दाऊ रामचंद्र देशमुख ल छत्तीसगढी लोकमंच के पितामह केहे जाथे।इंकर जनम 25 अक्टूबर 1916 म पिनकापार (राजनांदगांव) म होय रिहिसे।फेर एमन अपन करमभूमि दुरुग के बघेरा गांव ल बनाइन।ननपन ले दाऊ जी ल नाचा गम्मत म रुचि रिहिस।सन् 1950 में दाऊ जी ह “छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल ” के स्थापना करिन।एकर सिरजन बर उन ल अथक मिहनत करे बर परिस।जेन समें म आय-जाय के बरोबर साधन नी रिहिसे वो समे दाऊ जी ह बइलागाडी म गांव-गांव म घूमिन अउ गुनी कलाकार मन ल सकेलिन।छत्तीसगढ़ में प्रचलित नाचा गम्मत के परस्तुति म दिनों-दिन आवत गिरावट ल देखके उन ल बड दुख होवय।तब ओमा सुधार करे खातिर दाऊ जी ह नाचा-गम्मत म साहित्य ल संघेरे के सोचिन।
अउ 7 नवंबर 1971 के वो अद्भुत रतिहा आइस।जेन दिन छत्तीसगढ़ी अस्मिता के चिन्हारी अउ कला मनीस्वी दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के सपना ह ग्राम बघेरा(दुर्ग) म अवतरित होइस।ये तारीख ह छत्तीसगढ़ के इतिहास म अजर-अमर होगे,काबर कि इही दिन छत्तीसगढी लोक संस्कृति के चिन्हारी चंदैनी-गोंदा के जनम होइस।दाऊ जी ल अपन माटी ले बड लगाव रिहिसे।फेर वोला वतकी संसो इंहा के गरीब बनिहार अउ किसान के तको रिहिस।आने मनखे मन के द्वारा इंहा के गरीबहा मन के शोसन ह भीतरे-भीतर ओला कलपाय।तब वोहा मंच ल अनियाय अउ शोसन के बिरोध के माध्यम बनाके देस-दुनिया के आगू आइस।
दाऊ जी ह अंगरेज मन के राज ल देखे रीहिसे अउ ओमन ल देस ले खेदे-बिदारे म सुराजी सिपाही बनके अपन योगदान देइन। देश आजाद होगे।फेर गाँधी जी के सपना के भारत दूरिहागे।दाऊ जी ह गरीबहा मन के हक ल मारत देखिन त बड दुखी होइन।छत्तीसगढ़ के इही दुख-पीरा ल देखाय बर अउ इंहा के आरूग लोक संस्कृति-संस्कार म हमावत दोष ल दूरिहा खातिर ‘चंदैनी-गोंदा’के सिरजन करिन।फेर अतिक बड सपना ल सिरजाय खातिर उन ल भारी मिहनत करे ल परिस।
लगभग 63 कलाकार मन के समिलहा उदीम ले चंदैनी-गोंदा के पहिली परदरसन बघेरा गांव म होइस त देखइय्या मन बक खागे।छत्तीसगढ़ महतारी के वैभव ल देखके जम्मो छत्तीसगढिया मन के छाती तनगे।दाऊ जी के मार्गदर्शन म खुमान लाल साव जी के संगीत के संग पं. रविशंकर शुक्ल,पवन दीवान,लक्ष्मण मस्तूरिहा जइसे कतको छत्तीसगढिया साहित्यकार के गीत ले सजे चंदैनी गोंदा के सन् 1981 तक कुल 99 परदरसन छत्तीसगढ़ के कोन्हा-कोन्हा म होइस ।श्रीमती कविता वासनिक,लक्ष्मण मस्तूरिहा ,भैया लाल हेडाऊ जइसे कतको कलाकार मन के नांव के सोर चंदैनी गोंदा ले जुडे के बाद होइस।एकर बाद दाऊ जी ह छत्तीसगढ़ के नारी के तियाग अउ समरपन के कहिनी “कारी” के सिरजन म लगगे।देवार जनजाति के दुख-पीरा ल समाज के आगू म लाने बर उन ‘देवार-डेरा’के मंचन तको करिन हे।
सन् 1982 से लेके आज तक “चंदैनी-गोंदा” के बिरवा ल पोगरी अपन खून-पसीना ले सींच के जिंयावत हे छत्तीसगढी लोक संगीत के इतिहास पुरुष खुमान बबा ह।दाऊ जी के संग लगाय चंदैनी गोंदा के बिरवा ह आज बिसाल वटवृक्ष के रूप ले डरे हे।लगभग 40 अनुशासित कलाकार मन के समिलहा सहयोग ले खुमान लाल साव जी के कलायात्रा आजो सरलग चलत हे।पुरखा के सपना पूरा होगे।छत्तीसगढ़ नवा राज बनगे।ए बीच म कतको बडोरा अइस फेर चंदैनी गोंदा आजो ममहात हे।छत्तीसगढ़ के रुप बदलगे फेर खुमान बबा के जोश अउ चंदैनी गोंदा के रुप थोरको नी बिगडिस।
दाऊजी के निर्देसन वाला चंदैनी गोंदा ल देखे के सौभाग्य नी मिलीस काबर की वो पंइत हमर जनम नी होय रीहिस।फेर खुमान बबा ल संउहत अपन आगू म हारमोनियम बजावत चंदैनी गोंदा म देखना कम सौभाग्य के बात नी होय।अभी तक 3-4 परस्तुति देख डरे हंव फेर मन नी अघाय हे।आजादी के लडई म अंगरेज मन के अतियाचार अउ सुराजी सिपाही मन के तियाग अउ संघर्ष ल चंदैनी गोंदा के कलाकार मन जब मंच म उतारथे त देंहे घुरघुरा जाथे।लहू डबके ल धरथे।अजादी मिले के बाद बटोरन लाल जइसे नेता मन देश के का हाल करे हे?गुने बर मजबूर कर देथे।छत्तीसगढ़ के वयोवृद्ध कलाकार शिवकुमार दीपक जी के अभिनय ल घेरी-बेरी नमन करे के जी करथे।अस्सी के उमर पार होवत होही फेर कला के प्रति अइसन समरपन कि लागबे नी करे कि ओमन थकत होही।
छत्तीसगढ़ शासन अउ जम्मो कलाकार मन ले हांथ जोंड के निवेदन करत हंव के खुमान बबा अउ दीपक जी जइसे विलक्षण कला साधक अभी हमर बीच हावय।ओमन ल सम्मान के लालच नीहे।फेर मोर मानना हे कि ओमन ला सम्मानित करके सम्मान खुद सम्मानित होही।खुमान बबा अउ शिवकुमार दीपक जी ह पद्म सम्मान पाय के अधिकारी हे।ये दिशा म उदीम होना चाही।
हर बच्छर राखी तिहार के आगू नीते पाछू नवा पीढी के नान्हे-नान्हे लइका अउ सग्यान नोनी-बाबू मन ल एक-दूसर के हांथ म आनी-बानी रंग-बिरंगी सुंतरी बांधत देखथंव त अचरित लागथे।एला ओमन फरेंडशीप बेल्ट किथे।अउ ये बेल्ट बांधे के तिहार ल फरेंडशीप-डे।माने संगी जंहुरिया ल बेल्ट बांधके अपन संगी होय के दोसदारी जताय के परब।पहिली ये बिदेसी तिहार ल बडे-बडे सहर के नोनी-बाबू मन मनावय।फेर धीरे-धीरे येहा हमर छत्तीसगढ़ के गंवई म घलो संचरत हे।उही भुइंया म जिंहा हर परब म मितानी बधे के परंपरा अउ ये बंधना ल जिंयत भर निभाये के संस्कृति हवय।दुवापर जुग म भगवान किसन ह सुदामा संग अउ तरेता जुग म भगवान राम ह सुगरीव संग म मितानी बधे रिहिन अउ एक-दूसर के जम्मो कारज म सहयोग करिन।तिही पाय के मितानी नता ल भगवान घर के नता केहे जाथे।
