल ओहा छूए भर म निपट जाय सोंचथे।
फोन कंपनी वाला मन अगमजानी बरोबर यहू बात ल जान डरिन अउ टच स्कीरीन वाला फोन बजार म उतरगे।
जब ले हमर देश म मुबाईल नांव के बिमारी संचरे हे,आनी-बानी के फेसन चालू होय हे।मिसकाल,मेसेज,चारजर,इयरफोन जइसे कतको नवा शब्द हमर जिनगी म हमाइस।हम धन्न होगेन!हमर ददा,बबा अउ जम्मो पुरखा तक ल एकर गियान नी रिहिस जी!जे आज हमर-तुंहर कस भागमानी मन तीर हबरे हे।




जेला देख तेहा आनी-बानी के मुंहू मटकावत अपन सेल्फी लेवत हे।बेंदरा कस मुंहु वाला टुरा मन कान म इयरफोन गोंजे अपन बोचकू पेंट ल संभालत मनमाने गोठियाय म माते हे।नोनी मन घेरी-बेरी बेलेंस कारड मंगा के घंसरत हे।मनखे के बात-बेवहार बदलगे।अब के सगा-सोदर ल पानी नी लागे।सब बिसलेरी धर के घूमत रहिथें।बस!ओकर आंखी ह चार्जर कोचके बर पलग खोजत रहिथे।ओला चार्जर ल देदे अउ कोचके के ठिहा ल बतादे।बिकट खुश हो जथे बपुरा मन।बाद में चाय-पानी बर नी पूछबे तभो चलही।
> परसंग मुताबिक सेल्फी कथा म चलथन।आज सेल्फी के बड चलन हे। अपन मुंहरन-गडहन म मोहाय मनखे बेरा-कुबेरा,रात-दिन,आठोकाल,बारो महिना सेल्फी ले म मगन हे।हमुं ल साध लागथे त सेल्फी लेथन ,फेर गरीबहा फोन के मरझुलहा केमरा म बने सेल्फी नी उतरे।एक दिन के गोठ हरे।चूंदी म मनमाने तेल ओंगके अपन सेल्फी लेएंव अउ सिरीमती ल देखाएंव।;मोर सिरीमती माने खिल्लू के दाई ह मोर सेल्फी हरे कइके बताय नी राहंव ओकर पहिलीच कथे-आनी-बानी के बेंदरा के फोटू तीरथस ग!अब बताव भला!!अतिक बड सम्मान मिले के बाद सेल्फी लेय के ताकत पूरही का!
संसार म रंग-रंग के सेल्फी लेवइय्या हे।कोनो रेल के आगू म सेल्फी लेवत हे त कोनो बइहा पुरा आय नंदिया के तीर म खडे होके सेल्फी लेवत हे।अब अइसन अतलंगहा मन ल कोन बरजे?उंकर भलई खातिर कहीं बोल देस त चबराहा कुकुर बरोबर लहुटथे।सीधा एके जुवाब-तोर बाप के का जाथे?हमर फोन,हमर थोथना।तोर का पिराथे?अब ओला कइसे समझावन कि फोन तोर हरे।फेर बइहा पुरा आय नंदिया घलो तोर थोरे हरे!तोर सेल्फी लेय म हमर कुछु नी जाय।फेर कहीं अलहन होगे त तोर बाप के दुलरवा ह जात रही।
हमर देस के मनखे नकल उतारे म अघवा हे।नकल उतारे म थोरको अकल नी लगावय।बिदेस के मनखे सेल्फी उतारे बर आनी-बानी के उदीम करथे।एक से बढके एक खतरनाक सेल्फी लेके अपन शेखी बघारथे।रुख-राई,डोंगरी-पहाड,नंदिया,टावर,पुल,घर-कुरिया सबो जगा सेल्फी लेवत रहिथें।फेर उंकर बात आन हे जी,ओमन अपन घर के खरचा खातिर खुरचत हमर-तुंहर कस गरीबहा नोहे।उंकर पुरखा उंकर मन बर मनमाने संपत्ति बनाके गेहे त एलहन-बेलहन उदीम करत रहिथे।