छत्तीसगढ़ ह बड धार्मिक अंचल आय।इंहा के मनखे देवधामी ल बड मानथे।कोन्हो मनखे ह दरस खातिर जगन्नाथ पुरी जाथे त ओला किलोली करके उंहा के महापरसाद आजो मंगवाथे।काकरो गंगा मइया के दरस के संजोग बनथे त ओला गंगाजल अउ गंगाबारु लाने बर खंधोथे।अतिक आस्था अउ सरधा रखथे इंहा के मनखे ह।फेर इंहा के पोठ लोक जीवन म तीज-तिहार अउ जंवारा,भोजली जइसे संस्कृति त घला हमाय हे।मितानी बधे के सुघ्घर परंपरा ह इंहा के लोक जीवन म रचे बसे हे।आनी बानी के परब नीते धार्मिक जिनिस के चिन्हारी ल माध्यम बना के मितानी के परंपरा ल छत्तीसगढिया मन उमर भर निभाथे। छत्तीसगढ़ म मितान के नांव नी लिये जाय।नांव के जगा म जेन जिनीस ह मितानी बधे के माध्यम बनथे उही संबोधन म सीता-राम काहत गोठ-बात होथे।जइसे महापरसाद,गजामूंग,गंगाजल,गंगाबारु,तुलसी दल,जंवारा,भोजली,दौनापान ,गोबरधन,सहिनाव आदि।छत्तीसगढ़ ले सबले लकठा म भगवान जगन्नाथ ह पुरी म बिराजे हे।तेकरे सेती छत्तीसगढ़ म रथयातरा ल बड उछाह के संग मनाय जथे।रथयातरा के दिन भगवान जगन्नाथ म गजामूंग के भोग लगथे।इही गजामूंग ल साखी मानके गजामूंग बधे जाथे।वइसने ढंग ले गंगाजल,गंगाबारु,भोजली,जंवारा,तुलसी दल ,दौनापान अउ जगन्नाथ महापरभु के भोग म महापरसाद बधे जाथे।
मितानी बधे के घलो परब मुताबिक समे होथे।जइसे गजामूंग ल अषाढ महिना के रथयातरा परब के समे,भोजली ल भादो म अउ जंवारा ल नवरात परब म बिसरजन खानी बधे जाथे।देवारी तिहार म गोबरधन खुंदाय के बेरा गउ माता के गोबर ले गोबरधन बधे के परंपरा देखे बर मिलथे।एके जइसे दू नांव के मनखे मन सहिनांव बदधे। महापरसाद,गंगाजल,गंगाबारू,तुलसीदल,दौनापान ल कोनो भी शुभ कारज अउ तीज-तिहार के मउका बधे जा सकथे।
मितानी बधे बर अमीर-गरीब,जात-पात अउ उमर के बंधन नी राहय।येमा नारी पुरुष के भेद घलो नीहे।गंवई म जेन सियानिन-सियान मन काकरो संग नाती के नता मानथे,ओमन ह उंकर संग मितानी बध लेथे।अउ भेंट होय के बेर सीताराम कहिके एक-दूसर ल जोहारथे।एके जंहुरिया लइका मन मितानी बधथे त उंकर दाई-ददा मन घला मितानी के बंधना म बंधा जाथे अउ उमर भर सुख-दुख के जम्मो कारज म एक दूसर के साथ निभाथे। मितान बने के बाद मितनहा मन मितान के ददा ल फुलबाबू अउ महतारी ल फुलदाई कथे।एक दूसर के परवार म फूलवारी नता ल सग नता बरोबर माने जाथे।हर तिहार बार म मितान के घर ले दार-चाउंर अउ रोटी-पीठा मितान-मितानिन बर पठोय के रिवाज हे।
मितान-मितानिन ह सबले लकठा के मयारु अउ हितवा नता आय जेहा मया अउ बिश्वास के डोरी म बंधाय रथे।शायद इही कारन शासन ह घलो गांव गंवई म स्वास्थ्य सेवा अउ नवा नवा जानकारी पठोइय्या महिला मन ल “मितानिन” नांव देहे।आज समे के संग हमर माटी के जम्मो संस्कार अउ परंपरा ह नंदावत हे।त अइसन बेरा म हमर ये मितानी परंपरा ल सइत के राखे के जुरूरत हे।मितान बधई ल भगवान घर के नता माने जाथे।हमर ये पोठ संस्कृति ल सहेजे अउ जतने के जुरूरत हवय।
कइसे मितान!!!
हमर देस मा गजबेच अकन महापुरुष मन जनम धरीन ।जौन देस धरम बर अपन तन ल निछावर करीन।अइसने एक महापुरुष हमर देस के पहिली परधानमंतरी पं. जवाहरलाल नेहरु हरय।जौन लइका मन ल गजबेच मया दुलार करय।एकरे सेती लइकामन ओला नेहरु कका (चाचा नेहरु) काहय। लइका मन संग मया के किस्सा उंखर लिखे किताब मा घलाव मिलथे।एक बेरा के गोठ आय जब नेहरु जी केरल के एक गांव कार्यकरम मा जात रीहिस तब सड़क अउ तीर तखार के घर के भांड़ी मा खड़े होके मनखे, लाइका, सियान, चेलिक, माईलोगिन मन परधानमंतरी ल देखेबर ओरी ओर खड़े रहाय।उही जगा थोरिक दुरिहा मा एकझन 10-12 बच्छर के टूरा गैस फुग्गा बेचत खड़े रहय। जब नेहरु जी के गाड़ी रुकीस तब वहू हर अपन गोड़ मा उठ-उठ के ओला देखेबर गजबेच उदीम करत रहय।ओकर हाथ मा रंग बिरंग के गैस फुग्गा राहय जौन ओकर हलाइ डोलाइ मा एती ओती होवय। नेहरु जी के नजर ओकर उपर पड़गे।गाड़ी ले उतरके नेहरु जी फुग्गा वाले करा चल दीस अऊ अपन सचिव के संग जम्मो फुग्गा ल बिसा लीस पाछू तीर तखार मा जतका छोटकी छोटका लइका रहीन सबो ल फुग्गा ल बांट दीन।सब्बो लाइका मन फुग्गा धरके गजबेच खुस होके नाचे कूदे लगीस जोर जोर से नेहरु कका, नेहरु कका कहिके चिल्लाय लगीन।अइसने मया करइया रहीन हमर पहिली परधानमंतरी।
नेहरु जी ह अंगरेजी इस्कूल मा पढ़े रीहिस।फेर ओहा गांव गांव जा के हिन्दी गोठियाय अउ लिखेबर सीखिस। एक घांव कार्यकरम के बीच मा एक लइका नेहरु जी के आटोग्राफ लेयबर आइस अउ कापी देवत सिग्नेचर करेबर कहिस। नेहरु जी अंगरेजी मा सिग्नेचर करके कापी ल फेरदिस।लइका देखीस नेहरु जी अंगरेजी मा दसखत करे हावय, ओहा जानत रीहिस कि हरदम हिन्दी मा दसखत करथे। ओहा पूछिस-आप तो मोर कापी मा अंगरेजी मा आटोग्राफ देहव। नेहरु जी लइका ल पुचकारत कहिस कि तैं तो मोला सिग्नेचर करेबर कहेहस, हस्ताछर करेबर कते तब हिन्दी मा करतेंव। जम्मो मनखे जुवाप ल सुनके हांसे लगीन। लाइका मन संग ठठ्ठा दिल्लगी करइया हमर परधानमंतरी ल एकरे सेती कका नेहरु कहिथे।
अपन पुस्तक मा लिखे हावय कि ओहा अपन ददा के बड़ मान करय अउ डर्राय घलाव।ओकर उमर 5-6 बच्छर के होय रहीस होही। ओकर ददा मोतीलाल नेहरु ओ बखत अंगरेज मन ले देस ल अजाद करे बर उदीम करत रहिस। जवाहरलाल अपन ददा के बड़ सम्मान करय। ओकर ददा भारी घुसेलहा रहय।ओकर परछों घर मा काम करइया मन संग ददा के गोठ बात मा देखे रहय। एक दिन जवाहरलाल अपन ददा के टेबल मा दू ठन फाउंटेन पेन रखाय देखीस, ओकर मन पेन मा मोहा गे। ओला धरेबर सोचिस,कि दू ठन पेन ल ददा काय करही।ओहा एक ठन ल अपन खीसा मा डार लीस।पाछू पेन कहां गवांगे कहिके खाना तलासी सुरु होगे। एती मारे डर के जवाहरलाल के पसीना छूटत रहय। चोरी पकड़ागे अउ जवाहरलाल चोर साबित होगे।ओकर ददा ह घुंसीयाके कान ल अंइठिस अउ दू चार थपरा लगा घलो दिस। पाछू अपन दाई के कोरा मा जाके रोइस अउ अपन करनी बर पछताइस।
नेहरु जी ल पुस्तक पढ़े के अड़बड़ सउंख रहय।एक बेरा जवाहरलाल नेहरु जी अपन संगवारी घर रुकीस। ओकर संगवारी बने आवभगत करीन , थोरिक बेरा होय रहिस कि संगवारी के परोस ले बुलावा आगे। नेहरु जी ल थोरकिन अकेल्ला बइठेबर कहिके संगवारी चल दिस। नेहरु जी पुस्तक पढ़े के सौखिहा तो रहिबेच रहिस। ओहा पुस्तक ल पढ़ेच नहीं ओला संजो के घलो राखय।बेरा बितायबर खोली के एक कोन्हा मा लकड़ी के अलमारी रखाय रहिस ओकर तीर मा जाके उघार के देखीस तब उहां अड़बड़ कन पुस्तक एती ओती फेंकाय परे रहिस।नेहरु जी ल बड़ घुस्सा आइस अउ दुख घलो लागिस फेर ओहा सबो पुस्तक ल तिरया के सोज सजाके राख दीस।जब ओकर संगवारी आइस तब ओला बताइस अउ समझाइस कि पुस्तक के कतका महत्तम होथे तेला समझना चाही। पुस्तक मा लिखइया के आत्मा रथे। पुस्तक के हिनता करना माने लिखइया अउ पढ़इया के हिनता आय। संगवारी ह छिमा मांगिस अउ कसम खाइस आगू अब अइसना नइ होवय।अइसे रीहिस हमर परधानमंतरी नेहरु जी ।
पं.जवाहर लाल नेहरु के जनम 14 नवंबर1889 मा कश्मीरी बाम्हन मोतीलाल नेहरु के घर इलाहाबाद मा होइस। दाई स्वरूपरानी के कोरा मा तीन बहिनी के संग खेलीस।पाछू महात्मा गांधी संग मिलके देस अजाद करायबर लड़ई मा संग होइस।अजादी पाछू देस के पहिली परधानमंतरी बनके देस के बिकास करीन। लइका मन ल जादा मया करय एकरे सेती ओकर जनमदिन ल बालदिवस के रूप मा देसभर मनाय जाथे।
हमर हिन्दू पंचांग में अगहन महीना के बहुत महत्व हे। कातिक के बाद अगहन मास में गुरुवार के दिन अगहन बिरस्पति के पूजा करे जाथे ।
भगवान बिरस्पति देव के पूजा करे से लछमी माता ह संगे संग घर में आथे।
वइसे भी भगवान बिरस्पति ल धन अऊ बुद्धि के देवता माने गे हे ।
एकर पूजा करे से लछमी , विदया, संतान अऊ मनवांछित फल के प्राप्ति होथे । परिवार में सुख शांति बने रहिथे । नोनी बाबू के जल्दी बिहाव तको लग जाथे ।
पूजा के विधान – गुरुवार के दिन पूजा ल विधि विधान से करना चाही । ए दिन मुंधरहा ले उठके नहा धो के बिरस्पति देव के पूजा करना चाही। बिरस्पति देव ल पीला रंग के वस्तु ह प्रिय हे ओकरे सेती पीला फूल, पीला मिठई, पीला चावल, चना के दाल अऊ केला के भोग चढ़हाना चाही ।
ए दिन दिनभर में एक बार ही भोजन करना चाही अऊ सच्चे मन से भजन पूजन करना चाही । एकर से बहुत लाभ होथे ।
बिरस्पति देव के कथा – एक गांव में एक गरीब बाम्हन रिहिसे। वोहा पूजा पाठ तो रोज करे फेर वोकर बाई ह निच्चट अढ़ही राहे। वोहा भगवान के पूजा पाठ करबे नइ करत राहे । महराज ह वोला बहुत समझाय फेर वोहा ओकर बात ल टाल दे ।
कुछ समय बाद ओकर घर में एक लड़की पैदा होइस। लड़की बहुत सुंदर अऊ गुनवान रिहिस । जइसे- जइसे लड़की बडे होत गीस ओकर सुंदरता ह बढ़त गीस । जब वोहा इस्कूल जाय के लइक होइस त ओला एक ठन इस्कूल में भरती करवा दिस । वो लड़की ह रोज भगवान के पूजा पाठ करे अऊ इस्कूल जाय । जब वोहा इस्कूल जाय तब अपन हाथ में एक मूठा जौं ल धर ले अऊ रस्ता भर छींचत छींचत जाय । इस्कूल ले जब घर वापिस आय त ओ जौं ह सोन के बन जाय राहेय वोला सकेलत आय ।सोन के जौं आय से ओकर मन के गरीबी ह दूर होगे ।
एक दिन वो लड़की ह जब जौं ल निमारत रिहिस त ओकर पिताजी ह बोलथे – बेटी सोन के जौं ( जंवा ) ल निमारे बर सोन के सूपा होतीस त बढ़िया होतीस ।
तब लड़की ह भगवान बिरस्पति देव से प्राथना करिस अऊ सोना के सूपा मांगीस । दूसर दिन जब वो लड़की इस्कूल से घर आत रिहिस त रस्ता में ओला सोन के सूपा मिलीस ।
एक दिन वो लड़की ह अपन घर में सोना के सूपा में जंवा ल निमारत रिहिसे ओतकी बेरा एक झन राजकुमार ह उही रस्ता से जात रिहिसे । वोहा लड़की के रुप ल देख के मोहित होगे।
घर में आ के राजकुमार ह अपन पिताजी ल बताइस अऊ वो लड़की से बिहाव करे के इच्छा जताइस । तब राजा ह बाम्हन देवता घर जाके लड़की के हाथ मांगीस अऊ खुसी खुसी बिहाव कर दीस ।
लड़की के बिदा होय के बाद धीरे धीरे महराज के घर में फेर गरीबी आ गे । काबर महराजीन के आदत ह सुधरेच नइ रिहिसे। वोहा पूजा पाठ करबे नइ करत रिहिसे।
तब लड़की ह अपन दाई ल समझाइस अऊ बिरस्पति देव के पूजा पाठ करे के विधि विधान बताइस ।
तब महराजीन ह रोज विधि विधान से पूजा करे अऊ धीरे धीरे धन के भंडार भरगे। ओकर गरीबी ह दूर होगे।
बोलो बिरस्पति देव की जय ।
महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम ( छ. ग )
मो.- 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com
छन्द के छ परिवार के दीवाली मिलन अउ राज्य स्तरीय कवि गोष्ठी के सफल आयोजन दिनांक 12/11/17 के वि.खं. सिमगा के ग्राम हदबंद मा अतिथि साहित्यकार छन्द विद् श्री अरुण कुमार निगम दुर्ग, विदूषी श्रीमती शंकुन्तला शर्मा भिलाई, श्रीमती सपना निगम, श्री सूर्यकांत गुप्ता दुर्ग के गरिमामयी उपस्थिति मा सम्पन्न होइस । कार्यक्रम मा गाँव के सरपंच श्रीमती सरिता रामसुधार जाँगड़े, श्री संतोषधर दीवान मन अतिथि के रूप मा उपस्थित रहिन।
कार्यक्रम के शुरुआत अतिथि मन द्वारा मां सरस्वती के छाया चित्र मा पूजा अर्चना अउ दीप प्रज्वलन ले होइस। छ्न्द साधक श्री मोहनलाल वर्मा हा गीतिका छंद मा सरस्वती बंदना
प्रस्तुत करिन। स्वागत सत्कार के बाद कार्यक्रम के संचालक श्री अजय अमृतांशु हा सबले पहिली छंद पाठ करे के नेवता श्री जितेन्द्र वर्मा कोरबा ला दीन। वर्मा जी हा सार छन्द मा अपन रचना “मोर पंख ला मूँड़ लगा दे” प्रस्तुत करके सबके मन ला मोह लीन । तेकर पाछू कबीर धाम ले पधारे श्री ज्ञानु दास मानिकपुरी “प्रभु तोला खोजव कहाँ मंदिर मस्जिद द्वार” दोहा छन्द मा अउ श्री मोहन निषाद भाटापारा मन घलो दोहा छंद मा अपन प्रस्तुति देके सुनइया मन ले नँगते ताली बटोरिन।अब पारी आइस सिमगा के मनीराम मितान के अपन दोहा छंद ” सुरता ननपन खेल के आथे संगी मोर” पढ़ के माहौल ला आनंददायी बना दीन।कोरबा ले आये छन्द साधिका श्रीमती आशा आजाद मन तो गुरतुर आवाज़ मा दोहा छन्द पढ़के खूब ताली बजवइन।मधुर कंठ के धनी गोरखपुर ले आये श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर हा कुकुभ छंद पढ़के सब ला ताली बजाय बर मजबूर कर दीन। श्री दिलीप वर्मा बलौदाबाजार अपन चौपई छंद के माध्यम ले अंधविश्वास उप्पर खूब प्रहार करिन। अब तो एक के पाछू एक छंद रस के बरसा शुरु होगे।
छुरा ले आय श्री ललित साहू दोहा छंद, मुगेली ले आय श्री गजानंद पात्रे हा