फेर तें अपन आप ल देख!तैं अपन दाई -ददा के आँखी के अंजोर हरस।अपन लोग-लइका अउ परवार के सहारा।फेर सेल्फी खातिर परान देय के उदीम काबर?
सेल्फी के चलन ह मानवता ल लजलजहा कर देवत हे ।नेता मन अकाल के मारे फांसी अरोवत किसान के रोवत परवार के संग
सेल्फी लेवत हे त समाज सेवा के नंगाडा बजइय्या मन अनाचार के शिकार नोनी संग सेल्फी लेवत हे।डोकरा नेता मन जवान हीरवइन संग सेल्फी लेय म मगन हावय।
ओ दिन तो वाटसप म एक झन के सेल्फी ल देखेंव त करेजा फाटगे।एक झन मनखे ? ह मुर्दा के आगू म दाँत निपोरत सेल्फी लेवत राहय।पाछू म उंकर परवार ह कलप-कलप के रोवत राहय।वाह रे सेल्फी!!दुनिया वाला मन ल देखाये बर सेल्फी लेवइय्या हो अइसन करम करके ऊपरवाला ल का मुँहू देखाहू।थोरिक सोचव!!
सेल्फी लेना हे त कोनो भूख मरत ल खवाये के बाद,कोनो रोवत ल हँसाये के बाद अउ कोनो बिपत म परे मनखे ल बिपत ले निकारे के बाद सेल्फी लेवव।गउकिन सिरतो काहत हंव दुनियावाला मन के संगे- संग ऊपरवाला के लाईक मिलही।

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा) 493996



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छत्तीसगढ़ी गोठियाय बर लजावत हे

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छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया चारो कोति शोर सुनावत हे
फेर इंहा के मनखे छत्तीसगढ़ी,गोठियाय बर लजावत हे

जब ले हमर राज बनिस,छत्तीसगढ़ के मान बाढ़िस
खेत कोठार गांव गली,बनिहार किसान के सनमान बाढ़िस
जेकर ले पहिचान मिलिस उही ल दुरियावत हे
फेर इंहा…..,

सुजान सियान हमर पुरखा के,संवारिन करके राखा गा
जब ले धरे चेतलग काया,पाये गुरतुर महतारी भाखा गा
अड़हा राहत ले माई समझे,पढ़लिख मोसी बनावत हे
फेर इंहा……,

शिक्छा के अंजोर बगरगे,गांव गांव एबीसीडीईएफजी
इही म पढ़ना अउ लिखना,लहुटत जीभ कइसे देख जी
सुनके एला हमर ‘राजभाषा’ मनेमन म सुसवावत हे
फेर इंहा ……,

बात बदलगे ठाठ बदलगे,आगे संगी डिजिटल जमाना
हर हाथ म मोबईल वाट्स एप,फेसबुक म हे बतियाना
बात हिन्दी या छत्तीसगढ़ी,टायपिंग अंग्रेजी सजावत हे
फेर इंहा……,

अपेत गंवईहा पोटारे पुरखौती,गियानी मन का करत हे
अपन धरोहर सनमान भुलाके,दुसर के म झपा परत हे
बिही आमा छीता ल छोड़के,करू करेला ल खावत हे
फेर इंहा……,

छत्तीसगढ़ महतारी गोहरावय,मोर सिंगार सजा दव गा
सुनो दुलरवा बेटा हो अपन दाई के लाज बचा लव गा
जानत हे बोलचाल जम्मो,जानबुझ के मुहू लुकावत हे
फेर इंहा…..!!!

ललित नागेश
बहेराभांठा(छुरा)
गरियाबंद(छ.ग.)