हरिगीतिका छन्द , श्री जगदीश साहू कड़ार हा दोहा छंद ,श्री राजेश निषाद आरंग दोहा छंद , श्रीमती नीलम जायसवाल भिलाई दोहा छंद,श्री हेमलाल साहू कोरबा त्रिभंगी छंद पोखन जायसवाल पलारी दोहा छंद, श्री कौशल साहू सुहेला दोहा छंद श्री आसकरन दास जोगी बिलासपुर मोहन सवैया, श्री हेमंत मानिकपुरी भाटापारा दोहा छन्द,श्री संतोष फरिकार भाटापारा कुंडलिया छंद ,श्री मथुरा प्रसाद वर्मा कौशल पुर दोहा छंदअउ श्री नरेन्द्र वर्मा भाटापारा हाइकू छंद मा अपन अपन प्रस्तुति दे के खूब वाहवाही लूटिन।
कार्यक्रम के छेंवाती बेरा मा शानदार आयोजन करइया श्री चोवाराम वर्मा बादल हा देवारी बिषय मा अपन आल्हा छंद के पाठ करके सबके मन मा जोश अउ उमंग भर दीन।
कार्यक्रम के संचालक श्री अजय अमृतांशु के तो कोनो जवाब नइ रहिस। संचालन करत बीच-बीच मा अपन दोहा छंद के माध्यम ले नँगते ताली बजवावत रहिन। दुरुग ले पधारे श्रीमती सपना निगम मन अपन मिसरी कस मीठ आवाज़ मा सुग्घर छत्तीसगढ़ी गीत “सुन सुन वो दाई भइया ला पठो देबे” गा के अबड़े ताली बजवाइन। आसु छंद कार श्री सूर्यकांत गुप्ता हा आनी बानी के छन्द पाठ करके सुनइया मन ले अबड़ेच ताली सकेलिन।
छंदकार अउ संस्कृत के विदुषी शकुन्तला शर्मा हा आसीस के बचन संग किसिम किसिम के छंद पढ़के सब ला छन्द रस मा सराबोर कर दीन । उँकर रोला छंद “नटवर नागर नंद आज मोरो घर आबे” सब ला नँगते भाइस संगे संग छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण एला पोठ बनाय के सम्बन्ध मा घलो चर्चा करिन। छंद के छ परिवार के नेव धरइया अउ एकर मुखिया श्री अरुण कुमार निगम हा आशीर्वाद के बचन कहत कहिन कि डेड़ बछर के भीतर आज छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़ी छंद लिखइया 30 छंद कार होगे हें। आगू ओमन कहिन कि छत्तीसगढ़ी भाखा ला पोठ बनाय बर हमला आन भाखा के शब्द मन ला अपनाय बर परही। छत्तीसगढ़ी ला हम रूपवती भले नइ बना सकबो फेर गुणवती तो जरुर बना सकथन।जेन किसम हिन्दी ला आने आने प्रांत के मन आने आने बोलथे फेर लिखे के बेरा एके किसम के लिखथें वइसने छत्तीसगढ़ी ला भले आने आने जिला माआने आने बोलयँ फेर लिखे के बेर हमला एके किसम ले लिखे ला परही तबहे छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण मा सहूलियत होही।
कार्यक्रम मा पहुना के रुप मा आय प्रो. मधुलिका अग्रवाल ,गाँव के गणमान्य डॉ जमाल कुरैशी अउ शा.उ.मा विद्यालय के प्राचार्य श्री मुबारक हुसैन मन घलो अपन विचार रखत सम्बोधित करिन। आयोजन के भार बोहइया श्री चोवाराम वर्मा बादल के तरफ ले बीच बीच मा जम्मो पहुना मन ला साल श्री फल अउ मया चिन्हारी भेंट करे गीस। आयोजक डहर ले जलपान मा ठेठरी, खुरमीअउ अरसा रोटी परोसे गीस जेन ए कार्यक्रम मा खास बात रहिस।श्री मुबारक हुसैन प्राचार्य जी आभार के शब्द संग कार्यक्रम के समापन होगे।
छत्तीसगढ़ मा सनातन धरम के मनाइया माईलोगिन मन मांग भरथे। बिहाव होय दीदी, बहिनी, महतारी मन के चिन्हा आय मांग के सेंदूर। सेंदूर लाल रंग के होथे।कहे जाथे एला हरदी, चूना अउ मरकरी , गुलाब जल मिलाके बनाय जाथे। एक कमीला नांव के पेड़ के फर ले घलाव सेंदूर निकलथे। इही ल बिहाव के पाछू अपन मूंड़ मा बीच मांग मा ओ माईलोगिन मन भरथे, जेकर गोसाइया जीयत रथे।मानता हवय कि अपन गोसइया के उमर बढ़ाय बर एला करे जाथे। सीता माता बनवास के बखत कलीमा पेड़ के फर के सेंदूर मा मांग भरय।फेर आज सेंदूर लगइ अउ मांग भरइ ल फैसन बना डरीन। अब नउकरहीन लागे न बिन नौकरी वाली सबोमन आनी बानी के चूंदी कोरथे, टेड़गा बेड़गा मांग निकालथे अउ मांग ल भरय नहीं आगू मा थोकिन चिन्हा लगा लेथय।अब तो सुक्खा सेंदूर कमती लगाथय। कहे जाथे ये सब टीवी सीरियल के परभाव आय। वहू मा ठीकेच हे फेर अब इही टीवी सीरियल मा सेंदूर के रंग लाल के जगा नीला करे जात हे । मै एकठन सीरियल मा देखेंव ते अकचकागेंव।सोचेंव एक दिन अइसनो भी आ सकत है कि सेंदूर के रंग फैसन के हिसाब ले माईलोगिन मन करिया, हरियर, गुलापी, पिंवरी , सादा कर देहीं। एकर बर कोनो टोकहीं तब ओला अधिकार के हनन कहिके झगरा करा देहीं। टीवी अउ बिदेसी मन के संउख ले हमर संस्कृति के रक्छा हमर दीदी ,बहिनी, महतारी मन ल करेबर परही। ओकर बर तुमन आगू आवव।
हमर देस मा मउसम (रीतु)ल छे भाग मा बाटे हावय जेमा तीन मउसम गरमी,चउमास अउ जड़कला परमुख आय।जड़कला के मउसम हमर तन के अड़बड़ अकन परभाव बढ़ाय बर अच्छा होथे।ताकत, रकत, बिमारी ले लड़े बर प्रति रोधक। ए माउसम मा खाय पिये के बने बने जिनीस घलो मिलथे।लालभाजी,पालक, चनाभाजी, राखड़ी तिवरा भाजी आनी बानी के आयरन वाला भाजी खाना चाहिए। नरियर,चना,गुर अउ गरीब के बदाम फल्ली दाना ल जौन ए मउसम मा खाही ओला डाक्टर जगा जाय के जरुरत नइ परय।गाजर खाय के घलो बनेच फायदा हे। ये मउसम मा पसीना नइ निकले ले तन ले पानी सिराय के समस्या नइ होय। थकासी नइ लागय। खाय पिये के संगे संग खेले कूदे बर घलाव ये मउसम अड़बड़ बढ़िया रहिथे।बिहनिया ले रेंगे अउ दउड़े ले बच्छर भर ताकत रहिथे।फेर सबले बढ़िया ये मउसम ल योग प्राणायाम बर माने हावय।जड़कला मउसम के तीन महिना मा योग करे के फायदा सालभर मिलथे। अइसे तो योग ल रोज बिहनिया बिहनिया बच्छर भर करे जा सकत हे।
पांच तत्व के काया ल तीन तत्व रोजीना चाहिए। वइसने मन के कचरा ल निकाले बर योग के जरुरत होथे। योग करे से मन के कचरा निकल जाथे।एकर से मन के उदासी भगा जाथे।जुबान घलाव मीठ हो जाथे।सब डहार खुशी छा जथे।समाजबर कोनों नवा बुताकरे के ताकत अउ बुद्धि मिलथे। परिवार के संगे संग अरोस परोस संग बेवहार में नरमता आथे।सही विधिविधान ले जौन योग करथे ओला तो डाक्टर के जरुरत नइ परय ओकर बड़े ले बड़े बिमारी के नास हो जाथे।महर्षि पतंजली के लिखे योग सूत्र ह बिन पइसा के बड़का बड़का बिमारी ल दुरिहा देथे।
आजकल भारत के योग ल संसार भर के मनखे मन अपनावत हे। ऐला बहुत अकन संस्था मन अपन अपन ढंग ले बढ़ावत हे। योग प्रानायाम ह जिंनगी ल सुख अउ खुसी ले जिये बर तरीका घलाव बताथे। कतको झन योग ल आत्मा के परमात्मा ले मिलन कहे हे ।फेर ओकर रद्दा मा चलेबर नानम परकार के तरीका होथय। आज घरो घर मा बिवाद होना आम बात हो गे हावय। मनखे ह अपन जीनगी ल तनाव मा जीयत अउ राख करत हे। परमात्मा ह ओला खुस रहेबर अउ सबो आत्मा ल खुस राखेबर भेजे हावय फेर अपन तो खुस नइ हावय दूसर ल घलो दुख देवत हे।
आपस मा परेम बेवहार कमती होवत अउ नत्ता गोत्ता टूटत जावथ हे। मनखे के मन लालच,इरखा,कामना, घुस्सा मा बूढ़त जात हे।पहली निरोग लइका जनम धरय अब बिमारी धर के लइका जनम लेथे। एकर इलाज डाक्टर अउ बिग्यान करा नइ हे।ऐला योग के माध्यम ले बने करे जा सकत हे। हमर छत्तीसगढ़ सरकार ह स्वामी रामदेव के सलाहा मानके भारत मा पहिली योग आयोग के गठन करे हावय।छत्तीसगढ़ प्रांत ह योग आयोग गठन करईया पहिली प्रांत बनगे हावय।बिस्व विद्यालय मा योग पढ़ाय बर पाठ्यक्रम चालू होगे हावय। अब गांव गांव मा योग के माध्यम ले मनखेमन ल निरोगी जिनगी जीये के गुर सिखाय जाही जेकर बर योग मास्टर तियार करे जावत हे। अब ओ दिन दुरिहा नइ हे जब योग से मनखे निरोग होही।एकरे सेती कहे हावय। जड़कला मा करव योग अउ रहव निरोग।
भासा के नाम म एक अऊ तामझाम के दिन, 28 नवम्बर। बछर 2007 ले चले आथे। ये दिन गोठ-बात, भासनबाजी, छत्तीसगढ़ी गीत-कविता, किताब बिमोचन, पुरस्कार बितरन। बस ! मंच ले उतरे के बाद फेर उही हिन्दी-अंगरेजी म गोठ। छत्तीसगढ़ी ल तिरया देथे । आज छत्तीसगढ़ी राजभासा के जनमदिन ए। राजनीतिक-समाजिक नेता, पत्रकार-साहितकार, कलाकार-कलमकार, अधिकारी-करमचारी अऊ जम्मो छत्तीसगढ़िया बर गुनान करे के दिन ए । सबे कहिथे के छत्तीसगढ़ी बड़ गुरतुर भासा ए। एकर गोठ ह अंतस म उतरथे। एकर ले अक्तिहा छत्तीसगढ़ी के सरूप नइ दिखे।
छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़ी हमर गरब ए। छत्तीसगढ़ी सिरतो बहुंत गुरतुर अऊ सहज-सरल हे। एकर गीत-संगीत लाजवाब हे। फेर, एला लिखे-पढ़े म थोरकुन कठिन लगथे। काबर के लिखे बर सही रूप म काम नइ होहे। हर जिला, तहसील, कस्बा, गांव अऊ टोला म छत्तीसगढ़ी सब्द के उच्चारन अलग-अलग ढंग ले होथे । एकरे ले लिखइया जइसने गोठियाथे, तइसने लिखथे। लिखइया ह अपन छेत्र के हिसाब ले ठीके लिखथे। फेर, पढ़इया बर कठिन हो जथे । काबर के, अलग-अलग पाठक ह सब्द के उच्चारन अलग-अलग करथे। अइसन म पाठक ह रचना पढ़े म सहज नइ हो पाय, ठठक जथे।
जादा दुख तब होथे, जब एक छत्तीसगढ़िया भाई ह छत्तीसगढ़ी म गोठियाथे अऊ दूसर छत्तीसगढ़िया ह हिन्दी जवाब म देथे । हिन्दी गोठियइया छत्तीसगढ़िया ह सायद ये समझथे के वो हिन्दी जानथे त जादा समझदार हे । ये गिरे हुए मानसिकता ए । अइसने होतिस त हिन्दी, अ्रंगरेज अऊ बड़े बिदेसी भासा के गोठियइया मन सबके-सब सुजान होतिस । ओ भासा म कनो चोर-डांकू, गंवार-जाहिल, बेरहम-बदमास नइ होतिस । भासा फकत गोठ-बात अऊ बिचार जनाय के जरिया ए । भासा ले न कोई गंवार हो जथे, न कोई गियानी । गंवार या गियानी होना मनखे के निजी बात ए । माईभासा ह माटी, महतारी अऊ ममता के मान ए ।
छत्तीसगढ़ी के एक दिक्कत इस्कूल-कालेज पढ़इया-लिखइया लईका मन के हे । नर्सरी ले अंगरेजी- हिन्दी भासा म पढ़त-लिखत हे । घर-परिवार-समाज म सब छत्तीसगढ़ी नइ बोले । एकर ले लईका मन छत्तीसगढ़ी ल सजह रूप म नइ गोठिया पाय । उंकर गोठ-बात म हिन्दी या अंगरेजी के परभाव रहिथे । ये सुभाविक हे । एकरे ले भासा ल निरमल जल समान माने जाथे । जइसे नंदिया म नरवा-ढोड़गा के पानी समा जाथे, तइसने किसम के भासा ल घलो नंदी समान होना चाही । छत्तीसगढ़ी ल घलो दूसर भासा के सब्द ल अपनाना चाही । एकर ले छत्तीसगढ़ी के कोठी च भरही ।
छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन नइ होय ले लिखे-पढ़े म दिक्कत हे । छत्तीसगढ़ी लेखन म बिबिध रंग-ढंग देखे ल मिलथे, जइसे अऊ-अउ-आऊ, जइसे-जईसे-जैसे, लिखइया-लिखईया-लिखैया, पीरीत-पिरीत-पीरित, परमेश्वर-परमेस्वर-परमेसवर, रायपुर-रयपुर, दुर्ग-दुरूग, बिलासपुर-बेलासपुर अनुष्का-अनुश्का-अनुस्का, मृत्युदण्ड-मृत्युदन्ड-मीरीतयुदण्ड, प्रकाशक-परकासक-प्रकासक, कहानी-कहिनी-काहनी, स्कूल-इसकूल, कॉलेज-कलेज, प्रकृति-परकीरीति, धृतराष्ट्र-धीरीतरास्ट्र, श्रीमती-सिरीमती, श्रीकृष्ण-सिरीकिरीस्न । अइसने असंख्य सब्द हे । जिंकर कई रूप साहित्य अऊ समाचार पत्र म मिलथे । लिखे-दिखे म उटपुटांग, पढ़े म परान छोड़ान । एकर ले छत्तीसगढ़ी कठिन हो जथे । भासा जतना सहज-सरल होथे, वतना ओकर परसार होथे। ये खातिर छत्तीसगढ़ी सब्द मन के मानकीकरन सबले जरूरी हे ।
छत्तीसगढ़ी लिखे बर देवनागरी लिपि हे । देवनागरी म सब्द के उच्चारन म समय के अनसार लघु-दीर्घ मांत्रा लिखे जाथे । मोर बिचार म मनखे, जगा अऊ जीनिस के नाम ल हिन्दी रूप म लिखना चाही । काबर के नाम के वर्तनी म अंतर होय ले भासा के सहजता खतम हो जथे । छत्तीसगढ़ म पहिली सिक्छा बंहुत कम रीहिस । असिक्छा के सेती हिन्दी सब्द ल सुभिता अनसार छत्तीसगढ़ी म बोले-गोठियाय । एकरे ले छत्तीसगढ़ी म पहिली ”ण, व, श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ, प्र, त्य“ के उच्चारन नइ हाय । त सहज रूप म “न, ब, स, क्छ, तर, गिय, पर, ति” उच्चारन किये जाए । अब सिक्छा के बिकास होगे हे, त अब हिन्दी के सब्द मन ल छत्तीसगढ़ी म उपयोग करना चाही । अंगरेजी, उर्दू, अरबी, फारसी, उड़िया, बांग्ला, मराठी, तेलगू, कन्नड़, संस्कृत सबो भासा के सब्द ल सहज रूप म लिखना चाही । सबले बड़े बात ये हे छत्तीसगढ़ी गोठियाय म कनो छत्तीसगढ़िया ल लाज-सरम नइ होना चाही । रद्दा-बाट होय के, दुकान-दफ्तर जइसन भासा गोठयइया मिले, तइसन तंहू गोठियायव । हिन्दी म हुंकारो । अंगरेजी म फटकारो ! छत्तीसगढ़ी म दमोरो ! छत्तीसगढ़ी गोठियाय म कोई लाज-सरम नहीं । तभे छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अऊ छत्तीसगढ़िया के बिकास होही । मान बड़ही ।
जय भारत ! जय छत्तीसगढ़ !!