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पोल खोल

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पोल खोल देबो के नारा जगा जगा बुलंद रहय फेर पोल खुलत नी रहय। गांव के निचट अड़हा मनखे मंगलू अऊ बुधारू आपस म गोठियावत रहय। मंगलू किथे – काये पोल आये जी, जेला रोज रोज, फकत खोल देबो, खोल देबो कहिथे भर बिया मन, फेर खोलय निही। रोज अपन झोला धर के पिछू पिछू किंजरथंव …..। बुधारू हाँसिस अऊ किहीस – पोल काये तेला तो महू नी जानव यार, फेर तोर हमर लइक पोल म कहींच निये अइसन सुने हंव। मंगलू किथे – तैं कुछूच नी जानस यार ……., नानुक पेटारा खुलथे त अतेक अकन समान रहिथे तब, जेकर अतेक हल्ला हे , जेला खोले बर, अतका अकन मनखे मन जुरियावत हे, ओमा कइसे कहींच नी होही यार। बुधारू किथे – तैं नी जानस ….., पोल म न कहीं खाये के समान हे न पिये के, काबर फोकट इंकर मनके पिछू पिछू झोला लटकाये लठंग लठंग किंजरत रहिथस। मंगलू किथे – कहींच नी होतीस, त पोल खोलइया मन, पोल खोले बर खाली हाथ नी आतीन जी, वहू मन अपन बर, झोला धरके काबर आथे, फेर को जनी, कती तीर हाबे पोल ……महू ला समझ नी आवत हे यार।




दूसर दिन पोल खोले के कार्यक्रम दूसर गांव म रिहीस। मंगलू झोला धरके कुछु पाये के उम्मीद म फेर पहुंचगे। बुधारू फकत देखे बर गे रहय। गांव के मन मंगलू ला देखीस, त झोला धर के आये के कारन पूछ दीस। मंगलू लजावत किथे – एसो के अकाल दुकाल के मारे, घर म दार चऊंर सिरागे हे …..। पोल खुलतीस त, कुछ न कुछ खाये पिये के मिलबे करही, उही ला महू, एकात कन रपोट लेतेंव सोंच के, झोला धर के किंजरत हंव। गांव के मन किथे – तोर गांव म बोनस नी बांटे हे जी …? मंगलू किथे – बोनस बंटइस तो जरूर, फेर धान बेंचइया ला कमती अऊ ईमान बेंचईया ला जादा मिलीस हे। गांव के एक झिन मनखे किथे – यहू बछर के बोनस तो घला दिही सरकार हा, ओतको तोला पुर नी आवत हे। मंगलू किथे – गदगद ले धान होइस ते बछर, बोनस ला ओस कस बूंद चंटा दीस, येसो फसल के दाना नी लुवे हन, तेमा सरकार ला का बेंचबो अऊ बोनस के का मांग करबो…..?
तभे बड़े बड़े मनखे मन, लामी लामा गाड़ी घोड़ा म, पोल खोले बर उतरीन। मंगलू अऊ बुधारू अपन झोला के मुहुं खोले, सपट के ताकत रहय। तभे बड़े जिनीस गोठ के पोल जामगे। पोल खोलइया मनला, अबड़ बेर ले तो समझेच नी आवत रहय के, पोल जाम तो गे फेर, कती ले खोलना हे। जे तीर ले खोले बर धरतीस, तिही तीर, ओकरे मनखे मन के, कतको कच्चा चिट्ठा दिखे बर धर लेतीस। पोल ला येती ओती उनडा के देख डरीन, तभे ऊप्पर ले आदेस अइस के, पोल ला सोज खड़े करव, अऊ उप्परे ले खोलव, भोरहा म तरी कोती हाथ परगे अऊ पोल म टोंड़का होगे त, आंजत आंजत कानी हो जही अऊ पोल ला खोले के बदला तोपे के पहिली उदिम करे बर पर जही। आदेस सुन उप्पर ले ढकना खोलना सुरू होगे। पनदरा बछर ले चलत, लूट, डकैती, बलातकार अऊ भरस्टाचार के परमान मन बाहिर आये लगीस। पूरा पोल खुलगे त ओमा के बड़का नेता किथे – सरकार के पोल हरेक गांव म जामे हे, येला खोल के, देस म गनदगी बगरइया संग अइसन कचरा काड़ी मनला, बाहिर करव, तब तुंहर गांव के मनखे ला पेट भर खाये बर मिलही, पहिरे बर कपड़ा मिलही अऊ रेहे बर घर मिलही, तभेच तुंहर गांव सुंदर बनही। जेकर भी गांव म अइसन गनदगी होही ते मोला बतावव, कालीचे हमन आके सफ्फा कर देबो ….। मंगलू किथे – हमर घुरवा ला ये बखत सफ्फा नी कर सके हन मालिक, एक ठिन पोल गड़ियाके सफ्फा कर देतेव का ……? कन्हो झिन सुनय कहिके, बुधारू लकर धकर, ओकर मुहूं ला तोप दीस।