चिरई-चिरगुन पेड़ में बइठे,भारी चहचहावत हे।
सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।
हसिया धर के सुधा ह,खेत डाहर जावत हे।
धान लुवत-लुवत दुलारी,सुघ्घर गाना गावत हे।
लू-लू के धान के,करपा ल मढ़ावत हे।
सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।
पैरा डोरी बरत सरवन ,सब झन ल जोहारत हे।
गाड़ा -बइला में जोर के सोनू ,भारा ल डोहारत हे
धान ल मिंजे खातिर सुनील,मितान ल बलावत हे।
सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।।
पानी ल छुबे त ,हाथ ह झिनझिनावत हे।
मुहू में डारबे त,दांत ह किनकिनावत हे।
अदरक वाला चाहा ह,बने अब सुहावत हे।
सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।।
खेरेर-खेरेर लइका खांसत,नाक ह बोहावत हे
डाक्टर कर लेग-लेग के,सूजी ल देवावत हे।
आनी-बानी के गोली-पानी,अऊ टानिक ल पियावत हे।
सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।।
पऊर साल के सेटर ल,पेटी ले निकालत हे
बांही ह छोटे होगे,लइका ह रिसावत हे।
जुन्ना ल नइ पहिनो कहिके,नावा सेटर लेवावत हे।।
सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।।
रांधत – रांधत बहू ह,आगी ल अब तापत हे
लइका ल नउहा हे त ,कुड़कुड़-कुड़कुड़ कांपत हे।
इसकूल जाय बर जल्दी से,तइयार ओला करवावत हे।
सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।।
घर में बइठे-बइठे बबा ,बिड़ी ल सुलगावत हे
घाम तापत-तापत बने,नाती ल खेलावत हे।
जांघ में लइका सूसू करदिस,बबा ह खिसियावत हे।।
सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।
महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
संपर्क — 8602407353
महिमा गुरू के हावय महान
काबर हमन हन अनजान
जाड मा संगी झन खावा खीरा
कोन समझ हि शिक्षाकर्मी के पीरा
एहा जम्मो बुता करे
बुता करके बिमार परे
नई करय कोनो काम अधुरा
कोन समझ हि शिक्षाकर्मी के पीरा
आगे चुनाव अउ जनगणना
एखर होगे अब तो मरना
आदेश ला एहा पुरा करहि
ततो एला रोटि मिलहि
मंहगाई के जुग मा
तडपत हावय भुख मा
एला देवा वेतन पुरा
कोन समझ हि शिक्षाकर्मी के पीरा
वेतन एखर जब मिलहि
परिवार के चेहरा तब खिलहि
उंट के मुंह मा जइसे जीरा
कोन समझ हि शिक्षाकर्मी के पीरा
अजब गजब के अब्बड़ नखरा
तैंय ह झन देखा न वो
अंतस भितर म तोर का हे
ओला तैय बने बता न वो
काबर तैंय मुहुं फुलाथस
तोर बिचार ल सुना न वो
रहि रहि के भरमात रथस
अपन संग मोला रेंगा न वो
मया करे बर कुछु सोचत होबे
पांव म पांव मिलाके चल न वो
दुसर के देखा देखी म आके तैंय
छल कपट झन करे कर न वो
झगरा लड़ई म काहि नईहे
मया पिरित ह टुटथे वो
बईरी जईसन मन ह
अईसन बेरा म दिखत रहिथे वो
मोला कोनो अखरय नहि
मया करबे त करले वो
पहिली तोर हिरदय म
मया पिरित के नाता भर ले वो!!!
छत्तीसगढ़ के तिज तिहार
छत्तीसगढ़ के तिज तिहार
हरियर हरेली तिहार मनागे
आरी पारी सबहो परंपरा
जम्मो तिहार अब आगे
हरेली के बाद राखी तिहार
बहिनी मन म खुशी छागे
भाई बहिनी के मया पिरित
रक्षाबंधन डोरी सुंत बंधागे
राखी तिहार बाद कमरछठ
लईका बर उपास राखथे
जन्माष्टमी के दिन दही लुट
आठे गोकुल तिहार मनाथे
तीजा-पोरा बर बहिनी ल
लेनहार तीजा लेवाय ल जाथे
दाई ददा अउ भाई भउंजाई
मईके के सुरता सुध लमाथे
तीजा पोरा के बिहान दिन
गणेश भगवान ल मढ़ाथे
गियारा दिन ले पुजा पाठ
तरिया म बिसरजन कराथे
सरग सिधार पुरखा ल
पीतर पाख म बलाथे
बरा सोंहारी अउ दुधभात
तोरई पान म भोग लगाथे
कुंवार नवराति मंदिर देवाला
नवदिन तक जोत जलाथे
मेला भराथे नवदिन ले
लोगन दरस बर जाथे
दसमुड़ी रावण ल मारके
विजयदशमी तिहार मनाथे
देवी देवता के पुजा पाठ
नवा चाउंर के नवाखाई खाथे
कातिक महीना सुरहुती दीया
घरो घर म दीया जलाथे
गोबरधन पुजा देवारी के दिन
गौमाता ल खिचड़ी खवाथे
अग्हन म धान मिंजई कुंटई
गंवई गांव म गांव बनाथे
पुस माघ म मेला मडंई
गांव-गांव म भराथे
मया पिरित के होली तिहार
फागुन के रंग-गुलाल लगाथे
अईसन हे हमर तीज तिहार
जूर मिलके सबो मनाथे??
सरकार हा, ब्लू व्हेल कस, खतरनाक गेम ले होवत मऊत के सेती, बड़ फिकर म बुड़े रहय। अइसन मऊत बर जुम्मेवार गेम उप्पर, परतिबंध लगाये के घोसना कर दीस। हमर गांव के एक झिन, भकाड़ू नाव के लइका हा, जइसे सुनीस त, उहू सरकार तीर अपन घरवाले मन के, एक ठिन ओकरो ले जादा खतरनाक गेम उप्पर, परतिबंध लगाये बर, गोहनाये लागीस। सरकार बिन कुछ सुने, मना कर दीस। पढ़हे लिखे भकाड़ू, कछेरी पहुंचगे, नालीस कर दीस। कछेरी म जज पूछीस – तुंहर गेम कइसे खतरनाक हे तेमा, परतिबंध लगवाये बर पहुंचगे हाबस। भकाड़ू किथे – हमर घर के मन, जे गेम ला खेलत आवत हे जज साहेब ….. तेमा, मोरेच जानती म, मोर बबा, ददा अऊ कका के संग न सिरीफ मोर गांव के बलकी हमर देस के कतको मनखे, कन्हो फांसी लगाके, कन्हो जहर खाके, कन्हो टरक के आगू आके, अपन परान ला दे दीस। हमर ये गेम बहुतेच खतरनाक हे साहेब ….., येला खेलइया मनखे हा, भूख पियास ला तियाग के, बारों महिना लगे रहिथे। कुछेच दिन पहिली मोर परोसी हा ये गेम के चक्कर म, का मरीस…….., ओकर परिवार के नान नान नोनी बाबू मन, भूख ले तड़फ के मरगे…….। ये ब्लू व्हेल गेम ले, जादा खतरनाक हे साहेब, ब्लू व्हेल गेम तो सिरीफ, खेलइया के जान लेथे साहेब, ये खेल म तो, पूरा परिवार के परिवार खतम हो जथे, एमा जतका जलदी हो सके परतिबंध लगवा देतेव, हमरो घर परिवार गांव अऊ देस बांच जतीस।
अदालत किथे – तोर हालत ला देख के लगय निही के, तूमन अइसन कन्हो गेम खेल सकत हव, जेमा जान चल देथे….। जज साहेब सरकारी ओकिल कोती देखीस। सरकारी ओकिल जवाब देवत किहीस – सरकार केवल उही खेल म परतिबंध लगाये हे जेहा, मोबाइल म खेले ले, परान लेथे। येहा गरीब मनखे आय, येकर तीर मोबाइल कतिहां ले आही तेमा ….? भकाड़ू किथे – हमर हाथ म कुदारी, रापा अऊ नांगर के मूठ रिथे साहेब, हमन किसान आवन साहेब….. हमन ला ओतका फुरुसुत कहां के, मोबाइल के बटन चपक सकन। हमन अपन खेत म , पछीना बोहात ले खेलथन तब, अन्न उपजथे……..। चाहे चरचर ले घाम उवे, चाहे हाड़ा कांपत जाड़, चाहे कतको बादर पानी पदोये …….सबला झेल के, खेत अऊ खलिहान म माटी संग, गेम खेलइया कतेक दिन जीही साहेब ……..। हमर गेम के फर खाके, तुंहर कस बड़े मोबाइल वाले मनखे मन, अपन मौज म गेम खेलथे साहेब ……, जे दिन हमर खेल म परतिबंध लग जही ….वो दिन न काकरो हाथ म मोबाइल रहि, न कन्हो परकार के अइसन मीडिया …..तब कोन अइसन गेम खेलही अऊ कोनेच हा मरही ……। हमरो उप्पर किरपा करव, हमर गेम म परतिबंध लगवाके, हमू मन ला बचालव, सरी दुनिया बांच जही…….।
सरकारी ओकिल घला तियारी ले आय रहय। ओहा जवाब देवत किहीस – जज साहेब, गरीब किसान मनखे के, कन्हो गेम म परतिबंध लगाबो, त जम्मो देस म, बिपकछी मन, फोकटे फोकट हावी हो जही। सरकार के थुवा थुवा हो जही। गरीब किसान मनके, बिसेस खियाल रखइया रहनुमा आवन हमन ……ओकर सतनतरता म हमन बाधा नी परन ……। ये ब्लू व्हेल गेम खेलइया कतकेच मनखे हे तेमा …….ओकर उप्पर परतिबंध लगइच देबो, त कोनेच ला कतका फरक पर जही। कछेरी, सरकारी ओकिल के गोठ ला को जनी कतका समझिस, फेर, केस खारिज करत सिरीफ अतके किहीस के, किसान अपन गेम खेले के सेती निही, बलकी अपन संग, गेम खेलइया के सेती, आत्महतिया करत हे। दूसर संग गेम खेलइया उप्पर, हमर देस म कन्हो कानून निये तेकर सेती, अइसन मन के उप्पर अदालत के कन्हो जोर निये …….।
जादा दिन के घटना नोहय।बस!पाख भर पाछू के बात आय।जेठौनी तिहार मनावत रेहेन।बरदिहा मन दोहा पारत गांव के किसान ल जोहारे म लगे रहय।ए कोती जोहरू भांटो एक खेप जमाय के बाद दुसरइया खेप डोहारे म लगे राहय।भांटो ह घरजिंया दमांद हरे त का होगे फेर जांगरटोर कमइया मनखे हरे।अउ जांगरटोर कमइया मनखे ल हिरू-बिछरू के जहर ह बरोबर असर नइ बतावय त पाव भर दारू ह ओला कतेक निसा बतातिस।भले आंखी ह मिचमिचात रहय फेर चुलुक लागते राहय।मन नी माढिस त फेर दारू लानके पीये बर बइठगे वतकी बेरा ओकर संग मानकू भइया संघरगे।आने कोनो जिनिस होतीस त भले नी पूछतिस फेर निसा पानी के जिनिस म बिकटहा बेवहार देखाय बर परथे।दूसरइया खेप ह घलो भांटो के मन मुताबिक असर नी बताइस त ओहा मानकू भैया ल अपन टिरटिरी गाडी के पाछू म बइठार के हेटरिक मारे बर चल दिस।
दवई होय चाहे दारू घंटा भर के बादे असर बताथे।जाय के बेरा म तो भांटो ह बने होस म गिस फेर आधा रद्दा म गिस ताहने निसा के मारे गाडी ल खेत म पेला दिस।दनाक ले भांटो अउ मानकू भैया गिरिस।भांटो गाडी सुद्धा खेत के मेंड म गिरिस अउ मानकू ह दूसर के खडे धान वाला खेत म जाके गिरिस।धान म गिरिस त ओला थोरको नी लागिस;फेर जोहरू भांटो के मुडी ह मेंड म परिस त ओहा मखना बरोबर फूटगे।मुडी ले तर-तर लहू बोहाय लगिस।एला देखके ओहा सुकुरदुम होगे।अपन पंछा म भांटो के मुडी ल बांधिस अउ तुरते मोर कना फोन मारिस अउ जम्मो हाल ल बताइस।में ह तुरते उंकर घर जाके मंटोरा दीदी ल घटना के बारे म बतायेंव।में ह भांटो ल अस्पताल लेगे बर 108 म फोन लगाहूं केहेंव त दीदी मना कर दिस।किहिस के मंद महुवा पीये हे फोकट के थाना कछेरी हो जही।तुही मन जा के लानव भाई!!
एदे होगे हमर मरना।दारू पीके मजा मारे दूसरा अउ भुगतना भोगे दूसरा।फेर का करबे दीदी के मांग के सेंदूर के सवाल रिहिस।उत्ता धुर्रा उंकर घर के भांचा अउ परोस के चैतू भइया संग भांटो ल लाने बर मौका ए वारदात के ठीहा म पहुंचेन।भांटो ह अचेत परे रहय अउ ओकर जोडीदार मानकू ह कांखत उही मेर बइठे रहय।लटपट भांटो ल लायेन।घंटा भर होवत रहय।घर म रोवारई सुरू होगे।पारा परोस के सियनहा मन किथे-एला असपताल लेगो रे भई।
जम्मो मनखे हां म हां मिला दिन।अब लेगे कोन?सबो झन तय करिन के भांटो के छोटे सारा रतन,दीदी अउ वो टेपरा मुंहू के टुरा घलो जही जे लाने बर गे रिहिस माने में।
गंवई म बरोबर बिकास नी हबरे हवय आज घलो सियनहा मन के आदेस ल माने के मजबूरी हवय।कोन जनी कोन अढहा एला संस्कार कहिदिस ते।लकर-धकर दीदी ह कपडा-ओनहा ल धरिस।ताहने रेमटा भांचा ह घलो संग म जहूं किके पदोइस त वहु ल धरेन।में, रतनू भैया अउ दीदी भांटो ल लेके सरकारी असपताल म पहुंचेन।अबक तबक परची कटवायेन त डाक्टर ओला भरती करिस।ओकर मुडी ल फूटहा अउ मुंहू ल बस्सावत देखके पूछिस-इसका एक्सीडेंट हुआ है क्या?मोर मुंहू खोले के पहिली दीदी बताइस-नीही साहब!तिहार-बार के सेती थोरकुन पीये रिहिस।निसा के मारे खटिया ले गिरगे।उही म माथ ह फूटगे।ओकर गोठ ल सुनके सोंचेंव-जय हो छत्तीसगढ़ के नारी!पति के ऐब दबावत हस,भले खथस रोज मार ,गारी!!
डॉक्टर गिस ताहने एक झन गोइहा टाइप कंपांउंडर आइस अउ मरहम पट्टी करिस।पट्टी बांधे के बाद कथे-हम तुम लोग के बारे में जानता हे।एकर मूड दारू पीके कंहीं पर झपाने से फूटा है।मोला थकौनी पइसा दो।नहीं तो में डॉक्टर को सब फोर के बता दूंगा।ताहने थाना कछेरी होगा।
थाना कछेरी के गोठ ल सुनके दीदी बिचारी डर्रागे अउ ओला तुरते अंचरा ले निकाल के सौ रुपिया दिस ताहने वोहा चल दिस।एती रात के दस बजती आगे राहय।भांटो दू घंटा ले अचेत परे राहय।
डॉक्टर फेर देखे बर आइस।हांथ गोड ल टमरिस ताहने कथे-इसको होस नहीं आ रहा है।रायपुर के बडे असपताल में भरती करना पडेगा।इसको ले जाने की व्यवस्था करो।मैं परची बना देता हूं।- किहिस अउ एकठन कागद म एडेंग-बेडेंग लिख के रेंगते रेंगिस।
एती दीदी के रोवई सुरू होगे।लटपट ओला चुप करवाके गाडी मंगायेन।अउ भांटो ल रयपुर लेगे बर जोरेन।भांचा ल घर भेजवायेन।दीदी,रतन भइया अउ में रयपुर के अस्पताल म हबरेन।
असपताल नोहय ददा!को जनी का हरे ते।बड जनिक बिल्डिंग।गेट में बंदूकधरे सिपाही ल देखके रतन भइया उंहा खुसरे बर डर्रावत रहय।
में ह थोरिक हुसियार बरोबर डॉक्टर के परची ल देखाके खुसरेंव त उंहा फेर परची कटाय बर किहिस।वहू ल कटायेन अउ परची कटइया नोनी के बताय मुताबिक कुरिया म खुसरेन।उंहा पहिलीच के चार झन मनखे मन गोड हांथ ल ओरमा के परे रहय।में सोचेंव नरक म आगेन क ददा!जम्मो मनखे कुहरत राहय।हमन ल देखके कइ झन गुरेरत घलो रहय।जनो-मनो हमन उंकर पलंग ल नंगा लेबो।
अउ थोरिक देर म डॉक्टर अइस ताहने मोर सोचना संही होगे।ओहा एक ठन पलंग ल खाली करवाके भांटो ल सुताय बर किहिस ताहने पहिली के सुते मनखे मन हमन ल बखानत निकलगे।डॉक्टर परची ल देखके हमन ल किहिस-पेसेन्ट के हालत बहुत खराब हे।इसको कल सबेरे खून चढाना पडेगा। ओ पाजेटिव ग्रुप के व्यवस्था कर लेना।अतका बता के वोहा चल दिस।भांटो ल छूइस तको निंही।एती रात भर संसो अउ भुसडी चबई के मारे नींद नइ परिस।बिहाने आंखी अपने अपन मुंदागे त सफई वाला मन हेचकारत उठा के किथे-तुम्हारे ददा का घर है क्या?अराम से गोड लमाके सुते हो।