पोल खोले म कोन ला काये मिलीस यार बुधारू …..? मंगलू के परस्न हा बुधारू ला हूल मारे कस गड़त रहय। बुधारू किथे – पोल खोले म गरीब ला का मिलही बइहा …..? येहा बड़का मनखे मनके चोचला आय। ओमन ला दार चऊंर के भूख थोरहे लागथे तेमा, ओमन ला खुरसी, पद अऊ परतिस्ठा के भूख पदोथे। जे जतका पोल खोलही तेकर झोला म ओतके वोट आही अऊ ओतके बड़ खुरसी म बिराजित होही। मंगलू ओकर बात ला समझिस निही। अपन घर म निगतेच साठ अपन सुवारी ला कहत रहय, तोरो कहूं पोल होतीस तेला बताते का वो …….। जगा जगा महूं ओला खोलतेंव अऊ पद परतिस्ठा के हकदार बनतेंव। हतरे लेड़गा गारी सुनत, पोल गड़ाये के अऊ ओला खोले के उदिम सोंचत कतका बेर मंगलू के नींद परगे …….।

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन, छुरा



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देवउठनी एकादशी अऊ तुलसी बिहाव

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मास में कातिक मास, देवता में भगवान विष्णु अऊ तीरथ में नारायण तीरथ बद्रीकाश्रम ये तीनो ल श्रेष्ठ माने गे हे। वेद पुरान में बताय गेहे की कातिक मास के समान कोनो मास नइ हे। ए मास ह धर्म ,अर्थ, काम अऊ मोक्ष के देने वाला हरे। ए मास में इसनान, दान अऊ तुलसी के पूजा करें से बहुत ही पुन्य के पराप्ती होथे। कातिक मास में दीपदान करें से सब पाप ह दूर हो जाथें, अइसे बताय गेहे। असाढ़ महिना के अंजोरी पाख के एकादशी के दिन से देवता मन सुतथे अऊ कातिक महिना के अंजोरी पाख के एकादशी के दिन सुत के उठथे। एकरे पाय एला देवउठनी एकादशी कहिथे। देव उठनी एकादशी के दिन से ही जतका मांगलिक काम ह रुके रहिथे वो सब ह शुरू हो जाथे। जइसे- बिहाव, मुंडन, घर परवेश आदि।
आज के दिन ही तुलसी विवाह होथे, घरों घर चांवल के आटा से चउक पुरथे। अऊ तुलसी -बिसनु के पूजा करें जाथे। लइका मन खूब फटाका भी फोरथे।। एला एक परकार से छोटे देवारी के रुप म मनाय जाथे। वइसे भी तुलसी पऊधा के हमर जीवन में बहुत महत्व हे। तुलसी पउधा ह चौबीसों घंटा आक्सीजन देथे अऊ स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक हे।