हमन हडबडा के उठेन अउ खून के बेवस्था करे बर निकल गेन।एक झन मनखे ल पूछेन त ओहा खून मिले के ठीहा ल बताइस।उंंहा गेन त तारा लगे रिहिस।खुलही त खून लेबो किके उही मेर बड देर ले एती ओती किंदरत रेहेन।हमन ल बड देर ले उही मेर खडे देखके वोहा सायद हमर मुस्कुल ल समझ गे रिहिस काते?वो ह हमर तीर आके किथे-तुम लोग को खून चाही न।में दूंगा।बिपत में परे मनखे बर अनजान जघा म एकर ले बडका खुसी के बात का होतिस।हमन तुरते तियार होगेन अउ ओला अस्पताल डहर चल केहेन त ओहा किथे-एकदम देहाती हो क यार!खून को डारेक्ट नी चढाते है।पहिली उसको बोतल में डारा जाता है।डाक्टर आयेगा तब निकालेगा।अच्छा!एक काम करो में बिहनिया ले भुख मरत हंव।पहिली नास्ता-पानी के लिए पैसा दो।में ह तुरते ओकर हांथ म दस के नोट ल धरायेंव।
दस के नोट ल देखके वो मनखे हमर बर बिफरगे।भन्नावत किथे-भिखमंगा समझा है क्या?दस रुपया में बीडी नहीं मिलता है।तुम लोग को नास्ता मिलेगा!!सौ रुपया दो तब आउंगा ।नहीं तो में चला।अलकर में फंसे मनखे ल समे परे म गदहा ल घलो बाप बनाय बर लागथे।ओतका बेर वोहा हमर वइसनेच ददा रिहिसे।
सौ रुपया ल धरके वोहा चल दिस अउ हमन ओकर अगोरा म बइठे ओकर बाट जोहत रेहेन।हमन ल लांघन-भूखन बइठे मंझनिया बितगे।हमन समझगेन कि हमर सौ रूपिया गंवागे।भूख पियास अउ दुख के मारे हमर थोथना उतरगे।तभे एक ठन बिचित्र बात होइस।बिहनिया के जेन मनखे ह खून देबर पैसा लेगे रहय तेन ह आगे अउ किथे-इंहा मेरा सब सेटिंग हे।तुमन मोला दू सौ रूपिया अउ दो।तब में खून के बेवस्था करता हूं।हमन ओकर हांथ म तुरते दू सौ रूपिया देयेन ताहने वो मनखे भीतरी म खुसरगे।थोरिक देर बाद एक झन डाक्टर ह वो मनखे के बांहा ल धरके निकलिस अउ किथे-इसको कौन लेके आया है।खुद मुस्किल से जी रहा है और दूसरे को खून देने चला है।
हमन डर्रागेन।वो मनखे हमर तीर आके किथे-में खून देने के लिए तैयार था।वो लोग नी निकाले तो में क्या करूँ।ओके भाई लोग!!!काहत ओहा हांथ हलावत अछप होगे।हमन मुड ल धरके बइठ गेन।मुंहू ल ओथार के कलेचुप असपताल आगेन।दीदी पूछिस त ओला कहानी ल बता देन। संझौती बेर फेर उही डाक्टर आइस त भांटो ल देखिस अउ बिना चेक करे फेर खून पूछिस।हमन नी लाय हन किके बताएन त ओहा फेर खिसियावत चल दिस।घंटा भर बाद एक झन सिस्टर आके भांटो ल गुलुकोज चढाके रेंग दिस।असपताल के दूसरा रात ल फेर लटपट काटेन।एक दिन पहिली तो खून के चक्कर म भूख मरे रेहेन तेकर सेती पहिली में अउ रतन भैया उही कना के ठेला म पहिली चाय संग डबलरोटी खाके निकलेन।पेट के भूख ह जघा अउ परिस्थिति ल नी जाने।का करबे!!
एक झन मनखे ल खून के बेवस्था बर पूछेन त बताइस कि खून के बदला म खून देय ले खून मिल जही।हमन ओकर बताय मुताबिक जघा म पहुंचगेन अउ उंहा के साहब ल हमन अपन परसानी ल बतायेन त बपुरा ह खून देय बर तियार होगे।अब खून कोन देय!में ह पहिलीच के संडेवा बरोबर दिखथंव त डॉक्टर साहब ह रतन भइया ल खून देय बर खंधोइस।बिचारा मानगे।ओहा खून देइस ताहने बदला म हमन ल भांटो के गुरूप वाला खून मिलगे।कोनो कबड्डी जितइया दल बरोबर हमन खून ल लेके असपताल पहुंच गेन।दीदी के जी म जी अइस।अब डाक्टर के अगोरा रिहिस।असकट लागिस त में ह असपताल के आने कुरिया म घूमे बर खुसरगेंव।एक ठन कुरिया म देखेंव एक झन मनखे ह बिकट किकियावत रहय।ओकर हांथ म एक झन सिस्टर ह मनमाने सूजी ऊपर सूजी बेधत राहय।वो बिचारा ह पीरा के मारे बियाकुल होवत रहय।में उंकर तीर जाके मेडम ल पूछ परेंव-काबर मनमाने सूजी देवत हव मेडम।ओहा मोर कोती देख के गुसियावत कथे-इसका नस नहीं मिल रहा है।इसको नस में सुई लगाना है।तुम कौन हो?बडा हुसियारी झाड रहे हो।चलो भगो यहाँ से।ओकर रिस ल देखके में ह ओकर ले कलेचुप खसकेंव अउ आने कुरिया म आयेंव त देखथंव एक झन मनखे ह पीरा के मारे कलहरत रहय अउ सिस्टर कस डरेस पहिरे नोनी मन कान म ईयरफोन गोंजके मनमाने मुबाईल म माते रहय।में ह उही मेरन ठाढे एक झन भइया ल पूछेंव-एमन इंहा के नरस मेडम हरे का भइया।त वो बताइस-एमन डाक्टरी पढइया लइका हरे।एमन सीखे बर इंहे आथे।में सोचेंव जिकर आगू म मरीज कलपत हे अउ ओमन मुबाईल म माते हवय त को जनी का सीखत होही।फेर हमला का करे बर हे भइया भांटो बने होइस ते इंहा ले भागे।अइसने बिचारत भांटो मन कना आयेंव त दू घंटा बितत रहय।डॉक्टर साहब के अता-पता नीही।खून के बाटल ल धरे-धरे संझा होगे,डॉक्टर साहब आबे नी करिस।पूछेन त पता चलिस साहब छुट्टी ले हवय।हमन खून के बाटल ल धरे धरे असकटागे रेहेन।अब तो एहा खराप होगे किके कचरा पेटी म फेंक देएन।भांटो ल गुलुकोज के बाटल चढेच रहय।अउ ओहा मनमाने नींद भांजत रहय।एती हमन ल भुगतत तीसर रात होवत रहय।तीन दिन ले इंहा के भुसडी मन सरी लहू ल चुहक डारे रिहिस।दू दिन कहूं अउ रूकबो त हमुमन नी बांचन काते? सोंचत नींद परगे।
बिहनिया बेरा म फेर उही डॉक्टर साहब आइस अउ फेर उही खून लाने के गोठ!मोर हिरदे म का गुजरत रिहिस मिंहीं जानथंव।फेर कुछु नी कहेंव अउ खून के बेवस्था करे बर फेर उही खून मिले के ठीहा म पहुंच गेन अउ उंहा के साहब ल अपन दुख ल बताएन।ओहा हमर भुगतना ल समझिस अउ किहिस कि पांच सो रुपिया जमा कर दव अउ खून ले जावव।तीन दिन ले नरक कस दुख भोगत रेहेन त डर के मारे साहब कना बिनती करेन-हमन खून ल डॉक्टर साहब मंगाही वतकी बेर लेगबो किके अउ नाव लिखाके पइसा जमा करेन अउ असपताल आगेन।दीदी ल जम्मो समाचार ल बतायेन अउ डॉक्टर साहब ल अगोरत रेहेन।बारा बजती बेरा म एक झन दूसर डॉक्टर साहब आके भांटो ल सूजी लगाइस ताहने भांटो उठके बइठगे।डॉक्टर साहब पूछिस कि क्या लग रहा है इसको?ताहने हमन गांव के असपताल ले लेके सरी भुगतना ल बताएन।डॉक्टर साहब बताइस कि मुडी म चोट लगे के सेती थोरिक बेहोसी आगे रिहिसे।अब बने हे।एला खून चढाय के कोनो जुरूरत नीहे।एला घर ले जा सकत हव।अब दीदी के खुसी के का पूछना ओहा घेरी-बेरी डॉक्टर के पांव परत रहय।में ह तुरते खून मिले के ठीहा म जाके ओला स्थिति बतायेंव त ओहा सौ रुपया काटके बांकि पइसा ल वापिस कर दिस।तुरते में ह असपताल लहुटेंव अउ भांटो के छुट्टी कराके घर लहुटे बर बस म बइठ गेन।बस म बइठेन त भांटो ह मोला धीरलगहा कथे-छिमा करबे जी सारा!मोला तो असपताल म भरती होय के दूसर बिहनिया होस आगे रिहिसे।आंखी खोलके देखेंव त तोर दीदी ह आघू म बइठे रिहिसे।ओहा बखानही किके फेर कलेचुप मिटका देय रहेंव।तुमन तो संझौती बेरा म आयेव।फेर ओ डॉक्टर ह घलो कामचोर रिहिसे मोला छुवे बिना तुमन ल खून बर हलाकान कर डारिस।भांटो के गोठ ल सुनके ओकर बर अबड रिस लागिस फेर ओकर ओखी म असपताल के हालचाल ल संउहत देखे बर तो मिलिस।
घर आके में ह एके बिनती करथंव-भगवान सबो झन ल सलामत रखय।कोनो ल असपताल के मुंहू देखे बर झन परय।