तुलसी विवाह के कथा- तुलसी विवाह के एक कथा हे की पराचिन काल में जालंधर नाम के एक राक्षस रहिस। वोहा बहुत ताकतवर राहे अऊ देवता मन ल बहुत परेसान करे ओकर बाई वृंदा ह बहुत पतिवरता अऊ धर्म के पालन करने वाली रिहीस ओकरे परभाव के कारन जालंधर के कोनों कुछु बिगाड़ नइ सकत रिहिसे।
जालंधर के उपद्रव से परेशान होके देवता मन भगवान बिसनु कर बहुत अरजी विनती करीस। तब भगवान बिसनु ह वृंदा के सतीत्व ल भंग करे के योजना बनाइस। वोहा ओकर पति के रुप में गीस अऊ वृंदा के सतीत्व ल भंग कर दीस। जइसे ही वृंदा के सतीत्व भंग होइस वइसे ही जालंधर मारे गीस।
जब वृंदा ल ए बात के पता चलीस त वोहा बहुत घुस्सा होगे, अऊ भगवान बिसनु ल सराप दीस के तेंहा मोर साथ छल करके पति वियोग दे हस वइसने तंहू ह पतनी के वियोग में तडपबे। तोला मिरतयु लोक में जनम ले ल परही। अइसे बोल के वृंदा ह अपन पति के साथ में सती होगे। जे जगा सती होइस वो जगा तुलसी के पउधा जाग गे।
एक अऊ परसंग में आथे के – वृंदा ह ए सराप दीस के तेंहा मोर सतीत्व ल भंग करे हस , जा तंहू ह पथरा बन जबे। भगवान बिसनु ह बोलीस – हे वृंदा ये तोर सती धरम के परभाव हरे के तेंहा तुलसी बन के हमेसा मोर संग रहिबे। जे नर नारी आज के दिन हमर बिहाव करही वोला बहुत पुन्य मिलही अऊ परम धाम में जाही। ओकरे पाय बिना तुलसी दल के सालिकराम या बिसनु जी के पूजा ल अधूरा माने जाथे।
बोलो तुलसी महरानी की जय।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम ( छ. ग )
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com



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छोटे देवारी के खुशी भारी : देवउठनी एकादशी 31 अक्टूबर

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हमर पुरखा मन के बनाय परमपरा हा आज तिहार बहार के नाँव धरागे हे। अइसन तीज-तिहार हा हमर जिनगी मा खुशी के रिंगी-चिंगी रंग ला भरथे। तिहार-बहार समाज मा एकता अउ भाईचारा के गुरतुर चासनी घोरथे।अइसन गुरतुर चसनी ले बंधाय एकता हा कभू छरियाय नहीं। हमर गवँई गाँव मा तिहार के अलगेच रंग-ढ़ंग हा दिखथे। सिधवा मनखे के जिनगी जीये के रंग-ढ़ंग घलाव सिधवा सोज बाय रथे। ए बात के प्रमान हमर गवँई-गाँव मा सोज्झे दिख जाथे। सुमता के एकठन अइसनहे तिहार हरय “जेठउनी तिहार” जउन हा धार्मिक अउ समाजिक एकता के सुग्घर संदेश बगराथे। हमर नान्हे-नेवरिया राज छत्तीसगढ़ के लोकजीवन मा रचे बसे लोक परब अउ तिहार के नाँव “जेठउनी तिहार” हरय। कारतिक महीना के अँजोरी पाख मा एकादशी के दिन ए तिहार ला मनाय जाथे। देवारी तिहार के ठीक गियारा दिन बाद मा ए जेठउनी तिहार हा आथे। हमर गवँई-गाँव मा जेठउनी तिहार ला छोटे देवारी कहिथें। गवँई-गाँव मा छोटे देवारी के खुशी भारी होथे। जादा उछाह अउ उमंग के संग ए तिहार ला लइका,जवान अउ सियान सबो झन ए तिहार ला मनाथें। ए तिहार के महत्तम हा सिरिफ खुशी अउ मनोरंजन भर नइ हे बरन पुरखा मन ले चले आवत सरद्धा अउ आस्था के साखी-गवाही जेठउनी के रुप मा हरय।




जेठउनी के दिन मुंधरहा ले असनाँद करके गाँव के बइगा बबा हा अपन-अपन गाँव-गवँई के गाँव देवता “साहड़ा देव'” के बिसेस पूजा-अर्चना करथे। साँहड़ा देव ले गाँव भर के सुरक्छा अउ समरिद्धी के आसीरबाद माँगे जाथे। संगे-संग गाँव भर के जम्मों देवी-देवता मन के घलाव मान मनउका करके असीस ला माँगे जाथे।
जेठउनी तिहार ला देवउठनी ,अकादशी के नाँव ले घलाव जाने जाथे। चार महीना के अराम ले देवी-देवता मन हा जेठउनी के दिन उठथें जागथें तभे ए तिहार ला देवउठनी अकादशी के नाँव ले जाने जाथे। ए परब के मानियता हे के ए शुभ दिन हा सबो शुभ काज बर शुभ माने जाथे। जम्मों शुभ काम बर देवउठनी हा शुभ घड़ी आय। ए दिन कोनो भी शुभ काम बुता बर शुभ माने जाथे। जम्मों नवा-नवा काज के शुरुवात देवउठनी के दिन ला होय ला पूरा होय ला धर लेथे। जेठउनी के आवत ले किसनहा भाई मन के धान-पान के लुवई-टोरई के बुता काम हा पूरा हो जाथे या फेर पूरा होय ला धर लेथे। किसनहा भाई मन हा अपन बच्छर भर के महिनत के सोनहा फर ला कोठार-बियारा मा पा के मने मन अब्बड़ खुश होथे। अपन इही खुशी ला किसनहा भाई मन के मन ले ए तिहार मा छलकथे। हाट-बजार अउ दुकान मन हा घलो नवा-नवा समान भराके , सज धज के किसान के नवा खुशी मा संगवारी बनथे। मड़ई-मेला मा नाचा गम्मत , गीत संगीत अउ खेल तमाशा के सुग्घर बेवसथा करे जाथे।
जेठउनी तिहार ले हमर छत्तीसगढ़ राज के हमर चिन्हारी “राउत नाचा” के रिंगी-चिंगी श्री गणेश हो जाथे। ए तिहार हा राउत जात मन बर अड़बड़ खुशी अउ उमंग लेके आथे। राउत भाई मन अपन अनदाता किसान(मालिक) बर वफादारी अउ मंगलकामना के प्रदर्शन ला करथे। अपन पशुधन माल-मत्ता के गनती सरेखा अउ सुरक्षा करे बर “सोहई” बाँधे के शुरुवात हो जाथे। सादा रंग के रिंगी-चिंगी “सोहई” हा मंजूर पाँख अउ सनई के राउत भाई मन के हाथ ले गुँथें रहिथे। एदिन बर एखर तियारी महीना भर ले आगू-आगू करत रथें। इही दिन “रउतईन दीदी” हा अपन मालिक (किसान) के घर कोठी-डोली मा “हाँथा” लिख के सुख-समरिद्धी के वरदान माँगथे। राउत भाई हा अपन मालिक के घर मा मा दोहा पार के अन-धन अउ जन-जन के सुख के असीस ला माँगथे।




देवउठनी अकादशी के इही दिन ले देवता मन चार महीना के विसराम ले जाग उठथें। देवी-देवता मन के जागरन ले जम्मों नवा अउ शुभ काज हा मंगल अउ सिद्ध होथे। इही दिन ले बर बिहाव के बाजा बाजे के सरी उदिम के शुरुवात हो जाथे अउ परवार मन के खोज-खबर अउ पूछ-परख बाढ़ जाथे। इही दिन ले घर के सियान दाई-ददा मन हा अपन घर के बाढ़े बेटी अउ बेटा बर दमांद अउ बहू के खोज खबर मा भीड़ जाथें। देखे-सुने , जँचई-मँगई अउ फलदान, सगई के चालू हो जाथे। हाट-बजार, लेन-देन, कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया, मया-मयारु, नता-लगवार, पारा-परोसी, परिहा-परवार, गियानी-धियानी , सुजानी, सियान, मितान, हितवा अउ पंडा,पंडित, मन के मान-गउन अउ सरेखा बाढ़ जाथे। इही दिन ले जम्मों जनता मन के मन मा नवा जोश-नवा उछाह हा भर जाथे जेखर ले वो हा सरी नवा नवा कारज ला करे बर लग जाथे। ए तिहार हा एकठन सोज्झे तिहार भर हा नइ होके हमर धार्मिक आस्था अउ विश्वास के दरपन आय। अपन गाँव-गवँई के रखवार हमर देवता-धामी मन के प्रति सरद्धा अउ आदर के भाव इही तिहार के चिन्हारी आय। हमर गवँइहा जीवनशैली मा नवा जोश अउ नवा उछाह जेठउनी तिहार के दिन ले भराथे। देवउठनी तिहार हा हमर परंपरा के सुग्घर संरक्छक आय जेखर बिन हमर छत्तीसगढ़ के रहन बसन हा अधूरा हे। ए तिहार हा पुरखा के बनाय तीज-तिहार ला परमपरा के रुप मा आज ले घलो बचाय राखे हावय। संसार के सरी जीनिस मा परिवर्तन होगे या फेर होवत हावय फेर हमर जेठउनी तिहार हा आधुनिकता के अतिक्रमण ले आरुग बाँचे हावय। परमपरा के जबर रखवार इही जेठउनी तिहार हा हरय। “राउत नाचा” सोहई बँधई, हाथा अउ दोहा पारे के परमपरा आज घलाव हावय। तुलसी माता के बिहाव के नेंग, बोइर, चना, तिवरा, चनौरी भाजी, बीही, कुसियार अउ उपास रहीके पूजा पाठ सरी जीनिस पुरखा ले चले आवत हे। तुलसी माता के बिहाव के संगे संग गाँव के सरी देव-धामी के मान गउन अउ आदर करे के सुघ्घर रिवाज आज घलो हावय। ए तिहार मा पुरखा मन के के बनाय चलाय परमपरा आस्था अउ विश्वास के मशाल ले जुरमिल के जला के थाम्हे रहे के जरुरत हे। अइसन सुग्घर तिहार हमर देश अउ समाज के सुमता बर बड़ महत्तम राखथे।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9753322055



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सुवा गीत : कही देबे संदेश

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सुवा रे कही देबे दाई ल संदेश
बेटी ल भेजही पढ़े बिदेश
बिहाव के संसो ल कबे अभी तै मेट ! सुवा रे…..!
बड़े भईया ल पढ़ाये छोटे भईया ल पढ़ाये
पर के धन कही कहीके हम ल रंधना रंधवाये,
बनके साहेबवा करत हे कोन देखरेख !सुवा रे…..!
पढ़ के बेटी दू आखर हो जाही समझदार
अपन महिनत ले सेवा बजाही लागा न काकरो उधार,
बेटी बेटा म झन कर अब तै भेद! सुवा रे……!
भुख भगाय खेती ले घर सुघराय बेटी ले
बनथे बिगड़थे हमर भविश दाई ददा के सेती ले,
गंवा झन बेरा जा ओ दाई अब तै चेत! सुवा रे……!!

ललित नागेश
बहेराभांठा(छुरा)
४९३९९६७






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